गुरुवार, 31 मार्च 2011

नन्ही परी का सुनहरा जिल्द लगा बक्सा ..

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बेवकूफ कहीं की !इतना खूबसूरत सुनहरा जिल्द तुमने बर्बाद कर दिया... वह भी एक जिल्द लगाने के लिए!" तीन बरस की नन्ही मासूम को उसके पिता ने जोरदार डांट पिलाई .उस मासूम ने सुनहरा जिल्द एक बक्से पर लगा  दिया था.अगले रोज सुबह वह नन्ही परी सुनहरे जिल्द में लिपटा बक्सा अपने पापा के पास लाकर बोली  ," यह आपके लिए है पापा!"
                     उसके पापा पहले तो अपने बेवजह गुस्सा हो जाने पर कुछ पल बगलें झाँकने लग गए लेकिन उस समय उनका पारा फिर भड़क गया जब उनहोंने देखा की वह बक्सा पूरी तरह खाली है.लाल -पीला होते हुए उस बच्ची के पापा ने कहा ," मूर्ख लड़की! तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है ... यह भी नहीं जानती कि  जब किसी को उपहार दिया जाता है तब बक्सा ख़ाली नहीं रखना चाहिए!" 
                  एकदम डबडबा आई उस नन्ही परी की भोली-भाली आँखे.आंसू भरकर सुबकते हुए बोली ," ओह पापा!यह बक्सा ख़ाली नहीं है.मैंने अपने ढेर सारे चुम्बन इसमें रखे हैं.ये सब सिर्फ आपके लिए हैं पप्पा.!"
उसके पिता का चेहरा लटक गया.उनहोंने " नन्ही सी जान" को अपनी बाहों में लपेट लिया और पूरी नरमी से कहा," प्लीज मुझे माफ़ कर दो बेटी!"
                          कुछेक हफ्ते गुजरे होंगे और वह काला दिन आ गया जिसके बारे में कभी सपने में भी सोचा नहीं था.एक भयानक हादसा हुआ और पप्पा की आँखों के सामने   से वह नन्ही परी आसमान में ग़ुम हो गई.दूर... बहुत दूर...जहाँ से कभी कोई लौटकर नहीं आता.टूटकर बिखर गए पापा के पास अब भी उनके बिस्तर पर वही सुनहरी जिल्द से लिपटा हुआ बक्सा रखा है.जब भी अपनी नन्ही परी की याद में उनकी आँखे सागर  बन जाती हैं उस बक्से में से अपनी नन्ही परी का एक चुम्बन निकालकर देर तक खो  जाते हैं उसकी मीठी-मीठी यादों में.
                                आप और हम सब  इस हकीकत को हमेशा झुठला देते है कि सबके पास ईश्वर और खुदा की एक अनमोल सौगात है.यह वही सुनहरी जिल्द से लिपटा हुआ बक्सा है जिसमें ढेर सारा प्यार है और अनगिनत चुम्बन भी.अपने बच्चों से , परिवार के सदस्यों से ,दोस्तों से और ईश्वरीय शक्ति या सुप्रीम पावर से मिला है यह अथाह प्रेम.
                               अनचाहा, अनचीन्हा और लावारिस सा हम कब तक पड़े रहने देंगे उस सुनहरी जिल्द से लिपटे बक्से को? उसे तलाश है उन सबकी जो - धन कि हवस में बन गए हैं धन पिशाच ,जिस्म की हवस में बन गए हैं मनोरोगी और शराब तथा नशे कि हवस में हो गए है मदहोश.अपने पिटारे में से एक-एक बहाना सांप की तरह निकालकर डराने और भरमाने में माहिर हैं सब लोग.हवस और जूनून के पाजिटिव और निगेटिव फैक्टर को पहचानने क़ी जहमत भी मोल नहीं लेना चाहते !उच्चाकांक्षा क़ी अंधी सुरंग में क्या यह भूलना रत्ती भर भी जायज है कि सुखों क़ी ललक में हममें से कई उन सुखों का भी उपभोग नहीं कर सके जो हमारे पास पहले से ही मौजूद थे.
                             सो, जिंदगी की मेराथन में भागते जरूर रहिए मगर इतना ख्याल रहे कि सपनों के कल्पवृक्ष की ललक में अपने परिवार की महकती अमरैया को जरा भी मुरझाने न दें .यकीन मानिए, हर किसी के पास सबसे अनमोल धरोहर है.वही सुनहरी जिल्द लगा बक्सा जिसमें छिपा है बच्चे... परिवार...दोस्त...और ईश्वर से मिला प्रेम और अनगिनत चुम्बन !जो निःस्वार्थ और निशर्त है .उसी नन्ही परी के चुम्बनों क़ी तरह! या हो सकता है वह नन्हा राजकुमार भी हो!
                                                           अभी बस इतना ही. शुभ रात्रि... शब्बा खैर ... अपना ख्याल रखिए...
                                                                            किशोर दिवसे 
                                                                        

