शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

कांच के आदमी

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कांच के आदमी      दरअसल इस शीर्षक की कविता का जन्म एक छोटे से किस्से से हुआ . मेरे एक मित्र स्व. प्रो. रघुनाथ प्रधान चौकसे इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ाते थे. अपने आठ साल के बेटे को वे नवभारत प्रेस ,बिलासपुर ला रहे थे. उसने पूछा , " पापा मुझे कहाँ  ले जा रहे हो?" " चल तुझे कांच के आदमी दिखाकर लाता हूँ."  प्रेस में सब लोग कांच लगे हाल में बैठते है.  बच्चे ने प्रेस से लौटते हुए पापा से कहा, पापा ये लोग कांच के आदमी कहाँ  है , मेरे जैसे तो है?" किसी तरह बच्चे की जिज्ञासा  प्रधान सर ने शांत कर दी. पर मुझे जब किस्सा उनहोंने  बताया , मेरे मन के भीतर कुछ कुलबुलाने लगा था. परिणति आप सबके सामने है 
    कांच के  आदमी
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  चलो बेटा मैं तुम्हे दिखाऊँगा
कांच के आदमी 
जिद्दी मासूम को भरमाया
उसके पिता ने कुछ सोचकर
और चल पड़ा वह अबोध
नन्हे हाथों से अंगुलियाँ थामकर
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आप झूठ बोलते हो पापा
कहाँ हैं ये कांच के आदमी?
देखो! सब हमारे जैसे हैं
दो हाथ-दो पैर और
एक सर, सो आँखों वाले
साधारण से आदमी!
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खीझकर घर लौटा बालक
उलझन में डूबे पिता के साथ
बिचकाकर अपना नन्हा सा मुंह
सवाल अब भी था अबूझ
धरती पर क्या सचमुच होते हैं
कांच के आदमी!
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सामने एक-दूसरे के अब थीं
दो जोड़ी सवालिया आँखे
नन्ही आँखों में थी उत्कंठा
कहाँ मिलेंगे  कांच के  आदमी!
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सोच रही थी वयस्क आँखें
कैसे समझाऊँ इस नादाँ को
जो इस युग में सोच बैठा है
" हो सकते हैं कांच के आदमी!
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सोचने लगा था हैरान पिता
क्या जाने वह मासूम
आदमी ,जब सचमुच था आदमी
तब,कांच की मानिंद थे पारदर्शी
आपके और हमारे मन-मस्तिष्क
जो होता था मन के भीतर
वही उतरता था जुबान पर
क्या वही थे कांच के आदमी?
*********
और आज!!!!!
पेट में रखता है छिपाकर अपने -दांत
कलियुग का सयाना आदमी
शुगर कोटेड  और मिठलबरा
कई सांप-गिरगिट मरते हैंजब
जनमता है आज का आदमी तब
यह उसकी मजबूरी है या प्रारब्ध
" मुख में राम बगल में छुरी!!!!
*****
अरे वह कांच की दुनिया!
बच्चे ,बूढ़े और जवान
कांच के जिस्म थे सब के सब
खूब मुस्कुराया, खिलखिलाया
कितनी सुन्दर है यह कांच की दुनिया!
प्यार और सहजपण जहाँ पाया
अरे वाह!कांच के आदमी!
कांच की दुनिया... अरे वाह!!
*****
टप-टप आंसू पड़े टपक
उस एक जोड़ी वयस्क आँखों से
वे कहने लगी थी मन ही मन
स्वप्न लोक में ही अब दिखेगा
कांच का आदमी!
जीवन संग्राम की धमन भट्टी में
पिघल गया है कांच का आदमी
और चिपट गई मजबूती से
स्वार्थ,लिप्सा और आज के यथार्थ की
अपारदर्शिता हमारे रोम-रोम में
********
छूकर देखा खुद के शरीर को
उस एक जोड़ी वयस्क आँखों ने
ओह! क्या बन गया हूँ मैं
और शायद आज की दुनिया भी!
कांच से बना अर्ध-मानव
क्या लौटेगा फिर वही युग?
सोचने लगा था वह पिता
सवालों के झंझावातों में कही गुम
********
तभी नींद में बुदबुदाया वह मासूम
कांच की दुनिया में डूबता-उतराता
सम्मोहित सा वह नादान
पापा...पापा...पापा...पापा...
देखो... देखो... आपका आधा शरीर
कांच का क्यों है... कांच का क्यों है?
******
इस बार ओंठ मुस्कुराये
फिर टपके आंसू टप -टप
काश आज का इंसान भी बन सकता
कांच का आदमी,कांच का आदमी!!! 


