शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

सियासी हनीमून ख़त्म ,,तलाक

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 तेजी से बदल रहे हैं सियासी समीकरण। हर पल  नए दांव की तैयारी आशंका और अंदेशा  !महाराष्ट्र की राजनीति  एक ही दिन दो प्रमुख गठबंधनों के टूटने की गवाह बनी और इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मुकाबला बेहद रोचक हो गया क्योंकि अब चारों प्रमुख दल भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अलग अलग चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
भाजपा—शिवसेना और कांग्रेस—राकांपा के पुराने गठबंधनों के टूटने के बाद महाराष्ट्र की चुनावी फिजा में काफी गर्मी पैदा हो गई है। संभव है कि अब चुनावी मैदान में पुराने दोस्त एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करें।

इन चार प्रमुख दलों के अलग चुनाव लड़ने के फैसले के बाद राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पांचवें प्रमुख दावेदार के रूप में जनता के बीच जाएगी। वैसे मनसे को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था और उसका खाता भी नहीं खुल पाया था।
लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर 48 में से 42 सीटें जीतीं। महाराष्ट्र में शिवसेना अब तक भाजपा के बड़े भाई की भूमिका निभाती रही थी। इन दोनों के बीच उस वक्त अलगाव हुआ है जब भाजपा केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ सत्तासीन है। तीन दशक बाद ऐसा हुआ कि किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला।चलिए देखते हैं।राजनीति की गणिकाएं किसपर।।।।।कैसे डोरे डालने में कामयाब होती है!

छत्तीसगढ़ में कौन बनेगा करोड़पति की शूटिंग ...... रिश्ते में हम आपके फैन लगते हैं ssssssss हाँ ssss ई ! =

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छत्तीसगढ़ में कौन बनेगा करोड़पति  की शूटिंग
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रिश्ते में हम आपके फैन लगते हैं ssssssss हाँ ssss ई !
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 अरसे  से चर्चित रहा है कौन  बनेगा करोड़पति यानी-केबीसी। अनेकों लोग समाज के अलहदा दर्जे से इस महोत्सव में शामिल हुए, हो रहे हैं ... । अपनी-अपनी फूर्ति और बुद्धिमत्ता के बरक्स राशि जीती ,खुश हुए।  अपने परिवार और शहर को  खुश किया। मेहनत से पैसा कमाया और सेलिब्रेटी स्टेटस भी हासिल किया। निश्चित रूप से कुछ विनर्स को चंद संस्थाओं ने हाथों-हाथ उठाया.........।
                      बात ही छत्तीसगढ़ के ख़ुशी  से नाचने की है। केबीसी -7  यानी सप्तकोटी महासम्मान। शूटिंग  राज्य की राजधानी  रायपुर में। सभी जिंदादिल बन्दों की निगाहें इस खबर के इर्द-गिर्द  घूमती हुई। बोले तो बात ही कुछ ऐसी है!-" अखबारनवीस !पास -वास  का जुगाड़ करवा दो  यार।  तुम ठहरे पत्रकार बिरादरी के फ़ौरन  जुटा लोगे!"-अपने दद्दू   ने मुझे फोन किया था।
   " क्या बताएं दद्दू ! रायपुर के इनडोर स्टेडियम में देखा नहीं कैसी बमचक मची है। मीडिया को  भी तवज्जो नहीं है। हालांकि यह सही है कि मेगा  इवेंट की तैयारी में अच्छे-अच्छों के  छक्के छूट जाते हैं। लो। .. अब तो फर्जी पास की भी अफवाह उड़ गई !" हाँ ,दद्दू हालत अनुपम खेर के शो जैसी है -जिंदगी में कुछ भी हो सकता है। "-मैंने कहा और दद्दू से बोला-" देखे  न अख़बार आज के !- वीआईपी पास भी  लिमिटेड।
           कोई बात नहीं दद्दू -"अपन लोग अखबारी रिपोर्ट  और टीवी पर प्रसारण देखकर काम चला लेंगे"  ,मैंने दद्दू को दिलासा दिया।
"यार अखबारनवीस, तुमने कोशिश नहीं की एसएमएस या ऑनलाइन नाम दर्ज करने की?"-दद्दू   ने मेरी टोह ली। "दद्दू! कलमघसीटी  से फुर्सत मिले तब तो!ज़नरल नॉलेज बढ़ाने  टाइमच नहीं मिलता है । वैसे केबीसी में  उन लोगों को जरूर जाना
 चाहिए जो काम्पीटीटिव परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं।  या फिर  वहां जाने के लिए  पूरी तैयारी करें। '- मैंने अपनी नालायकी पर पर्दा डालने की असफल कोशिश की। चंद  मिनट गुजरे नहीं थे दद्दू आ  टपके मेरे घर पर। केबीसी की खबर इन दिनों हॉट-केक है। मैंने दद्दू  को जान  -बूझकर  छेड़ा-
               " दद्दू! एसएमएस किया केबीसी लिए? "  नहीं यार…। इतनी  भगदड़  में कहाँ  अपना नंबर लगेगा? और कोंचने की नीयत  से मैंने कहा ,"  ! वैसे रायपुर  की महापौर किरणमयी नायक भी केबीसी की तैयारियों के मामले में सोनी एंटरटेनमेंट कंपनी को चमकाकर दबंगई दिखा गई। बच्चन  साहब की दस करोड़ की  वैनिटी वैन,मनीष पॉल की जबरदस्त एंकरिंग ,देखने   का इन्तेजार निश्चित रूप से सभी  फिल्म प्रेमियों को होगा नहीं क्या! शो के दौरान छत्तीसगढ़ के विरासत की डिजिटल झांकी   दिखाएंगे। ..... अच्छा है  नहीं दद्दू!  (प्रोग्राम लाइव नहीं देखने मिलेगा इस अंदेशे में दद्दू मुंह और लटका हुआ   था। )
                "  क्या सभी जगह  फिल्म स्टारों के प्रति  आकर्षण ऐसा ही होता है ?",दद्दू  ने चाय सुड़कते हुए सवाल दागा। "यार दद्दू  ! देखो !मुंबईकरों को तो  एनी टाइम शूटिंग शेड्यूल देखने का मौका मिलताईच्च है। अपुन छोटे और मझोले शहर के लोग तो ऐसी ऐतिहासिक घटना का इन्तेजार करते हैं। फिर  सेलिब्रेटी स्टेटस बनाने में  लगने वाली मेहनत लोग नहीं देखते.फिल्म स्टार्स दिन-रात झोंक देते हैं काम के पीछे , बाहर से सिर्फ उनका ऐश्वर्य आँखों में दीखता है। फिर भी क्रेज तो है। चाहे उनकी स्टाइल अपनाने का हो   या उनके भव्य व्यक्तित्व से कुछ सीखने  हो  !
                     "  मुझे लगता है केबीसी के इस शूटिंग दौर से छत्तीसगढ़ राज्य ( क्रेडिट रमन सरकार को )  का नाम देश के फ़िल्मी नक़्शे पर उभर जायेगा। "-दद्दू बोले। "ठीक कह रहे हो दद्दू,लेकिन  मुख्यमंत्री जी को हॉट  सीट पर बैठने के दौरान महानायक अमिताभ बच्चन के कानों में छत्तीसगढ़ की फिल्म इंडस्ट्री को बेहतर बनाने और छत्तीसगढ़ में फिल्म स्टूडियो  के निर्माण में  मदद के   आश्वासन की बात डाल देनी  चाहिए। "-मैंने दद्दू के कान भरे. मैं जानता  हूँ की दद्दू अपने "फ्री फंड डॉट कॉम के सर्वर  में यह बात जरूर डालेंगे।
                "अब चलता हूँ अखबारनवीस। ... दद्दू ने सब्जी  उठाकर कृष्णमुख होने  इजाजत ली।  इसी बीच पप्पू ने टीवी का स्विच ऑन किया।
अपनी चर्चित फिल्म शहंशाह  का वही सदाबहार डॉयलॉग धाँसू अंदाज में डिलीवर करते हुए अमिताभ बच्चन  स्क्रीन पर नजर आ रहे  थे -"रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं। ......  ssssssss हाँ ssss ई !
                                                                         जिंदादिल रहें ,मुस्कुराते रहें ,जागरूक रहें। .....
                                                                          किशोर दिवसे ,बिलासपुर छत्तीसगढ़
                                                        