ईमानदार लकडहारा और प्रियंका चोपड़ा ..

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..आफत कब कौन सा चेहरा लेकर आपके या हमारे सामने आ जाए कुछ नहीं कहा जा सकता.जिंदगी में कई बार यह महसूस भी किया होगा.सुनो एक लकडहारे का किस्सा.नदी के किनारे वह पेड़ पर लकड़ियाँ काट रहा था.अचानक कुल्हाड़ी नदी में गिर गई.लगा जोरों से चिल्लाने.... भगवान नदी से प्रकट हुए और लकडहारे से पूछा," भाई! क्यूं रो रहे हो?लकडहारे ने जवाब दिया ,"मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है.वही मेरा रोजी-रोटी कमाने का साधन थी.
                     चिंतित भगवान्  ने डुबकी लगाई और सोने की कुल्हाड़ी निकालकर पूछा  " यही है क्या तुम्हारी कुल्हाड़ी?  लकडहारे ने जवाब दिया,"नहीं'".भगवान ने   दूसरी बार डुबकी लगाई और चांदी की कुल्हाड़ी  निकाली और पूछा ,"जरूर ये तुम्हारी कुल्हाड़ी होगी" ." नहीं" - इस बार भी जवाब था लकडहारे का .आखिरी बार डुबकी लगाकर भगवान ने जब लोहे की कुल्हाड़ी निकालीऔर लकडहारे से पूछा तब उसने फ़ौरन हामी भर दी.
      ईमानदार था लकडहारा .भगवान ने उसे प्रसन्न होकर तीनों कुल्हाड़ियाँ दे दीं.लकडहारा ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौटा." दद्दू! इसमें नई क्या बात है ?यह तो हम चौथी क्लास से जानते है." मैंने उनसे कहा.
 यार! वो उस ज़माने की बात है" दद्दू ने मेरा मुह बंद करते हुए कहा की इस स्टोरी  की नई पैकिंग मै तुम्हें सुनाता हूँ, लो सुनो-
               लकडहारा अपनी पत्नी के साथ नदी के किनारे टहल रहा था.अचानक उसकी पत्नी फिसलकर नदी में गिर गई.जब वह चीखने लगा,भगवान फिर प्रकट हुए," क्यूं रो रहे हो भाई?उनहोंने पूछा." हे भगवान!मेरी पत्नी नदी में गिर गई है उसे बचाइए?भगवान ने पानी में डुबकी लगाई जब वे बाहर निकले तब उनके साथ  प्रियंका चोपड़ा थी.." क्या यह तुम्हारी पत्नी  है? भगवान ने लकडहारे से पूछा .
                   हाँ ... हाँ... यईच  है ... फौरन लकडहारे ने हामी भर दी . अब भगवान ठहरे त्रिकालदर्शी.आग-बबूला होकर तमतमाए," तुम झूठ बोलते  हो लकडहारे . यह एकदम गलत है."
" हे भगवान!मुझे क्षमा कीजिए.यही तो आपकी गलतफहमी है.देखिए.. यदि मैंने प्रियंका चोपड़ा के लिए इनकार कर दिया होता तब दूसरी बार आप बिपाशा बासु को निकाल लाते. फिर अगर इनकार करता तब तीसरी बार आप  मेरी  पत्नी को निकाल लाते . तब यदि  मै अपनी पत्नी को देखकर हाँ कहता तब आप खुश होकर उन तीनों को मुझे दे देते.( तीनों कुल्हाडियों की तरह)
       दरअसल भगवान जी! मैं ठहरा गरीब लकडहारा .आप ही ...बताइए इस गरीबी और महंगाई के जमाने में तीन -तीन को कहाँ से पालता?  " क्या कहा भगवान जी?१ प्रियंका और बिपाशा तो करोड़ों कमा रही हैं! " चालाकी  छोडिये  भगवान जी! ...ऐसा सिर्फ  बालीवुड की फिल्मों में ही होता है की रईस लड़की किसी   फाकामस्त से शादी  करती है .  अब समझे भगवान जी! मैंने प्रियंका चोपड़ा के नाम से हामी क्यों भर दी थी? 
? भगवान भी लकडहारे की सूझ पर मुस्कुराये बगैर नहीं रह सके थे.
                         चलिए... कल फिर मिलेंगे... 
                                                      मस्त  रहिए मुस्कुराते रहिए
                                                                                                   किशोर दिवसे 

