बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप

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....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप 
  


नारायण... नारायण...
नारायण.... नारायण....
चौंककर नारद जी ने देखा और उनसे रहा न गया.उनहोंने पल भर काबू रहने के बाद पूछ ही लिया " यह क्या त्राटक सीख रहे हो जो जलते दीये कि लौ को एकाग्र होकर घूरे जा रहे हो! किसी के आने का आभास भी नहीं?"
"नहीं देवर्षि ....दीये को जलता हुआ देखकर यों ही मन में विचार आया कि क्या हम भी इस दीये कि तरह नहीं हैं!ऊपर चुंधियाती रौशनी से जगमगाता और तले घुप्प अँधेरा.कथनी और करनी में कितना फर्क हो गया है आज -मन का कल्मष धूर्तता की चाशनी में लिपटा  मायाजाल बुनने में कितना सक्षम है!महानगर की अट्टालिकाओं के नीचे झुग्गियों का अभिशप्त जीवन ,अमीरी के विष दंतों में पिसते गरीब,बाजारवाद की सूली पर लटकते नैतिक मूल्यों के परखच्चे ," वर्तमान "के चरम भौतिकतावादी दर्शन पर क्रूरतम घात - प्रतिघात करती अतीत और मध्ययुग की सड़ी - गली व्यवस्था .... दीये की   रोशनी को देखकर में फिर सोचने लगता हूँ- उजाले के अट्टहास और अँधेरे के अवसाद के बीच की खाई कभी पटेगी या नहीं?
                               आइये मन में दीप जलाएं ,कर्तृत्व के प्रति आस्था का
रौशनी भी है, अँधेरा भी... सवाल है कि आप किसे देख रहे हैं? जगमगाहट या स्याह! अमीरी-गरीबी ,वर्ण व्यवस्था के उबाऊ मकडजाल पर जबरिया पन्ने रंगना मूर्खता है.कर्तृत्व ही प्रथम व् अंतिम सत्य है.- लाओ अपने मन का दीया,उडेलो  संकल्प का तेल और प्रज्ज्वलित करो लक्ष्य की बाती - उजियारी राह आपकी प्रतीक्षा कर रही है.पर जरा ठहरो -
                                    दर से निकले तो हो,सोचा भी किधर जाओगे?
                                      हर तरफ तेज हवाएं हैं बिखर जाओगे
मगर  घबराइए शायर निदा फाजली की इस धमकी से! उनहोंने ताकीद की है राह पर निकलने से पहले सोचने की.लक्ष्य का दीया अंतस में जलता रहेगा तब आपके साथ होगा स्वविवेक और स्व कर्तृत्व ; पाखंड वाद  तथा अतिवादिता की पिशाच्लीला से आप अछूते ही रहेंगे.
                                      नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
वीणा  की झंकार से विचार प्रवाह खंडित हुआ." देखो  देखो... शेर और बकरी- देवर्षी ने मुझे टोका. दीये के अंजोर में एक दृश्य स्फटिक की मानिंद उभरता हेई ,सिर्फ मेरे ही नहीं अमूमन हर किसी के सामने- " शेर झपट्टा मरकर बकरी को उदरस्थ कर गया .यह शेर पर निर्भर करता है वह किस तरह अपना पेट भरे.जीने का हक़ बकरी को भी है, उसे इतनी चालाकी बरतनी होगी की शेर के आक्रमण से बच सके.
जंगल का कानून,मेंडेल का नियम -"स्ट्रगल फार एग्जिस्टेंस ,सर्वाइवल आफ द  फिटेस्ट " और अमीबा से लेकर होमो सेपियंस तक सारा विकासवाद विज्ञान की पुस्तकों के जरिये पल भर में हमारे मस्तिष्क में तरंगित होता है.अचानक दीये की लौ कांपकर फिर स्थिर हो जाती है-इस बार दृश्य बदलता है.आलोक में इस बार मै खुद को पाता  हूँ.-मेरे दोनों हाथों में मुखौटा  है, एक हाथ में शेर का और दूसरे हाथ में बकरी का.जैसे-जैसे घडी कि सूइयां आगे बढती हैं कभी शेर तो कभी बकरी का मुखौटा  मेरे चेहरे पर चिपकने लगता है.जरा देखिये... आपका चेहरा पहचानकर भी झूठ मत बोलना!
मैं  खुद दिया बन गया हूँ.माथे पर उभरे स्वेद बिन्दुओं की क़तार  देखकर नारद जी मुस्कुराने लग जाते हैं-" वह देखो ल कलमकार!... दीये के आलोक पटल पर सिर्फ तुम ही नहीं सारा समाज ही एक मिनिएचर के रूप में दिखाई दे रहा है." चारों ओर मुखौटों क़ी दुकानों में चल रही छीना-झपटी से कोहराम मचा हुआ है.
        नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
वीणा  के तंतुओं के झंकृत होते ही देवर्षि अचानक अंतर्धान हो जाते हैं.चौंकता हूँ मैं फिर कुछ सोचकर उस दीये क़ी अग्निशिखा पर केन्द्रित हो जाता हूँ- मोतीचूर का लड्डू है यह समाज ... एक एक दाना यानि " व्यक्ति " हुआ समाज का घटक .मानवता के वैश्विक दृष्टिकोण पर सोचना ही चाहिए .फ़िलहाल अगर भारत के सन्दर्भ में ही सोचें जातीय ही नहीं भारत में बसा मानव समाज इस दीये क़ी लौ में झांककर देखें क्या ऐसे मूल्यों व् राष्ट्रिय चरित्र का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है ?काश इस दीये क़ी लौ हमारे ठन्डे खून में ऊबाल  लाये और जगती आँखों से भी भारत का हर बन्दा पूरी शिद्दत के साथ दिवा स्वप्न साकार करने क़ी दिशा में कुछ इस तरह से सिंह गर्जना कर
सके-         देखा है मैंने जागती आँखों से एक ख्वाब ,वतन हो अपना सारे जहाँ का आफ़ताब
दीये क़ी रौशनी में भारत को विश्व का आफ़ताब क़ी मानिंद देखने के मेरे "विचार-त्राटक "पर अचानक जोरों का ब्रेक लग गया जब देवर्षि बदहवासी क़ी हालत में मेरे समक्ष प्रकट हुए 
         नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
" मैं जान गया हूँ ... धरती का मानव समुदाय इतना जटिल और खुदगर्ज क्यों हो गया है... सब कुछ इन सियासतबाजों क़ी मक्कारी है जो अवाम का आत्म सम्मान जागने ही नहीं देती.इस दलदल में भी कुछ चेहरे बेहतर सोच क़ी शक्ल वाले " अच्छे चने"हैं लेकिन वे गंदगी से लथपथ सियासी भाड़ को फोड़ने में सक्षम नहीं.सारे सिस्टम ही इतने सड गए है कि आम आदमी के मन में राष्ट्रिय चरित्र का उजियारा क्या खाक लायेंगे जो बालूई बुनियाद कि वजह से खंड-खंड खंडित हो चुके हैं."अवाम को वे बिना रीढ़ का लिजलिजा मांसपिंड बनाये रखना चाहते हैं.
                      अचंभित मैं,देवर्षि के चेहरे में आर्कमिडीज़  के उन हाव-भाव को पढ़ रहा था जो सापेक्षता के सिद्धांत क़ी तह तक पहुंचकर दिखाई दिए थे. यूरेका... यूरेका... ... नहीं मै अपने आप में लौटा.... मुनि श्रेष्ठ कह रहे थे -"समाज क़ी अधोगति का एकमात्र हल सामाजिक चेतना ही है" यह अधोगति मुझसे देखी नहीं जाती.... कहकर देवर्षि अंतर्धान हो गए.
                            पर मुझे अच्छी तरह  ध्यान है अपने अंतस में प्रज्ज्वलित होते दीये का. आइये... दीप पर्व क़ी इस बेला में मेरे हाथों में रखे इस दीये को आप भी स्पर्श करें ताकि आपके अंतस का दीया भी दीप-दीप मिलकर दीप मालिका  बन जाए और सार्थक कर दे यह दीप पर्व....
             अपना ख्याल रखिये    
                                                           किशोर दिवसे 
                                                                            मोबाईल 9827471743
                                           

