सोमवार, 16 नवंबर 2015

मृत्यु शय्या पर क्या सोच रहे थे स्टीव जॉब्स

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मृत्यु शय्या पर क्या सोच रहे थे स्टीव जॉब्स 


नव परिवर्तन के दौर में आप कुछ गलतियां कर बैठते हैं .सबसे अच्छी बात है आप उन गलतियों को फ़ौरन सुधार लें फिर नव परिवर्तन की दीगर तब्दीलियों में जुट जाएँ .नवपरिवर्तन एक लीडर और अनुयायी के बीचः भेद करता है .कब्र के भीतर मुझे इस हकीकत से कोई फर्क फर्क नहीं पड़ता की मैं महाअमीर हूँ .मुझे यह सच अधिक बेहतर लगता है  कि रात को जब मैं बिस्तर पर जाऊं तब मुझे मालूम हो कि मैंने आज क्या चमत्कारिक किया है .                                                                      स्टीवन पॉल "स्टीव" अमेरिकी कारोबारी थे .मशहूर कंपनी एप्पल के सह संस्थापक ,चेयरमैन और सीईओ रहे. मृत्यु शय्या पर उन्होंने अपनी सोच को साझा किया . मैंने उसे काव्य रूप में  प्रस्तुत 
 किया है 


स्टीव जॉब्स के अंतिम शब्द
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मैं दुनियावी कारोबार की दुनिया में 
पहुंचा था सफलता के शिखर पर
दूसरों के नजरिये से जिंदगी  मेरी 
थी शोहरत का एक मानदंड 
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वैसे कारोबार के अलावा मेरी
जिंदगी में खुशियां थी अत्यल्प
अंतिम सत्य यही है कि संपत्ति
थी जीवन का महज एक सत्य
जिसकी हो चुकी थी मुझे आदत
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अब अँधेरे में देख रहा हूँ मैं 
जीवन रक्षक  मशीनो की हरी रौशनी 
सुन रहा हूँ उगलती मशीनों का 
निरंतर-बीप बीप बीप 
अनवरत गूंजती यांत्रिक ध्वनि 
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और ... महसूस करता  हूँ तेज साँसें  
मृत्यु देवता की ....आते हुए 
मेरे करीब.... और करीब .और....करीब
अब समझ चुका हूँ मैं -जब हम 
कर चुके होते हैं इकठ्ठा 
जीवन के अंत तक पर्याप्त संपत्ति
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ठीक उसी वक्त करना चाहिए 
हमें हासिल वह सभी कुछ 
जो है संपत्ति से अलहदा 
जो है संपत्ति से ज्यादा अहम 
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शायद .... वे हैं रिश्ते
शायद... वह है कला 
शायद ...युवा वक्त के स्वप्न !
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अब समझ गया हूँ में 
निरंतर धन की लिप्सा 
मोड़  देती है इंसान को 
अनसुलझी गुत्थी की मानिंद 
बन चुका है अब मैं 
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संवेदनाएं दी हैं ईश्वर ने हमें 
महसूस करने की 
प्रत्येक ह्रदय में बसा प्रेम 
न की वह दृष्टिभ्रम 
जो निश्चित रूप से उपजता है 
अथाह सम्पति की लिप्सा से!
जीवन भर में संचित 
नहीं जा सकता मैं साथ लेकर 
मेरे साथ जाएंगे सिर्फ
यादों के वे दरीचे जिनपर 
होंगी प्रेम की कशीदाकारियां 
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दरअसल यही हैं असल संपत्ति 
तुम्हारी वैचारिक  वसीयत भी 
जो होगी तुम्हारे साथ,और बाद भी 
करती रहेंगी हमेशा  जीवन भर 
प्रदीप्त तुम्हारे -विचार -पथ 
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हजारों मील करता है सफर 
प्रेम .. अनवरत... अनथक
क्योंकि जीवन है असीमित 
सो जाओ.......जहाँ मन करे
शिखर फतह करो हर  एक
जो है तुम्हारे मन का अभीष्ट 
सब कुछ तो ह्रदय की सर्जना   है!
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चलो .. अब पूछता हूँ मैं आपसे
कौन सा बिस्तर होता है 
विश्व में सबसे बेशकीमती?
एक बीमार का बिस्तर .....
मेरा यही है जवाब 
जानते हो ...तुम रख सकते हो 
अपने लिए ,किसी भी वक्त
कार का एक चालक 
अपने  लिए...कमाकर पैसा 
देने वाला  कोई इंसान 
लेकिन सोचा ही तुमने कभी 
कर सकते हो अपने लिए तलाश 
एक अदद ऐसा इंसान जो 
तुम्हारी एवज में पड़े बीमार 
और महसूसे तुम्हारा दर्द!
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गम हो चुकी भौतिक वस्तुएं 
कोशिशों से तो जाती हैं मिल 
लेकिन कभी सोचा है तुमने
 ख़त्म होने पर जिंदगी अपनी 
क्या कर सकते हो फिर तलाश ?
****
जब इंसान होता है दाखिल 
किसी ऑपरेशन थियेटर में 
वह महसूसता है शिद्दत से 
ओह!-अब तक उसने तो 
ख़त्म ही नहीं की है 
वह पुस्तक जिसका नाम है-
""स्वस्थ जीवन की किताब"
*****
जीवन का नियम है शाश्वत
चाहें रहें हम किसी भी चक्र में 
अबाध गति काल-चक्र की हमें 
कर देती है आमने -सामने 
उस अटल  सत्य के दिन..... 
जब गिरता है जिंदगी का पर्दा 
*****
अंतिम सत्य यही है 
संचित करो प्रेम का खजाना 
अपने परिवार के लिए 
प्रेम का खजाना 
पत्नी और दोस्तों के लिए 
और सबसे जरूरी है 
खुद से तो पहले सीखो ही
अच्छी तरह करना  बर्ताव
और दूसरों से भी!