BUCK UP DHONI BRIGADE!!!!!!!!!!!!

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मैच जीतकर मुह मीठा कर लिया.खुशिया भी मना ली. धोनी ब्रिगेड को बधाई....  मोहाली का महायुद्ध ,भारत-पाक सेमीफाइनल किसी भी सूरते हाल में फाइनल से  कम रोमांचक नहीं था. बावजूद इसके खिताबी मुकाबला उतना ही मजेदार होगा  यह भरोसा है.जीत के जश्न में मोबाइल पर किस्म-किस्म के मैसेज आए.पहले तो कंगारू... फिर शेर... अब राम और रावण... मसखरी की कोई  हद नहीं होती.
    यह न भूले की  भारत की जीत तश्तरी में परोसी हुई नहीं मिली है. पाकिस्तान ने रणनीति में चूक की जिसका खामियाजा उसे मिला. पाकी मंत्री  के बयां का मानसिक दबाव दूसरी वजह कही जा सकती है. कोई बात नहीं सचिन कई सेंचुरी न बनी , वे अब भी सर्मौर है. यकीनी तौर पर सहवाग और हमारे कुछ बल्लेबाज क्रीज पर कुछ भरी स्कोर करते तब जीत का मजा दुगुना हो जाता. मिस्बाह और आफरीदी अच्छी तरह जमते तो उनकी टीमके बचने की गुंजाइश थी. खैर खिताबी मुकाबला जो मुंबई में  २ अप्रैल को होगा ,वानखेड़े स्टेडियम की धडकनें तेज कर चुका है .यकीनी तौर पर फाइनल में अपना भारत है  इमोशनल होना स्वाभाविक है पर बेहतर खेल और रणनीति ही जीत की बुनियाद बनती है.  सो,  भारत और श्रीलंका के किरकिटिया जिहाद में हम फिर मिलेंगे . अजय जडेजा की बात सही है,मामला इमोशनल है. हम जीतेंगे टीम के हौसले पर पूरा भरोसा है. फिर भी पिच पर दुश्मन को कमजोर क्यों समझा जाए?     तब तक... बक अप  धोनी ब्रिगेड .... एंड होप  वी विल सी फाइन क्रिकेट एट वानखेड़े .....