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

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ख़त्म कर  दो कचरा!
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जितना असह्य है कचरा 
भीतर घर के और पड़ा 
दीवार,अहातों के बाहर इर्द-गिर्द,
गलियों ,सड़कों ,नुक्कड़ ,चौराहों 
गाँव ,शहर सड़ांध फैलाता 
उससे अधिक पल-पल प्राण लेता है 
दिमाग के भीतर बजबजाते और 
फड़फड़ाते चमगीदडों जैसा कुंठित 
संकीर्ण सोच  का कचरा 
सो, ख़त्म कर दो तुरंत 
कचरा अपने दिमाग के  भीतर 
और बाहर का- इसी पल 
वरना भोग रही हैं संत्रास  पीढ़ियां 
इतनी सी  बात नहीं समझे आप!
नहीं है काम सरकार या नेता का 
सिर्फ तय कर ले हर इंसान 
नहीं रहेगा कचरा किसी और 
तभी खिलेगी मुस्कान चहूँ और!



बिलासपुर के टाइटस परिवार से जुड़े हैं अप्पाचेन , बापू के डांडी मार्च काफिले में शामिल 81 की मूर्तियों में एक उनकी भी। ....

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बिलासपुर के   टाइटस परिवार  से जुड़े हैं अप्पाचेन
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बापू के डांडी मार्च काफिले में शामिल
81 की मूर्तियों में एक उनकी भी। ....




बिलासपुर छत्तीसगढ़ का एक परिवार है जो ऐसी  शख्सियत से जुड़ा है जिनकी मूर्ति सैफ़ी विला , डांडी ,गुजरात  में स्थापित की जाएगी।  जी हाँ !ऐतिहासिक डांडी  शहर जहाँ से महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के अंतर्गत  " डांडी मार्च" निकाला  था।  शांतिनगर सिद्धि शिखर विस्तार  ,बिलासपुर में रहने वाला यह   टाइटस परिवार है। जिनकी  मूर्ति लग रही है वे टाइटस जॉर्ज  के  दादाजी व्  जार्ज टाइटस  के पिता  वेरथुंडियिल टाइटस हैं. 1980 में  थेवेरथुंडियिल टाइटस मृत्यु हुई। बापू के सहयोगी उन्हें टाइटस जी कहते थे।
                        टाइटस परिवार के  लोग थेवेरथुंडियिल टाइटस जी को अप्पाचेन ( मलयालम अर्थ -पिताजी ) कहते थे। अप्पाचेन  महात्मा गांधी के विश्वासपात्र डेयरी एक्सपर्ट रहे।  खास बात यह कि उन्होंने बापू से अपने रिश्ते का निजी स्वार्थ के लिए कभी लाभ नहीं उठाया। कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  अवार्ड भी नहीं लिया। न कोई चौक बना  न कोई सड़क।  जब तक बापू के साथ रहे आश्रम के लिए डेयरी का काम सम्हाला। अप्पाचेन की मृत्यु 1980 में हुई थी। डांडी यात्रा के  दौरान बापू  की यादों को अप्पाचेन ने अपनी डायरी में सहेजकर रखा है। .... उसी डायरी में दर्ज यादों की इबारतें। .....
                      12 मार्च 1930 बापू ने डांडी मार्च निकाला था। उसी यात्रा में मैं भी शामिल था।  सख्त निर्देश थे उनके -पूरा अनुशासन ,शांति रखना है ,अगर कोई कार्रवाई हुई तो विरोध नहीं होगा। जो नहीं कर सकता वह छोड़  कर जा सकता है. कुछ ने आश्रम छोड़ दिया था। डांडी मार्च पर 80 लोग गए। महिलाओं ने आश्रम सम्हाला।
                    कोलकाता की लिली बिस्किट कंपनी ने  बापू साथ में बिस्किट ले जाने का ऑफर दिया था जिसे उन्होंने विनम्रता से ठुकरा दिया। यात्रा की शुरुआत "वैष्णव जन तो तेने कहिये "भजन से हुई  थी। अप्पाचेन ने लिखा है 20 किलोमीटर चलने के बाद सभी विश्राम के लिए रुके।  अप्पाचेन  सूज गए थे। बापू  ने नमक के पानी में डुबोकर रखने को कहा। सुबह तक  पैर ठीक हो गए।
                               उनकी डायरी में लिखा है -_ क्या मुझे जीवन भर कुवारा रहना पड़ेगा?- अप्पाचेन ने बापू से पूछा उनका जवाब था,"नहीं ,साबरमती आश्रम में रहने तक।  आश्रम में कुछ लड़के लड़कियां छिपकर रोमांस किया करते थे  . बापू की पीठ के पीछे। प्रेम पत्र मिलने पर बापू को दुःख भी हुआ। उन्होंने कहा,"यह सब मेरे ही पाप का नतीजा है जो इस आश्रम में हो रहा है।
महात्मा गांधी एक बार केरल गए थे अप्पाचेन के घर।   उन्होंने दादाजी  से कहा की आपका बेटा (अप्पाचेन)आश्रम में पूरी तरह.सुरक्षित है।    
                         1930 में  जेल यात्रा से छूटने के बाद 1934  में   अप्पाचेन  केरल गए। 17 साल की अन्नम्मा ब्याह हुआ। रोमांटिक हनीमून की कल्पना उस वक्त फुर्र हो गयी जब अप्पाचेन और अन्नम्मा को आश्रम में -अलग -अलग पड़ा। अन्नम्मा से बापू ने कहा ,"बहू !तुम शौचालय साफ़ करोगी ,अन्नम्मा की घिग्घी बंध  गयी। बापू का  अनुशासन सख्त था। 1934 में बापू वर्धा में  डेयरी शुरू करना चाहते थे। ब्रिटिश सामंत की बेटी मेडिलिन स्लेड (बापू ने उसका   नाम रखा मीराबेन ) वहीं  पर थी।उनसे अप्पाचेन  की नहीं जमी  .बापू  ने रोका  लेकिन वे  सपत्नीक केरल चले गए। अप्पाचेन अक्सर कहते ,"अगर  ईसाइयों के स्वर्ग में गांधीजी के लिए स्थान नहीं तो मैं वहां भी नहीं जाना  चाहूँगा। वे गुलजारी लाल नंदा साथ  बैरक में भी रहे।
                  अब जाकर थेवेरथुंडियिल टाइटस यानि अप्पाचेन के  बापू से जुड़े सम्बन्ध को मान्यता मिली है। मूर्तिकार चौकी श्रीनिवास  ने युवा टाइटस जी की  मूर्ती बनायीं है। यह डांडी  सत्याग्रह स्मृति प्रोजेक्ट का  हिस्सा है  यहां गांधीजी सहित डांडी  मार्च करने वाले 81 लोगों की मूर्तियां लगेंगी।   प्रोजेक्ट में 31 भारतीय और 9 विदेशी मूर्तिकार हैं।  मूर्तियां सैफ विला ,(डांडी निकट) की  15 एकड़ की जमीन पर लगेंगी जहाँ बापू के संगवारी रुके थे।
 बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ में रहने वाला टाइटस परिवार इस उपक्रम से प्रफुल्लित है।  टाइटस परिवार के एक सदस्य यानी टाइटस जार्ज के चाचा थॉमस टाइटस अभी भोपाल में रहते है। वे फ्री लांस पत्रकार भी हैं।   निश्चित रूप से टाइटस परिवार की  ख़ुशी अपने  शहर बिलासपुर की  ख़ुशी  का सबब तो होगा  ही  ।
(  अंग्रेजी में एक लेख रीडर्स डाइजेस्ट में भी छपा है )

