बुधवार, 29 सितंबर 2010

छः दिसंबर १९९२ के बाद से .....

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,छः दिसंबर १९९२ के बाद से .....

,छः दिसंबर १९९२  के बाद से .....
तीस सितम्बर   को अयोध्या मामले प़र कोर्ट का फैसला है. इस सन्दर्भ में मुझे वरिष्ठ पत्रकार व् सकाल समाचार  पत्र  के न्यूज़ नेट वर्क संपादक उत्तम काम्बले जी की दो कविताये आपको दिखने का मन कर रहा है. इसे मैंने मराठी से हिंदी में अनुदित किया है.
        १. अजान और आरती
अजान , घंटा और आरती सुनकर
पहले जागते थे इंसान
अब जागते है , दंगे और फसाद
और इबादतगाहो को भी कराते है
अनवरत रक्तस्नान ... रक्तस्नान


                 २ .  छः दिसंबर के बाद से

छः दिसंबर के बाद से ,धर्म्स्थलियों   में आते जाते
आँखे मीच लेते है कबूतर.
   की छत प़र बैठे गिद्ध
कही आँखे न फोड़ दे इसलिए.
धर्मस्थलियो की और जाने वाले , सभी रास्तो पर दिखाई देते है शस्त्र
कदम कदम पर बबैठे है शस्त्रधारी , अपनी संगीनों को तानकर.
कबूतरों के ७/१२  पर,बरसो तक थी  धर्म्स्थलिया
अब आततायी गिद्धों ने, नकार दी ७ / १२ की डायरी
क़ानून कायदा कहते कहते
अब भी कुछ कबूतर
जाते है धर्मस्थलियो की ओर
लेकिन जब गूंजते है धमाके,उड़कर लौट आ जाते है वे.....
 परसों से ही धर्मस्थलियो पर , शुरू हो गया है उत्खनन
वांछित इतिहास की तलाश करने
और घोंटा जा रहा है वर्तमान का गला ....
 उत्खनन में मिलने लगी , अस्थियाँ  और खोपड़ियाँ
जमींदोज संरचनाओं के खंडहर
और इतिहास बन चुके शिलाखंड....
 अब उन शिलाखंडों को भी , सिखा रहे है धर्म की ऋचाएं
शिलाखंड करने लगे महा अजान , और गाने लगे महा आरती
इस अभीष्ट से शुरू हो गए हैं , उनपर प्रहार... प्रहार
कभी अल्लाह के नाम पर, कभी ईश्वर के नाम पर.
अब इतिहास बन चुके ,उन शिलाखंडों के युग में
आरती के लिए सख्ती नहीं थी ,नहीं. थी सकती अजान के लिए.
 किस तरह समझें नए कानून , शिलाखंडों के समक्ष है पेंच
खोपड़ियों का बनाकर बुरादा ,तलाश करने जाती और धर्म
शुरू हो गए है वैज्ञानिक प्रयोग
अब कैसे बताई जय  इन्हें जात ,खोपड़ियाँ है उलझन में दिन- रात ....
  
इतिहास की सुरंगों में दफन , तमस फ़ैल  रहा है चहुँ ओर
और आँखे खुली रखने के बाद भी
नहीं दिखाई देती हैं धर्मस्थलियाँ!
देवताओं की भी कैफियत है यहाँ!
  
हर बरस आता है ६  दिसंबर
सुरंगों के धमाकों की अनुगूंज
लेकर आता है ६  दिसंबर
 किसी को भी कुछ नहीं पताकहाँ पर फिर शुरू होगा , नए सिरे से उत्खनन!
शायद कबूतरों के कलेजे में!
और इंसानियत की कोख में!

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

,छः दिसंबर १९९२ के बाद से .....

