रविवार, 17 जुलाई 2011

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5. उलूक -        THE OWL -- by- EDWARD THOMAS 




पहाड़ियों की ऊंचाइयों से होकर                   
तलहटी तक नीचे उतरा मैं
भूखा ,पर नहीं था क्षुधार्त 
शांत पर ज्वालामुखी बसा था मुझमें 
उस उत्तरी चक्रवात से जूझने 
तब एक सराय में मैंने बुझाई
 अपनी आग,भूख और थकान 
मैंने समझा कि कितना अतृप्त 
और थककर चूर हो गया था मैं
निस्तब्ध निशा का वह सन्नाटा
जिसे चीरती थी कर्कश चीख
उलूक ध्वनि-कितनी अवसाद भरी 
लम्बी चीख पहाड़ी पर गूंजती
जिसमें न था ख़ुशी का लेशमात्र पर 
उस रात जो मैंने पाया दूसरों ने नहीं
जब मैं पहुंचा था उस सराय में 
पक्षियों के कलरव से आनंदित 
नक्षत-जडित नीली चादर के नीचे
उन सिपाहियों और ग़रीबों के लिए थी
वह मीठी चहक ,जो भूखे थे 
उस आनंद और उल्लास के

    6.शिशिर में वनों के राजहंस   THE WILD SWANS AT COOLE    -BY-Y.B.KEATS

सूखी  है  वनों  की  पगडंडियाँ                     
और वृक्षों पर छाया शिशिर का सौन्दर्य
शरत की गोधूली  वेला पर 
अंकित है स्थिर नीलाभ का प्रतिबिम्ब 
पत्थरों पर छलकती जलधाराओं के बीच
विहार कर रहे हैं राजहंस
******
मुझ पर छाई उन्नीस वसंतों की गमक
धवल परिंदों के परों का कोलाहल 
अचानक हो गया मौन...स्पन्दन्हीन
मेरा मन हो गया अवसाद से पूर्ण
गोधूली वेला में मैंने पहली बार महसूसी थी
घंटियों की मानिंद,धवल पंखों की थिरकन
आहिस्ता-आहिस्ता वह प्रणय नर्तन
अनथक हंस युगलों की जलक्रीडा
तब झरनों में थी ,अब नीलाभ  की ओर
प्रणय उन्माद    वही है ..पर गंतव्य सर्वथा नया
******
शिशिर  में ,रहस्यमय मोहक शांत जल पर 
झील के किनारे या किसी पोखर में 
बसा चुके होंगे वे अपना नया बसेरा
उन्हें देख चमकती होंगी कई आँखें
पर किसी रोज जब जागूँगा मैं
दूर... उड़  चुके होंगे वे वनों के राजहंस 

            7. बाज निद्रा -- HAWK ROUSTING---BY-TED HUGH ES 

दरख्तों की ऊंचाई पर ,मुंदी आँखों से           
बैठता हूँ में शांत-स्थितिप्रग्य 
नहीं होते कोई मिथ्या स्वप्न
वक्रदृष्टि और पंजों की जकडन के बीच
नींद में भी सधता है अचूक निशाना 
मृत्युदंड -और सब कुछ ख़त्म
*******
वृक्षों की गगनचुम्बी ऊंचाइयों का सुख
प्राणवायु की उत्प्लाविता और 
सूर्य की रश्मियाँ हैं वरदान हैं मेरे लिए 
पृथ्वी का ऊर्ध्वमुख करता है चातकी  निगरानी
खुरदरी छाल पर पंजों की जकडन
मानो लग गई हो समूची सृष्टि 
मेरे पंख-दर-पंख रचने में 
और उन्हीं पंखों से जकड लिया है सृष्टि को  मैंने
*****
बांधे हैं मृत्युदंड  के सारे आदेश
वृहत  वर्तुलो के अपने यमपाशों से 
जब जिस पर चाहूँ देता हूँ फेंक 
सब कुछ मेरा होने का दंभ
लबादा नहीं ओढा है संस्कारों का 
मेरे झपटते से ही उड़ते हैं खोपड़ियों के परखचे 