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

गौरैया बहुत परेशान

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सच कहू दोस्तों ! मुझे तो याद भी न था की  २० को गौरैया दिवस है. प्रिय मित्र राहुल सिंह  का मैसेज मिला और गौरैया की तरह फुदकने का मन करने लगा. कोई कुछ भी बोले  मेरी तो आदत है, जिस बात की जानकारी मुझे नहीं होती  बस भानमती का पिटारा खंगालने बैठ जाता हूँ.  अम्बरीश श्रीवास्तव, डा. राकेश शर्मा,एन. शैलजा ( मूल तेलुगु और रामचंद्र जनवार की कवितायेँ पढ़कर मजा आ गया. आप भी इसका  आनंद लीजिए. रहा सवाल पक्षी विज्ञानं (ORNITHOLOGY )    से जुडी  सूचनाओ का ,गौरैया  यानि Passer domesticus  पर  ढेर  सारी जानकारियों  का खजाना मौजूद है.चलिए आप फिलहाल  पढ़िए  गौरैया पर हिंदी कविताएँ ----

गौरैया बचाओ!!!! कोई तो आओ !!!!.......... 

आज के परिवेश में एक प्रश्न सभी से .....

 
   इधर उधर 
   फुदकती 
   मन भाती 
   चारों ओर चहचहाती 
   चिरैया 
   आँगन में नृत्य करती
   गौरैया 
   लगता है 
   शायद अब 
   किताबों में ही दिखेगी 
   अमानवीय  क्रूर हाथों से 
   कैसे बचेगी  वो ?
 
   --अम्बरीष श्रीवास्तव
****
ओ गौरैया.....
ओ गौरैया
नहीं सुनी चहचहाहट तुम्हारी
इक अरसे से
ताक रहे ये नैन झरोखे
कुछ सूने और कुछ तरसे से।
फुदक फुदक के तुम्हारा
हौले से खिड़की पर आना,
जीवन का स्वर हर क्षण में
घोल निडर नभ में उड़ जाना।
धागे तिनके और फुनगियां
सपनों सी चुन चुन कर लाती,
उछलकूद कर इस धरती पर
अपना भी थी हक जतलाती।
खो गई तुम कहीं गौरेया
भौतिकता के अंध-जाल में
मानव के विकट स्वार्थ और
अतिवाद के मुख कराल में।
सिमट गई चिर्र-मिर्र तुम्हारी
मोबाइल के रिंग-टोन पर,
हँसता है अस्तित्व तुम्हारा
सभ्यता के निर्जीव मौन पर।
मोर-गिलहरी जो आंगन को
हरषाते थे सांझ-सकारे,
कंक्रीट के जंगल में हो गए
विलीन सभी अवशेष तुम्हारे।
तुलसी के चौरे से आंगन
हरा-भरा जो रहता था,
कुदरत के आंचल में मानव
हँसता भी था और रोता था।
भूल गये हम इस घरती पर
औरों का भी हक था बनता,
मानव बन पशु निर्दयी
मूक जीवों को क्यों हनता।
    डॉ. राकेश शर्मा
****

मुझे एक गौरैया ला दो   ( तेलुगु  कविता )

एन शैलजा
मुझे एक गौरैया ला दो!

नहीं चाहिए मुझे दुर्लभ बाघ

पोलार भालू भी नहीं

चाहिए नहीं सोने का हिरन

अंतरिक्ष का चन्द्रयान भी नहीं!

चाहिए मुझे

एक सजीव गौरैया जो

मन के बन्द किवाडों को

अपनी चोंच से खटखटाकर

मुझे जगाती हैं।

दुपहर की तनहाई के समय

उडते हुए आकर

अपनी चहचहाहट से

कुशल-क्षेम पूछने वाला

गौरैया का वह स्वर चाहिए मुझे।

बूढे माथे की झुर्रियों को

विस्मद मोद का विकास चाहिए।

नजर भले ही क्षितिज पार करे

लापता प्रवास ही तो है जीवन!

