" जाति -बंधन से लहू लुहान होते दिलों के रिश्ते...
आंसुओं के मोती झर-झर के वहीँ पर गिरे जहाँ पर अखबार के कालम में ढेर सारे क्लासिफाइड छपे थे.- बंगाली वर चाहिए,सजातीय श्रीवास्तव.. जैन.. ब्राह्मण .. पंजाबी ...मराठी.. आदि-आदि... वर चाहिए... जातिबंधन के नासूर ने रूही का दिल छलनी कर दिया था.वह सोचने लगी,"," शादी तो दो दिलों का चिरंजीवी रिश्ता है .जाती की दीवारों से क्यों लोग इसे तंग कोठी बना देते हैं .क्या बुराई है रोहन में .सिर्फ सजातीय नहीं है बस!पर एमबीए है..अच्छी खासी सर्विस है तब पापा ने क्यों उसे खरी-खोटी सुनाई?शादी के बाद म्युचुअल अंडर स्टैंडिंग जरूरी है या जाती के कैक्टस की लहू लुहान कर देने वाली बाड़!
दद्दू ने स्नेह से रूही के सर पर हाथ रखा और बोले,"बेटी तुम चिंता मत करो.रोहन से बेझिझक शादी कर सकती हो.शादी के लिए सबसे जरूरी है आपसी सामंजस्य और एक-दूसरे को उसकी अच्छाइयों और कमजोरियों के साथ स्वीकार करना.रहा सवाल तुम्हारे पिता की नाराजगी का ,उन्हें मैं समझा लूँगा." रूही आश्वस्त होकर घर लौटी और थोड़ी देर में दद्दू तफरीह के लिए निकल पड़े.काफी हाउस के सामने एकाएक मुझपर निगाह पड़ी तब हम दोनों कॉफी की टेबल पर थे.
फ्रॉक पहन कर इठलाने नाचने से आज छाती पर ओढ़नी रखने की उम्र तक का वक्त मानो फुर्र से उड़ गया था.कल के पल-पल की यादों के साथ रूही का आज दद्दू के सामने था . रूही का वही दर्द दद्दू की आँखों में छिपाए न छिप सका. " आखिर जाति बंधन की दीवार से कब तक लहू लुहान होते रहेंगे दिलों के रिश्ते?बात सिर्फ रूही की नहीं.. नितिन... कंचन..दीपक.अभिषेक.. संजय या रश्मि..जाति बंधन की वजह से किसी का भी सपना क्यों टूटना चाहिए?
युवा और रूढ़िवादी बुर्जुआ -इन दो पीढ़ियों के बीच शादी के मामले में जातिबंधन शिथिल करने के सवाल पर समाज का कैनवास दृश्यों का कोलाज दिखा रहा है.सपनों के टूटने से खुद्कुशीं करते युवा,थोपा हुआ फैसला मानने पर मजबूर नौजवान,ऐसे शेरदिल जिन्होंने सजातीय या विजातीय प्रेम विवाह सहमती या असहमति से किये.कोलाज के दृश्यों में कुछ अड़ियल बुजुर्ग हैं जिन्होंने नौजवान दिलों के रिश्ते अपनी जिद की सूली पर लटका दिए.आज की आधुनिक जनरेशन से दोस्ताना सम्बन्ध चलने वाले माता -पिता भी हैं जो अपने-बेटे-बेटी की पसंद को कसौटी पर परख कर " स्वप्न नीड़ बनाने की हरी झंडी देते हैं सही मायने में जनरेशन गैप का भूत ऐसे परिवारों पर काला साया ओढाने का दुस्साहस कभी नहीं करता.
सांस लेने का नाम अगर जीना है साहिर
तो सांस लेने के अंदाज भी बदलते रहिये.
अंतरजातीय विवाह जरूरी नहीं लेकिन आज की पीढ़ी यदि प्रेमविवाह या जाति बंधन मुक्त विवाह की पक्षधर है तब सारे पूर्वाग्रह या दुराग्रह छोड़कर पीठ थपथपाने में देर क्यों होनी चाहिए?अब तो शेक्स्पीरियां मैरिज भी होने लगी है.जो सफल भी हैं.छत्तीस में से बत्तीस गुण मिलाने वाला युगल सारी जिंदगी लड़ते- भिड़ते गुज़ार देता है. बिना कुंडली देखे विवाह करने वाले कई दंपत्ति समझदारी से बेहतर जिंदगी भी बिताते है.
पुराने पड़ गए अब फेंक दो तुम
ये कचरा अब फेंक दो तुम
दो महीने यूं ही गुजर गए.एक रोज भरी दुपहरी में दद्दू ने आकर बताया." खाना खाकर यूं ही सुस्ता रहा था.कॉल बेल बजने पर दरवाजा खोला तो सामने रूही ... साथ में युवक को देखकर समझने में देर नहीं लगी की वह रोहन ही है.रोम रोम में बसी खुशियाँ अल्फ़ाज़ बनकर फूट पड़ीं.उसने बताया मम्मी -पापा आखिर राजी हो गए.वे आने वाले थे लेकिन... उसकी आँखों की भीगी कोरों से मैंने पूरी इबारत पढ़ ली थी.
शादी का कार्ड देकर रूही ने दद्दू के पाँव छुए." जादू की झप्पी के बाद रोहन-रूही जब विदा हुए दद्दू उन्हें ओझल होने तक देखते रहे.अलमारी में रखी अखबार की वह कतरन देखी जो कभी रूही के आंसुओं से भीग गई थी.भीगी आँखों से मुस्कुराकर दद्दू ने दीवार पर टंगे केलेंडर पर सात नवम्बर की तारीख को लाल घेरे में समेट लिया.
अपना ख्याल रखिये
किशोर दिवसे
8:39 pm
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