                                                        
                    













बुधवार, 24 सितंबर 2014

गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं ! मंगल मिशन कामयाब

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 गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं ! मंगल मिशन कामयाब



सचमुच  यह एक खुश खबरी है। भारत ने आज अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। सबसे पहले  टीम को बधाई। कामयाबी का श्रेय कौन लेगा यह दूसरी बात है। कार्यकाल मोदी सरकार होने की वजह से निश्चित तौर पर यहतकनीकी उपलब्धि उनके खाते  में दर्ज होगी।  मंगल मिशन कामयाबी की उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया, जिसने अपने पहले ही प्रयास में ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है। सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई, ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा एमओएम का मंगल से मिलन।फिर भी एक  जरूर है ,समाज में वैज्ञानिक स्तर पर इतनी तरक्की   होने के बावजूद विज्ञान की उपलब्धियों का  क्षण उपयोग करने पर भी हमारी सोच पूरी रफ़्तार से वैज्ञानिकता में रच नहीं पाई। अंधविश्वासों की गिरफ्त से छुटकारा अभी बाकी है!विज्ञान के प्रति हम सभी स्तर पर नमकहलाल बनें।

Kishore Diwase: तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!

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Kishore Diwase: तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!: आकाशवाणी  का जलवा अब भी कहीं कम नहीं हुआ है। अनेक पीढ़ियां रेडियो सुनकर जवान हुई कुछ बुढा  भी गयीं। संवाद में तेजी लाने के उद्देश्य से आका...

चिड़ियाघर का बाघ ,युवक की मौत ...... सवालों के पैने नाखून

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 चिड़ियाघर का  बाघ ,युवक की मौत ...... सवालों  के पैने  नाखून

मुझे जैक लन्दन का उपन्यास याद  आ रहा है -CALL OF THE WILD. इंसान और जंगल  अंतर्संबंधों पर रोचक विचारोत्तेजक नावेल है। जो  होना था सो हो गया। सवाल ये है कि क्यों हुआ और क्या इसे रोका जा सकता था? दिल्ली चिड़ियाघर के एक सफेद बाघ ने मंगलवार को एक युवक को उस समय अपना शिकार बना डाला जब वह बाघ के अहाते की बाड़ पर चढ़कर उसकी तस्वीर लेने की कोशिश करते समय दुर्घटनावश (अहाते के) अंदर गिर गया। हालांकि अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि करीब 20 वर्षीय आयु का यह युवक अहाते में कैसे गिर गया, लेकिन चश्मदीदों ने बताया कि वह बाड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था और फिसल गया।

बाघ ने युवक पर कुछ मिनटों तक हमला नहीं किया, लेकिन किसी ने उसपर एक पत्थर फेंका और गार्ड ने बाड़ पर प्रहार करना शुरू कर दिया जिससे बाघ हिंसक हो गया। एक चश्मदीद ने बताया कि तब बाघ ने उसे उसकी गर्दन पकड़ ली और उसे घसीट कर दूर ले गया। कुछ चश्मदीदों ने दावा किया कि बाघ जब युवक को घसीट कर दूर ले जा रहा था तो चिडियाघर के गार्ड उसकी मदद नहीं कर सके क्योंकि उनके पास ट्रैंक्विलाइजर बंदूकें नहीं थीं।
दिल दहलाने देने वाली इस घटना की एक चश्मदीद ने फिल्म बना ली, जिसमें बाघ युवक को गर्दन से पकड़ता हुआ और फिर उसे मारता हुआ दिखाई दे रहा है। पुलिस और चिडियाघर के अधिकारी घटना घटने के कई घंटों बाद तक शव को अहाते से निकालने में असमर्थ रहे। चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने टीवी चैनल पर कहा है की बाड़  में युवक खुद गया था।
                      अनेक सवालों के पैने नाखून चुभ रहे हैं-1 चिड़िया घरों में आपदा  स्थिति कितनी बदतर है । 2 क्या बाड़  को तकनीकी रूप से और ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सकता है ? 3 .युवक  अगर मानसिक रूप से आंशिक असंतुलित  था ,तब भी क्या दर्शकों को जबरिया दुस्साहस करने  विरुद्ध चेतावनी और वन्य पशुओं   के आसपास रहने की तमीज-तहजीब सिखाई और चेतावनी नहीं दी जानी चाहिए?4 शेर को पत्थर मारने की बेहूदी  सोच  के बदले   सब लोग और चिड़ियाघर के अधिकारी /कर्मचारी  मिलकर युवक को बचाने के ठोस उपायों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते थे?बेशक हादसा पीड़ित परिवार के साथ बेहद बुरा हुआ। फिर भी क्या क्या  सवालों के पैने नाखून प्रशासनिक /नागरिक सोच  के जिस्म  को कुरेदेंगे?
                                

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

घर को लगी आग घर चिराग से

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 ये लो इसे  कहते हैं घर को लगी आग घर  चिराग से। पीएमओ और मीडिया के रिश्ते में खटास की खबर तो काफी पुरानी हो चुकी थी। मीडिया की बौखलाहट   इस मुद्दे पर भी थी कि  पीएम मीडिया को उतनी तवज्जो क्यों नहीं दे रहे है जितनी अमूमन प्रत्येक प्रधानमंत्री दिया करते थे .।  पीएम के विदेश दौरे पर मीडिया दिग्गजों और कुछ अखबार मालिक भी साथ हुआ करते थे। अब अचानक क्या हुआ कि  पीएम की रणनीति बदल गयी? इसका हिडन एजेंडा क्या हो सकता है? यह दूरी बनाने का राज! वो क्या कहते हैं-  किसकी दाढ़ी में तिनका!
              खैर पीएम की माया पीएम जानें।   देखिये-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनसंपर्क कार्यालय की कार्यशैली पर संघ परिवार के ही सदस्य संगठन-अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने सवाल उठा दिया है। पंचायत ने कहा है कि यह कैसा कार्यालय है जहां आवेदनों की न रिसीविंग दी जा रही है और न किसी प्रकार की सूचनाएं मिल रहीं हैं! समस्याओं को लेकर पहुंच रही जनता कार्यालय के कामकाज के ढंग से निराश दिख रही है। यह निराशा धीरे-धीरे तीखी प्रतिक्रिया में बदल सकती है। यह भाजपा के लिए घातक हो सकता है।