    

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

वेलेंटाइन -2

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न हारा है इश्क ,न दुनिया थकी है 
दीया जल रहा है ,हवा चल रही है 
चरागों के बदले मकां जल रहे हैं
नया है जमाना ,तो नई रौशनी है 

खुमार बाराबंक्वी के इस अलमस्त मौजूं शेर ने क्या समां बंधा है! वेलेंटाइन  दिवस पर अखबारों में दिलों को कभी गुदगुदाते तो क्स्भी गुस्सा दिलाते प्रेम-संदेशों की लाइनें पढ़कर भरोसा हो गया- नया है जमाना तो नई रौशनी है.नई रौशनी में आइये इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं.
शुरुआत होती है रोमन सल्तनत से-जूनो के फेब्रुआता ,प्रेमोत्तेजना की देवी के सम्मान में रति या श्रृंगार उत्सव " ल्यूपर्केमिया " मनाया जाता था.कालांतर में इसका रूपान्तर हुआ और " सेक्स का स्थान सात्विक प्रेम ने ले लिया.चर्च ने अगुवा के रूप में एक ब्रह्मचारी संत वेलेंटाइन का चयन किया .वेलेंटाइन के बारे में पहली कथा-सम्राट क्लाडियस -२ का हुक्मनामा ,शादियाँ और विवाह बंधन समाप्त करने का , वेलेंटाइन ने ठुकरा दिया.नतीजतन वेलेंटाइन को मृत्युदंड  दिया गया.सजा-ऍ -मौत से पहले जेल में रहने के दौरान संत ने जेलर की बेटी की आँखें ठीक कर दी .फांसी से एक दिन पहले संत ने उस युवती को पत्र लिखा जो उनके प्रेम में ड़ूब गईं थी.यह सन्देश था,"फ्रॉम योर वेलेंटाइन".
                              वेलेंटाइन  डे का पहला लिखित सन्देश  ड्यूक ऑफ़ ओर्लिएंस ने सन 1415  में लिखा था.कैद के दौरान ये प्रेम सन्देश उसने अपनी पत्नी के लिए लिखे थे.18  वी सदी के बाद प्रिंटेड कार्ड बाजार में आए.आज वेलेंटाइन डे के न्यू मिलेनियम रूप में हम देख रहे है ... गुलाब की कलियाँ...ई-मेल...वीडियो टेप..रोमांटिक सन्देश भरे skrech कार्ड्स.रोमन मिथोलोजी में " क्यूपिड "  प्रेम की देवी वीनस का पुत्र है .ग्रीक मिथालोजी में ईरोस ,प्रेम का देवता ,भारतीय शास्त्रों में समकक्ष प्रतीक कामदेव.
                              हायतौबा मचा दी है वेलेंटाइन डे के नाम से.बुरी तरह छटपटा  रहे हैं  वे लोग जो " प्रेम को सेक्स के लिहाफ से बाहर निकालकर देखना ही नही चाहते.प्रेम आराधना है, पूजा है,इबादत है,फलसफा है,जीवन दर्शन का पवित्र दृष्टिकोण है .इसे नर-मादा के बीच देह भाषा तक सीमित रखना गलत होगा.गंदी नजर तो खुद को संस्कृति का मसीहा समझने वाले स्वयंभू मठाधीशों की है." POLITICS OF INTERPRETATIONS "  के चलते इसे जबरन हौवा बना दिया गया है.