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

सियासी हनीमून ख़त्म ,,तलाक

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 तेजी से बदल रहे हैं सियासी समीकरण। हर पल  नए दांव की तैयारी आशंका और अंदेशा  !महाराष्ट्र की राजनीति  एक ही दिन दो प्रमुख गठबंधनों के टूटने की गवाह बनी और इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मुकाबला बेहद रोचक हो गया क्योंकि अब चारों प्रमुख दल भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अलग अलग चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
भाजपा—शिवसेना और कांग्रेस—राकांपा के पुराने गठबंधनों के टूटने के बाद महाराष्ट्र की चुनावी फिजा में काफी गर्मी पैदा हो गई है। संभव है कि अब चुनावी मैदान में पुराने दोस्त एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करें।

इन चार प्रमुख दलों के अलग चुनाव लड़ने के फैसले के बाद राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पांचवें प्रमुख दावेदार के रूप में जनता के बीच जाएगी। वैसे मनसे को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था और उसका खाता भी नहीं खुल पाया था।
लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर 48 में से 42 सीटें जीतीं। महाराष्ट्र में शिवसेना अब तक भाजपा के बड़े भाई की भूमिका निभाती रही थी। इन दोनों के बीच उस वक्त अलगाव हुआ है जब भाजपा केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ सत्तासीन है। तीन दशक बाद ऐसा हुआ कि किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला।चलिए देखते हैं।राजनीति की गणिकाएं किसपर।।।।।कैसे डोरे डालने में कामयाब होती है!

छत्तीसगढ़ में कौन बनेगा करोड़पति की शूटिंग ...... रिश्ते में हम आपके फैन लगते हैं ssssssss हाँ ssss ई ! =