ग्राहक पंचायत के तीखे पत्र से भाजपा में हड़कंप की स्थिति है। 14 सितंबर को काशी आए आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने भी हिदायत दी थी। उन्होंने कहा था कि कार्यालय सिर्फ आवेदनों का संग्रहालय बन कर न रह जाए। लोगों को कुछ होने का आभास भी होना चाहिए। वैसे, खुलने के 3२-३3 दिनों के बाद कार्यालय अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है। समस्याओं के संबंध में सिर्फ आवेदन बटोरे और पीएमओ को संदर्भित किए जा रहे हैं। उनका फॉलोअप नहीं हो रहा है। आवेदक के लिए मालूम करना कठिन है कि उसकी समस्या के समाधान की दिशा में क्या प्रयास हो रहे हैं।

इस बार ग्राहक पंचायत के अध्यक्ष संजीव कुमार गुप्ता ने शहर में बिजली संकट के बहाने कार्यालय पर सवाल उठाया है। वह खोजवां में रहते हैं। शहर के प्राचीन मोहल्लों में एक खोजवां संघ और भाजपा का गढ़ माना जाता है। गुप्ता के पत्र के अनुसार, लोगों को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में रहने का आभास नहीं हो रहा है। गंदगी, अतिक्रमण, जाम और बिजली-पानी की समस्याएं पहले जैसी ही हैं।
भाजपा के कार्यकर्ताओं व समर्थकों को विपक्षी ताना मारते हैं-अरे, हम तो मोदी जी के गांव में रह रहे हैं। ऐसी बिजली कटौती तो गांव में होती है। पंचायत ने पीएम से समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी हस्तक्षेप पर जोर दिया है ताकि जनता का विश्वास भाजपा पर बना रहे। आरएसएस ने ग्राहक पंचायत की स्थापना उपभोक्ता कानून और अधिकारों के प्रति जनसामान्य में जागरूकता के लिए की।

आमतौर पर ग्राहक पंचायत 'लाइम-लाइट' में नहीं रहती लेकिन देश के आर्थिक सामाजिक परिदृश्य में बदलाव के बाद उसकी सक्रियता बढ़ी है। बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता हितों के संरक्षण के लिए यह आरएसएस का पहरुआ संगठन है।संघ के पहरुआ संगठन में यदि इस तरह का नैराश्य है तब तो भाई खतरे  घंटी बजनी शुरू समझो। अब नजर ऊँट की करवट पर!

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सोमवार, 22 सितंबर 2014

तभी आकाशवाणी श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!

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आकाशवाणी  का जलवा अब भी कहीं कम नहीं हुआ है। अनेक पीढ़ियां रेडियो सुनकर जवान हुई कुछ बुढा  भी गयीं। संवाद में तेजी लाने के उद्देश्य से आकाशवाणी ने शनिवार को अपने सभी केन्द्रों को मुख्यालय सेजोड़ने रेडियों कांफ्रेंसिंग शुरू की। कार्यक्षमता बढ़ने यह एक बेहतर पहल है। मार्केटिंग के इस चरम दौर में   आकाशवाणी की आर्थिक रीढ़ मजबूत करने भी यह जरूरी है ,लेकिन इन दिनों टीवी मेनिया की वजह से आकाशवाणी को श्रोताओं को जोड़ने के लिहाज से अधिक मजबूत कार्य योजना की बनाने की  आवश्यकता है। इस उद्देश्य से प्रत्येक आकाशवाणी केंद्र के माध्यम से श्रोता अनुसन्धान कार्य योजना तय की जाये। घरेलू नेटवर्किंग सुविधा  के लिए सूचना प्रसारण  मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बधाई के पात्र हैं। फिर भी सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आकाशवाणी की लोकप्रियता  के बावजूद नए  परिवर्तनों के प्रति श्रोता अब भी अनजान हैं । कार्यक्रमों के लिए टारगेट, विबिन्न कंपनियों से निजी स्तर पर टाइअप  आकाशवाणी की ओर से श्रोताओं  जागृति कार्यक्रम  जाएँ। तभी आकाशवाणी  श्रोताओं के भी आएंगे-अच्छे दिन!---शुभकामनायें 

रविवार, 21 सितंबर 2014

Student Zone

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Coming Soon

Story

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Coming soon

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

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अनुकाव्य  पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। 

अगर कभी हसबैंड स्टोर खुल गया तो???

