अध्येता यायावर (SCHOLAR GYPSY- By-MATHEW ARNOLD)
जाओ गडरिये...वे पहाड़ी से तुम्हें बुला रहे हैं...
खोल दो वे जंगले जो टहनियों से बने हैं
लालायित भेड़ों के झुण्ड को भूखा मत रहने दो
और मत चीखने दो प्यास से साथी कुत्तों को
कुतरी घांस के ठूंठों का मत लगने दो मेला
जब खेत हों खामोश और हो गोधूलि की बेला
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मजदूर और कुत्ते सब थककर हो गए हों चूर
सिर्फ सफ़ेद भेड़ें नजर आ जाएँ कहीं दूर
चाँद की दूधिया रोशनी में नहाये खेतों के पास
आओ गडरिये...ताजा कर ले किसी के मिलने की आस
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कटैया बहता है अपना पसीना देर तक यहाँ
छायादार इन खेतों के झुरमुटों में वहां
जहाँ रखा था उसने अपना गमछा,पोटली और सुराही
उगते सूरज के संग बाँधता है फसलों के ढेर
तब थकान से चूर भरता है अपना पेट दोपहर
यहाँ बैठ करूंगा मैं उसकी प्रतीक्षा उस पहर
दूर मैदान से गूंजेगी मेरे कानों में
मिमियाहट.... भेड़ के नन्हे छौने की
भुट्टों के खेतों में काम करते कटैयों की
और बेजान सी सरसराहट दुपहरी की
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ऊंचे अधकटे खेतों का यह छायादार कोना
ओ गडरिये!मैं रहूँगा यहाँ तब तक
जब तक आसमान में पसरेगा ,सूर्यास्त का सोना
सर उठाते हैं अहिपुष्प भुट्टे के घने खेतों में
गोल गहरी जड़ें और सुनहरे मक्के की बालें
मैं निर्निमेष निहारता हूँ अपलक किस तन्मयता में!
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किसलय उभरते हैं हरिणपदी की गुलाबी गोद से
महकती है मंदानिल नीम्बुओं की गंध से
पुष्पित हैं पारिजात पावसी सम्मोहन से
और रक्षित हैं मन मयूर आदित्य तप्त ताप से
दृष्टि यात्रा पसरती है आक्सफोर्ड की अट्टालिकाओं पर
विस्मृत होता है चंचल मन देहभान त्यागकर
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देखो!तृणशैया पर रखा है "ग्लानविल का रचना संसार"
पन्नों के पार्श्व पर अंकित अध्येता यायावर का कथा सार
प्रखर मस्तिष्क.. पर गरीबी से थक हारकर'
टूट गया मानव तन विपदा से जूझकर
...
अब सुनो कहानी एक अध्येता यायावर की
गर्मियों की एक सुबह उसने छोड़ी सोहबत दोस्तों की
चला गया यायावरों से सीखने बातें अबूझ तिलस्म की
चप्पा-चप्पा भटकता रहा दुनिया यायावरों की
जैसे बूझता हो पहेलियाँ,कंजर ... उत्पति गिरोह्जन की
पर कभी सुध न ली अपने दोस्तों और आक्सफोर्ड की
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कई बरसों बाद बन गया एक संयोग था
अचानक मिले दो साथी जिसे वह जानता था
दोस्त! कैसे बीत रही है जिंदगी पूछा उन्होंने
सबको हैरत में दाल दिया अध्येता यायावर की बातों ने
यायावर टोली जानती है तंत्र- मन्त्र -सम्मोहन!
वशीकरण से वश में कर लेना दूसरों का मन
विवश कर देता है इनकी मोहिनी का मोहपाश
जादुई विद्या के जोर पर करते है सर्वनाश...
और मैं.. बोलता रहा वह अध्येता यायावर
भौचक थे किस्सों से .. अवाक सारे श्रोता थे
उनकी कला का तिलस्म सीखकर आऊँगा मैं
कैसा है यह जादू दिखलाऊँगा मैं
पर पारंगत होने इस गूढ़ विद्या में
ईश्वरीय वरदान की चाह में प्रतीक्षारत हूँ मैं
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बस इतना कहकर चल पड़ा वह अध्येता यायावर
पर बात फैली सब और लपटों की तरह सर -सर
गावों में अरसे से गुम अध्येता यायावर दिखा था आज
कुछ देर बोला पर चिंतित सा .. क्या था इसका राज!
यायावर की तरह ही बन गया था अध्येता यायावर
वेश था उनके जैसा वैसा ही था उसका परिवेश
चोगा और अजूब टोपी,बस यही रह गया था शेष
घूमता रहा था अध्येता यायावर कई गाँव कई देश
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वसंत की एक भोर ... मिला वह दरख्तों के नीचे
जलते अलावों के पास था वह यायावरों के पीछे
असभ्य किन्तु अनुरागी,अनाडी लोगों के पास
जैसे ही वे चीखते चिल्लाते और मचाते शोर
अध्येता यायावर यक्ष- प्रश्न लेकर निकलता किसी और
जीवंत अंदाज उसका ऐसा खूब समझता था मैं
क्योकि लगता था की अगर वहां पर होता मैं
तो सरपट भाग निकलता कहाँ-कहाँ पर मैं
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पूछता था सभी से अपना चेहरा दिखाकर
बोलो देखा है ऐसे चेहरे वाले को तुमने कहीं पर!
