गुरुवार, 18 सितंबर 2014

कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं..

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कौन  याद करता है हिचकियाँ समझती हैं... 
बेटा ...कोई शायद याद कर रहा है इसलिए इतनी हिचकियाँ ले रहा है तू ... चल जा पानी पीकर आ"...बचपन में माँ के कहे हुए शब्द आज भी याद हैं.और पानी पीने से पहले जाने-अनजाने कितनों को याद कर लिया था उन दिनों में.  नौजवानी ने कदम बढ़ाए और जवानी के दौरान भी छेड़खानी  के अंदाज़  में ही सही इन हिचकियों के साथ ही अपनों को याद करने का इतना प्यार भरा तरीका मुझे नहीं लगता हमारे देश के अलावा किसी और जगह सोचा भी जा सकता है.
                 हिचकियाँ... पानी का गिलास और बहाना ही सही अपनों को याद कर लेना ..जरा सोचिये तो सही किसके मन में सबसे पहले यह विचार आया होगा कि हिचकी आई  है चलो अपनी नजरों से दूर चहेतों को याद तो कर लें नई  पीढ़ी के मेरे नौजवान दोस्त पता नहीं हिचकियों से जुड़ा यह  रेशमी रिश्ता छू पाते हैं या नहीं जो अक्सर मन को गुदगुदा जाता है .भूले -बिसरे लोगों को  इसी बहाने याद करके देखिए तो सही कितना मजा आता है!
              इसका मतलब यह हुआ की मुझे हिचकियाँ नहीं आती यानि मुझे कोई याद ही नहीं करता."गंजी चाँद पर हाथ फेरते हुए दद्दू ने कहा," लगता है सब  लोग मुझे भूलते जा रहे हैं इसलिए हिचकियाँ आनी बंद हो गई हैं" इसी बीच दद्दू को हिचकी आई और दो घूँट पानी से हलक तर करते ही उनका कंठ खुल गया -
              हिचकियाँ इसलिए अब मुझको नहीं आती हैं 
              रफ्ता-रफ्ता वो मुझे भूल गया है शायद 
हिचकियों और यादों से जुडी बातों के रस्ते दद्दू और मैं कुछ दूर निकल पड़ते हैं तफरीह के लिए.सिमटते मैदान के कोने में खड़े आम के पेड़ की डाल पर बुलबुल और एक फुनगी पर सैयाद के होने का एहसास मिठास भरी कूक से होता है." पत्रकार भाई!कहीं इस बुलबुल के स्वर  में सैयाद के बिछोह की व्याकुलता तो नहीं छिपी है?" दद्दू ने मुझसे सवाल किया ." न तो मुझे पक्षियों की बोली का ज्ञान है और न ही मैं ऑरनिथोलाजी का विशेषग्य." लेकिन कहानियां और उपन्यास मैंने जी भरकर पढ़े हैं और बुलबुल और सैयाद के जरिये प्रेमी जोड़ों की कल्पना की गई है." मैंने कहा.
                       "तब कहीं यह कूक सैयाद की याद में बुलबुल की हिचकी तो नहीं!" दद्दू ने मुझे फिर टोका.अपने सर के बाल नोंच लेने का जी चाहा था दद्दू के इस " सेन्स आफ एस्थेटिक्स " पर.फिर भी आज के युवा दोस्तों के इर्द-गिर्द मौजूदा माहौल के मद्देनजर  मुझे एहसान दानिश का यह शेर याद आता है-
                दो  जवां  दिलों  का गम  दूरियां  समझती  हैं 
                कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं 
                  
 कभी घर में यूं ही बतरस  के दौरान अपनों से बातचीत कर पूछिए इस बारे में कि हर उम्र के लोग हिचकियों के बारे में क्या सोचते हैं?नै जनरेशन को हिचकियों का तिलस्म मालूम भी है या नहीं!मुझे तो लगता है कि इंसान चाहे आयु के किसी भी दौर से गुजर रहा हो जब भी मौत सामने आये रिश्तों की मिठास इतनी गहरी होनी चाहिए की उसमें डूबकर अलविदाई के समय भी हर कोई अपने अजीज से कहे-
                            आखिरी हिचकी तेरे जानू पे आये
                             मौत भी मैं शायराना चाहता हूं
लीजिये बातों ही बातों में दद्दू और मैं तफरीह पूरी कर घर लौट आये.घर के सामने ही उसी बिजली के खम्भे के पास लडखडाता हुआ एक आदमी हिचकियाँ ले रहा होता है .बदबू का तेज झोंका नथुनों से जैसे ही टकराया ,दद्दू ने आलाप लिया," अखबारनवीस !यह हिचकी दारू ज्यादा होने की है या " कोटा " कम पड़ जाने का सिग्नल?"
" मुझे इसकी जानकारी सचमुच नहीं है  दद्दू "  यह कहकर जैसे ही मैं अपने घर में दाखिल होने को था मैंने देखा दद्दू  हिचकियाँ ले रहे थे.फौरन मैंने कहा ," घर जाओ दद्दू लगता है भाभीजी याद कर रही हैं "
                               सुबह सोकर उठता हूँ चाय की प्याली के साथ अखबार के पन्ने पलटने लगता हूँ.अरे!!!! यह क्या !!!मुझे हिचकियाँ आ रही हैं  ." ऐसी भी क्या बात है!!! सच बताइए... कहीं आप मुझे याद तो नहीं कर रहे हैं!!!!!                                                       
                                                                           हिचकियों सहित 
                                                                                                    किशोर दिवसे      
                        

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