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डोंट बी संतुष्ट... थोडा विश करो.. डिश करो...हालाकि यह पंच लाइन किसी ऐसे विज्ञापन की है जिसमें शाहरूख खान कुछ प्रमोट करना चाहते हैं लेकिन यूं लगता है कि इसकी थीम महिलाओं को मद्दे नजर रखकर सोची गई है".
" बात कुछ हज़म नहीं हुई ... जरा और खुलासा करो" मेरी छोटी सी बुद्धि के खांचे में बात फिट न होने पर मैंने दद्दू से पूछा."यार अखबारनवीस !क्या इस दुनिया में महिला को कोई पूरी तरह संतुष्ट कर सकता है" दद्दू ने सीधा सवाल दागा.सवाल थोडा डेंजरस टाइप लगा इसलिए मैंने दद्दू की  गुगली को "डक"  करना चाहा.. मैंने पूछा," क्या मतलब?"
नहीं  नहीं...इसका वो मतलब नहीं जो आप समझ रहे हो.क्या कोई पुरुष किसी महिला को पूरी तरह खुश रख सकता है?क्योंकि बेचारे पुरुष तो छोटी -छोटी खुशियों में ही बल्ले... बल्ले.. करने लगते हैं .लेकिन महिलाऐं कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होती.
" दद्दू यह आपका अनुभव बोल रहा है क्या?इस बार मैंने  जरा चालाकी से सवाल उनकी ही ओर रिबाउंड करते हुए कहा ,"  दद्दू.... वैसे संतुष्टि तो अपने मानने पर होती है लेकिन आप किस मुद्दे पर अपने दिमाग की लेजर बीम का बटन ऑन कर रहे हो?
                            समझ गए थे दद्दू कि मैंने उनकी नीयत भांप ली है इसलिए मूड में आकर उन्होंने किस्सागोई शुरू की-
मुंबई में एक स्टोर खुला है जहाँ पर "पति " मिलते है.कोई भी विवाह इच्छुक महिला वहाँ पर पति का चुनाव कर सकती है .इस स्टोर के प्रवेश द्वार पर एक तख्ती लगी है जिस पर लिखा है कि आपको यहाँ पर सिर्फ एक बार ही दाखिला मिल सकता है.इस स्टोर में छः मंजिलें हैं.जैसे-जैसे खरीददारी के लिए ऊपर की मंजिल पर पहुँचते जाते हैं पुरुषों के भीतर मौजूद खासियतें बढ़ती जाती हैं.( पाठक युवती व् महिला के शाब्दिक झमेले में न पड़ें , मतलब विवाह योग्य से है.)
                           वैसे इस पति स्टोर की अनिवार्य शर्त यही है कि किसी मंजिल पर एक ही विवाह इच्छुक अपने पति का चुनाव कर सकती है.वहाँ से वापस किसी दूसरी मंजिल पर नहीं जा सकती .उसे सीधे बाहर ही निकलना होगा.
शादी करने की इच्च्छुक एक महिला उस स्टोर में गई.पहली मंजिल में लिखा था-" इन पुरुषों की नौकरी है और वे भगवान पर विश्वास रखते हैं.दूसरी मंजिल की तख्ती-इनके पास नौकरी है,भगवान पर विश्वास है और ये बच्चों से प्यार  करते हैं.तीसरी मंजिल की तख्ती पर लिखा था फ्लोर थ्री -यहाँ रखे गए पतियों की नौकरी है ,भगवान पर विश्वास करते हैं ,बच्चों से प्यार करते है और बेहद सुन्दर है.
                           अरे वाह!विवाह की आकांक्षा रखने वाली वह महिला सोचने लगी.फिर पल भर में उसके मन में विचार आया ," क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं! वह अपने मन के लालच को रोक न सकी.चढ़कर वह सीधे चौथी मंजिल पर पहुंची.चौथे मंजिल की तख्ती में दर्ज था ,इन पुरुषों के पास नौकरी है ,भगवान पर विश्वास ,बच्चों से प्यार, बेहद सुन्दर हैं और घरेलू कामकाज में मदद भी करते हैं.
                  " ओ माई गाड..!कितनी ख़ुशी की बात है वह महिला सोचने लगी लेकिन दूसरे ही पल उसके मन में ख्याल आया ,"  क्यूं न अगली मंजिल में जाकर देख लूं !" मिनटों में वह पाचवी मंजिल पर थी . वहाँ भी थी एक तख्ती.वह पढने लगी ,-फ्लोर नंबर पांच के हाल में मौजूद पुरुषों के पास नौकरी है,भगवान में विश्वास ,बच्चों से प्यार,खूबसूरत है ,घरेलू कामकाज में मददगार है ,एक और खासियत यह की ये बेहद रोमांटिक तबीयत के हैं.."
                      उस महिला के मन में उसी फ्लोर पर रुकने का ख्याल  आया.पर ये दिल है  के मानता नहीं! थोड़ी ही देर में वह छठवी मंजिल पर पहुँच गई.तख्ती यहाँ भी लटक रही थी." फ्लोर सिक्स -आप इस फ्लोर पर आने वाली -899989 वी महिला है.इस मंजिल पर जो हाल है वहाँ पर एक भी पुरुष नहीं है.यह फ्लोर इस बात का सबूत है कि महिलाओं को खुश रखना असंभव है.आपको हसबेंड स्टोर में आने का शुक्रिया.बाहर  निकलते समय आप अपने कदम के बारे में सोचें .आपका दिन शुभ हो.
                      अब बताओ अखबार नवीस! क्या ख्याल है? दद्दू ने फिर चहककर पूछा. देखो दद्दू! संतुष्टि अपनी जगह पर है लेकिन महत्वाकांक्षा अपनी जगह पर.क्योंकि-  AMBITION IS NOT A WEAKNESS UNLESS IT IS DIS-PROPORTIONATE TO THE CAPACITY .TO HAVE MORE AMBITION THAN ABILITY IS TO BE AT ONCE WEAK AND UN-HAPPY.
                        ददू मेरी बात से सहमत थे.बोले-अखबार नवीस... मानता हूँ तुम्हारी बात को ... प़र भूल से भी अगर यह किस्सा लिखोगे तब एक बात जरूर वहा पर दर्ज कर देना---
संवैधानिक चेतावनी...महिलाओं के हसबेंड स्टोर वाले किस्से  के बारे में घर पर ( अपनी भाभीजी से  ) चुगली नई करने का क्या!!!!!!!
                            शुभ रात्रि.. शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिए...
                                                                                      किशोर दिवसे
                        

कौन है व्यापारी और उसकी चार पत्नियाँ !

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कौन है व्यापारी और उसकी  चार पत्नियाँ !
सुनो विक्रमार्क! एक अमीर व्यापारी की चार पत्नियाँ थी.वह अपनी चौथी पत्नी को सबसे ज्यादा प्यार   करता था और दुनिया की सबसे बेहतरीन सुविधा मुहैया कराता.अपनी तीसरी पत्नी से वह अपेक्षाकृत कम प्यार करता था.अपने दोस्तों को भी दिखाया करता पर डरता भी था कि वह किसी के साथ भाग न जाये.अपनी दूसरी पत्नी से वह व्यापारी और भी कम प्यार करता.वह समझदार और व्यापारी की भरोसेमंद थी.जब भी व्यापारी किसी मुसीबत में होता दूसरे नंबर की पत्नी उसे मुश्किलों  से उबार लेती.
                        अब व्यापारी की पहली पत्नी की बात.उस पहली पत्नी ने व्यापारी की तमाम दौलत  और कारोबार संभाला तो था ही घर की  देखभाल भी की. लेकिन  वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी से बिलकुल प्यार नहीं करता था.जबकि सच यह था कि पहली पत्नी उसे बे इन्तहां  प्यार करती थी.दुर्भाग्य से वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी की तरफ झांकता तक नहीं था.
                                   एक रोज वह व्यापारी बीमार पड़ गया.उसे लगा कि वह जल्द मर जायेगा.व्यापारी सोचने लगा,"मेरी चार पत्नियाँ हैं .मरने  के बाद तो मैं कितना अकेला रह जाऊंगा! जबकि अभी तो मेरी चार पत्नियाँ हैं."घबराकर व्यापारी ने अपनी चौथी पत्नी से पूछा ," तुम्हें मैंने सबसे ज्यादा प्यार किया.जो माँगा वो दिया. अब तो मैं मर रहा हूँ.क्या तुम  साथ चलकर मेरा साथ दोगी?
                            " क्या बात करते हो जी!यह सब छोड़कर मैं भला क्यों जाऊ?" इतना कहकर चौथी  पत्नी बगैर व्यापारी की और देखे चली गई.व्यापारी के दिल पर पहला छुरा चला था.उदास होकर उसने अपनी तीसरी पत्नी से कहा,"चौथी से कम सही सारी जिंदगी मैंने तुम्हें बहुत चाहा.मैं अब मर रहा हूँ.तुम भी मेरे साथ चलो न!"
                              " नहीं ...नहीं.. कितनी खूबसूरत है यहाँ की जिंदगी...तुम्हारे मरने के बाद मैं दूसरी शादी कर लूंगी."व्यापारी के कलेजे पर यह दूसरा वार था.उसने ठंडी साँसे भरकर दूसरी पत्नी से पूछा,"मुझे हरेक मुश्किल से तुमने ही उबारा है .एक बार मुझे फिर तुम्हारी मदद चाहिए.मेरे मरने पर तुम तो अवश्य मेरे साथ चलोगी ?"
                           " ए जी.. माफ़ करना इस बार मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकूंगी.अधिक से अधिक तुम्हें श्मशान घाट तक छोड़ने की व्यवस्था कर दूँगी." व्यापारी पर एक बार फिर वज्राघात हुआ.उसने मन में सोचा," अब तो मैं कहीं का नहीं रहा." इतने में एक कमजोर सी आवाज उसके कानों में सुनाई दी-
 " सुनो साजन! मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.आप चाहे कहीं भी जाएँ मेरा और आपका साथ हमेशा-हमेशा रहेगा." मायूस व्यापारी ने जब सर उठाकर देखा तब पता चला कि यह कहने वाली उसकी पहली पत्नी थी.एकदम दुबली-पतली,मरियल सी.पश्चाताप के आंसू भरकर व्यापारी ने कहा," प्रिये! काश मैंने तुमपर ही सबसे अधिक ध्यान दिया होता."
                                 " अब बताओ राजा विक्रमार्क वो चार पत्नियाँ कौन हैं?" जानते हुए भी अगर तुमने इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे."-वेताल ने अग्नि परीक्षा  लेनी शुरू की.
                                कुछ पल मुस्कुराते हुए राजा विक्रमार्क ने वेताल को कंधे पर लादा और रवाना हुए गंतव्य की ओर.उनहोंने जवाब दिया-
" सुनो वेताल!दरअसल हम सब पुरुषों की चार पत्नियाँ हैं .शुरू करते  हैं  चौथी पत्नी से.चौथी पत्नी हमारा शरीर है.हम इसके लिए खूबसूरत बनाने में चाहे जितना भी समय और धन खर्च करें मरने पर वह हमारा साथ कभी नहीं देगी.हमारी तीसरी पत्नी संपत्ति और स्टेटस है.हम मर जाते हैं लेकिन वे हमारे साथ जाते हैं क्या?हमारी दूसरी पत्नी है हमारा परिवार और बच्चे.सारी जिंदगी हमारे जीते जी चाहे वे कितने भी दिल के करीब रहें वे श्मशान के आगे स्वर्गलोक के रास्ते कभी हमारे साथ होते हैं क्या?"
                     
