चुनौती की आग में तपकर ही कुंदन होती है जिंदगी
बाबू मोशाय .. केमोन आछो?
आमी भालो आछेन .... आपनेर ?
भालो... मोटा मोटी चोलछेन
" क्या बात है अखबार नवीस !आज क्या माछेर झोल खाकर आ रहे हो?जो बंगला बोलने के मूड में हो" बाबू मोशाय आज बहुत दिनों बाद मिले थे.
" चुन्नी बाबू!यार तुम्हारे शरीर में जान कहाँ है?आधी जान मछली और आधी जान कोलकाता में!" मैंने उससे चुहलबाजी की.
मछली वाली बात पर चुन्नी बाबू को याद आया ," बोंधू रे!आमी चा खाबो! इधर चा यानि चाय की तैयारी चल रही थी की चुन्नी बाबू ने अपना किस्सा शुरू किया.-दोस्त!यह किस्सा जापान से लौटे एक साथी ने ही बताया था .
किस्सा यूं है की जापानियों को हमेशा ताज़ी मछलियां ही पसंद आती हैं।लेकिन जापान के निकट समंदर का पानी ऐसा नहीं है की ढेर सारी मछलियाँ पैदा हों जिसकी सप्लाई सारे जापान में की जा सके.सो, हुआ ये की मछुआरी नौकाओं को बड़ा बना दिया गया और वे दूर तक समंदर में जाने लगीं .समस्या ये हुई की मछुआरे दूर तक जाते और ताज़ी मछलियाँ लाने में अधिक समय लग जाता. लिहाजा मछलियाँ बासी हो जातीं जो जापानियों को बिलकुल पसंद नहीं थीं .
फिशिंग कंपनियों ने यह मामला सुलझाने नौकाओं में फ्रीजर लगा दिए .मछलियाँ पकड़कर उन्हें फ्रीज में रख दिया जाने लगा।मछुआरे लम्बी दूरी तक जाने लगे. फिर भी जापानियों को फ्रीजर में रखी तथा ताजा मछलियों के स्वाद का अंतर पता चल गया.वे उन्हें पसंद नहीं आई..
नतीजतन फ्रीज में रखी मछलियों के रेट गिर गये.अब फिशिंग कंपनियों ने फिश टैंक बनाये.वे मछलियाँ पकड़कर ठूंस -ठूंसकर तालाब में रख देते.कुछ देर तक उछल कूद और एक- दुसरे से भिड़ने के बाद मछलियाँ हिलना-डुलना बंद कर देतीं .वे थक जाती थीं,सुस्त होकर भी जीवित रहतीं.दुर्भाग्य से जापानियों को इन मछलियों का स्वाद भी पसंद नहीं आया.कई दिनों तक सुस्त पड़े रहने के बाद ताजा मछली का स्वाद भी उनमें से गायब हो गया.जापानियों को ताजा मछलियों का स्वाद पसंद था ये कहाँ भाने वाली थीं.
इतने में अपने दद्दू भी आ गये.उन्होंने दुबारा सारा किस्सा सुना .बाबू मोशाय चुन्नी बाबू ने उनसे पूछा," बोंधू रे!आप बताना कि जापानी फिशिंग कंपनियों ने इस समस्या का हल कैसे निकला होगा?अगर आप कंपनी के सलाहकार होते तो मछली ताजा रखने क्या सलाह देते?
मैं और दद्दू जब बगलें झांककर खोपड़ी खुजाने लगे तब चुन्नी बाबू ने खुद ही बताना शुरू किया,"माँ कसम!मछलियों को ताजा रखने के लिए अब भी जापानी लोग उन्हें कृत्रिम तालाबों में ही रखते हैं.लेकिन, उन तालाबों में एक-एक शार्क मछली छोड़ देते हैं।वह शार्क कुछ मछलियों को खा जाती है.वे मछलियाँ जो सुस्त और अलाल होती हैं .अधिकांश मछलियाँ शार्क की दहशत से चौकन्ना और फुर्तीली रहती हैं .इसलिए क्योंकि उनके सामने शार्क का खौफ चुनौती बनकर हरपल उनके सामने होता है .
एकाएक दद्दू की आँखें चमकने लगीं.चाय सुड़ककर उन्होंने अपने दिव्य चक्षु खोले .," बाबू मोशाय...और अखबारनवीस !हम सब लोग ही जिंदगी के ऐसे ही तालाब में हैं.अधिकांश समय तक यूं ही सुस्त अलाल और थके हुए होते हैं.... दास मलूका के अजगर की तरह .हमारे सामने ज्योही कोई शार्क आती है हम बौखलाकर भागने लगते हैं.यह शार्क हमारी जिंदगी की चुनौतियाँ हैं जो हमें हर पल ताजा दम .. चौकन्ना और गतिशील बनाये रखती हैं.
अबकी बार चुन्नी बाबू टपक पड़े," बिलकुल ठीक चुनौतियों की शार्क ढीली-ढाली लापरवाह मछलियों की तरह सुस्त इंसानों को निगल जाती हैं.और वे असफल होने लगते हैं.इसलिए जिन्दगी में चुनौतियों का होना बहुत जरूरी है.शार्क से जूझने का दम- ख़म हममें तभी विकसित होगा." ठीक कह रहे हो चुन्नी बाबू!दद्दू बोले,"चुनावी वार्मिंग अप के दौरान यही चुनौती सियासत के सामने भी है की आखिर पार्टियों में अंदरूनी लड़ाइयों के बावजूद कैसे कराएँ आम जनता को फील गुड का एहसास!और हाँ..आम आदमी के लिए चुनौतियों की शार्क सफलता-विफलता का मिला-जुला दौर लेकर आती है जिसके लिए यही कहा जा सकता है -
मुसीबत सह के इंसान फातहे आलम होता है
शिकस्तें गर न हों तो जिन्दगी मोहकम नहीं होती
3:07 am
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