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,छः दिसंबर १९९२  के बाद से .....
तीस सितम्बर यानी बुधवार को अयोध्या मामले प़र कोर्ट का फैसला है. इस सन्दर्भ में मुझे वरिष्ठ पत्रकार व् सकाल समाचार  पत्र  के न्यूज़ नेट वर्क संपादक उत्तम काम्बले जी की दो कविताये आपको दिखने का मन कर रहा है. इसे मैंने मराठी से हिंदी में अनुदित किया है.
        १. अजान और आरती
अजान , घंटा और आरती सुनकर
पहले जागते थे इंसान
अब जागते है , दंगे और फसाद
और इबादतगाहो को भी कराते है
अनवरत रक्तस्नान ... रक्तस्नान


                 २ .  छः दिसंबर के बाद से

छः दिसंबर के बाद से ,धर्म्स्थलियों   में आते जाते
आँखे मीच लेते है कबूतर.
   की छत प़र बैठे गिद्ध
कही आँखे न फोड़ दे इसलिए.
धर्मस्थलियो की और जाने वाले , सभी रास्तो पर दिखाई देते है शस्त्र
कदम कदम पर बबैठे है शस्त्रधारी , अपनी संगीनों को तानकर.
कबूतरों के ७/१२  पर,बरसो तक थी  धर्म्स्थलिया
अब आततायी गिद्धों ने, नकार दी ७ / १२ की डायरी
क़ानून कायदा कहते कहते
अब भी कुछ कबूतर
जाते है धर्मस्थलियो की ओर
लेकिन जब गूंजते है धमाके,उड़कर लौट आ जाते है वे.....
 परसों से ही धर्मस्थलियो पर , शुरू हो गया है उत्खनन
वांछित इतिहास की तलाश करने
और घोंटा जा रहा है वर्तमान का गला ....
 उत्खनन में मिलने लगी , अस्थियाँ  और खोपड़ियाँ
जमींदोज संरचनाओं के खंडहर
और इतिहास बन चुके शिलाखंड....
 अब उन शिलाखंडों को भी , सिखा रहे है धर्म की ऋचाएं
शिलाखंड करने लगे महा अजान , और गाने लगे महा आरती
इस अभीष्ट से शुरू हो गए हैं , उनपर प्रहार... प्रहार
कभी अल्लाह के नाम पर, कभी ईश्वर के नाम पर.
अब इतिहास बन चुके ,उन शिलाखंडों के युग में
आरती के लिए सख्ती नहीं थी ,नहीं. थी सकती अजान के लिए.
 किस तरह समझें नए कानून , शिलाखंडों के समक्ष है पेंच
खोपड़ियों का बनाकर बुरादा ,तलाश करने जाती और धर्म
शुरू हो गए है वैज्ञानिक प्रयोग
अब कैसे बताई जय  इन्हें जात ,खोपड़ियाँ है उलझन में दिन- रात ....
  
इतिहास की सुरंगों में दफन , तमस फ़ैल  रहा है चहुँ ओर
और आँखे खुली रखने के बाद भी
नहीं दिखाई देती हैं धर्मस्थलियाँ!
देवताओं की भी कैफियत है यहाँ!
  
हर बरस आता है ६  दिसंबर
सुरंगों के धमाकों की अनुगूंज
लेकर आता है ६  दिसंबर
 किसी को भी कुछ नहीं पताकहाँ पर फिर शुरू होगा , नए सिरे से उत्खनन!
शायद कबूतरों के कलेजे में!
और इंसानियत की कोख में!

सोमवार, 27 सितंबर 2010

अयोध्या में राम -रहीम अस्पताल ....