                         वेताल का दिल अब धडकने लगा था.राजा विक्रमार्क ने अपना चिन्तन जारी रखा," "वेताल! हमारी पहली है हमारी आत्मा.सारी जिंदगी हम उसकी उपेक्षा करते हैं.भौतिक सुख और साधनों के नाम पर वह " पहली पत्नी" तन्हाइयों में बेबस होकर जीती है. और  वही अंतिम यात्रा के बाद भी कहती है, "सुनो साजन!आप चाहे कहीं भी जाएँ मैं आपके साथ चलूंगी.अपनी आत्मा को सच्चे आदर्शों के साथ मजबूत बनाने का यही समय है.आखिर क्यों इसके लिए मृत्यु शैय्या का इन्तेजार करें  ?"
                                 राजा विक्रमार्क! तुमने मेरे सवाल का सही जवाब दिया और ये मैं चला... हूँ ...हूँ... हा...हा...के अट्टहास के साथ एक बार फिर वेताल ,महाकाल की नगरी उज्जयिनी की ओर कूच कर गए.
                                                                       शुभ रात्रि.. शब्बा खैर...अपना ख्याल रखिये
                                                                                        किशोर दिवसे 
                                                                                        मोबाइल 09827471743
                           
                               

..ऍ मसक्कली मसक्कली ...उड़ मटक्कली ..मटक्कली....

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..ऍ मसक्कली मसक्कली ...उड़ मटक्कली ..मटक्कली.....


 कुँए के मेंढक और समंदर की शार्क में फर्क होता है जमीन -आसमान का.बरास्ता जिद, जूनून और जिहाद कोई इंसान अपना किरदार ... तकदीर और तदबीर कुँए के मेंढक की बजाए समंदर की शार्क जैसा बना सकता है.उसे बस सही वक्त पर सही सोच के जरिए सही फैसले  करने होते हैं.निश्चित रूप से अपनी गलतियाँ...अपनी मजबूरियां ... चुनौतियाँ रास्ते में कांटे बनकर बिछते रहेंगे लेकिन यदि आपने अनचाही सोच को भी "तेरा इमोशनल अत्याचार "के बावजूद सर पर लादे रखा तब बेडा गर्क समझो .सो, वक्त की नजाकत को समझकर खुद को बदलने की जिद करो वर्ना  मटक्कली तरह पछताते रहोगे और मसक्कली उड़ने लगेगी आसमान में फुर्र...फुर्र...फुर्र...और लोग गाने लगेंगे मसक्कली....मसक्कली...
                                 दरअसल मसक्कली और मटक्कली जंगली कबूतरियों के झुण्ड में शामिल थी .यह झुण्ड  V  फ़ॉर्मेशन बनाकर आसमान में उड़ रहा था .जिन्होनें भी अपनी निगाहें उठाकर देखा बस देखते ही रह गए.यूँ ही उड़ते-उड़ते मटक्कली ने जमीन पर कुछ देखा और नजदीक पहुँचने पर पता चला   कि यह पालतू कबूतरों का दडबा किसी कोठार का हिस्सा था .दडबे वाले कबूतरों का झुण्ड गुटरगूं करते हुए रोज उन्हें दिए जाने वाले मकई के दाने चुग रहा था.लालची मटक्कली सोचने लगी ,"कितने सुन्दर मकई के दाने हैं .वैसे भी लगातार उड़कर मैं थक चुकी हूँ इसलिए कुछ देर यहीं इठलाने और मटकने में मजा आएगा.मसक्कली को छोड़कर मटक्कली कोठार में दाना चुगते कबूतरों के पास उतर गई.दाने चुगते हुए उसने ऊपर चोंच उठाकर देखा मसक्कली और जंगली कबूतरों का V   फ़ॉर्मेशन फ़ना हो चुका था.
                               वह दक्षिण दिशा में जा रहा था लेकिन मटक्कली बेखबर थी."मैं अभी तो कुछ महीने तक कोठार में रहूंगी.मसक्कली और बाकी साथी जब वापस उत्तर की ओर लौटेंगे फिर उनके साथ शामिल हो जाऊंगी."
                                 यूँ ही कुछ महीने गुजर गए.मटक्कली ने देखा कबूतरों का झुण्ड वापस लौट रहा है.मसक्कली की तरह पूरा  V     फार्मेशन बेहद सुन्दर था.मटक्कली अब कोठार और वहाँ के पालतू कबूतरों से ऊब चुकी थी.कोठार का माहौल भी गन्दा और कीचड़ भरा हो चुका था.वहाँ पर बेहूदगी ... साजिशें और दूसरों का अपमान करने की विकृत सोच थी.मटक्कली ने सोचा," अब यहाँ  से मुझे उड़ जाना चाहिए."
                                    मटक्कली ने अपने पंख फडफडाकर उड़ना चाहा.खूब खाकर उसका वजन इतना बढ़ चुका था कि  वह उड़ नहीं सकी और नीची उडान की वजह से कोठार की दीवार से टकराकर गिर पड़ी.ठंडी साँस लेकर उसने कहा ,"मसक्कली और उसका कबूतर झुण्ड जब कुछ महीनों बाद फिर दक्षिण की ओर उड़ेगा मैं उनके साथ हो लूंगी."कुछ महीनों बाद मटक्कली ने फिर उड़ना चाहा पर उड़ नहीं सकी.मसक्कली अपने साथियों के साथ जिंदगी के आसमान में उडती चली गई करप्ट टेंडेंसी और बेईमानी ने मटक्कली की रूहानी ताकत भी ख़त्म कर दी थी.कई सर्दियों में मटक्कली देखती रही की आसमान में बनता  V   फार्मेशन कैसे आँखों से ओझल होता है. धीरे-धीरे वह "कोठार का पालतू कबूतर"बन चुकी थी.
                                  दद्दू समझ गए कि मसक्कली ईमानदारी और मटक्कली बेईमानी का सिम्बल है.मटक्कली ने सोचा कि आँख मूंदकर दूध पीने वाली बिल्ली की तरह रहूंगी किसी को कहाँ पता चलेगा ? जिंदगी में किसी बेगुनाह का नुकसान सोचे या किए बगैर मेहनत और ईमानदारी ही आपके चरित्र को और शुभ्र बनाती है 
                                                मटक्कली अपने गुनाहों के दलदल में फंस चुकी थी.हम इंसानों क़ी अच्छाइयां  और कमजोरियां भी मसक्कली और मटक्कली क़ी तरह हैं .मटक्कली आखिर उड़  ही नहीं सकी और मसक्कली और V   फार्मेशन 
वाले  कबूतरों से उसका रिश्ता टूट गया.मटक्कली"  गंदे कोठार " का हिस्सा बनकर रह गई .
                                           प्रोफ़ेसर प्यारेलाल कहते हैं कि बात सिर्फ मसक्कली या  मटक्कली कि नहीं है.वह कबूतर नहीं किर्सर या चरित्र हैं जो जिंदगी के हर क्षेत्र में हमारे सामने होते हैं.सवाल यह है कि आईने में अपना चेहरा मटक्कली की तरह लगता है या उस प्यार खूबसूरत सी मसक्कली की तरह जो उड़कर सीधे मुंबई , पुणे  या बेंगलोर  या विदेश पहुँच गई.कबूतरों का वह समूचा झुण्ड थिएटर के बाहर बालकनी की रेलिंग पर कतार लगाकर बैठा है मसक्कली उनके बीच है और सभी के कदम थिरकने लगे हैं.उनके गुटरगूं में कोरस की मीठी धुन गूँज रही है-
                  ऍ मसक्कली... मसक्कली... उड़ मटक्कली.....मटक्कली......

जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया

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ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते


बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है कि शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते हैं  सब लोग.
       यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत  बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
                       ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है 
                      सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है 
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !  
चौक- चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथन रेस  में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
                     घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
 खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
                        मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब 
                        कुत्ते    अमीरों के हैं लपेटे  हुए लिहाफ 
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या  अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा  संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है कि यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैडमिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
                       सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा  अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
                        दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से 
                       तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
बहरहाल ,मुद्दे की बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों की तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
                      इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब 
                     इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया 
                                                                     प्यार सहित... अपना ख्याल रखिएगा---
                                                                           किशोर दिवसे 
                                                        kishore_diwase@yahoo.com

                              

शहर काग़ज़ का है और शोलों की निगहबानी है

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शहर कागज का है और शोलों की निगहबानी है 

अगर तासीर की बात करते हैं तो शहर और इंसान एक बराबर हैं.और, शहर ही क्यों गाँव,शहर और महानगर भी कई दफे इन्सान की जिन्दगी जीते हैं उनका भी दिल धडकता है. वे भी हँसते हैं... रोते है.. गाते हैं...खिलखिलाते हैं .जब मह्सूस  करते हैं की उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं है तब खामोश होकर बैठ जाते हैं गुमसुम किसी " रियल दरवान " के इन्तेजार में.आपकी और हमारी तरह मसीहा के आने की कल्पना में खोए हुए...
                                ढेर सारे रंग होते हैं इंसान की जिन्दगी में गाँव और शहर के चेहरों पर भी यकीनन उभरते हैं इसी तरह के रंग.-कई खूबसूरत  , कुछ बदसूरत.शहर भी कमोबेश इसी तरह की शख्सियतों  को लेकर जीता है .थर्मोकोल सी-ऊपर से चमकदार पर फूंक मारते ही उड़ जाने वाली -ऐसे कई लोग हैं.कुछ ऐसे भी जो फौलादी हैं पर खोटे सिक्के के बाज़ार में अपनी खनखनाहट गुम कर बैठे हैं . यकीनन इनमें से ही कुछ अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश करते हैं. जो आत्मकेंद्रित हैं वे मसलों के होने या न होने से कोई सरोकार नहीं रखते.
                                    सरोकार रखने या नहीं रखने से क्या बीहड़ खत्म हो जायेंगे?आम आदमी की जिन्दगी के बीहड़ निजी पारिवारिक मसले हैं जिनकी भूल-भुलैया में खो जाता है वह.अपने शहर में भी कई बीहड़ हैं,अरसे से घनीभूत.किस्म-किस्म की समस्याएँ.पेयजल, पानी की निकासी,सड़कें,बिजली,अपराध,छेड़खानी, धूल-कचरा .सबसे बड़ी समस्या है विकास के प्रति नागरिको का अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाना.उलटे अपनी बेशर्मी और निरंकुशता से परेशानियाँ बढ़ाना.अमूमन ये मसले इतने दाहक हैं की सारी जिन्दगी झुलस रही है ... शहर जल रहा है-
                                                        जल रहा सारा शहर और हम खामोश हैं
                                                        ज़र्रा -ज़र्रा अंगारा और हम खामोश हैं
यातायात बेतरतीब है... सड़कों के इर्द-गिर्द शॉपिंग  माल  और होटलें बन रही हैं लेकिन पार्किंग  के मामले में नगर निगम पूरी तरह लापरवाह है.हालिया सेन्ट्रल पार्किंग का प्रयोग शुरू हुआ लेकिन लोग  तकलीफ में हैं क्योकि सड़कें बदतर हैं। और कुछ लोग तो अपनी मर्जी के मालिक बिल्डिंग बनने के बाद ही उन्हें भी होश आता है, फिर भी कारवाई नहीं होती.
समस्याएँ सहज स्वाभाविक है पर उन्हें सुलझाने की नीयत होनी चाहिए.सड़कों के चौडीकरण  में कई धर्म स्थालियाँ और बूढ़े पेड़ बाधक हैं पर कोई ठोस योजना  नहीं बनती.होना यह चाहिए कि शहर में विकास करने के पहले लोगों को " डेवलपमेंट फ्रेंडली " बनाने की सोच विकसित की जाये.समस्याओं के प्रति संवेदनहीनता से हालत यह बनती है की -
                                        अनलहक की सदा अब क्यों गूंजती नहीं फ़ज़ाओं में 
                                        जुबान रखते हुए भी आज इंसान बेजुबान क्यों है?
नागरिक और प्रशासन - दो धुरियाँ हैं समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में .दोनों को ही सुधरना होगा.दोनों की ही बदमिजाजी पर अंकुश लगाना चाहिए .शहरी समस्याओं के हल में सरकारी आश्रितता के मुद्दे पर भी सोचना होगा.शहरी  लोगो को इस बात का गुरूर है कि   अब हम पढ़े-लिखे लोग है. तो खुद या निरंकुश औलादों  की  सरे आम बदतमीजी देखने और करने  के बजाये        _ अनुशासित और सुंदर शहर क्यों नहीं बनने देते. धनाढ्य होने का मतलब यह तो नहीं की शहर किसी के पूज्य पिताजी का हो गया!अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूकता  जरूरी है क्योंकि -
                                                                               अहले दानिश को इस बात पे हैरानी है
                                                                             शहर काग़ज़ का है और शोलों की निगहबानी है   
अक्ल के पीछे डंडा लेकर पिल पड़ने का दौर खत्म करना होगा.तभी माहौल ऐसा बनेगा कि समस्याओं के अँधेरे के बीच एक टुकड़ा धूप आसानी से मिलेगी .आस्था रद्दी के बाज़ार में बिकनी बंद हो जाएगी.आज रोते हुए शहर और गाँव को हंसाने की जिम्मेदारी सियासत सहित हम सभी की है  .जो भीतर से इस्पाती सोच के हैं और छ्द्म्वादी  नहीं.सत्यान्वेषी सक्रिय  व् कर्मठ मानव बारूद चाहिए अब रंगे सियारों से यह कहने का वक्त खत्म हो गया की -" मूंग की दाल और साग खाना शुरू कर  दो!!!!
                                      जिम्मेदार और जागरूक रहिये
                                                         अपना ख्याल रखें....
                                                                                                                        किशोर दिवसे 
                                                                                                                                   
                                                
                                                              

तुम शीशे का प्याला नहीं झील बन जाओ..

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तुम शीशे का प्याला नहीं झील बन जाओ..

अब तो दादा -दादी या नाना -नानी के मुंह  से कहानियां सुनने का फैशन ख़त्म ही हो गया है.आजकल के बच्चों  के पास इसके लिए वक्त ही नहीं होता. न वे इसमें रुचि ही लेते हैं.कम्प्यूटर तो बस बहाना है .इन्ही कहानी-किस्सों के जरिये बच्चों के मन में संस्कार डाले जाते थे. फिर भी पढने वाले लोग या तो किताबें लेकर बैठते है  या हाईटेक  पीढ़ी की तरह डिजिटल हो गए हैं..यदा-कदा हम सब किसी बचपन को देखकर लौटते हैं अपने बचपन में तब अनायास ही वे कहानियां याद आने लगती हैं जो कभी हमारे बुजुर्ग सुनाया करते थे  . वे कहानियां कभी-कभार किताबों में भी मिल जाया करती हैं.
                     मुझे याद है की  यह किस्सा सोने के वक्त जिद कर पलकें मूंदते तक सुनने वाला नहीं था.बचपन में ही सही नानी ने मुझसे कहा,"जाओ...शीशे का प्याला लेकर आओ".नानी ने प्याले में पानी डाला और मुझसे कहा ," डाल दो इसमें मुट्ठी भर नमक". मैंने वैसा ही किया.फिर नानी ने मुझसे कहा," बेटा जरा इसका स्वाद बताना"."छी !!!!! कितना नमकीन!.. मैंने मुंह  बनाकर थूक दिया.. पिच्च...!
                   नानी ने मुझसे कहा ," चलो बेटा ...जरा झील तक घूम आते हैं".मैं  हाथ पकड़कर उसे झील तक ले गया.फिर उसने कहा,' बेटा !सामने वाली दुकान से मुट्ठी भर नमक ले आना" मैं दौड़कर ले आया.नानी ने मुझसे वह नमक ले लिया और झील में डाल दिया."अब तुम इस झील का पानी पीकर बताओ." नानी ने मुझसे कहा.




                     जैसे ही अंजुली भर तालाब का पानी मैंने पीया नानी ने मुझसे पूछा,बेटा पानी का स्वाद बताना."" अच्छा लग रहा है नानी." मैंने कहा." नमकीन तो नहीं लग रहा है न?" नानी ने पूछा.मैंने जवाब दिया,"बिल्कुल  नहीं नानी."
                     मैं और नानी झील के किनारे बने मंदिर के चबूतरे पर बैठे थे.नानी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और कहा,"" बेटा! जिन्दगी में जो तकलीफें हैं वे भी इसी नमक की तरह हैं.न ज्यादा न कम.परेशानियाँ अपने जीवन में वही रहती हैं लेकिन उन तकलीफों का अहसास इस पर निर्भर करता है की हमने उन्हें किस नजरिये से देखा है."
                   इसलिए बेटा ... " जब भी जीवन में तुम्हें परेशानियाँ हों तुम सिर्फ  इतना ही करना की जीवन  को समझने का नजरिया व्यापक बना लेना." आसान शब्दों में समझना है तब मैं एक ही बात कहती हूँ,' तुम शीशे का प्याला नहीं झील बन जाओ.!हालाकि उस बात का मतलब मैं उतनी गहराई से नहीं समझ पाया  था क्योंकि उस समय मैं मात्र नौवी का छात्र था.आज इस किस्से को याद कर जिन्दगी के अक्स हकीकत के आईने में दिखाई देते है और ताजा हो जाती है नानी की यादें.

                          ***********
गर्मियों की छुट्टियों में नानी और मैं फुटपाथ से होकर गुजर रहे थे.सड़क पर भीड़ थी.तेज रफ़्तार दौडती गाड़ियों , बाइक और उनके हॉर्न तथा साइरन  का कानफाडू शोर गूँज रहा था.अचानक नानी ने मुझसे कहा," बेटा!मुझे झींगुर की आवाज सुनाई दे रही है."
                       मैंने कहा," आप भी सठिया गई हो नानी.आप इतने शोर-गुल के बीच झींगुर की आवाज कैसे सुन सकती हो:" नहीं मैं सच कह रही हूँ..नानी ने कहा,"मैंने झींगुर की आवाज सुनी है." " सचमुच.. आपका दिमाग  चल गया है नानी." मैंने मजाक उड़ाया.अचानक मैंने अपने कानों पर जोर दिया और फुटपाथ के कोने में उगी झाड़ी देखी.मैं उसके नजदीक गया तब पता चला की झाड़ी के भीतर एक टहनी पर झींगुर बैठा था." यह तो बड़े कमाल की बात है नानी." मैंने नजरें  झुकाकर कहा," लगता है आपके कानों में कोई अलौकिक शक्ति है"
                        " बिलकुल गलत बेटा,यह कोई अलौकिक-वलौकिक शक्ति नहीं है.मेरे कान भी तुम्हारे जैसे ही हैं.मैंने झींगुर की किर्र-किर्र सुन ली.यह तो तुमपर निर्भर करता है कि तुम क्या सुनना चाहते  हो.?
                       " लेकिन यह कैसे  हो सकता है नानी!" मैंने हैरत से पूछा," आखिर इतने कानफाडू शोर  में  मैं छोटे से झींगुर की आवाज सुन ही नहीं सकता." " हाँ! ठीक कह रहे हो बेटा." नानी ने मुझे समझाया,"सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हारे लिए क्या महत्वपूर्ण है.देखो...मैं  तुम्हे इसे सच साबित करके बताती हूँ."
                     नानी ने अपनी कमर में खोंसकर रखा नन्हा सा बटुआ निकला.उसमें से कुछ सिक्के निकाले और चुपचाप सड़क के किनारे बगैर किसी के ध्यान में आये डाल दिए." चलो.अब कोने में खड़े रहकर तमाशा देखते हैं." नानी मुझे एक कोने में ले गई.  

                                        

                    सड़क पर गुजरती गाड़ियों का कोलाहल अब भी उतना ही था.हम दोनों ने देखा कि जो  भी धीमी रफ़्तार से गुजरता उनके अलावा अधिकांश राहगीर अमूमन बीस फीट दूरी से मुड़कर यह देखते कि नीचे पड़े चमकने वाले सिक्के कहीं उनकी जेब से तो नहीं गिरे हैं!" क्यों बेटा!बात तुम्हारी समझ में आई?
                   " हाँ नानी ! आप  सच कहती थी.... सब कुछ इस बात पर निर्भर  करता है कि सभी बातों के बीच आपकी बुद्धि किस बात को महत्त्व देती है.आपको क्या जरूरी लगता है."नानी की वह बात आज ही मुझे याद है.अरे... वह देखो!!!!सड़क पर गिरे सिक्कों को देखकर न जाने कितने लोगों के हाथ अचानक अपनी जेब छूने लगे हैं!                                            आज बस इतना ही .. शब्बा खैर ... शुभ रात्रि... अपना ख्याल रखिये...
                                                                                   किशोर दिवसे.

फिर मत कहना माइकल दारु पी के दंगा करता है

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फिर मत कहना माइकल दारु पी के दंगा करता है 

O सड़क  के किनारे चित्त बेसुध पड़ा इंसान ... नशे में बकबक जारी है.एकाएक एक कुत्ता आया मुंह चाट कर अपनी टांग उठाई और....
O चखना  -चेपटी लेकर दारू भट्टी  के पास पी और छोटी सी बात पर लड़ पड़े दो दोस्त.गुस्से  में आकर निकाली गुप्ती और भोंक दिया.दूसरे  दिन सुबह तक एक दोस्त कह  चुका था दुनिया को अलविदा.
O दारू के चक्कर में कर्ज बढ़ता गया ... घर का सामान बेचा और टुन्न होकर रेल क्रासिंग के सामने अपनी समस्या का हल ढूँढा... नतीजा एक आदमी , दो टुकड़े बेजान.बदतमीजी, झगडे टंटे, नशे में कलंकित करने वालिवार्दातें गाँव से लेकर शहरों की क्राइम फ़ाइल बन चुकी है.
                         थू है ऐसी फैशन और अन्धानुकरण पर जिसकी शुरुआत मौज-मस्ती से होकर   सर्वनाश में जाकर ख़त्म  हो.बहाने बनाने में उस्तादी  देखिये-ख़ुशी है तो पी दारू और गम भी है तो पी!!!सुरूर में तो मसलों से मुहं छिपा लिया,उतरने के बाद जस के तस!
                            नशा शराब में होता तो नाचती बोतल!
फिल्म वालों का दिमाग दिवालिया हो गया था जो ऐसा गीत लिखा.न्यू ईयर पार्टी हो या दीगर   दारू पीने कोईच  मांगता.माता -पिता भी (स्टेट्स सिम्बल के जूनून में ओके कह देते हैं . शराबखोरी पूरी बेशर्मी से स्टेट्स सिम्बल बन चुकी है.
                           हुई महँगी बहुत शराब तो थोड़ी-थोड़ी पिया करो...ला पिला दे साक़िया...शराब चीज ही ऐसी है...सुनकर महफिले सजती है.जिगर छलनी हो  गया... लीवर सिरोसिस ,डीलीरियम ,  अल्कोहलिक टेंडेंसी का शिकार हो गए .घर बाहर वाले सब परेशां लेकिन छूटती  नहीं है काफ़िर मुहं से लगी हुई पहले तो तुमने शराब पी, फिर उसने जिंदगी के बचे हुए लम्हे पीना शुरू किया और बीमार होकर समय से पहले खर्च हो गए.
कईयों को दारू पीना छोड़ते देखा है.कुछ ने  बर्बादी के कगार पर तो कईयों ने   बर्बाद होने के बाद.जो भी हो शराब छोडकर जो इंसान बन गए उन्हें जोरदार सलाम और उन लोगों के लिए सद्बुद्धि की दुआएं जो सांझ ढलते ही यह कहते है की-
                                                मयखाने से शराब,साकी से जाम से 
                                                अपनी तो जिंदगी शुरू होती है शाम से
उस रोज दो रिक्शा वाले टुन्नी में बकर कर रहे थे ," मोर बेटा के तबियत खराब हे,दवा-दारू के इंतजाम करे के हे" एक साथ  दावा-दारू की जोड़ी कितनी अजीब लगती है? सच है की दवा की तरह दारू फायदा करती है लेकिन कई लोग  तो आजकल दवा को दारू की जगह इस्तेमाल कर रहे हैं.अंगूर की बेटी हसीं तो है पर उससे मस्ती करना महंगा पड़ता है.प्यालों के बेताब बादशाह कुछ यूं फरमाते है
                                      पूछिए मयकशों से लुत्फे शराब
                                       यह  मजा पाकबाज क्या जानें!     
" ठीक है सुरूर नहीं जानते पर इतना जरूर जानते है कि शराबखोरी कानून से नहीं रुक सकती. इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए.आदिवासी संस्कृति में शराब पीना या बनाना जायज है इसे स्थायी बनाने के बदले इसके दुष्परिणाम से अवगत कराया जाये.अब प्रशासन को देखिये चाय-पान के ठेले तो जबरिया पुलिसवाले बंद कर देंगे लेकिन दारू दुकानें खुली रहेंगी. सख्ती बरतनी चाहिए.
                             " कुछ पियोगे! दद्दू को अचानक पूछा तो वे भकुआ गए." दारू नहीं ये काफी की बात है"मैंने कहा तो छेड़खानी के अंदाज  में लगे पूछने ,"तुम शौक नहीं करते? कैसे पत्रकार हो यार!" मैंने दद्दू से कहा," दद्दू! नशा तो हम खूब करते है मगर यह नशा है जिन्दगी जीने  का नशा... अपनापन ... इंसानियत का.. आँखों का... और मुहब्बत का.हालाकि कालेज के ज़माने में  हम भी खूबसूरत चेहरे देखकर कह दिया करते थे-
                                कभी इन मदभरी आँखों से पिया था एक जाम
                                 आज तलक होश नहीं..होश नहीं..होश नहीं
सोच का गंगाजल अब शराब के खतरों से आगाह करता है.वैसे भी जब जीवन जीने का नशा सवार होता है तब मै आपके हाथ में मधुशाला  का यह प्याला देने पर मजबूर हो जाता हूँ-
                  धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है ,जिसके अंदर की ज्वाला
                    मंदिर मस्जिद ,गिरिजा सब,तोड़ चुका जो मतवाला
                   पंडित ,मोमिन ,पादरियों के ,फन्दों को काट चुका
                  'कर सकती है आज उसी का,   स्वागत ये मधुशाला 
                                                              शायद लिखने का सुरूर कुछ ज्यादा हो गया है इसलिए चलता हूँ                                                                                अपना ख्याल रखियेगा... 
                                                                                 किशोर दिवसे