डोंट बी संतुष्ट... थोडा विश करो.. डिश करो...हालाकि यह पंच लाइन किसी ऐसे विज्ञापन की है जिसमें शाहरूख खान कुछ प्रमोट करना चाहते हैं लेकिन यूं लगता है कि इसकी थीम महिलाओं को मद्दे नजर रखकर सोची गई है".
" बात कुछ हज़म नहीं हुई ... जरा और खुलासा करो" मेरी छोटी सी बुद्धि के खांचे में बात फिट न होने पर मैंने दद्दू से पूछा."यार अखबारनवीस !क्या इस दुनिया में महिला को कोई पूरी तरह संतुष्ट कर सकता है" दद्दू ने सीधा सवाल दागा.सवाल थोडा डेंजरस टाइप लगा इसलिए मैंने दद्दू की गुगली को "डक" करना चाहा.. मैंने पूछा," क्या मतलब?"
नहीं नहीं...इसका वो मतलब नहीं जो आप समझ रहे हो.क्या कोई पुरुष किसी महिला को पूरी तरह खुश रख सकता है?क्योंकि बेचारे पुरुष तो छोटी -छोटी खुशियों में ही बल्ले... बल्ले.. करने लगते हैं .लेकिन महिलाऐं कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होती.
" दद्दू यह आपका अनुभव बोल रहा है क्या?इस बार मैंने जरा चालाकी से सवाल उनकी ही ओर रिबाउंड करते हुए कहा ," दद्दू.... वैसे संतुष्टि तो अपने मानने पर होती है लेकिन आप किस मुद्दे पर अपने दिमाग की लेजर बीम का बटन ऑन कर रहे हो?
समझ गए थे दद्दू कि मैंने उनकी नीयत भांप ली है इसलिए मूड में आकर उन्होंने किस्सागोई शुरू की-
मुंबई में एक स्टोर खुला है जहाँ पर "पति " मिलते है.कोई भी विवाह इच्छुक महिला वहाँ पर पति का चुनाव कर सकती है .इस स्टोर के प्रवेश द्वार पर एक तख्ती लगी है जिस पर लिखा है कि आपको यहाँ पर सिर्फ एक बार ही दाखिला मिल सकता है.इस स्टोर में छः मंजिलें हैं.जैसे-जैसे खरीददारी के लिए ऊपर की मंजिल पर पहुँचते जाते हैं पुरुषों के भीतर मौजूद खासियतें बढ़ती जाती हैं.( पाठक युवती व् महिला के शाब्दिक झमेले में न पड़ें , मतलब विवाह योग्य से है.)
वैसे इस पति स्टोर की अनिवार्य शर्त यही है कि किसी मंजिल पर एक ही विवाह इच्छुक अपने पति का चुनाव कर सकती है.वहाँ से वापस किसी दूसरी मंजिल पर नहीं जा सकती .उसे सीधे बाहर ही निकलना होगा.
शादी करने की इच्च्छुक एक महिला उस स्टोर में गई.पहली मंजिल में लिखा था-" इन पुरुषों की नौकरी है और वे भगवान पर विश्वास रखते हैं.दूसरी मंजिल की तख्ती-इनके पास नौकरी है,भगवान पर विश्वास है और ये बच्चों से प्यार करते हैं.तीसरी मंजिल की तख्ती पर लिखा था फ्लोर थ्री -यहाँ रखे गए पतियों की नौकरी है ,भगवान पर विश्वास करते हैं ,बच्चों से प्यार करते है और बेहद सुन्दर है.
अरे वाह!विवाह की आकांक्षा रखने वाली वह महिला सोचने लगी.फिर पल भर में उसके मन में विचार आया ," क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं! वह अपने मन के लालच को रोक न सकी.चढ़कर वह सीधे चौथी मंजिल पर पहुंची.चौथे मंजिल की तख्ती में दर्ज था ,इन पुरुषों के पास नौकरी है ,भगवान पर विश्वास ,बच्चों से प्यार, बेहद सुन्दर हैं और घरेलू कामकाज में मदद भी करते हैं.
" ओ माई गाड..!कितनी ख़ुशी की बात है वह महिला सोचने लगी लेकिन दूसरे ही पल उसके मन में ख्याल आया ," क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं !" मिनटों में वह पाचवी मंजिल पर थी . वहाँ भी थी एक तख्ती.वह पढने लगी ,-फ्लोर नंबर पांच के हाल में मौजूद पुरुषों के पास नौकरी है,भगवान में विश्वास ,बच्चों से प्यार,खूबसूरत है ,घरेलू कामकाज में मददगार है ,एक और खासियत यह की ये बेहद रोमांटिक तबीयत के हैं.."
उस महिला के मन में उसी फ्लोर पर रुकने का ख्याल आया.पर ये दिल है के मानता नहीं! थोड़ी ही देर में वह छठवी मंजिल पर पहुँच गई.तख्ती यहाँ भी लटक रही थी." फ्लोर सिक्स -आप इस फ्लोर पर आने वाली -899989 वी महिला है.इस मंजिल पर जो हाल है वहाँ पर एक भी पुरुष नहीं है.यह फ्लोर इस बात का सबूत है कि महिलाओं को खुश रखना असंभव है.आपको हसबेंड स्टोर में आने का शुक्रिया.बाहर निकलते समय आप अपने कदम के बारे में सोचें .आपका दिन शुभ हो.
अब बताओ अखबार नवीस! क्या ख्याल है? दद्दू ने फिर चहककर पूछा. देखो दद्दू! संतुष्टि अपनी जगह पर है लेकिन महत्वाकांक्षा अपनी जगह पर.क्योंकि- AMBITION IS NOT A WEAKNESS UNLESS IT IS DIS-PROPORTIONATE TO THE CAPACITY .TO HAVE MORE AMBITION THAN ABILITY IS TO BE AT ONCE WEAK AND UN-HAPPY.
ददू मेरी बात से सहमत थे.बोले-अखबार नवीस... मानता हूँ तुम्हारी बात को ... प़र भूल से भी अगर यह किस्सा लिखोगे तब एक बात जरूर वहा पर दर्ज कर देना---
संवैधानिक चेतावनी...महिलाओं के हसबेंड स्टोर वाले किस्से के बारे में घर पर ( अपनी भाभीजी से ) चुगली नई करने का क्या!!!!!!!
शुभ रात्रि.. शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिए...
किशोर दिवसे
1:10 am
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