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.आज के दोर  में उम्मीद , होश में तो हो
यार अन्धो से काजल नहीं माँगा करते
दोस्तों... अयोध्या के उबाऊ हो चुके मसले पर कल से अदालती सुनवाई शुरू हो रही है .कोर्ट के फैसले पर लोगो की नजरे कम , जनता की अदालत राजनेताओ की सोच के फ्लेश्बेक  के मद्देनजर दिल की अदालत के फैसले को अधिक तरजीह देती दिखाई देती है. उसे सियासत की नूर कुश्तियो के सभी एपिसोड्स मालूम है.बतरस के दोरान लोग कहा करते है की काश अयोध्या में  मंदिर मस्जिद की बजे राम - रहीम अस्पताल खोल दिया जाता. कम से कम इंसानों का बेहतर इलाज तो  हो पाता.इबादत के लिए तो .घर भी काफी है. पर गरीबो के लिए अस्पताल पर्याप्त नहीं
.          हिन्दू मंदिर में, मुसलमान मस्जिद में,ईसाई चर्च में सिख गुरूद्वारे में जाते है.खेल का मैदान ही इसी जगह है जहा पर सभी धर्मियों का एक ही मजहब होता है, खिलाडी.कुछ नहीं तो इंटर नेशनल     स्टेडियम  ही बनवा दे.नेता लोग एसा कभी नहीं करेंगे.  बांटो और राज करो की नीति बदस्तूर जारी है  अयोद्य का मसला हो या नक्सल वाद गरीबी मिटाओ हो या भ्रष्टाचार , जब हमारे रहबर नेताओ की कोम ही इसी है की
        क्या रहबरों ने हालत मुल्क की बना दी अपनी ख़ुशी की खातिर सब की ख़ुशी मिटा दी.  दरअसल लोग भी आजकल स्पिरिचु अलिस्म और धर्म में फर्क समझना नहीं चाहते या फिर समझकर भी पाखंड का मुखोटा ओढ़े रहना चाहते है,.मुझे लगता है की यह मसला जल्द नहीं सुलझेगा. मै निश्चित तोर पर आशावादी हु लेकिन .मुझे पीड़ित मानवता,की सेवा में धर्म और प्रकृति में इश्वर दिखाई देता है.लिहाजा मंदिर - मस्जिद मुद्दे के झमेले से दूर लगता है के -मंदिर और मस्जिद यहाँ से है बहुत दूर,चलो किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये. आज इतना ही . कल मिलेंगे. शुभ रात्रि.. शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिये.