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छत्तीसगढ़ में कौन बनेगा करोड़पति  की शूटिंग
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रिश्ते में हम आपके फैन लगते हैं ssssssss हाँ ssss ई !
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 अरसे  से चर्चित रहा है कौन  बनेगा करोड़पति यानी-केबीसी। अनेकों लोग समाज के अलहदा दर्जे से इस महोत्सव में शामिल हुए, हो रहे हैं ... । अपनी-अपनी फूर्ति और बुद्धिमत्ता के बरक्स राशि जीती ,खुश हुए।  अपने परिवार और शहर को  खुश किया। मेहनत से पैसा कमाया और सेलिब्रेटी स्टेटस भी हासिल किया। निश्चित रूप से कुछ विनर्स को चंद संस्थाओं ने हाथों-हाथ उठाया.........।
                      बात ही छत्तीसगढ़ के ख़ुशी  से नाचने की है। केबीसी -7  यानी सप्तकोटी महासम्मान। शूटिंग  राज्य की राजधानी  रायपुर में। सभी जिंदादिल बन्दों की निगाहें इस खबर के इर्द-गिर्द  घूमती हुई। बोले तो बात ही कुछ ऐसी है!-" अखबारनवीस !पास -वास  का जुगाड़ करवा दो  यार।  तुम ठहरे पत्रकार बिरादरी के फ़ौरन  जुटा लोगे!"-अपने दद्दू   ने मुझे फोन किया था।
   " क्या बताएं दद्दू ! रायपुर के इनडोर स्टेडियम में देखा नहीं कैसी बमचक मची है। मीडिया को  भी तवज्जो नहीं है। हालांकि यह सही है कि मेगा  इवेंट की तैयारी में अच्छे-अच्छों के  छक्के छूट जाते हैं। लो। .. अब तो फर्जी पास की भी अफवाह उड़ गई !" हाँ ,दद्दू हालत अनुपम खेर के शो जैसी है -जिंदगी में कुछ भी हो सकता है। "-मैंने कहा और दद्दू से बोला-" देखे  न अख़बार आज के !- वीआईपी पास भी  लिमिटेड।
           कोई बात नहीं दद्दू -"अपन लोग अखबारी रिपोर्ट  और टीवी पर प्रसारण देखकर काम चला लेंगे"  ,मैंने दद्दू को दिलासा दिया।
"यार अखबारनवीस, तुमने कोशिश नहीं की एसएमएस या ऑनलाइन नाम दर्ज करने की?"-दद्दू   ने मेरी टोह ली। "दद्दू! कलमघसीटी  से फुर्सत मिले तब तो!ज़नरल नॉलेज बढ़ाने  टाइमच नहीं मिलता है । वैसे केबीसी में  उन लोगों को जरूर जाना
 चाहिए जो काम्पीटीटिव परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं।  या फिर  वहां जाने के लिए  पूरी तैयारी करें। '- मैंने अपनी नालायकी पर पर्दा डालने की असफल कोशिश की। चंद  मिनट गुजरे नहीं थे दद्दू आ  टपके मेरे घर पर। केबीसी की खबर इन दिनों हॉट-केक है। मैंने दद्दू  को जान  -बूझकर  छेड़ा-
               " दद्दू! एसएमएस किया केबीसी लिए? "  नहीं यार…। इतनी  भगदड़  में कहाँ  अपना नंबर लगेगा? और कोंचने की नीयत  से मैंने कहा ,"  ! वैसे रायपुर  की महापौर किरणमयी नायक भी केबीसी की तैयारियों के मामले में सोनी एंटरटेनमेंट कंपनी को चमकाकर दबंगई दिखा गई। बच्चन  साहब की दस करोड़ की  वैनिटी वैन,मनीष पॉल की जबरदस्त एंकरिंग ,देखने   का इन्तेजार निश्चित रूप से सभी  फिल्म प्रेमियों को होगा नहीं क्या! शो के दौरान छत्तीसगढ़ के विरासत की डिजिटल झांकी   दिखाएंगे। ..... अच्छा है  नहीं दद्दू!  (प्रोग्राम लाइव नहीं देखने मिलेगा इस अंदेशे में दद्दू मुंह और लटका हुआ   था। )
                "  क्या सभी जगह  फिल्म स्टारों के प्रति  आकर्षण ऐसा ही होता है ?",दद्दू  ने चाय सुड़कते हुए सवाल दागा। "यार दद्दू  ! देखो !मुंबईकरों को तो  एनी टाइम शूटिंग शेड्यूल देखने का मौका मिलताईच्च है। अपुन छोटे और मझोले शहर के लोग तो ऐसी ऐतिहासिक घटना का इन्तेजार करते हैं। फिर  सेलिब्रेटी स्टेटस बनाने में  लगने वाली मेहनत लोग नहीं देखते.फिल्म स्टार्स दिन-रात झोंक देते हैं काम के पीछे , बाहर से सिर्फ उनका ऐश्वर्य आँखों में दीखता है। फिर भी क्रेज तो है। चाहे उनकी स्टाइल अपनाने का हो   या उनके भव्य व्यक्तित्व से कुछ सीखने  हो  !
                     "  मुझे लगता है केबीसी के इस शूटिंग दौर से छत्तीसगढ़ राज्य ( क्रेडिट रमन सरकार को )  का नाम देश के फ़िल्मी नक़्शे पर उभर जायेगा। "-दद्दू बोले। "ठीक कह रहे हो दद्दू,लेकिन  मुख्यमंत्री जी को हॉट  सीट पर बैठने के दौरान महानायक अमिताभ बच्चन के कानों में छत्तीसगढ़ की फिल्म इंडस्ट्री को बेहतर बनाने और छत्तीसगढ़ में फिल्म स्टूडियो  के निर्माण में  मदद के   आश्वासन की बात डाल देनी  चाहिए। "-मैंने दद्दू के कान भरे. मैं जानता  हूँ की दद्दू अपने "फ्री फंड डॉट कॉम के सर्वर  में यह बात जरूर डालेंगे।
                "अब चलता हूँ अखबारनवीस। ... दद्दू ने सब्जी  उठाकर कृष्णमुख होने  इजाजत ली।  इसी बीच पप्पू ने टीवी का स्विच ऑन किया।
अपनी चर्चित फिल्म शहंशाह  का वही सदाबहार डॉयलॉग धाँसू अंदाज में डिलीवर करते हुए अमिताभ बच्चन  स्क्रीन पर नजर आ रहे  थे -"रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं। ......  ssssssss हाँ ssss ई !
                                                                         जिंदादिल रहें ,मुस्कुराते रहें ,जागरूक रहें। .....
                                                                          किशोर दिवसे ,बिलासपुर छत्तीसगढ़
                                                        
                                                        
                    













बुधवार, 24 सितंबर 2014

गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं ! मंगल मिशन कामयाब

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 गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं ! मंगल मिशन कामयाब



सचमुच  यह एक खुश खबरी है। भारत ने आज अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। सबसे पहले  टीम को बधाई। कामयाबी का श्रेय कौन लेगा यह दूसरी बात है। कार्यकाल मोदी सरकार होने की वजह से निश्चित तौर पर यहतकनीकी उपलब्धि उनके खाते  में दर्ज होगी।  मंगल मिशन कामयाबी की उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया, जिसने अपने पहले ही प्रयास में ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है। सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई, ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा एमओएम का मंगल से मिलन।फिर भी एक  जरूर है ,समाज में वैज्ञानिक स्तर पर इतनी तरक्की   होने के बावजूद विज्ञान की उपलब्धियों का  क्षण उपयोग करने पर भी हमारी सोच पूरी रफ़्तार से वैज्ञानिकता में रच नहीं पाई। अंधविश्वासों की गिरफ्त से छुटकारा अभी बाकी है!विज्ञान के प्रति हम सभी स्तर पर नमकहलाल बनें।

Kishore Diwase: तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!

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Kishore Diwase: तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!: आकाशवाणी  का जलवा अब भी कहीं कम नहीं हुआ है। अनेक पीढ़ियां रेडियो सुनकर जवान हुई कुछ बुढा  भी गयीं। संवाद में तेजी लाने के उद्देश्य से आका...

चिड़ियाघर का बाघ ,युवक की मौत ...... सवालों के पैने नाखून

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 चिड़ियाघर का  बाघ ,युवक की मौत ...... सवालों  के पैने  नाखून

मुझे जैक लन्दन का उपन्यास याद  आ रहा है -CALL OF THE WILD. इंसान और जंगल  अंतर्संबंधों पर रोचक विचारोत्तेजक नावेल है। जो  होना था सो हो गया। सवाल ये है कि क्यों हुआ और क्या इसे रोका जा सकता था? दिल्ली चिड़ियाघर के एक सफेद बाघ ने मंगलवार को एक युवक को उस समय अपना शिकार बना डाला जब वह बाघ के अहाते की बाड़ पर चढ़कर उसकी तस्वीर लेने की कोशिश करते समय दुर्घटनावश (अहाते के) अंदर गिर गया। हालांकि अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि करीब 20 वर्षीय आयु का यह युवक अहाते में कैसे गिर गया, लेकिन चश्मदीदों ने बताया कि वह बाड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था और फिसल गया।