                       दो विपरीत धाराएं समाज में बह रही है.ये शाश्वत सत्य है और रहेगा भी.वेलेंटाइन डे यानी प्रेम पर्व के पीछे मुझे दो मानसिकताएं साफ दिखाई देती हैं.पहली-ग्लोबलाइजेशन का असर.. परम्परावादी  सोच की ऊबाऊ मानसिकता से नई जनरेशन का विद्रोह.दूसरा- मार्केट फोर्सेस द्वारा  प्रेम की भावना का किया जा रहा आर्थिक दोहन... और आस्था और विश्वास की महंगे दामों में  बरास्ता बाज़ार खरीदी और बिक्री.नौजवान दोस्तों के लिए कुछ बरस पहले वेलेंटाइन डे पर " मैंने प्यार किया "जैसी फिल्म का रिलीज होना भी इसके एक बाजारवादी पहलू को इंगित करता है.रोजगार और व्यवसाय वैसे बुरा नहीं हो सकता.
      भर्तृहरि ने कहा है.,'प्रेम देवताओं का गुण है". गाँधी ने कहा है," प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू है.". कबीर का फलसफा है               प्रेम प्रेम सब कोई काहे ,प्रेम न चीन्हे कोय
                              आठ पहर भी न रहे प्रेम न हावे  सोय
" प्रेम स्वर्ग का रास्ता है " तोल्स्तोय ने कहा ,फिर उस स्वर्ग की सीधी को सायास कमजोर क्यों बनाया जाना चाहिए.तरस आता है उनकी काम अकली पर जो कहते हैं वेलेंटाइन डे मनाने से हमारी संस्कृति को खतरा है.फूहड़ता, अशिष्टता, अश्लीलता और भोंडेपन का विरोध जायज है पर प्रेम की भावना प्रकट करना जलालत कभी नहीं हो सकता.हमें नजरिया सुधारना चाहिए.वेलेंटाइन डे मनाने  से हम वेस्टर्न कल्चर में ढल जाएँगे यह सोचना मेरी नजर में बेवकूफी है.आप ही बताइये,एक ओर वेलेंटाइन डे का विरोध ... कहने को हमारी संस्कृति इसके खिलाफ है, स्वयंभू मठाधीश  ऐसा प्रलाप करते हैं  .सब जानते है कि  " काम सूत्र " सिर्फ भारतीय संस्कृति की देन है.खजुराहो और कोणार्क .. अजंता के मिथुन शिल्प से क्या हमारी संस्कृति तब या अब खतरे  में पड़ी?हाँ.. प्रेम प्रदर्शन के दौरान मर्यादाओं के पालन पर सोचा जा सकता है .
                             LOVE THY NEIGHBOURS " का फलसफा भी अगर उत्सव में तब्दील हो जाए तो बुरा क्या है?वैसे जिन्दगी के रंग में प्रेम का संग हो तथा आधुनिकता और प्राचीनता का मिश्रण हो जाए तो इसका गुलाबीपन कुछ और सुर्ख हो जाएगा.बाजारवाद के इस दौर में " प्रेम की निर्मलता को बचे रखने की जद्दो जहद के बीच वेलेंटाइन कार्ड लेने-देने वाले मेरे सभी नौजवान दोस्तों के लिए यह शेर पेश-ऍ नजर है-
                                 कुदरत के करिश्मों में अगर रात न होती 
                                ख्वाबों में भी मुलाकात न होती
                                 ये दिल हर ख़ुशी गम की वजह है यारों 
                                 दिल ही न हो तो  तो कोई बात न होती         
                                                                        प्यार के नाम एक पैगाम...
                                                                                         किशोर दिवसे
                                                     