रविवार, 26 सितंबर 2010

एक चेहरे पे कई चेहरे लेते है लोग

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" शेख चिल्ली कही के ... तेरी ओकात क्या है?अगर तुझमे इतनी ही हिम्मत होती तब खुद को छिपा कर मुझे काहे ओढ़ लेता !"" देख बकवास मत कर... बेगैरत होंगे तुझे ओढने वाले ... मै नहीं फटकता तेरे पास जरा भी. भला किसको नहीं मालूम के अगर किसी ने तुझे नोच लिया तब सब कुछ उजागर हो जायेगा.... दूध का दूध और पानी का पानी...."
चेहरे और मुखोटे के बीच अंतर द्वन्द चल रहा था.दोनों ही एक दुसरे को हीचा दिखने पर तुले हुए थे.मुखोटा अपने बहुमत की वजह से दम्भोक्ति कर रहा था और चेहरा मायूसी के सदमे से कुछ पल के लिए पहले मुरझाता फिर अपनी देह के अंतर ताप से ओजस्वी बनकर प्रखर हो उठता.
" मुझे नहीं, .. शर्म तो तुझे आणि चाहिए, यह तो मेरी जिंदगी की व्यावहारिक मजबूरी है जो मुझे तेरा साथ लेना पद रहा है.तू तो सिर्फ वक्त की जरूरत है- यूज एंड थ्रो ! मेरा पारदर्शी पण काल जाई  है, शाश्वत!  तमतमाया चेहरा पूरे तीखेपन परंतू सोजन्यता से मुखोटे पर वक् प्रहार कर रहा था.
                      यकायक दोस्ती का दावा करने वाली एक बड़ी मछली बड़ा सा मुह खोलकर छोटी मछली को निगल जाती है.उसे कोई मोका है नहीं मिलता दोस्त- दुश्मन का मुखोटा परखने का.बाकी कुछ मछलिया दरी सहमी सी एक कोने में बाते करने लग जाती है . घर में रखे शीशे के मछली घर से निगाहे हटाकर पल भर के लिए आँखे मूंदने पर सारी दुनिया का रंगमंच जिंदगी  की शक्ल में सामने उभरता है.
  " एक चहेरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग"
चेहरे नहीं शायद मुखोटे कहना अधिक सटीक होगा.इस काल खंड का यह क्रानिक फिनामिना लग रहा है . अपनी जरूरतों के हिसाब से चेहरे पर मुखोटा फिट कर लो.हर बेईमान के लिए इमानदार का, पापी के लिए धर्मत्त्मा का,सियार के लिए शेर का मुखोटा या खाल तैयार है.ओढने या ओढाने वाले दोनो किस्म के लोग  है लेकिन 
                         सचाई छूप नहीं बनवात के उसूलो से ,के खुश्बू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलो से.
मुखोटो की बाजारू दुनिया  में परफ्यूम छिडके कागज के फूलो से सुगंध काफूर होने में देर नहीं लगती.ठीक उसी तरह्बनावत के उसूल भी इसे उजागर होते है जैसे पानी में किया गया पाखाना .पर अहि चेहरे और मुखोटो का संघर्ष चल रहा है.
आज का दिन मेरा है ... गरजकर मुखोटा डरा रहा है चेहरे और चेहरों को... मुखोटो के साथ साथ रहकर कुछ इंसान अपना चेहरा तक भूल गए है."
         " कल मेरा सच जब सामने आएगा जब  मै जगमगाने लगूंगा... चेहरा यह सोचकर मायूसी पर काबू पाने की कोशिश करता है "" घमंडी मुखोटो की सल्तनत अपनी छद्म छवि की आतिश बाजियों परा इतरा रही है " चेहरों का कुनबा अपनी पीड़ा छिपाकर " वो सुबह  कभी तो आएगी " यही सोचकर तमाम लांछन सहकर भी ." ईश्वरीय न्याय के प्रति आश्वस्त है.
चेहरों का सच और मुखोटो के फरेब को समझकर अनदेखा करने वाले इस बात को जान ले की, सच्चाइया दबी कहा है झूठ से  जनाब  , कागज़ की नाव कहिये समंदर में कब चली?

दुनिया के समंदर में भी अपनी- अपनी इमेज या छवि को लेकर भी चेहरों के कुनबे और मुखोटो की सल्तनत में छिड़ी है जंग.घाट प्रतिघात के अनेक मोके और यलगार के दृश्य जिन्दागे के केनवास पर रोजाना देख रहे है हम लोग.छवियो को बनाने- बिगाड़ने , धवल और मलिन करने के सायास कर्मकांड दैनन्दिनी के जीवन चलचित्र का अनिवार्य हिस्सा बन चुके है.
     बहरहाल, चेहरे और मुखोटो के बीच जारी है  अनथक  अंतर द्वन्द और इस महासमर के रन बाकुरे है आप और हम सब . सवाल इस बात का है की किसके लिए कब, कौन ,कहाँ ,कैसे , और किस तरह का आइना दिखता है.और आइना देखने और सिखाने के बाद चेहरों और मुखोटो के पवित्रीकरण की प्रक्रिया किस तरह शुरू होती है.
        कुनबा और सल्तनत ... निजाम तो दोनों के एक ही है.चेहरे एउर मुखोटे दोनों ही जिंदगी की सच्चाई है. आईने में अपना चेहरा देखना आज की जरूरत है .फिर भी,... कब जाओगे आईने के सामने?शायद यह बात मन के किसी कोने से गूंजेगी सभी के भीतर
        जाने कैसी उंगलिया है, जाने क्या अंदाज है
        तुमने पत्तो को छुआ था , जड़ हिलाकर फेक दी 
  सच चाईया


