.
निद्रारत सुंदरी THE SLEEPING BEAUTY BY - SAMUEL ROGERS
स्वर्ग के स्वप्न देखती है निद्रारत सुंदरी
हंसती है आँखें उसकी पलकों में छिपी
गुलाबी ओंठ मुस्काते हैं मीठी मुस्कान
और थरथराने लगते है गहरी साँसों से
रक्तिम कपोल हैं लज्जा के चुम्बन से
हंसिनी का भास सुराहीदार गर्दन से
स्पर्श करता है प्रणय अदृश्य ओठों से
ओठों ही ओठों में गुनगुनाती है कैसे
जानना चाहता हूँ पर डर है जैसे
विस्मृत है देहभान ,देहो के मेल से
सिसकती है वह कसमसा कसमसाकर
संगमरमरी हाथ हैं धवल गुम्बदों पर
हिंडोले में झूलती है अब वह निद्रारानी के
जसे कोई फरिश्ताखोया हो विश्रांति में
खोई रहो स्वप्नों में निद्रालीन इसी तरह
स्वर्ग के नियंत्रण में है भावनाओं का बहर
अदृश्य लोक में छ्पराज दिव्य स्वप्न का
मीठी मुस्कान,तुम्हारी कसमसाहट का
खूबसूरत कलियों के नाम -TO THE VIRGINS - BY ROBERT HARRICK
ओ खूबसूरत गुलाब की कलियों !
दुपट्टे में समेट लो समय के पाखी को
आज खिलखिलाकर रहे है जो दहक
उड़ जाएगी सदा के लिए उनकी महक
स्वर्ग का ज्योतिपुंज.. यौवन का सूरज
उठ रहा है अब धीरे-धीरे आकाश पर
आयु का दावानल जब झुलासयेगा तन
नहीं लौटेगा तब यौवन का मादक मन
रति ताप से जब दहकने लगता है तन
प्रेम की मधुरता से महकता है मन
प्रौढ़ता का प्रतिबिम्ब जब छू लेगा तन
गमकती यादों में रोया करेगा मन
मत बनो लाजवंती,प्रेम की यही है चाह
आसक्त भमर को है मधुरस की आस
कुम्हलाया अगर यौवन पुष्प.मुरझाएंगे टेसू
जीवन भर आँखों में होंगे आंसू आंसू आंसू...
रोजलीन ---- ROSALIN-BY-THOMAS LODGE
चमकता है आसमान में अप्सराओं सा
दिव्य रूहों का सौन्दर्य अलौकिक सा
केशों का मोहपाश है उसका मेघवृन्द सा
बिखरे या नागिन सी वेणियों में गुम्फित सा
तुम लावण्यमयी रति रूपा हो रोजलीन
उसकी आंख्ने जैसे बर्फ में जड़े हीरे
स्वर्ग का प्रवेशद्वार हैं उसकी गहरी पलकें
आँखों में जब दहकते हैं प्रेम के स्फुल्लिंग
हतप्रभ रह जाते हैं समूह देवताओं के
क्या तुम सचमुच मेरी हो रोजलीन !
रक्तिम बनाते हैं भोर के गुलाबी चेहरे को
कपोलों की रंगत को अरुणिमा देती सुर्खी को
मेनका सी मुस्कान मोहक है मंद- मंद
यौवन से महकते हैं रोजलीन के अंग-अंग
ओष्ठ युग्म जैसे जोड़ी गुलाब कलियों की
परिधि में है कैद मदनपाश सीमाओं की
क्या तुम सचमुच मेरी हो रोजलीन!
शाही स्तम्भ हैं उसकी गर्दन सुराहीदार
स्वयं प्रेम जिसके बंधन में है बेजार
अपनी एक झलक पाने को आतुर प्रतिपल
झील सी आँखों में डूबता हर पल
सच! तुम कितनी सुन्दर हो रोजलीन!
आल्हाद के केंद्रबिंदु हैं कुचाग्र उसके
और उरोज जैसे गुम्बद स्वर्गद्वार के
जिनके सभी वलयों पर आसक्त प्रकृति
करती है परावर्तित सूर्य रश्मियाँ भी
सम्मोहन में जिसके मैं हो जाता हूँ लीन
क्या सचमुच तुम मेरी हो रोजलीन!
उज्जवल मोती और रक्तवर्णी माणिक
धवल संगमरमर..नीलम के नीलमणि
उसके अंग-प्रत्यंगों के सजीव अलंकार
कामदेव की धनु प्रत्यंचा को देते हैं टंकार
रेशम का स्पर्श और मधु की मिठास
रोजलीन! तुम्हारे प्रेम की कैसी है आस!
उर्वशी.. मेनका ..रम्भा या रति की छाया
कामाग्नि का देह-दर्प तुममें ही समाया
नयन कटाक्ष करते है ईश्वर को आहत
कामबाण की मूर्छा से मन को है राहत
जाओ मेरे प्यारे गुलाब!! -- GO LOVELY ROSE--- BY-EDMUND WALLER
जाओ मेरे प्यार गुलाब
उससे कह देना तुम जाकर कि
गुम हो रहे हैं पल-पल ,छिन-छिन
क्या ...अब वह नहीं जानती कि
जब भी मैं कहता हूँ उसे-प्यारे गुलाब!
महकने लगती है जैसे-खुद ही हो गुलाब !
*****
जाओ मेरे प्यारे गुलाब
!उससे कह देना तुम जाकर कि
सुमन,सुधा,सुकेशा, सुनयना है वह
सहेजा हैं यौवन जिसने ,स्याह नजरों से बचाने
रति रंग सजे अंग-अंग,इस देह के वीराने
जो तन था एक शून्य बिना प्रेम भ्रमर के
रीता था यह रति धनु,बिना काम बाण के
****
चाहे तो तुम फिर मुरझा जाना गुलाब!
तुम्हारी आँखों में ही पढ़ लेगी ख्वाब
कि कितने कम थे प्रगाढ़ता के वे पल
कली के खिलने और मुरझाने के बीच
कितने अदभुत!महकते रहे साँसों के बीच
सावन में सारिका के सुरों से गए सींच
चांदनी में अभिसारिका ---A THRUSH IN THE MOON LIGHT-BY-WITTER BYNER
चाँद उतरा आसमान से और
ढांप लिया आश्चर्य से मुझे
उसकी निकटता और स्पर्श से
मैं हो गया सम्मोहित ऐसे
गूंजने लगे प्रेमगीतों के स्वर जैसे
मेघों की गरज,फिर शीतल फुहारें
मैंने झुकाया सर उस चाँद की ओट में
बेसुध था उस स्निग्धता से मैं
और चाँद आ गया एकदम पास
पक्षियों के कलरव ने जगाया देह्भास
सर उठाया तो निशा ने कहा अलविदा
यामिनी के स्याह को ले उडी वे रश्मियाँ
3:27 am
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें