सोमवार, 30 दिसंबर 2013

परिवर्तन है नए वर्ष का सन्देश

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परिवर्तन है नए वर्ष का सन्देश
तारीख -३१ दिसंबर
वक्त  दोपहर   ( शाम के बाद समय नहीं मिलेगा इसलिए)
ह़र किसी का अपना अलहदा अंदाज होता है बीते बरस को अलविदा कहने का.वर्ष २०१३  की विदाई और २०१४  का  स्वागत करने प्लानिंग अमूमन पहले से ही हो जाया करती है.कईयों ने सोचा की आउटिंग कर ऐश करे और रात दारू-शारू के साथ मजे लें. नव- धनाढ्यों  का कुनबा बड़ी होटलों में साल की विदाई पार्टी के साथ "रात रंगीन " करने शराब -शबाब के पॅकेज डील कर चुका होता है.बीते बरस भी ३१ की रात को सुरूर में पहले तो तेज रफ़्तार सडको पर कुछ नौजवान घूमे फिर उनमें से कुछ अस्पताल में भी नजर आए.
                        वर्ष २०१ २
की रात को भी बारह बजे शहर जवान हो कर मस्ती में बल्ले-बल्ले कर रहा था. अपनी- अपनी सोच और नसीब के चक्कर में बीते साल की विदाई का अंदाज भी मजदूरों, मिडिल क्लास और रईसों की तकदीर- तदबीर के पारदर्शी अक्स दिखा जाता है.कहीं खुशी .. कहीं गम ...कहीं जोश-ऍ- जूनून तो कहीं झुंझलाहट नजर आती है.रात में टीवी के सामने " हॉट एंड मसाला कार्यक्रमों को देखने वालों का तबका भी होता है.युवा होस्टलों में जश्न का अलग अंदाज तो जिनकी एग्जाम चल रही है वे थोडा  सा एन्जॉय कर ज्यादा टाइम खोटी नहीं करना चाहते.
                               आज रात भी यही सब होगा . पिछले बरस अपने दद्दू ने टिप्पणी कीथी ,"दोस्त! बाजार और नई हवा के इशारे पर ही सही लोग अब अवसरों को बिंदास तरीके से जीने की जीवनशैली अपना चुके हैं.यह बात अलग है कि  जिंदगी में मिली सौगातें अपने-अपने पुरुषार्थ और नसीब का मिला-जुला फलादेश है.कुछ लोग नए वर्ष पर जश्न के साथ कोई रिसोलुशन भी लेते हैं . हाँ! कौन निभाता है कौन नहीं यह अपनी जिद की बात है.
                           " संकल्प के लिए नए बरस की शुरुआत की मोह्ताजगी  क्यों ? क्या हम साल भर उत्सव की तरह नए  संकल्पों के साथ नहीं मना सकते? "क्यूँ नहीं!नए वर्ष का सन्देश है परिवर्तन.हमसे जुडी  व्यवस्थाओं के प्रति जाग्रति,सच्चे ज्ञान ,प्रेम और खुशियाँ बाटने का संकल्प  कर हम साल भर उसपर अमल कर सकते हैं.रात गई, बात गई कहकर एक दिनी हुल्लड़ और अय्याशी से कुछ नहीं होने का.फिर भी टेंशन भरी जिंदगी में हम लोग फुल -टू मनोरंजन का कोई भी मौका नहीं चूकते..चूकना भी नहीं चाहिए.
       बीते बरस की विदाई और नए वर्ष के स्वागत को एक दिनी जश्न मानने वालों के अलावा बच्चे से बूढ़े तक के लिए नए वर्ष का समूचा अजेंडा  गुरुदेव रवीन्द्र नाथ  टेगोर की " गीतांजलि" में इन पंक्तियों से प्रतिध्वनित होता है-
                                जहाँ पर मस्तिष्क हो निर्भय,
                                  और भाल सदा गर्वोन्मत्त
                                  जहां  हो ज्ञान का मुक्त भंडार,
                                 जहाँ न हो विश्व विभाजित
                                  संकीर्ण सरहदी दीवारों से
                                    जहाँ सदा जन्म लें अक्षर
                                  ध्रुव सत्य की कोख से
                                 जहाँ अनथक  परिश्रम आतुर हो
                                  उत्कर्ष का आलिंगन करने
                                    जहाँ निरंतर प्रयोजन के स्रोत
                                   स्वार्थ मरू में न हो गए हो लुप्त
                                     जहाँ मेधा इन सत्य पुष्पों से
                                    सदैव हो परिचालित,विचारवान
                                     मेरे पिता!जागने दो मेरे देश  को!
चलिए छोड़िए.... बीते बरस की विदाई में जुट जाएँ  अपने- अपने तरीके से.कल सुबह कोई मंदिर जाएगा  भगवान से आशीर्वाद लेने ... आराध्य  से नया वर्ष सुखद होने की कामना करेंगे.कोई देर सुबह तक उनींदा सा होगा. आप सभी मेरे अपने है. सो नया वर्ष खूब प्यार और खुशहाली भरा होने की कामना इन शब्दों में करता हूँ
                         