चंदुलाल चंद्राकर स्मृति फेलोशिप

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चंदुलाल चंद्राकर स्मृति फेलोशिप के सम्बन्ध में छत्तीसगढ़ सरकार का निर्णय समझ से परे है. सरकार अब खुद तय करेगी के किन पत्रकारों को पुरस्कार  दिया जाना है.दलील यह डी गई है के फेलोशिप प्राप्त कुछ पत्रकारों ने निर्धारित विषयो पर पुस्तक लिखी ही नहीं.आखिर ऐसे पत्रकारों को फेलोशिप डी क्यों गयी? अगर डी  तो मोनिटरिंग क्यों नहीं की गयी,  या इसकी जिम्मेदारी किसकी थी. अब एक बार फिर  यह फेलोशिप उन कठपुतलियो को मिलने का अंदेशा है जो सत्ता के गलियारे में पहुच रखते है विकास पत्रकारिता सर्वोपरि है पर राग जय जय वनती के अलावा सरोकार शुदा पत्रकारिता का धयेय  सर्वुपरी होना चाहिए ऐसा मुझे लगता है. छत्तीसगढ़ सरकार को पुरस्कार के सन्दर्भ में इस पहलु पर भी सोचना चाहिए.

कन्हैया लाल नंदन जी को शब्दांजलि

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कन्हैया लाल नंदन जी का निधन पढने लिखने वालो  के लिए अपूरणीय क्षति है.हमारी पीढ़ी धर्मयुग, पराग , सारिका, दिनमान आदि पढ़कर युवा और परिपक्व हुई है. मुझे लगता  है की लेखको का कुनबा इस बात पर शिद्दत से सोचे की बच्चो और किशोरों के लिए कैसा और क्या लिखा जाना चाहिए.मौजूदा दौर के उनके तनाव ,महत्वाकांक्षाए ,जिजीविषा और जीवन शैली का प्रतिबिम्ब बन सके , ऐसा साहित्य रचना ही नंदन जी को सच्ची लेखकीय श्रद्धांजलि होगी. प्रकाशकों से भी इस दिशा में मुहीम चलने को साग्रह अनुरोध किया जाना चाहिए .नंदन जी की स्मृति में समर्पण  अंक भी निकले जाने चाहिए. मै उन्हें अपनी और से  शब्दांजलि  अर्पित करता हु.

शनिवार, 25 सितंबर 2010

दिवाली से पहले दिवाली

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छत्तीसगढ़ की रमण सरकार ने कर्मचारियों में २०० करोड़ का महगाई भत्ता बाटने का एलान कर दिवाली से पहले दिवाली का माहोल बना दिया.कोटवारो का मानदेय बढ़ने से उनमे भी ख़ुशी का संचार है.इधर कामन वेल्थ खेल से बाहर हुई प्रीती बंछोर ने अपनी निकासी को पक्ष पात करार दिया है.आखिर इसकी जांच कौन करेगा की सच क्या है?वैसे तो राष्ट्र मंडल खेल प्रथम ग्रासे   मक्षिका पात बन चुके है.भटगांव चुनाव की वजह से सियासी गलियारे गरम है. दोनों ही पार्टिया अपनी ढपली अपना राग अलापने लग गयी है.मंत्रीजी अमर अग्रवाल भी तीर्थाटन पर निकल चुके है  शाययद मनोती लेकर! रायपुर से अच्छी खबर मिली थी की सड़क यातायात में बाधक बने धर्मस्थालियो को हटाने जिला प्रशासन ने कमर कस ली है.लम्बे समय से इस तरह की पहल चलाई जाती रही है . लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति  न होने तथा नागरिको के असहयोग से भी उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.अपने बिलासपुर में भी चाहिए की ऐसी मुहीम व्यापक स्तर पर चले.यातायात ठीक करने जन सहयोग जरूरी है.ख़ास तौर पर प्रताप टकिस चोक से गाँधी चोक तक अतिक्रमण विरोधी मुहीम चलनी चाहिए. शहर में यातायात के लिए बध्हक धर्मस्थालिया चिन्हांकित कर शीर्ष कमिटी की निगरानी में यह कार्य अंजाम दे.आज बस इतना ही. कल फिर मिलेंगे.  शब्बा खैर... शुभ रात्रि... अपना ख्याल रखिये  