                              

                

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

वेलेंटाइन -1

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मै किस्से को हकीकत  में बदल बैठा तो हंगामा.... !
जींस -टॉप..कार्गो टी शर्ट...फंकी-शंकी लुक वाले  नौजवान छोकरों और बोल्ड ,ब्यूटीफुल और बिंदास लड़कियों से घिरा था मैं.भाई, कुछ भी बोलो मुझे तो आज की नई जनरेशन बेहद पसंद है ... बिलकुल मीठे-नमकीन बिस्कुट फिफ्टी-फिफ्टी या फिर खट्टी-मीठी इमली की तरह.आज के ज़माने में जब हाफ सेंचुरी के करीब या उसके प़र लोग जब नए रंग में रंगने लगे हैं तब जवानी को दिशाहीन ,उच्श्रीन्खल या  दीवानी कहने की फितरत एकदम बकवास है .यकीनी तौर पर समाज के आज या आज के समाज को महसूस करने के बाद बूढों का यह फिकरा ," धूप में हमने बाल सफ़ेद नहीं किए हैं"उन युवाओं की कड़ी चुनौती से जूझता हुआ लथपथ सा लगता है जो " जोश भरे होश "के साथ जिन्दगी जीता है .इसमें गंभीरता के साथ पूरी मस्ती -शस्ती भी होती है ... दिल से !
                           यूं ही सीरियस मुद्दों पर लिखते रहोगे या कभी हमारे साथ मस्ती भी... ! अपने डोले दिखाते हुए " माचो मैन" और एक जोड़ी शैतान शरीर कनखियों की शरारत ने मुझे यह एहसास दिला दिया कि मुहब्बत और करियर के साझा जज्बे को पुचकारती पीढ़ी का मीठा रिश्ता इस पल मुझसे क्या मांग रहा है.
                                  सच कहूं!दद्दू और प्रोफ़ेसर प्यारेलाल जब साथ हो जाते हैं तब किसी भी महफ़िल की रौनक क्या खूब जमती है.हुआ भी यूं...एहसासों का आकाश था... चर्चा के बहाने ही सही अल्फाजों  के परिंदे मुहब्बत की रेशमी डोर  लेकर उड़ने लगे ऊंचे ... और ऊंचे...
                              की कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है 
                               मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है 
यहाँ प्यासी धरती की बेचैनी और बरसने को आतुर बादल की बेकरारी किसकी है यह हर कोई समझ सकता है .लेकिन दद्दू के मन में एक और बात आती है , "मनोविज्ञान में मैंने पढ़ा है की दूरियां प्यार को और बढा देती हैं" " फिर भी दूरियों की मियाद भी तो तय होनी चाहिए ना!" मैंने टोका.उदास खोई सी आँखों वाला युवक गुनगुनाने लगा
                                 मैं तुझसे दूर कैसा हूँ,तू मुझसे दूर कैसी है
                                  ये तेरा दिल  समझता है या मेरा दिल समझता है
दो जोड़ी आँखें जब एक-दूसरे से बिना कुछ काहे सब कुछ कह रही थी तभी प्रोफ़ेसर प्यारेलाल ने कहा ,"प्यार में दिल और दिमाग का सही संतुलन जरूरी है मुहब्बत में  FALL IN LOVE" के बजाए   " RISE IN LOVE" होना चाहिए.खास तौर पर नई पीढ़ी इसे समझ गई ( मुझे लगता है अब अच्छी तरह समझ चुकी है) तब प्यार अँधा नहीं बल्कि तेज आँखों वाला और जिम्मेदार हो जाएगा."
                                  कि मुहब्बत एक एहसासों  की पावन कहानी है 
                                  कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
कबीर और मीरा से कम, हीर-राँझा,शीरी. -फरहाद,रोमियो- जूलियट से अधिक वाकिफ एक शोख " हॉट एंड स्वीट " कहने लगी ," सर जी! उनके प्यार को समाज नहीं समझ पाया.मेरी आँखों के आंसुओं को कौन समझेगा कि ये मोती हैं या पानी!"
                                यहाँ सब लोग कहते है कि मेरी आँखों में आंसू हैं 
                                जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है      
दद्दू अपनी जवानी का किस्सा बताते हैं," हुआ यूं कि मुहब्बत क़ी राह पर निकल पड़ी थी दो जोड़ी आँखें. तकदीर का फसाना
कहिए कि साथ छूटा और लड़की की शादी हो गई कहीं और.दो बरस बाद अपने बच्चे का परिचय उस युवती ने " देखो मामा आए " कहकर कराया .वापस लौटने के बाद(टूटे दिल वाले नौजवान ने ( उस युवती के पति के लिए) अपनी भड़ास कुछ इस अंदाज में निकाली -
समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता 
ये आंसू प्यार  का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को तू अपना बना लेना मगर 
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता 
" अब समझदार हो चुकी है युवा पीढ़ी" नौज्वाहों से रिएक्शन लेने जब दद्दू ने उनसे कहा, प्रेम हिंदुस्तान में ऐसा विषय है जिसमें केवल थ्योरी क़ी क्लासेस चलती हैं" इसपर दबी जुबान से खिलखिलाहटें और इशारेबाजियाँ जब हुईं मामला साफ़ था कि वे क्या कहना चाहते हैं.
" सर जी!आज के नौजवान युवक-युवतियां सोच समझकर अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं"- पहला युवक
  "हाँ सर! पेरेंट्स को भी चाहिए कि हम पर भरोसा कर कम से कम हमारी बात तो सुने"-पहली युवती
  " करियर मेकिंग और फियान्सी को अच्छी तरह समझना  हम  कोर्टशिप के दौरान ही कर लेते हैं सर जी!"-दूसरा युवक
" सर जी! इसलिए तो प्रेम विवाह भी अच्छे माता- पिता परखने के बाद अरेंज्ड में बदल देते हैं. कसौटी पर कसना तो हर मामले में पड़ता है "- दूसरी युवती
खोई -खोई सी आँखों वाले उस युवक को देखकर ही लगा था कि वह शायराना तबीयत का नौजवान है.दद्दू, प्रोफ़ेसर और मै, हम तीनों कि अनुभवी आँखें यह जानती थी कि खोया- खोया सा रहना भी प्यार में होने कि निशानी है ( बशर्ते कोई दीगर  मसला न हो.इसी बीच उसने एक पल आसमान की ओर देखा ,फिर अपने साथियों की ओर मुखातिब होकर कहने लगा- "सखी ! प्यार तो मीठा एहसास है ... जूनून और पैशन भी क्योंकि
                    भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा 
                    हमारे  दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा 
                    अभी तक ड़ूब कर सुनते थे तब किस्सा मुहब्बत का
                    मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा 
वाह-वाह .... और सीटियों के स्वर यदि नौजवानों के बीच से नहीं आते तब आश्चर्य होता .प्यार भरी मस्ती में नौजवान टोली हमसे विदा लेती है .लेकिन हमारी नजर में इश्क जिस्मानी नहीं रूहानी रिश्ता है ... इबादत... खुदाई...आतिश-ऍ-ग़ालिब.. राधा ,मीरा और जूलियट का समर्पण है जो रब के लिए सूफीज्म भी बन जाता है.मुसाफिर के साथ रहने वाले क़दमों का निशान है प्यार . पर टीनेजर प्लस की उम्र में तो जिस्म में मचलते है कई तूफ़ान ...और उसपर पहरेदारी  का अंकुश! डैम  इट यार ... चल हम दोनों कही लॉन्ग रन पर चलते है... लवर्स पाइंट ... गार्डन...मल्टीप्लेक्स...किसी रेस्तरां में....  बाइकिंग  करते हुए...मेसेजिंग.... फेसबुक... ओरकट... और भी कई नए शगल ढूंढ लिए हैं   इस जूनून ने!!इस प्यार को सेक्स की आदिम अवधारणा से अलहदा करने पर ही उसकी पवित्र सुगंध का एहसास होता है उसी प्यार का जो जात,उम्र,मजहब,जन्म के बंधन से परे गहराइयों तक समां जाता है सिर्फ दिल क़ी धड़कन में.लेकिन क्या करें कंट्रोल नहीं होता ... कैसे करें!!!!!!!!!!!!!!
                      हालाँकि सीरियस लफ्जों क़ी बजाए अपनी जींस-टॉप ... कार्गो टी-शर्ट ... फंकी-शंकी लुक वाले " तुझमें रब  दिखता है  यारां...: गुनगुनाने वाले मेरे प्यारे नौजवान दोस्तों को यह बात जल्द समझ में आती है क़ी प्यार तो बस हर हाल में निभाना है क्योंकि-
                     इश्क वाले आँखों क़ी बात समझ लेते हैं
                     सपनों में मुलाकात समझ लेते हैं
                   रोता तो आसमान ही है प्यार के लिए
                      पर नादाँ लोग उसे भी बरसात समझ लेते हैं
                                                                                                 एहसास  कीजिए प्यार का....
                                                                                                            किशोर दिवसे