पूछता था मैं खेतों पर बैठे रखवालों को
बोलो!वीराने रास्तों से गुजरते देखा है किसी को?
...
क्या अब मैं लेट जाऊं अपनी इस नौका में
समुद्र तट पर तैरती जो अटकी है लंगर में !
सूरज की रोशनी से चमकते चारागाह के निकट
और तकता रहूँ हरी चादर ओढ़े पहाड़ियों को विकट
इस उधेड़बुन में खोया हाकी वह अध्येता यायावर
क्या आया होगा इस अप्रतिम,अबूझ ठिकाने पर!
.....
वे हरफनमौला यायावर अक्सर यहीं डालते हैं डेरा
इसी जगह को कभी जंगलों और जानवरों ने था घेरा
यहीं उस अध्येता यायावर को मिली थी शांति की राह
आततायी विद्रूपता से विमुख होने विरक्ति की चाह
आक्सफोर्ड के छात्र यहीं करते थे नौकायन
ग्रीष्म यामिनी में घर लौटकर करने से पहले शयन
अपनी अँगुलियों से नदी की शीतल जलधारा को सहलाते
जैसे ही लंगर से छूटकर घूमती थी उनकी नौका
पीछे झुककर झूलने लगते थे स्वप्न का झोंका
उस्न्की गोद में रहते थे ढेर सारे फूल झर झरकर
छायादार शीतल ठौर,खेतों में लदी फसलों की सरसर
तकते रहते चन्द्रप्रभा से आल्हादित झरनों की कलकल
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पर हाय!आक्सफोर्ड के छात्रो ने पार कर ली थी नदी
चप्पा-चप्पा ढूँढा,अध्येता यायावर नहीं मिला कहीं
बालाएं जो आकर करती थीं नृत्य जहाँ-जहाँ
सांझ ढले हिरनी बनी गाँव की गोरियां वहां-वहां
अठखेलियों के साथ उन्होंने भी पार कर ली थी वह बाड
शायद! देखा होगा उन्होंने कहीं उस अध्येता यायावर को
जो भर देता था उनके आंचल में ढेर सारे फूलों को
पर कभी नहीं लाता था जुबान पर अपने मन की बातों को
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पुष्प-पवन पुष्प और नील घंटिका के
भोर के तुषार बिन्दुओं में भीगे-भीगे से
नीलवर्णी आर्किड,लुभावनी पत्तियों के
कोई न जान सका ठिकाने अध्येता यायावर के
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घूमने लगा काल चक्र और बीतता गया हर प्रहार
लू की लपटों से सहमता रहा रपटा दोपहर
सूखी घांस के गट्ठर लहराते थे लहर-लहर
और चमकने लगे रोशनी के टुकड़े दरान्तियों पर
सरसराते खेतों से जाया करते थे खेतिहर
वहीँ पर उतरते थे अबाबीलों के स्याह पर
थककर चूर,अठखेलियाँ -कल्लोल करते थे जहाँ पर
हाय! उसी डोह में कोई नहीं आता था वहां पर
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अचानक ही उनका मलिन मुख मुस्काया
सोचा!कितनी प्रतीक्षा के बाद अध्येता यायावर को पाया
उफनती नदी के तट पर बैठा था वह स्थिति प्रग्य
अजूबा सा परिधान पहने जारी था उसका भाव-यग्य
गहरी खोई सी आँखों में थी सपनों की छाया
दूर...से देखकर उसे, सबका मन हर्षाया
पर हाय! नियति को उनका सुख न भाया
जाकर वहां देखा तो उसे कहीं न पाया
गुम हो चुका था "अध्येता यायावर का साया
सोच उन सबने होगी यह ईश्वर की माया
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नहीं! वह दिखाई दे जाता था कहीं न कहीं पर
क्यूमर पहाड़ी की वीरानी में बसे किसी फ़ार्म हाउस पर
अपनी झलक दिखा देता था वह अध्येता यायावर
किसी प्रतीक्षारत गृहिणी को खुले दरवाजे पर
कोठारो पर जो गंधाते थे काई से
निहारत था वह थ्रेशर को अपलक नेत्रों से
मिलता था उन छौनों से जो विचरते थे ढलानों पर
और चनसुर की तलाश में भटकते थे सोतों पर
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सचमुच...उन्होंने ही देखा था उस अध्येता यायावर को
अपलक निहारते दूब की चादर ओढ़े खेतों को
खिलाता था वह चारा अक्सर भूखी गायों को
और प्रफुल्लित हो मुस्कान से खिला लेता ओठों को
गर्मियों में वह निकल पड़ता था वीरान जंगलों की ओर
पगडंडियों के किनारे बसे थे वहीँ यायावर तम्बू दोनों ओर
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हां .. आता था यायावर उन अबूझ बस्तियों में
चीथड़े और पैबंद थे जहाँ पर हर झाडी में
मीलों पसरी भूमि के ऊपर सारे जंगल में
कस्तूरक पक्षी दबाकर दाना अपनी चोंच में
विहार करते थे निडर, यायावरों की उपस्थिति में
निर्भय थे सभी ,ममतामयी प्रकृति की गोद में
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अक्सर सैलानी बन घूमता था वह अध्येता यायावर
सूखी टहनी घुमाते अपने हाथों पर
उस अलौकिक क्षण के लिए प्रतीक्षा रत था चेहरा
सर पर जब उसके सजेगा ...सफलता का सेहरा
12:52 pm
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