सेवा भारती संस्था कार्यक्रम

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सेवा भारती संस्था ने मुझे विगत वर्ष युवाओ के  एक कार्यक्रम में मुझे बुलाया था. उस अवसर का फोटो.

ललित कला अकादमी दिल्ली ने कला भारती का प्रकाशन किया

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ललित कला   अकादमी  दिल्ली ने कला भारती का प्रकाशन किया है .भारत के श्रेष्ठ चित्रकारों  यानी पेंटरो  पर लिखे गए लेखो पर आधारित है यह पुस्तक .पियूष दैया के संपादकत्व में छपे दोनों खंड अत्यंत संग्रहणीय है.डाक्टर ज्योतिष जोशी तथा पियूष दैया बधाई के पात्र है.खंड १ के १०७ वे तथा खंड २ के १५५ वे पेज पर मेरे अनुवाद भी प्रकाशित हुए है. पेंटिंग तथा चित्रकारी  को जान्ने व समझने वालो को कला भारती पढनी चाहिए.

बुधवार, 22 सितंबर 2010

Aaila ….! Hot seat par ganapati bappa….!

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Aaila ….! Hot seat par ganapati bappa….!
Chakashaundh bhare “ Kaun banega karodpati kwe flor par ekbaragi sukhkart a – dukhhaarta bhagwan sriganesh ko dekhkar karyakram ke prastutkarta mahanayak amitabh bacchan khud bhauchak the.Buddhi ke devta ko apnea age paakar unhe anterman se pranam kiya aur pal bhar me faisla lekar darshako ki or mukhatib ho gaye.Aam taur par sparsha me shamil logo ko pasina chhutta tha pa is baar baat kuchh alag thi.
“ Aaiye aap aur ham milkar khelte hai kaun banega karodpati …..” raubdar khanakati aawaz gunji big b ki aur hot seat par virajmaan ho gaye bhgvan.Mahanayak se jab raha na gaya tab apni chumbakiy aankho ki gahrai se jhankar pooch hi liya “ Siddhi vinayak! Aap to maya moh se pare hai, is dhan rashi ka kya karenge?” Lambodar bole,”Mujhe awashyakta paiso ki saare dukhi jano ki charity ke liye hogi.”
“To bhagvan … bees hazar ki rashi ke liye pahla sawal ye raha aapke samne… aur shuru ho gaya sawalo ka silsila.Aakhir hot seat par bhagvan the .. yaani vi ai pi ummidwar, so sawalo ki shuruat bees hazar ke pahle prashn se honi tay thi.Aaudiens ki taliya … bhav vibhor darshako ke utavlepan ke beech hi big b batate rahe ki “ kuli “ ki shooting ke dauran jab ve zindagi aur maut se jhoojh rahe the tab unhone kitna yaad kiya tha bhagvan ko! Khair… sawal hote rahe- berojgari, naitik mulyo ke patan , aabadi visfot ,insane duniya ke dukho ka hal, astik- nastik, pakhand aur baabaavad , chhadmadharm nirpekshta , aur bhi kai sawal. Buddhi ke devta ne saare sawalo ke jawab tapaak- tapaak se diye
( antaryaami jo thahre)!
Chek jamaa hote gaye aur fir gunji big bi kisammohak aawaz” aakhiri sawal… bhagwan, jo aapko dilayega ek karod ki rashi… ham chahte hai yah rashi peedit manvata ki seva me kaam aye.darshak harshatirek se gadgad hokar sri ganeshay namah aur kuchh to aarti karne ke mood me aa gaye the.Ek naujavan joro s jaighosh kar utha,” Ganpati bappa morya!”
Kamputer screen par bhagvan ! sawal ye raha aapke saamne- “ Dukhi insaano ka uddhar karne sabse sahi raast ain chharo me se kaun saa hai- a .Netao ko eemandaar banaaye bi. Swarg se devtao ko bulaya jaye si. Insaano ke liye moral sainsa ka kamlpalsari kors di. Parlay ke jariye maanav samuday ko sabak sikhaye.aapka samay shuru hota hai aab….!
Ghadi ki suiyo ki tik tik ke saath hi big bi soch rahe the “ sunami,Katrina ,bhookamp, baadh jwaal mukhi… ye sab kya mini parlay nahi hai?! Aur bhi pralay ki jaroorat hai kya?Bhagvaan ganesh ko soond khujate vichaarmagna dekhkar big bi me chhipa ankar shatiraana andaz me bol utha ,”Aap chahe to laif lain istemal kar sakte hai… fifty fifty, audiens pol. Flip or fon a friend.
“Amitabh mai srishtikarta brahma se baat karna chaahunga”bhagvaan sriganesh ne fon e friend ka option istemal karna chhah.” Brahmaa ji,kaun banega karodpati program se mai amitabh bacchan bol raha hu.brahma ji ne tatkaal aashirvad diya “ aayushyaman bhav”” srishtikarta !aaj hot seat par swayam mangalmoorti viraajman hai.we ek asawal ka jawab janna chahte hai aapse.Aapka sahi jawaab unhe dilayega do karod rupaye jo dukhi jano ka uddhar karne we charity me pradaan karenge.jawab ke liye aapko milenge sirf tees sekand.agli aawaj hogi bhagvan sri ganesh ki aur aapka samay shuru hota hai ab…