बाघ ने युवक पर कुछ मिनटों तक हमला नहीं किया, लेकिन किसी ने उसपर एक पत्थर फेंका और गार्ड ने बाड़ पर प्रहार करना शुरू कर दिया जिससे बाघ हिंसक हो गया। एक चश्मदीद ने बताया कि तब बाघ ने उसे उसकी गर्दन पकड़ ली और उसे घसीट कर दूर ले गया। कुछ चश्मदीदों ने दावा किया कि बाघ जब युवक को घसीट कर दूर ले जा रहा था तो चिडियाघर के गार्ड उसकी मदद नहीं कर सके क्योंकि उनके पास ट्रैंक्विलाइजर बंदूकें नहीं थीं।
दिल दहलाने देने वाली इस घटना की एक चश्मदीद ने फिल्म बना ली, जिसमें बाघ युवक को गर्दन से पकड़ता हुआ और फिर उसे मारता हुआ दिखाई दे रहा है। पुलिस और चिडियाघर के अधिकारी घटना घटने के कई घंटों बाद तक शव को अहाते से निकालने में असमर्थ रहे। चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने टीवी चैनल पर कहा है की बाड़  में युवक खुद गया था।
                      अनेक सवालों के पैने नाखून चुभ रहे हैं-1 चिड़िया घरों में आपदा  स्थिति कितनी बदतर है । 2 क्या बाड़  को तकनीकी रूप से और ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सकता है ? 3 .युवक  अगर मानसिक रूप से आंशिक असंतुलित  था ,तब भी क्या दर्शकों को जबरिया दुस्साहस करने  विरुद्ध चेतावनी और वन्य पशुओं   के आसपास रहने की तमीज-तहजीब सिखाई और चेतावनी नहीं दी जानी चाहिए?4 शेर को पत्थर मारने की बेहूदी  सोच  के बदले   सब लोग और चिड़ियाघर के अधिकारी /कर्मचारी  मिलकर युवक को बचाने के ठोस उपायों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते थे?बेशक हादसा पीड़ित परिवार के साथ बेहद बुरा हुआ। फिर भी क्या क्या  सवालों के पैने नाखून प्रशासनिक /नागरिक सोच  के जिस्म  को कुरेदेंगे?
                                

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

घर को लगी आग घर चिराग से

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 ये लो इसे  कहते हैं घर को लगी आग घर  चिराग से। पीएमओ और मीडिया के रिश्ते में खटास की खबर तो काफी पुरानी हो चुकी थी। मीडिया की बौखलाहट   इस मुद्दे पर भी थी कि  पीएम मीडिया को उतनी तवज्जो क्यों नहीं दे रहे है जितनी अमूमन प्रत्येक प्रधानमंत्री दिया करते थे .।  पीएम के विदेश दौरे पर मीडिया दिग्गजों और कुछ अखबार मालिक भी साथ हुआ करते थे। अब अचानक क्या हुआ कि  पीएम की रणनीति बदल गयी? इसका हिडन एजेंडा क्या हो सकता है? यह दूरी बनाने का राज! वो क्या कहते हैं-  किसकी दाढ़ी में तिनका!
              खैर पीएम की माया पीएम जानें।   देखिये-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनसंपर्क कार्यालय की कार्यशैली पर संघ परिवार के ही सदस्य संगठन-अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने सवाल उठा दिया है। पंचायत ने कहा है कि यह कैसा कार्यालय है जहां आवेदनों की न रिसीविंग दी जा रही है और न किसी प्रकार की सूचनाएं मिल रहीं हैं! समस्याओं को लेकर पहुंच रही जनता कार्यालय के कामकाज के ढंग से निराश दिख रही है। यह निराशा धीरे-धीरे तीखी प्रतिक्रिया में बदल सकती है। यह भाजपा के लिए घातक हो सकता है।

ग्राहक पंचायत के तीखे पत्र से भाजपा में हड़कंप की स्थिति है। 14 सितंबर को काशी आए आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने भी हिदायत दी थी। उन्होंने कहा था कि कार्यालय सिर्फ आवेदनों का संग्रहालय बन कर न रह जाए। लोगों को कुछ होने का आभास भी होना चाहिए। वैसे, खुलने के 3२-३3 दिनों के बाद कार्यालय अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है। समस्याओं के संबंध में सिर्फ आवेदन बटोरे और पीएमओ को संदर्भित किए जा रहे हैं। उनका फॉलोअप नहीं हो रहा है। आवेदक के लिए मालूम करना कठिन है कि उसकी समस्या के समाधान की दिशा में क्या प्रयास हो रहे हैं।

इस बार ग्राहक पंचायत के अध्यक्ष संजीव कुमार गुप्ता ने शहर में बिजली संकट के बहाने कार्यालय पर सवाल उठाया है। वह खोजवां में रहते हैं। शहर के प्राचीन मोहल्लों में एक खोजवां संघ और भाजपा का गढ़ माना जाता है। गुप्ता के पत्र के अनुसार, लोगों को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में रहने का आभास नहीं हो रहा है। गंदगी, अतिक्रमण, जाम और बिजली-पानी की समस्याएं पहले जैसी ही हैं।
भाजपा के कार्यकर्ताओं व समर्थकों को विपक्षी ताना मारते हैं-अरे, हम तो मोदी जी के गांव में रह रहे हैं। ऐसी बिजली कटौती तो गांव में होती है। पंचायत ने पीएम से समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी हस्तक्षेप पर जोर दिया है ताकि जनता का विश्वास भाजपा पर बना रहे। आरएसएस ने ग्राहक पंचायत की स्थापना उपभोक्ता कानून और अधिकारों के प्रति जनसामान्य में जागरूकता के लिए की।

आमतौर पर ग्राहक पंचायत 'लाइम-लाइट' में नहीं रहती लेकिन देश के आर्थिक सामाजिक परिदृश्य में बदलाव के बाद उसकी सक्रियता बढ़ी है। बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता हितों के संरक्षण के लिए यह आरएसएस का पहरुआ संगठन है।संघ के पहरुआ संगठन में यदि इस तरह का नैराश्य है तब तो भाई खतरे  घंटी बजनी शुरू समझो। अब नजर ऊँट की करवट पर!

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सोमवार, 22 सितंबर 2014

तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!

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आकाशवाणी  का जलवा अब भी कहीं कम नहीं हुआ है। अनेक पीढ़ियां रेडियो सुनकर जवान हुई कुछ बुढा  भी गयीं। संवाद में तेजी लाने के उद्देश्य से आकाशवाणी ने शनिवार को अपने सभी केन्द्रों को मुख्यालय सेजोड़ने रेडियों कांफ्रेंसिंग शुरू की। कार्यक्षमता बढ़ने यह एक बेहतर पहल है। मार्केटिंग के इस चरम दौर में   आकाशवाणी की आर्थिक रीढ़ मजबूत करने भी यह जरूरी है ,लेकिन इन दिनों टीवी मेनिया की वजह से आकाशवाणी को श्रोताओं को जोड़ने के लिहाज से अधिक मजबूत कार्य योजना की बनाने की  आवश्यकता है। इस उद्देश्य से प्रत्येक आकाशवाणी केंद्र के माध्यम से श्रोता अनुसन्धान कार्य योजना तय की जाये। घरेलू नेटवर्किंग सुविधा  के लिए सूचना प्रसारण  मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बधाई के पात्र हैं। फिर भी सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आकाशवाणी की लोकप्रियता  के बावजूद नए  परिवर्तनों के प्रति श्रोता अब भी अनजान हैं । कार्यक्रमों के लिए टारगेट, विबिन्न कंपनियों से निजी स्तर पर टाइअप  आकाशवाणी की ओर से श्रोताओं  जागृति कार्यक्रम  जाएँ। तभी आकाशवाणी  श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!---शुभकामनायें 

रविवार, 21 सितंबर 2014

Student Zone

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Coming Soon

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Coming soon

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

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अनुकाव्य  पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। 

अगर कभी हसबैंड स्टोर खुल गया तो???