दिल में घोंसले में चहकनेवाले गौरैये के लिए

है नहीं थोडी-सी भी जगह!

सच है

जिस घर की ओलती न हो

है वह मेहमानदारी से अनभिज्ञ मन!

जहाँ तक नजर जाती

लम्बी शीशों की गगनचुम्बी इमारतें

जगह नहीं चिडया के घोंसले के लिए

मुट्ठी भर मन के लिए!

अगोचर एस एम एस लहरों के जाल में, फन्दे में फँसकर

घुटते दम की बेचारी भोली गौरैया

है या नहीं पता नहीं

फिर दिखाई पडेगी या नहीं मालूम नहीं!

अपने भीतर हम भी झाँकते तब न

जब हमें मिले फुरसत

कब मिले वह फुरसत कि

हम सोच ले मन टटोलकर

बेचारी गौरैया क्यों गायब है?

जिस घर पर गौरैया नहीं बैठे

वह ऐसे ओंठ-सा है, जैसे

मुस्कुराहट का गीलापन कभी छूता तक नहीं

वह सूखकर दरार पडे तालाब-सा है, जो

प्रवास पक्षी के चले जाने पर गला फाड-फाडकर रोता है

गलत मत मानो

करो पूरी मेरी एक छोटी-सी माँग

मान के बखार पर बैठकर

दाने-दाने को अपनी चोंच से उधेडकर खानेवाले

गौरैयों के समूह को मुझे एक बार दिखा दो!

उडते हुए जीवन के दो क्षणों को

मुझे याद करने दो!
                                                
गौरैया बहुत परेशान
सूखे-सूखे ताल-पोखर
सूने खलिहान
बीघा भर धरती में
मुठ्ठी भर धान
चुग्गा-चाई का कहीं
ठौर ना ठिकान
गौरैया बहुत परेशान
कौन जाने कहाँ गए
मेघों के साए
तपती दुपहरिया
पंखों को झुलसाए
भारी मुश्किल में है
नन्ही सी जान
गौरैया बहुत परेशान
घनी-घनी शाखों पर 
बाज़ों का डेरा
कहां बनाए जाकर
अपना बसेरा
मंजिल अनजानी है
रस्ते वीरान
गौरैया बहुत परेशान
*********** 
गौरैया बहुत परेशान   
(राम चन्द्र जनवार )
सूखे-सूखे ताल-पोखर
सूने खलिहान
गौरैयों के समूह को मुझे एक बार दिखा दो!
बीघा भर धरती में
मुठ्ठी भर धान
चुग्गा-चाई का कहीं
ठौर ना ठिकान
गौरैया बहुत परेशान
कौन जाने कहाँ गए
मेघों के साए
तपती दुपहरिया
पंखों को झुलसाए
भारी मुश्किल में है
नन्ही सी जान
गौरैया बहुत परेशान
घनी-घनी शाखों पर 
बाज़ों का डेरा
कहां बनाए जाकर
अपना बसेरा
मंजिल अनजानी है
रस्ते वीरान
गौरैया बहुत परेशान
 जब खुद को कोई जानकारी न हो तब ज्ञानार्जन  करने और बाटने का ये मेरा अपना अंदाज है .
 काश २० तारीख को पैदा होने वाली किसी बच्ची का नाम भी गौरैया ही रख दिया जाए !आज बस इतना ही
   
     
       
                        किशोर दिवसे 
                                              

 