Bhagvan se poora sawal sunkar brahma ji ne doorbhashan par hi vighnaharta ke kaan phooke “paarvati sut ! aap bhi kaha phas gaye in insaaano ke mayajal me ? acche bahle bhagvan ke g red me ho ,suhata nahi kya ? bhool gaye… devtao ko jab shraap diya jaata hai tab unhe manav yoni me rahne ka dand prithvi lok par bhugtana padta hai?Tatkaal hi buddhidaata ka matha thanka,” Baap re !!!! ghor kaliyug me insaan ki jindagi jeene ka prarabdh! Dekhte nahimanokamnao ki tej aanch se devta bhi kaise bhage bhage phir rahe hai? Logo ne yahi sanajh rakha hai ki paap karo, phir daan punya ke bahaane chadhaavaa daalkar dharmatma hone ka sartifiket le lo.
Amitabh ki kamputer screen par bhagvan sri ganesh ka jawab ubhar chukka tha jise dekhkar we do karod ka chek sain karne lage the.brahma ji ka gurumantra pate hi ekaek bhagvan sriganesh anterdhan ho gaye.sar uthakar big bi ne jab dekha hot seat khali thi.Isi beech fastest finger first spardha ke pratibhaagiyo ka faisla bhi ho chukka tha.sawal ka jawab sabse pahle bajar jajaakar dene wal a jab uthkar aaya tab big bi ne dekha veena ki jhankaar ke saath hi aawaj gunjane lagti hai.. narayan… narayan…!.isse pahle ki or kooch kar gaye.
Audiens me baithe baithe akhbaarnavis ne saaf mahsoos kiya Mumbai ki baadh se mahangi moortiya dekhkar bhagvan sriganesh ka much kamala am aadmi ki tarah murjah gaya hai.yaha tak ki unka vahan mooshak raaj bhi besharmii se donation ki maang karate falte foolte koching sentre aur vidyarthiyo par choohe ki tarah prayog kiye jaane se dukhi tha.Big bi kebi si ke episod ki antim aupchariktaye poori kar rahe the aur akhbaarnavis soch raha tha “ agar budhhidata se kaha jaata ki saari duniya ka chakkar laga aao jai ski pauranik kathao me ham sabne padha hai , kya bhagvan sriganesh kamputar ka gol chakkar nahi laga lete?
Khair…do karod ka chek big bi ne kampani walo se baat kar mandir trast ko saup diya. Do din baad hi surkhiya akhbaaro me bani ki mandir ke ek trasti ne le liya do karod ke chek ka farzi bhugtaan.darasal us mandir me kuchh baras pahle aabhushano ki bhi chori ho gayi thi aur choro ka pata bhi aakhir tak nahi lag paya tha.farzi bhugtaan lekar us trasti ne kuchh logo ke saath milkar aabhushano ka guptadaan mandir me kar diya tha.
Aur ha… bhagvan sriganesh ji ne jo do karod ki rashi ke liye poochhe gaye big bi ke sawal ka jo jawab diya wah ankar ke kamputer me is tarah lok ho gaya ki screen par laana mushkil hai.esi stithi me agar jawab aapke dimag ki kamputer screen par kabhi ubhare to bataiyega jaroor ….shubh ratir… shabba kaair… end pleej … pleej… pleej… do do take very good keyaar of yourself…….
ki do laakh ka inam jeetne wale hot seat k eagle pratibhagi ka parichay we karate bazaar dab gaya., yaani sho ka samay samapt. Aur narayan… narayan.. ki awaj wale pratibhagi do lakh ki rashi lekar anjaan gantavya ki or kooch kar gaye.
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Khair… do karod ka chek big bi ne kampani walo se baat kar mandir trust ko saup diya. Do din baad hi surkhiya akhbaaro me bani thi ki mandir k eek trusti ne ne le liya do karod ke chek ka farji bhugtaan.darasalus mandir me kuchh baras pahle aabhushano ki chori ho gayi thi aur akhir tak choro ka pata nahi lag paaya tha.farji bhugtaan lekar us trasti ne kuchh logo ke saath milkar aabhushano ka guptadaan mandir me kar diya tha.
Aur ha…bhagvaan sriganesh ji ne jo do kaod ki rashi ke liye poochhe gaye big bi ke sawal ka jo jawab diya wah ankar ke kamputer me is tarah lok ho gaya ki screen par laana mushkil hai.eisi sthiti me agar aapke dimag ki kamputer screen par kabhi ubhare to bataiyega jaroor…… shubh ratri… shabba khair…. End pleej…pleej… pleej…do tek very gud keyar of yourself……