8.              मार्जर विलाप      MORT AUX CAT-    BY-PETER पोर्टर

अब नहीं होंगी कहीं बिल्लियाँ                   
फैलाती हैं वे संक्रमण और प्रदूष्ण 
अपने वजन से सात गुना अधिक 
हजम कर जाती हैं ये बिल्लियाँ
पतनोन्मुख समाजों में थी वे पूजित
बैठकर करती हैं वे मूत्र विसर्जन 
जुगुप्स है उनकी प्रणय आराधना
******
चंद्रमा पर होती हैं वे आसक्त
मार्जर जगत में हो वे सह्य
पर विलोम हैं हमारे उनके रिवाज 
वे सूंघती हैं ,आदत से हैं लाचार
बिल्लियाँ देखती है टेलीविजन
और तूफानों में भी हो जाती है निद्रालीन
नोंच लेती है अचानक वे दबे पाँव 
*****
वे लोग नहीं बन सकते बड़े कलाकार
जिनकी आदतें होती है बिल्लियों की तरह
सिरदर्द, मरते पौधे की दोषी हैं वे 
बढ़ रही है बिल्लियाँ हमारे इलाके में 
और गिरते जा रहे हैं नैतिकता के मूल्य
अनगिनत बिल्लियों का रक्तपात
देखता हूँ जब आते हैं दिवा स्वप्न
आखिर क्यों करती है वे गूढ़ प्रलाप
पर बिल्लियों का रक्तपात!  श्वानों की सता 
हजारों वर्षो तक रहेंगे शाश्वत!

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

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कृष्ण करे  तो रास लीला, हम करें तो...

राष्ट्रपति की गोवा यात्रा निजी थी या सरकारी -शीर्षक से आशीष कुमार ने कई अत्यधिक प्रज्ज्व्लन्शील   मुद्दे उठाये हैं.अगर समुद्र तट कानून के नजरिये में सार्वजनिक स्थान है तब छायाचित्र लेना क्यों गलत है?यह भी सच है कि २०० मीटर का घेरा भारतियों के लिए प्रतिबन्ध , विदेशियों के लिए नहीं? रहा सवाल  भ्रष्टाचार का- मै  तो दो टूक इस राय का हूँ कि - अगर कोई इंसान है, भारतीय नागरिक है तब उसके भ्रष्टाचार पर टिप्पणी करने का नागरिक अधिकार  होना चाहिए ..चाहे वह किसी भी क्षेत्र में किसी  भी पद पर क्यों न  हो. 

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,उन्हें मगर शर्म क्यों नहीं आती?
नवभारत के बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ संस्करण में एक खबर छपी है." सरकारी  परमिशन सड़क पर बाँट रही मौत".पंद्रह बरस  क़ी बच्ची झलक  मेघानी  की मौत कई सवाल खड़े करती है. नो एंट्री में प्रवेश करने के लिए सरकारी  ट्रक अन्नदूत को भीड़ भरे इलाके से जाने क्यों दिया गया?यातायात विभाग की चौकसी क्यों नहीं?  ट्रकों को भीड़ भरे यातायात के समय जाने देने का मतलब ही होता है की प्रशासन जिम्मेदार है इन मौतों के लिए..सड़कों से अतिक्रमण तो हटता नहीं( खास तौर पर शहर के प्रमुख मार्ग) , पार्किंग पर ध्यान दिया जाता नहीं,सारा मामला पैसे के लेन-देन से जुड़ा होता है.बड़े वाहनों के शहर के बीच से जाने का समय सुनिश्चित किया जाना जरूरी है.झलक जैसी  बच्ची या किसी भी इंसान क़ी हादसे में मौत के बाद समाज तो यह कहकर खामोश हो जाता है ," होनी को कौन टाल सकता है भला?" लेकिन कडवा सच यह है ," किसी को खोने का दुःख तो वही समझ सकता है जिसने अपने करीबी को खोया है?

आखिर धर्म या मजहब है किसलिए?