                                     खुश रहिए ... खुश रखिए...और अपना ख्याल रखिएगा...बहुत बहुत प्यार
                                                                             किशोर दिवसे,बिलासपुर, छत्तीसगढ़, भारत
                                                                               मोबाईल -09827471743                              
                                     
                                   

                              

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

ठिठुरती रात की बात | Kishore Diwase

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ठिठुरती रात की बात | Kishore Diwase

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ड्रामा रेपर्टरी और आर्ट गैलरी बिलासपुर में खोली जानी चाहिए | Kishore Diwase

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ड्रामा रेपर्टरी और आर्ट गैलरी बिलासपुर में खोली जानी चाहिए | Kishore Diwasehttp://kishordiwase.blogspot.in/2013/12/blog-post_4205.html

बुरी नजर वाले तेरा मुह काला

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बुरी नजर वाले तेरा मुह काला -किसी ट्रक  के पिछवाड़े पर यह इबारत लिखी थी। ये नजर लगने का गणित अब तक मेरी समझ में नहीं आया। किसे ,कब, क्यों, कहाँ , कैसे ,नजर लगती है?नजर क्या सिर्फ -  खूबसूरत लोगो को लगती है या फिर हमारे जैसे काले -कलूटों को भी? किसी के घर जाओ -वापस लौटने पर कहा जाता  है- अरे  तुझे उस बुढ़िया की नजर लग गयी होगी!क्या उस बुढ़िया को भी किसी की  नजर लगती होगी?उस घर में रहने वालों को उसकी नजर क्यों नहीं लगती?क्या किसी भी उम्र वाले को हर उम्र वाले की  नजर लग जाती है?क्या पत्नी  गोरी  हो और पति काला - तो उसे साथ-साथ  रहने पर नजर नहीं लगती? परंपरा और विज्ञानं के तर्क के बीच अक्खे दिमाग का दही बन गया है!मेरी बीबी ने अगर गलती से यह पोस्ट पढ़ ली तो जरूर कहेगी- अरे! तुम्हे किसी की नजर लग गयी है , ऊल-जलूल  बकवास कर रहे हो!( वैसे अपुन को आदत है)
अब आप ही बताओ,( सीरियसली ) ये नजर लगने का मामला क्या है? अगर नहीं बताओगे तो - जा!तुझको हमारी नजर लग जाये!

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

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आप सब जागते रहें। अलख निरंजन !



मगर मच्छों का झुण्ड .. जबड़े पूरी तरह फाड़े हुए। नीयत , फ़ौरन   निगल जाने की । उनके बीच फंसा हुआ है एक हिरन। अपने कुछ नवजात शावकों के साथ। मार दिया जाय  या छोड़ दिया जाय!अमूमन यही सीन नजर आ रहा है दिल्ली की आप पार्टी सरकार के सन्दर्भ में।
               सारी  दुनिया की  निगाहें आप पार्टी की  अगुवाई में बन रही दिल्ली की  सरकार   पर टिकी है। सबसे पहली वजह यही कि दिल्ली की नवजात  सरकार  वैकल्पिक मीडिया के जबर्दस्त उत्प्रेरक प्रभाव  और राष्ट्रिय दलों के विरोध से प्रसूत बुनियादी मसलों की  रण - दुंदुभि से गूंजती नव गठित सरकार  है। जितनी अधिक अपेक्षाएं हैं उससे भी ज्यादा दुष्कर इस सरकार  का टिके रहना समझा जा रहा है,यकीनन है भी। सरकार  चलाने का तरीका समझने में इन्हें निश्चित रूप से वक्त लगेगा। दहकता सवाल कानून और साथ दे रही पार्टी कांग्रेस की  नीयत का भी है। संवैधानिक अड़चने भी मुह बाये खड़ी दिखाई देंगी।
                    जनता के सन्दर्भ में कहा जाये तो अगर दिल्ली के लोगो को आप पार्टी के 18 सूत्री घोषणा पत्र  में उल्लिखित वायदों के अमल का तोहफा मिल गया तब यह एक व्यवहारिक- चमत्कार ही होगा। और सिर्फ चमत्कार ही नहीं बल्कि पुख्ता नजीर भी  बन जायेगी कि सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थापन पर सदियों से हो रहे बेतहाशा खर्च में इस तरह से कटौती कर दीगर सरकारें भी क्यों चलायी नहीं जा सकती अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जिनके ( पार्टी और नेता) मुंह में खून लगा हो वे  नेक नीयत कैसे हो सकते हैं ?क्या दीगर राष्ट्रीय दल भी इस प्रयोग(जो  जन हितकारीदिखाई दे रहा है )को किसी भी तरीके से सफल होने देंगे? यह उनके बदनीयत इरादों के अस्तित्व की  रक्षा का प्रश्न होगा।  दिल्ली की सरकार  का यह प्रयोग अगर सफल होता है तब निश्चित रूप से चुनाव में सुधार( सरकारी व्यवस्थापना  व्यय में कटौती  व् अन्य बेहतर विकल्प  लाने की  जिम्मेदारी भारत कि जनता पर नहीं होगी ?इस मसले  पर जन जिहाद और आप पार्टी की  सरकार  की सफलता के मध्यकाल का अंतराल के बीच-- आप सब जागते रहें। अलख निरंजन !