HIndi Divas Par.........

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namaste

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

HIndi Divas Par.........

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मंच से मंच तक

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दोस्तों , हिंदी दिवस पर कोरबा में बालको कंपनी के आयोजन में गया था.मेरे एक बहुत पुराने साथी से हिंदी ने मुलाकात करा दी.उन दिनों मै युगधर्म रायपुर में युवा मंच स्तम्भ देखा करता था। । रमेश शर्मा जो आजकल सहारा के छत्तीसगढ़ ब्यूरो चीएफ़ हीमेरा भरपूर साथ दिया करते थे.दो दशक से अधिक पुरनी यादे तजा हो गई.रमेश ने टिपण्णी भी की,हिंदी ने हमें मंच से मंच तक साथ ला दिया।
सुप्रीम कोर्ट में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण का दायर हलफनामा सोचने को विवश करता है.जुदिशिअरी को इस बारे में पदर्शी होना चाहिए ताकि उसपर लांछन न लगे.उधर केन्द्रीय कर्मी भत्ता बढ़ने से खुश है.बाकि कर्मचारी भी पीऍफ़ का ब्याज बढ़ने पर बल्ले बल्ले कर रहे है । आज फिलहाल इतना ही। कल मुलाकात होगी।। शुभ रात्रि शब्बा खैर