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नेपाल की इक्कीस वर्षीय नन सामूहिक बलात्कार का शिकार हो गई.जिस ननरी में उसने दस बरस तक अपनी सेवाएँ दी वहा से उसे निकाल दिया गया.विगत माह एक पब्लिक बस में उसे पांच लोगो ने बलात्कार का शिकार बनाया था.ननरी  का दो टूक हुक्मनामा है कि वह युवती अब नन या भिक्षुणी नहीं रह सकती .नेपाल बुद्धिस्ट फेडरेशन  का मंतव्य है कि बलात्कार की शिकार नन अब धर्मविहीन हो गई. क्या धर्म दो कौड़ी का बना दिया गया है जो बलात्कार होने पर उस इंसान से अलहदा हो जाता है?फेडरेशन यह भी कहती है की बुद्ध के जीवन काल में कभी ऐसा नहीं हुआ था . अतः  ऐसे मामलो में क्या फैसला लिया जाए इसकी कोई नजीर नहीं है.क्या धार्मिक संगठन चलाने वाले इतने कमअक्ल है कि  उनके अपने  दिमाग ... विवेक ...सोचने क़ी ताकत क़ी धज्जियाँ उड़ गई है??अस्पताल में उसके इलाज पर सात लाख के खर्च का इंतजाम ....ननरी न लौट पाने क़ी मजबूरी...बेहतर है उसे ऐसे वाहियात धार्मिक संगठनों  को छोड़कर अपने पैरो पर   खड़ा होना चाहिए. सवाल उन महिला संगठनों पर भी हैं जो या तो महज कास्मेटिक बने रहते हैं या किसी तरह पैसे क़ी जुगत में!!!



मंगलवार, 5 जुलाई 2011

दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सखी!!!

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प्रिय सखी
सच कहती हूँ... मेरी तकदीर में सुख कम दुःख ज्यादा लिखे हैं.अक्सर सफ़र पर ही रहती हूँ.कभी शहर के भीतर तो कभी लम्बे सफ़र पर....छोटे शहर से बड़े शहर तक.कई बार मेरी यात्रा एकदम तन्हाइयों में होती है . हाँ शहर के भीतर जरूर बच्चे से लेकर बूढ़े तक मेरे साथ होते हैं.दूर के सफ़र में मेरे इर्द-गिर्द बस... पेड़ -पौधे ... आसमान से मेरा चेहरा तकते चाँद-सूरज और मेरे जिस्म से होकर गुजरते इक्का-दुक्का इंसान या फिर भीड़ का रेला जो कभी रुकता ही नहीं.
सखी रे..मेरे बगैर कोई भी नहीं रह सकता.सब मुझे इस्तेमाल कर भूल जाते है.यूज किया और हाथ झाड़कर चल दिए.कभी कोई गौर करता है मेरी हालत पर?कैसी दिख रही हूँ मैं.. मेरी तबीयत ठीक है या नहीं... शरीर पर जख्म हैं तो नहीं! कई लोग तो बेवकूफों की तरह देखते रहते हैं ... मेरा जिस्म छलनी हुआ जाता है पर मुझसे बदसलूकी करने वालों को रोकते ही नहीं.... सजा क्या ख़ाक देंगे?माना कि मेरे साथ मील के पत्थर हैं पर वे भी तो गूंगे हैं!
सखी रे! तुम सब मेरी सहेलियां हो जो छोटी-छोटी जगह से आकर मुझसे अक्सर मिलती हो .न जाने कितने कोनों से.. नुक्कड़ों से घूम-फिरकर कितनी तकलीफें बर्दाश्त कर मेरे पास आती हो.तुम भी तो कह रही थीं आस-पास के लोग इतने बदतमीज हैं जरा भी ध्यान नहीं रखते.सच कहूं...अगर हमारे बाजू वाले घर के लोग इंसानों की तरह रहना सीख जाएँ तो हम सब क्या खुश नहीं रहेंगी?नल की पाइप लाइन और केबल बिछाने वालों ने तो हमारा जीना हराम कर रखा है.सखी रे.. लोग कितने बेशर्म हैं.. अपना घर तो रखेंगे टिप-टाप लेकिन कचरा हमपर फेक देंगे.न जाने अपनी जिम्मेदारी समझने की अक्ल उन्हें कब आयेगी ?
