अनुकाव्य पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
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मैं खिड़की हूँ …… मैं खिड़की हूँ …… दोनों और निहारती हूँ कोई बंद कर लेता है जब सोचती हूँ उनके बारे में जो होते हैं कमरे के भीतरपर ठीक उसी वक्त फीडबैकमिलता है मुझे दुनिया केविहंगम,विकल -अविकलविकास औ… Read More
गुनगुनाती है कुदरत वर्षा गान - ( INCANTATION FOR RAINS- By -ANONYMOUS) हरे तीर चीरते हैं धरती का सीना और बढ़ते हैं स्याह बादलों की ओर टपकती है जल बूँद… Read More
ख़त्म कर दो कचरा! ====================== जितना असह्य है कचरा भीतर घर के और पड़ा दीवार,अहातों के बाहर इर्द-गिर्द, गलियों ,सड़कों ,नुक्कड़ ,चौराहों गाँव ,शहर सड़ांध फैलाता&nbs… Read More
अनुकाव्य पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। … Read More
3:14 am
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