तुम्हारे वादों पर अब मुझको एतबार नहीं ....
कब कहाँ किसे देखकर कौन सा ख्याल मन में आ जाए कोई कुछ नहीं बता सकता.इसलिए कहते हैं पाखी होता है मन और विचारों के पंछी कितनी रफ़्तार से कहाँ तक उड़ान भर लें यह तो सोचने वाले के बस में भी नहीं.बैठे- बैठे यूँ ही शो केस में रखे नन्हे से ताजमहल पर निगाहें पड़ी और सोचने लगा की हसीं ताजमहल को बनाकर शाहजहाँ ने मुहब्बत की अनूठी मिसाल कायम की है.अमूमन हर कोई यही सोचता है यानी ताज बनाम " मुहब्बत की निशानी "
मुझे लगता है की इससे बढ़कर एक और बात तह में छिपी होनी चाहिए -कहीं यह बात " वायदे" की तो नहीं !बादशाह ने अपनी शहजादी मुमताज महल से कोई वायदा तो नहीं किया था?और अगर ऐसी बात है तब इरफ़ान जलाल्पुरी ने क्या सोचकर लिखा होगा कि- फिर ताजमहल कोई तामीर नहीं होगा
हर अहमद की शहजादी मुमताज नहीं होती
वायदा... वायदा करना...निभाना...तोडना....वायदा पसंदी और वायदाखिलाफी , हम सबने उम्र के किसी न किसी दौर में किया है.( याद
कीजिए न अपने बचपन से अब तक के गुजरे लम्हों का हिसाब )कभी ख़ुशी कभी गम की फेहरिस्त तय करने के बाद कुछ सवाल हम अपने आपसे भी पूछ सकते हैं - हमने कब किससे क्या वायदे किए ?कितने निभाए और कितने तोड़े?वायदे निभाने की ख़ुशी जरूर हुई होगी पर वायदाखिलाफी करने पर जब कभी आप कटघरे के भीतर खड़े हुए ( अपने जमीर का हो या फिर घरेलू होम -कोर्ट ) यह कहना हमारे आपके लिए कब मजबूरी बना था क़ि -
कुछ तो मजबूरियां रही होगी
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता
खैर... सफाई देने भर से वायदाखिलाफी माफ़ नहीं की जा सकती." जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा" की तर्ज पर वायदे निभाना और उनपर फौलादी अमल कायम रखना होगा.उम्र का एक दौर होता है जब किसी के वायदों के सम्मोहन में ही कोई जीने लगता है.... जिए जाता है लेकिन शर्त यह होती है के उनकी आदत वफ़ा करने की हो.
रघुकुल की रीत रही है ," प्राण जाए पर वचन न जाई"जिसे व्यवहार में कई लोगों ने अपनी जिंदगी में ठीक उल्टा कर रखा है.पर यह सच है कि बगल में छुरी और मुख में राम-राम करने से कम नहीं चलता.वायदों से मुकरने वाले लोगों के झूठ का भेद खुलते देर नहीं लगती .इस तरह की वायदा खिलाफी करने वालों के लिए ही सकीब लखनवी ने कहा है- साफ कह दीजिए कि वादा ही किया था किसने
उज्र क्या चाहिए झूठों को मुकरने कि लिए
शहद क़ी प्याली और चना जोर गरम का स्वाद होता है मुहब्बत के वायदों में .प्यार , तकरार क़ी खट्टी-मीठी नोंक -झोंक के बीच "उसने" कहा "उससे" - "क्यूँ झूठे कहीं के! आने का वायदा कर नहीं आए !" जवाब मिला, " " मैंने तो वायदा किया था ख्वाबों में आने का '" लेकिन ख्वाबों क़ी रूमानियत से जब हम हकीकत के आईने में देखते हैं कई दफे नेताओं क़ी वायदाखिलाफी पर गुस्सा आता है.चुनाव के समय जनता से किए गए वायदे पूरे नहीं होते इसलिए " वायदाखिलाफी के पुतलों " क़ी खबर अवाम एन चुनाव के वक्त ही लेता है. काश! नेता लोग वायदे निभाना जान जाएँ , फिर शुरू हो जाएगी जमीन से जुड़े नेताओं क़ी नस्ल पैदा होना.वर्ना उन्हें अपने आप पर कभी तो शर्म आएगी?
सचमुच शर्म आएगी जब भी हम वायदों को तोड़ेंगे.इसलिए वायदा कर उसे निभाइए जरूर.वायदे निभाने का सुख " दोनों को भरोसे क़ी मजबूत डोर में कसने लगता है.अरे हाँ.... याद आया , पति- पत्नी के बीच तकरार का एक जबरदस्त मुस्सा होता है वायदे कर भूलने का.इस भुलक्कड़ी क़ी वजह से भी कई बार घर वाले गृह मंत्रालय से जान बचाकर भागने क़ी नौबत आ जाती है.एक बार श्रीमती जी से वायदा किया था किसी बात के लिए , भुलक्कड़ी के चक्कर में बात दिमाग से फिसल गई घर लौटे तब टीवी चल रहा था और शायर मोहसिन सुहैल पढ़ रहे थे -
हजार बार किया वादा और तोड़ दिया
तुम्हारे वादों पर अब मुझको एतबार नहीं
मुहं फुलाकर बैठी श्रीमती जी से हमने मान- मनुहार क़ी और कहा ' गंगा कसम भागवान ! ड्यूटी से निकलते तक याद था पर दोस्तों के चक्कर में भूल गया.चलो अब चलते हैं." वह सब तो ठीक है... पर पहले यह बताओ के वो चुड़ैल गंगा कौन है !!!!!!!
अपना ख्याल रखिए... शुभ रात्रि... शब्बा खैर....
किशोर दिवसे मोबाईल-9827471743
2:59 am
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