जब से अन्दर ग्राउंड ड्रेनेज का काम शुरू हुआ है सिम्प्लेक्स वालों ने हमारा सब कुछ लूट लिया.. कहीं मुंह दिखने लायक नहीं छोड़ा. अरे नामाकूल साहबों!हमारी हालत सुधरने की सही प्लानिंग नहीं कर सकते तो कम से कम हमारी अस्मत तो मत...गैरों के करम... अपनों के सितम!एक बात बताऊँ.."बड़े साहब" लोगों के घर के सामने से जब मैं गुजरती हूँ तब प्रशासन भी मेरा खूब ख्याल रखता है.लगता है मैं पार्लर से आ रही हूँ.लेकिन बाहरी और शहर के भीतरी इलाकों में मेरी हालत बद से बदत्तर है. आल अफसरों के कुकर्मों की सजा मुझे ... गालिया मेरे नसीब में क्यों !
सखी रे...नेताओं के आगमन पर स्वागत के लिए गेट बनाने वाले ,शादी के मंडप गाड़ने वाले इतने नालायक हैं ... मेरी हालत बिगड़कर रख देते हैं.न जाने कितनी बार कह चुकी हूँ की मेरी देह की दूरियां सम्हालकर आहिस्ता-आहिस्ता बड़े प्यार से....तय किया करो. कितनी जल्दबाजी... अरे बच्चा ..युवक ,युवती ही या बूढा... कोई भी इंसान हो उसके खून से मेरा जिस्म ही भीगता है न! भगवान न करे आपको कुछ हो गया तो!!! जख्मी होंगे आप पर दिल तो मेरा जार -जार रोयेगा न! धीरे नहीं चला सकते गाड़ियाँ?सखी रे!देख न! लोग कितने गैर-जिम्मेदार हैं !उस पढ़े-लिखे नौजवान ने गुटका खाया और पाउच फेक दिया मुझपर. लड़कियों ने कार के भीतर से पालीथिन और प्लास्टिक की बोतले बाहर फेक दीं.खाओगे पान और थूकोगे मुझपर! अपने घर के कमरे में थूको. जरा भी नहीं सोचते ... स्टूपिड कहीं के.. नगर निगम और लोक निर्माण विभाग मेरा बाबुल है तो आप सब भी मेरा ही परिवार हो.
आपके शहर में अक्सर बीमार रहती हूँ. आपके घर आने वाले मेहमान भी मुझे देखकर मुह बिचकाते हैं.विदेशों में तो मेरे साथ बदतमीजी करने पर तुरंत जुरमाना होता है . दोराहे तिराहे और चौराहे पर जब भी सखियों से मुलाकात होती है हाल-चाल जानने को मन उतावला रहता है.देख न.. न जाने कितने लोग हमसे होकर चले गए लेकिन किसी ने हमारे बारे में सोचा! रायपुर , नागपुर और कई शहरों की मेरी सहेलियां कितनी खूबसूरत और टनाटन ...गार्जियस लग रही है.एक बात तय है. अप मेरा जितना ख्याल रखोगे मै आपका उतना ख्याल रखूंगी.
अच्छा अब आप मेरा नाम पूछेंगे.पर बिलकुल नहीं बताऊंगी.पहचान कौन???चलो ठीक है.आप सब मेरे अपने है.पहले वायदा कीजिए कि आप लोग मेरा ख्याल रखेंगे ... वर्ना कभी फिसलकर गिरेंगे तो खूब ठहाका मारकर हसूंगी आपपर हाँ!!! फिर मत कहना.क्या कहा/ मिलना है मुझसे? ठीक है.. तो घर से बाहर आ जाओ न..चौराहे तक साथ चलो मेरे साथ. लेकिन मुझसे मिलने जरा अपनी निगाहें तो झुका लीजिये जनाब!!!!! अपना और मेरा ख्याल रखिये....
किशोर दिवसे.



दुखवा मैं कसे कहूं मोरी सखी!!!

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प्रिय सखी
सच कहती हूँ... मेरी तकदीर में सुख कम दुःख ज्यादा लिखे हैं.अक्सर सफ़र पर ही रहती हूँ.कभी शहर के भीतर तो कभी लम्बे सफ़र पर....छोटे शहर से बड़े शहर तक.कई बार मेरी यात्रा एकदम तन्हाइयों में होती है . हाँ शहर के भीतर जरूर बच्चे से लेकर बूढ़े तक मेरे साथ होते हैं.दूर के सफ़र में मेरे इर्द-गिर्द बस... पेड़ -पौधे ... आसमान से मेरा चेहरा तकते चाँद-सूरज और मेरे जिस्म से होकर गुजरते इक्का-दुक्का इंसान या फिर भीड़ का रेला जो कभी रुकता ही नहीं.
सखी रे..मेरे बगैर कोई भी नहीं रह सकता.सब मुझे इस्तेमाल कर भूल जाते है.यूज किया और हाथ झाड़कर चल दिए.कभी कोई गौर करता है मेरी हालत पर?कैसी दिख रही हूँ मैं.. मेरी तबीयत ठीक है या नहीं... शरीर पर जख्म हैं तो नहीं! कई लोग तो बेवकूफों की तरह देखते रहते हैं ... मेरा जिस्म छलनी हुआ जाता है पर मुझसे बदसलूकी करने वालों को रोकते ही नहीं.... सजा क्या ख़ाक देंगे?माना कि मेरे साथ मील के पत्थर हैं पर वे भी तो गूंगे हैं!
सखी रे! तुम सब मेरी सहेलियां हो जो छोटी-छोटी जगह से आकर मुझसे अक्सर मिलती हो .न जाने कितने कोनों से.. नुक्कड़ों से घूम-फिरकर कितनी तकलीफें बर्दाश्त कर मेरे पास आती हो.तुम भी तो कह रही थीं आस-पास के लोग इतने बदतमीज हैं जरा भी ध्यान नहीं रखते.सच कहूं...अगर हमारे बाजू वाले घर के लोग इंसानों की तरह रहना सीख जाएँ तो हम सब क्या खुश नहीं रहेंगी?नल की पाइप लाइन और केबल बिछाने वालों ने तो हमारा जीना हराम कर रखा है.सखी रे.. लोग कितने बेशर्म हैं.. अपना घर तो रखेंगे टिप-टाप लेकिन कचरा हमपर फेक देंगे.न जाने अपनी जिम्मेदारी समझने की अक्ल उन्हें कब आयेगी ?
जब से अन्दर ग्राउंड ड्रेनेज का काम शुरू हुआ है सिम्प्लेक्स वालों ने हमारा सब कुछ लूट लिया.. कहीं मुंह दिखने लायक नहीं छोड़ा. अरे नामाकूल साहबों!हमारी हालत सुधरने की सही प्लानिंग नहीं कर सकते तो कम से कम हमारी अस्मत तो मत...गैरों के करम... अपनों के सितम!एक बात बताऊँ.."बड़े साहब" लोगों के घर के सामने से जब मैं गुजरती हूँ तब प्रशासन भी मेरा खूब ख्याल रखता है.लगता है मैं पार्लर से आ रही हूँ.लेकिन बाहरी और शहर के भीतरी इलाकों में मेरी हालत बद से बदत्तर है. आल अफसरों के कुकर्मों की सजा मुझे ... गालिया मेरे नसीब में क्यों !
सखी रे...नेताओं के आगमन पर स्वागत के लिए गेट बनाने वाले ,शादी के मंडप गाड़ने वाले इतने नालायक हैं ... मेरी हालत बिगड़कर रख देते हैं.न जाने कितनी बार कह चुकी हूँ की मेरी देह की दूरियां सम्हालकर आहिस्ता-आहिस्ता बड़े प्यार से....तय किया करो. कितनी जल्दबाजी... अरे बच्चा ..युवक ,युवती ही या बूढा... कोई भी इंसान हो उसके खून से मेरा जिस्म ही भीगता है न! भगवान न करे आपको कुछ हो गया तो!!! जख्मी होंगे आप पर दिल तो मेरा जार -जार रोयेगा न! धीरे नहीं चला सकते गाड़ियाँ?सखी रे!देख न! लोग कितने गैर-जिम्मेदार हैं !उस पढ़े-लिखे नौजवान ने गुटका खाया और पाउच फेक दिया मुझपर. लड़कियों ने कार के भीतर से पालीथिन और प्लास्टिक की बोतले बाहर फेक दीं.खाओगे पान और थूकोगे मुझपर! अपने घर के कमरे में थूको. जरा भी नहीं सोचते ... स्टूपिड कहीं के.. नगर निगम और लोक निर्माण विभाग मेरा बाबुल है तो आप सब भी मेरा ही परिवार हो.
आपके शहर में अक्सर बीमार रहती हूँ. आपके घर आने वाले मेहमान भी मुझे देखकर मुह बिचकाते हैं.विदेशों में तो मेरे साथ बदतमीजी करने पर तुरंत जुरमाना होता है . दोराहे तिराहे और चौराहे पर जब भी सखियों से मुलाकात होती है हाल-चाल जानने को मन उतावला रहता है.देख न.. न जाने कितने लोग हमसे होकर चले गए लेकिन किसी ने हमारे बारे में सोचा! रायपुर , नागपुर और कई शहरों की मेरी सहेलियां कितनी खूबसूरत और टनाटन ...गार्जियस लग रही है.एक बात तय है. अप मेरा जितना ख्याल रखोगे मै आपका उतना ख्याल रखूंगी.
अच्छा अब आप मेरा नाम पूछेंगे.पर बिलकुल नहीं बताऊंगी.पहचान कौन???चलो ठीक है.आप सब मेरे अपने है.पहले वायदा कीजिए कि आप लोग मेरा ख्याल रखेंगे ... वर्ना कभी फिसलकर गिरेंगे तो खूब ठहाका मारकर हसूंगी आपपर हाँ!!! फिर मत कहना.क्या कहा/ मिलना है मुझसे? ठीक है.. तो घर से बाहर आ जाओ न..चौराहे तक साथ चलो मेरे साथ. लेकिन मुझसे मिलने जरा अपनी निगाहें तो झुका लीजिये जनाब!!!!! अपना और मेरा ख्याल रखिये....
किशोर दिवसे.