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डोंट बी संतुष्ट... थोडा विश करो.. डिश करो...हालाकि यह पंच लाइन किसी ऐसे विज्ञापन की है जिसमें शाहरूख खान कुछ प्रमोट करना चाहते हैं लेकिन यूं लगता है कि इसकी थीम महिलाओं को मद्दे नजर रखकर सोची गई है".
" बात कुछ हज़म नहीं हुई ... जरा और खुलासा करो" मेरी छोटी सी बुद्धि के खांचे में बात फिट न होने पर मैंने दद्दू से पूछा."यार अखबारनवीस !क्या इस दुनिया में महिला को कोई पूरी तरह संतुष्ट कर सकता है" दद्दू ने सीधा सवाल दागा.सवाल थोडा डेंजरस टाइप लगा इसलिए मैंने दद्दू की  गुगली को "डक"  करना चाहा.. मैंने पूछा," क्या मतलब?"
नहीं  नहीं...इसका वो मतलब नहीं जो आप समझ रहे हो.क्या कोई पुरुष किसी महिला को पूरी तरह खुश रख सकता है?क्योंकि बेचारे पुरुष तो छोटी -छोटी खुशियों में ही बल्ले... बल्ले.. करने लगते हैं .लेकिन महिलाऐं कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होती.
" दद्दू यह आपका अनुभव बोल रहा है क्या?इस बार मैंने  जरा चालाकी से सवाल उनकी ही ओर रिबाउंड करते हुए कहा ,"  दद्दू.... वैसे संतुष्टि तो अपने मानने पर होती है लेकिन आप किस मुद्दे पर अपने दिमाग की लेजर बीम का बटन ऑन कर रहे हो?
                            समझ गए थे दद्दू कि मैंने उनकी नीयत भांप ली है इसलिए मूड में आकर उन्होंने किस्सागोई शुरू की-
मुंबई में एक स्टोर खुला है जहाँ पर "पति " मिलते है.कोई भी विवाह इच्छुक महिला वहाँ पर पति का चुनाव कर सकती है .इस स्टोर के प्रवेश द्वार पर एक तख्ती लगी है जिस पर लिखा है कि आपको यहाँ पर सिर्फ एक बार ही दाखिला मिल सकता है.इस स्टोर में छः मंजिलें हैं.जैसे-जैसे खरीददारी के लिए ऊपर की मंजिल पर पहुँचते जाते हैं पुरुषों के भीतर मौजूद खासियतें बढ़ती जाती हैं.( पाठक युवती व् महिला के शाब्दिक झमेले में न पड़ें , मतलब विवाह योग्य से है.)
                           वैसे इस पति स्टोर की अनिवार्य शर्त यही है कि किसी मंजिल पर एक ही विवाह इच्छुक अपने पति का चुनाव कर सकती है.वहाँ से वापस किसी दूसरी मंजिल पर नहीं जा सकती .उसे सीधे बाहर ही निकलना होगा.
शादी करने की इच्च्छुक एक महिला उस स्टोर में गई.पहली मंजिल में लिखा था-" इन पुरुषों की नौकरी है और वे भगवान पर विश्वास रखते हैं.दूसरी मंजिल की तख्ती-इनके पास नौकरी है,भगवान पर विश्वास है और ये बच्चों से प्यार  करते हैं.तीसरी मंजिल की तख्ती पर लिखा था फ्लोर थ्री -यहाँ रखे गए पतियों की नौकरी है ,भगवान पर विश्वास करते हैं ,बच्चों से प्यार करते है और बेहद सुन्दर है.
                           अरे वाह!विवाह की आकांक्षा रखने वाली वह महिला सोचने लगी.फिर पल भर में उसके मन में विचार आया ," क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं! वह अपने मन के लालच को रोक न सकी.चढ़कर वह सीधे चौथी मंजिल पर पहुंची.चौथे मंजिल की तख्ती में दर्ज था ,इन पुरुषों के पास नौकरी है ,भगवान पर विश्वास ,बच्चों से प्यार, बेहद सुन्दर हैं और घरेलू कामकाज में मदद भी करते हैं.
                  " ओ माई गाड..!कितनी ख़ुशी की बात है वह महिला सोचने लगी लेकिन दूसरे ही पल उसके मन में ख्याल आया ,"  क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं !" मिनटों में वह पाचवी मंजिल पर थी . वहाँ भी थी एक तख्ती.वह पढने लगी ,-फ्लोर नंबर पांच के हाल में मौजूद पुरुषों के पास नौकरी है,भगवान में विश्वास ,बच्चों से प्यार,खूबसूरत है ,घरेलू कामकाज में मददगार है ,एक और खासियत यह की ये बेहद रोमांटिक तबीयत के हैं.."
                      उस महिला के मन में उसी फ्लोर पर रुकने का ख्याल  आया.पर ये दिल है  के मानता नहीं! थोड़ी ही देर में वह छठवी मंजिल पर पहुँच गई.तख्ती यहाँ भी लटक रही थी." फ्लोर सिक्स -आप इस फ्लोर पर आने वाली -899989 वी महिला है.इस मंजिल पर जो हाल है वहाँ पर एक भी पुरुष नहीं है.यह फ्लोर इस बात का सबूत है कि महिलाओं को खुश रखना असंभव है.आपको हसबेंड स्टोर में आने का शुक्रिया.बाहर  निकलते समय आप अपने कदम के बारे में सोचें .आपका दिन शुभ हो.
                      अब बताओ अखबार नवीस! क्या ख्याल है? दद्दू ने फिर चहककर पूछा. देखो दद्दू! संतुष्टि अपनी जगह पर है लेकिन महत्वाकांक्षा अपनी जगह पर.क्योंकि-  AMBITION IS NOT A WEAKNESS UNLESS IT IS DIS-PROPORTIONATE TO THE CAPACITY .TO HAVE MORE AMBITION THAN ABILITY IS TO BE AT ONCE WEAK AND UN-HAPPY.
                        ददू मेरी बात से सहमत थे.बोले-अखबार नवीस... मानता हूँ तुम्हारी बात को ... प़र भूल से भी अगर यह किस्सा लिखोगे तब एक बात जरूर वहा पर दर्ज कर देना---
संवैधानिक चेतावनी...महिलाओं के हसबेंड स्टोर वाले किस्से  के बारे में घर पर ( अपनी भाभीजी से  ) चुगली नई करने का क्या!!!!!!!
                            शुभ रात्रि.. शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिए...
                                                                                      किशोर दिवसे
                        

कौन है व्यापारी और उसकी चार पत्नियाँ !

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कौन है व्यापारी और उसकी  चार पत्नियाँ !
सुनो विक्रमार्क! एक अमीर व्यापारी की चार पत्नियाँ थी.वह अपनी चौथी पत्नी को सबसे ज्यादा प्यार   करता था और दुनिया की सबसे बेहतरीन सुविधा मुहैया कराता.अपनी तीसरी पत्नी से वह अपेक्षाकृत कम प्यार करता था.अपने दोस्तों को भी दिखाया करता पर डरता भी था कि वह किसी के साथ भाग न जाये.अपनी दूसरी पत्नी से वह व्यापारी और भी कम प्यार करता.वह समझदार और व्यापारी की भरोसेमंद थी.जब भी व्यापारी किसी मुसीबत में होता दूसरे नंबर की पत्नी उसे मुश्किलों  से उबार लेती.
                        अब व्यापारी की पहली पत्नी की बात.उस पहली पत्नी ने व्यापारी की तमाम दौलत  और कारोबार संभाला तो था ही घर की  देखभाल भी की. लेकिन  वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी से बिलकुल प्यार नहीं करता था.जबकि सच यह था कि पहली पत्नी उसे बे इन्तहां  प्यार करती थी.दुर्भाग्य से वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी की तरफ झांकता तक नहीं था.
                                   एक रोज वह व्यापारी बीमार पड़ गया.उसे लगा कि वह जल्द मर जायेगा.व्यापारी सोचने लगा,"मेरी चार पत्नियाँ हैं .मरने  के बाद तो मैं कितना अकेला रह जाऊंगा! जबकि अभी तो मेरी चार पत्नियाँ हैं."घबराकर व्यापारी ने अपनी चौथी पत्नी से पूछा ," तुम्हें मैंने सबसे ज्यादा प्यार किया.जो माँगा वो दिया. अब तो मैं मर रहा हूँ.क्या तुम  साथ चलकर मेरा साथ दोगी?
                            " क्या बात करते हो जी!यह सब छोड़कर मैं भला क्यों जाऊ?" इतना कहकर चौथी  पत्नी बगैर व्यापारी की और देखे चली गई.व्यापारी के दिल पर पहला छुरा चला था.उदास होकर उसने अपनी तीसरी पत्नी से कहा,"चौथी से कम सही सारी जिंदगी मैंने तुम्हें बहुत चाहा.मैं अब मर रहा हूँ.तुम भी मेरे साथ चलो न!"
                              " नहीं ...नहीं.. कितनी खूबसूरत है यहाँ की जिंदगी...तुम्हारे मरने के बाद मैं दूसरी शादी कर लूंगी."व्यापारी के कलेजे पर यह दूसरा वार था.उसने ठंडी साँसे भरकर दूसरी पत्नी से पूछा,"मुझे हरेक मुश्किल से तुमने ही उबारा है .एक बार मुझे फिर तुम्हारी मदद चाहिए.मेरे मरने पर तुम तो अवश्य मेरे साथ चलोगी ?"
                           " ए जी.. माफ़ करना इस बार मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकूंगी.अधिक से अधिक तुम्हें श्मशान घाट तक छोड़ने की व्यवस्था कर दूँगी." व्यापारी पर एक बार फिर वज्राघात हुआ.उसने मन में सोचा," अब तो मैं कहीं का नहीं रहा." इतने में एक कमजोर सी आवाज उसके कानों में सुनाई दी-
 " सुनो साजन! मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.आप चाहे कहीं भी जाएँ मेरा और आपका साथ हमेशा-हमेशा रहेगा." मायूस व्यापारी ने जब सर उठाकर देखा तब पता चला कि यह कहने वाली उसकी पहली पत्नी थी.एकदम दुबली-पतली,मरियल सी.पश्चाताप के आंसू भरकर व्यापारी ने कहा," प्रिये! काश मैंने तुमपर ही सबसे अधिक ध्यान दिया होता."
                                 " अब बताओ राजा विक्रमार्क वो चार पत्नियाँ कौन हैं?" जानते हुए भी अगर तुमने इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे."-वेताल ने अग्नि परीक्षा  लेनी शुरू की.
                                कुछ पल मुस्कुराते हुए राजा विक्रमार्क ने वेताल को कंधे पर लादा और रवाना हुए गंतव्य की ओर.उनहोंने जवाब दिया-
" सुनो वेताल!दरअसल हम सब पुरुषों की चार पत्नियाँ हैं .शुरू करते  हैं  चौथी पत्नी से.चौथी पत्नी हमारा शरीर है.हम इसके लिए खूबसूरत बनाने में चाहे जितना भी समय और धन खर्च करें मरने पर वह हमारा साथ कभी नहीं देगी.हमारी तीसरी पत्नी संपत्ति और स्टेटस है.हम मर जाते हैं लेकिन वे हमारे साथ जाते हैं क्या?हमारी दूसरी पत्नी है हमारा परिवार और बच्चे.सारी जिंदगी हमारे जीते जी चाहे वे कितने भी दिल के करीब रहें वे श्मशान के आगे स्वर्गलोक के रास्ते कभी हमारे साथ होते हैं क्या?"
                     
                         वेताल का दिल अब धडकने लगा था.राजा विक्रमार्क ने अपना चिन्तन जारी रखा," "वेताल! हमारी पहली है हमारी आत्मा.सारी जिंदगी हम उसकी उपेक्षा करते हैं.भौतिक सुख और साधनों के नाम पर वह " पहली पत्नी" तन्हाइयों में बेबस होकर जीती है. और  वही अंतिम यात्रा के बाद भी कहती है, "सुनो साजन!आप चाहे कहीं भी जाएँ मैं आपके साथ चलूंगी.अपनी आत्मा को सच्चे आदर्शों के साथ मजबूत बनाने का यही समय है.आखिर क्यों इसके लिए मृत्यु शैय्या का इन्तेजार करें  ?"
                                 राजा विक्रमार्क! तुमने मेरे सवाल का सही जवाब दिया और ये मैं चला... हूँ ...हूँ... हा...हा...के अट्टहास के साथ एक बार फिर वेताल ,महाकाल की नगरी उज्जयिनी की ओर कूच कर गए.
                                                                       शुभ रात्रि.. शब्बा खैर...अपना ख्याल रखिये
                                                                                        किशोर दिवसे 
                                                                                        मोबाइल 09827471743
                           
                               

..ऍ मसक्कली मसक्कली ...उड़ मटक्कली ..मटक्कली....

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..ऍ मसक्कली मसक्कली ...उड़ मटक्कली ..मटक्कली.....


 कुँए के मेंढक और समंदर की शार्क में फर्क होता है जमीन -आसमान का.बरास्ता जिद, जूनून और जिहाद कोई इंसान अपना किरदार ... तकदीर और तदबीर कुँए के मेंढक की बजाए समंदर की शार्क जैसा बना सकता है.उसे बस सही वक्त पर सही सोच के जरिए सही फैसले  करने होते हैं.निश्चित रूप से अपनी गलतियाँ...अपनी मजबूरियां ... चुनौतियाँ रास्ते में कांटे बनकर बिछते रहेंगे लेकिन यदि आपने अनचाही सोच को भी "तेरा इमोशनल अत्याचार "के बावजूद सर पर लादे रखा तब बेडा गर्क समझो .सो, वक्त की नजाकत को समझकर खुद को बदलने की जिद करो वर्ना  मटक्कली तरह पछताते रहोगे और मसक्कली उड़ने लगेगी आसमान में फुर्र...फुर्र...फुर्र...और लोग गाने लगेंगे मसक्कली....मसक्कली...
                                 दरअसल मसक्कली और मटक्कली जंगली कबूतरियों के झुण्ड में शामिल थी .यह झुण्ड  V  फ़ॉर्मेशन बनाकर आसमान में उड़ रहा था .जिन्होनें भी अपनी निगाहें उठाकर देखा बस देखते ही रह गए.यूँ ही उड़ते-उड़ते मटक्कली ने जमीन पर कुछ देखा और नजदीक पहुँचने पर पता चला   कि यह पालतू कबूतरों का दडबा किसी कोठार का हिस्सा था .दडबे वाले कबूतरों का झुण्ड गुटरगूं करते हुए रोज उन्हें दिए जाने वाले मकई के दाने चुग रहा था.लालची मटक्कली सोचने लगी ,"कितने सुन्दर मकई के दाने हैं .वैसे भी लगातार उड़कर मैं थक चुकी हूँ इसलिए कुछ देर यहीं इठलाने और मटकने में मजा आएगा.मसक्कली को छोड़कर मटक्कली कोठार में दाना चुगते कबूतरों के पास उतर गई.दाने चुगते हुए उसने ऊपर चोंच उठाकर देखा मसक्कली और जंगली कबूतरों का V   फ़ॉर्मेशन फ़ना हो चुका था.
                               वह दक्षिण दिशा में जा रहा था लेकिन मटक्कली बेखबर थी."मैं अभी तो कुछ महीने तक कोठार में रहूंगी.मसक्कली और बाकी साथी जब वापस उत्तर की ओर लौटेंगे फिर उनके साथ शामिल हो जाऊंगी."
                                 यूँ ही कुछ महीने गुजर गए.मटक्कली ने देखा कबूतरों का झुण्ड वापस लौट रहा है.मसक्कली की तरह पूरा  V     फार्मेशन बेहद सुन्दर था.मटक्कली अब कोठार और वहाँ के पालतू कबूतरों से ऊब चुकी थी.कोठार का माहौल भी गन्दा और कीचड़ भरा हो चुका था.वहाँ पर बेहूदगी ... साजिशें और दूसरों का अपमान करने की विकृत सोच थी.मटक्कली ने सोचा," अब यहाँ  से मुझे उड़ जाना चाहिए."
                                    मटक्कली ने अपने पंख फडफडाकर उड़ना चाहा.खूब खाकर उसका वजन इतना बढ़ चुका था कि  वह उड़ नहीं सकी और नीची उडान की वजह से कोठार की दीवार से टकराकर गिर पड़ी.ठंडी साँस लेकर उसने कहा ,"मसक्कली और उसका कबूतर झुण्ड जब कुछ महीनों बाद फिर दक्षिण की ओर उड़ेगा मैं उनके साथ हो लूंगी."कुछ महीनों बाद मटक्कली ने फिर उड़ना चाहा पर उड़ नहीं सकी.मसक्कली अपने साथियों के साथ जिंदगी के आसमान में उडती चली गई करप्ट टेंडेंसी और बेईमानी ने मटक्कली की रूहानी ताकत भी ख़त्म कर दी थी.कई सर्दियों में मटक्कली देखती रही की आसमान में बनता  V   फार्मेशन कैसे आँखों से ओझल होता है. धीरे-धीरे वह "कोठार का पालतू कबूतर"बन चुकी थी.
                                  दद्दू समझ गए कि मसक्कली ईमानदारी और मटक्कली बेईमानी का सिम्बल है.मटक्कली ने सोचा कि आँख मूंदकर दूध पीने वाली बिल्ली की तरह रहूंगी किसी को कहाँ पता चलेगा ? जिंदगी में किसी बेगुनाह का नुकसान सोचे या किए बगैर मेहनत और ईमानदारी ही आपके चरित्र को और शुभ्र बनाती है 
                                                मटक्कली अपने गुनाहों के दलदल में फंस चुकी थी.हम इंसानों क़ी अच्छाइयां  और कमजोरियां भी मसक्कली और मटक्कली क़ी तरह हैं .मटक्कली आखिर उड़  ही नहीं सकी और मसक्कली और V   फार्मेशन 
वाले  कबूतरों से उसका रिश्ता टूट गया.मटक्कली"  गंदे कोठार " का हिस्सा बनकर रह गई .
                                           प्रोफ़ेसर प्यारेलाल कहते हैं कि बात सिर्फ मसक्कली या  मटक्कली कि नहीं है.वह कबूतर नहीं किर्सर या चरित्र हैं जो जिंदगी के हर क्षेत्र में हमारे सामने होते हैं.सवाल यह है कि आईने में अपना चेहरा मटक्कली की तरह लगता है या उस प्यार खूबसूरत सी मसक्कली की तरह जो उड़कर सीधे मुंबई , पुणे  या बेंगलोर  या विदेश पहुँच गई.कबूतरों का वह समूचा झुण्ड थिएटर के बाहर बालकनी की रेलिंग पर कतार लगाकर बैठा है मसक्कली उनके बीच है और सभी के कदम थिरकने लगे हैं.उनके गुटरगूं में कोरस की मीठी धुन गूँज रही है-
                  ऍ मसक्कली... मसक्कली... उड़ मटक्कली.....मटक्कली......

जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया

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ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते


बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है कि शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते हैं  सब लोग.
       यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत  बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
                       ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है 
                      सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है 
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !  
चौक- चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथन रेस  में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
                     घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
 खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
                        मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब 
                        कुत्ते    अमीरों के हैं लपेटे  हुए लिहाफ 
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या  अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा  संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है कि यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैडमिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
                       सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा  अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
                        दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से 
                       तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
बहरहाल ,मुद्दे की बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों की तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
                      इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब 
                     इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया 
                                                                     प्यार सहित... अपना ख्याल रखिएगा---
                                                                           किशोर दिवसे 
                                                        kishore_diwase@yahoo.com