गुरुवार, 17 मार्च 2011

चुटकी भर गुलाल-1

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रंग भरे मौसम से रंग चुरा के...
(चौराहे पर मजमा फिट है.बच्चे...जवान और बुजुर्ग ... छोकरे और छोकरियाँ सभी मजमा देखने में फिट हैं.तभी तो उस्ताद का मजमा हिट है भाई! ये मजमा होली के दौरान का है.भीड़ में मौजूदा लोगों के चेहरे से जिद्दी रंग है कि छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे है.दद्दू की दाढ़ी  से चिपके रंग चुगली कर रहे हैं कि होली मनी है.प्रोफ़ेसर प्यारेलाल टी शर्ट में जंच रहे हैं.बाकी सब छोकरे-छोकरियाँ अपने अंदाज में अलहदा तरीके से कपडे  पहन कर मजमे में हैं और उनपर रंग-गुलाल के धब्बे खिलखिलाकर इतरा रहे है.)
उस्ताद-तो जम्हूरे तू तैयार है! करदे मजमा फिट ... उस्ताद हो जाएगा हिट.
जम्हूरे-उस्ताद का सिग्नल मिला और अपुन का डुगडुगी बजाना शुरू.लेकिन उस्ताद एक बात अपने समझ में नहीं आई.!
उस्ताद- वो क्या जम्हूरा?
जम्हूरा- ये सामने डिब्बों में सफ़ेद,लाल, पीला,हरा, गुलाबी,नीला... इतने रंगों का जमघट काहे को लगा रखा है?
               मेहरबानों... साहबानों... कदरदानों...है कोई  माई ( या बाप) का लाल जो यह बताए कि ये रंग यहाँ पर क्यों रखे हैं?
( भीड़ कुछ खामोश है .. खुसुर- पुसुर के बावजूद लोग कन्फ्यूज्ड हैं ) दद्दू दाढ़ी खुजाकर अपने रंगीन शब्द उगलते है.
दद्दू- दोस्तों! होली के दिन ही अपुन के एक चाहने वाले का मैसेज आया था मोबाइल पर. उसके मुताबिक सफ़ेद  रंग-रफ़्तार ,लाल रंग- ताकत,पीला रंग-ज्ञान,हरा रंग- विकास गुलाबी रंग-प्रेम और नीला रंग -सफलता का प्रतीक है.
जम्हूरा- उस्ताद! मेरे कू भी एक मैसेज आया .उसमें अंग्रेजी में लिखा था जो बंटी ने पढ़कर सुनाया था - नीला रंग-गीत का,पीला रंग संगीत का,हरा रंग -नृत्य का लाल रंग  खूबसूरती का सफ़ेद रंग -प्रेम और गुलाबी रंग ख़ुशी जाहिर करता है . वैसे कलर थेरपी और रंगों का विज्ञानं कुछ और तर्क भी बताता है .
( प्रोफ़ेसर साहब ! आप भी तो कुछ तो बोलिए .. .उस्ताद ने जब कालेज के सामने मजमा फिट किया था तब प्रोफ़ेसर से अच्छी जम गई थी क्या!)
    मेहरबानो.. साहबानों.. कद्रदानों ...जम्हूरे की डुगडुगी बजती है )
प्रोफ़ेसर- रंगों के बगैर सब कुछ फीका है सोचो! कुदरत में रंग न होते... रंगों के बगैर कैसे खेलते हम होली?और जिंदगी में अगर मुहब्बत और जिम्मेदारी के रंग ना हों तो ये जिंदगी भी कोई जिंदगी है लल्लू रंग एक-दूसरे के बीच रिश्ता जोड़ते हैं इसलिए जो होली खेलते हैं उनके गालों पर रंग भरी चुटकी और जो रंगों से बचते है या मैसेज भी नहीं देते हैं उनको ठेंगा .. ठेंगा... ठेंगा...!
     भूतपूर्व होलियारों का मजमा जोरदार तालियाँ बजाता है और अचानक किसी के मोबाइल पर एम् पी थ्री गाना बजाने लगता है

होली के दिन दिल खिल जाते हैं....