शनिवार, 2 जुलाई 2011

सूखी अरपा ....

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सूखी अरपा ....

आज सचमुच देखा 
अपनी अरपा का सूखा तन 
कसक उठी,दुखी हुआ मन
सूखी अरपा ,खोया यौवन धन 
  
 आज सचमुच देखा
अरपा की पसरी रेत
दूर तक फैला पाट
बेजान  ,नीरव और सपाट

आज सचमुच देखा 
 चीखती अरपा पहियों के नीचे 
छलनी करती लौह मशीनें
उसे बेचकर चांदी कूतते
नराधमों का कुनबा

आज सचमुच देखा
अरपा के पाट का दर्द
हाँ! उसे ही दिखता है दर्द 
जो सुनता है नदी की कराह को 
और महसूसता है मरू के श्वास

आज सचमुच देखा
अरपा के पाट पर गूंजते 
स्वर संकेतों का  करुण क्रंदन 
पाट गर्भ से गूंजती चीखें
नवजात शिशुओं , अनचीन्हे शवों की
और रेत से निकलती गर्म साँसें 
कहाँ है सचमुच की नदी
उसकी खिल-खिल हंसी!!!

आज सचमुच देखा 
रेत को बदलते  हुए 
अनगिनत इंसानी शक्लों में
सुना आपने! सूखी रेत पूछती है 
कहाँ है पानी... कहाँ है पानी!!


अरे इंसान बंद कर  नादानी
कब तक रौंदेगा मेरी छातियों को?
सूखा है पाट, धधकता है मन
कब भीगेगा मेरा प्यासा तन?
मेरी गहराइयों का अतलांत!
मै गाऊंगी- कल -कल छल- छल 
स्वप्नाकांक्षा  कब होगी शांत!!!
                                                                   किशोर दिवसे 















शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

गूगल के संस्थापकों से आगे निकले फेसबुक के जुकरबर्ग

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गूगल के संस्थापकों से आगे निकले फेसबुक के जुकरबर्ग




 सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग अमीरी के मामले गूगल के संस्थापकों सर्गी ब्रिन और लैरी पेज से आगे निकल गए हैं। महज 27 साल के जुकरबर्ग 18 अरब डॉलर [करीब 81 हजार करोड़ रुपये] की संपत्ति के साथ अब प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की तीसरी सबसे अमीर शख्सियत बन गए हैं। माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स [56 अरब डॉलर] और ओरेकल के लैरी एलिसन [39.5 अरब डॉलर] ही अब उनसे आगे हैं।
टाइम मैगजीन के मुताबिक इस साल की शुरुआत में जुकरबर्ग की संपत्ति 13.5 अरब डॉलर [करीब 60,750 करोड़ रुपये] आंकी गई थी। जुकरबर्ग की संपत्ति में यह इजाफा फेसबुक में जीएसवी कैपिटल कॉरपोरेशन के निवेश के बाद हुआ है। इस हफ्ते की शुरुआत में जीएसवी कैपिटल ने 29.28 डालर प्रति शेयर के हिसाब से फेसबुक के दो लाख 25 हजार शेयर खरीदे। इससे चर्चित वेबसाइट का मूल्य करीब 70 अरब डॉलर [करीब 3,15,000 करोड़ रुपये] हो गया।
टाइम ने लिखा है, 'नए आकलन के मुताबिक जुकरबर्ग ने गूगल के सर्गी ब्रिन और लैरी पेज को पीछे छोड़ दिया है।' माना जा रहा है कि दोनों की संपत्ति में गिरावट आई है। मार्च के 19.8 अरब डॉलर के मुकाबले उनकी संपत्ति अब 17 अरब डॉलर [करीब 76,500 करोड़ रुपये] आंकी गई है