उस्ताद-जम्हूरे ! इस बार बच्चा पार्टी ने कैसी मनाई होली?
जम्हूरा- छोटे बच्चे भला गीले रंगों से खेलना कहाँ छोड़ेंगे ? जिनकी परीक्षा चल रही थी ऐसे लड़के- लड़कियों ने थोड़ी देर ही सही मस्तियाँ  की. हाँ अब लोग सूखी होली अधिक खेलने लग गए हैं.सभी लोग अब रंगों के खतरनाक प्रभाव से वाकिफ हो गए हैं लिहाजा रंगों से बचना भी जानते हैं.
    एकाएक बाइक पर सवार कुछ बिंदास नवयुवकों की टोली अलमस्त अंदाज में फर्राटा मरते हुए भीड़ के करीब पहुंची और लगी चहकने
             नेताजी लाल है .......
             राशन दूकानदार लाल है... 
              वो जा रहा है वो भी लाल है...
             जो टुन्नी में है वो  भी लाल है!!!!!!!!!!!
इसी बीच एक बेवडा खम्भे से टकराकर चारों खाने चित्त हो गया. कुछ देर बाद एक कुत्ता आया बेवडे का मुंह चाटा
 और सर नीचे कर पिछली टांग ऊपर उठा ली और उसपर....
.मजमें में फिट लोगों की मुण्डियाँ घूमी .पर जैसे ही वे मामला समझ पाते बाइक वाले होलियारों की टोली फुर्र हो गई.भीड़ में से एक अधेड़ को भंग की पिन्नक कुछ ज्यादह चढ़  गई थी .उसने अपनी जेब से एक अंटा निकालकर बाजू वाले साथी को दिया और अपनी ही रौ में अलाप लेने लगा--
                         रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे
इसी बीच मजमें में फिट लोगों पर दुमंजिले से किसी ने रंग भरी बाल्टी उड़ेल दी.... एक ओर रंगों के अनगिनत गुबार उड़ने लगे... लोग एक-दूसरे को बधाइयाँ देने लगे होली है...होली है... बच्चे मस्त हैं...एक देवर अपनी भाभी के गालों पर गुलाल मल रहा था तो ओम गार्डेन्स के किसी फ़्लैट में एक पति अपनी पत्नी का " रंगे हाथों से " पीछा करते हुए तरन्नुम में गा रहा था " आज न छोड़ेंगे बस हमजोली ..." कुछ बुजुर्गों के माथे पर तिलक लगाकर युवक-युवतियां प्रणाम कर रहे थे. किसी फ़्लैट से ऍफ़ एम् पर आवाज गूँज रही है " मुझे रंग दे.. मुझे रंग दे... रंग दे रंग दे रंग दे....
                                            रात में जली होली अभी दहक रही है.उस्ताद और जम्हूरा अपना तमाशा समेटने  में लगे हैं.और मजमे में फिट लोग लौटने को तैयार.दद्दू ने भी रंगों को आपस में बातचीत करते हुए देखा और खुद भी उनसे बातचीत की.
                             मुझे तो अक्षर भी रंगों के छींटे नजर आते हैं.... कभी रंग तो कभी रंग-बिरंगे फूल.जिनमें छिपे होते हैं कुछ आज और कुछ कल की बीती होलियों के गुदगुदाते हुए पल.देखना कहीं अल्फाजों के ये रंगीन कतरे आपके गालों तक  तो  नहीं  पहुँच गए?दिन में खेली होली के रंग देर शाम तक धुल चुके होते  हैं.अचानक मोबाइल पर फिर एक मैसेज आता है और स्क्रीन पर उभरे शब्द प्यार के रंग बनकर सीधे दिल में उतर जाते हैं
   मेहरबानों... साहबानों... कद्रदानों... उस्ताद का मजमा  ख़त्म हुआ ....
         हम हैं राही प्यार  के ... फिर मिलेंगे चलते चलते ...!!!!!!!!!!!!!
     होली पर आप सब को प्यार... रंग-गुलाल... और मिठाइयो से भी मीठी -मीठी  शुभकामनाएँ   
                                                        मुस्कुराते रहें...           
                                                                                    किशोर दिवसे