जंजीरें तोड़े बगैर आजादी की उड़ान कैसे?
एक बार एक कछुआ परिवार सहित पिकनिक मनाने गया.अब कछुए के बारे में नौ दिन चले अढाई कोस वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी.तैयारी करने में ही उन्हें सात बरस का समय लग गया.आखिरकार वह कछुआ परिवार कोई अच्छी जगह तलाश करने घर से निकल पड़ा.अपने सफ़र के दुसरे साल उन्हें एक अच्छा ठिकाना मिल गया.अमूमन छमाही तक कछुआ परिवार जगह की साफ़ सफाई करता रहा ।उन्होंने अपनी पिकनिक वाली टोकरी खोली और तैयारी करने लगे.
एकाएक उन्हें याद आया," अरे! हमलोग तो नमक लाना भूल ही गए!"नमक के बगैर खाने के स्वाद का कोई मतलब ही नहीं"सब लोग इस बात पर सहमत हो गए.लम्बी बहस के बाद सबसे छोटे कछुए को घर जाकर नमक लाने के लियें चुना गया.हलाकि छोटा कछुआ धीमे चलने वाले सभी कछुओं में सबसे तेज था फिर भी ना -नुकुर कर रोते हुए अपनी ही खोल में बैठकर जी चुराने लगा.एक शर्त पर छोटा कछुआ घर जाकर नमक लाने को तैयार हुआ.उसने शर्त रखी ," देखिये!. मैं घर जाकर नमक लाने को तैयार हूँ लेकिन मेरे घर से लौटने तक कोई खाना नहीं खायेगा." पूरा परिवार इस बात पर राजी हो गयौर कुछ ही डरे में छोटा कछुआ घर के रास्ते पर था.
एक-एक कर तीन बरस बीत गए पर छोटा कछुआ नहीं लौटा.फिर पांच बरस ... और छः बरस भी.सातवें बरस भी जब वह नहीं पहुंचा तब बूढा कछुआ अपनी भूख की वजह से खुद को असमर्थ महसूस करने लगा.उसने यह एलान किया,"अब वह भूख सहन नहीं कर पा रह है इसलिए वह खाना शुरू कर रहा है।" इतना कहकर बूढ़े कछुए ने खाने का डिब्बा खोल लिया."
अचानक छोटा कछुआ किसी वृक्ष के पीछे से निकला और चीखकर कहने लगा,"देखा!. मैं जानता था कि आप मेरे लौटने का इन्तेजार नहीं करोगे.अब मैं नमक लाने घर जाऊंगा ही नहीं.
" क्यों दद्दू !कछुए के किस्से का कोई मतलब समझे? "-मैंने उनसे चुहलबाजी करनी चाही." दर असल अखबारनवीस!.." दद्दू ने अपन बोल बचन शुरू किया,"हममें से भी कई लोग कछुए की हैं .कुछ लोग अपना समय यही जानने, सोचने और समझने में बिता देते हैं कि अमुक क्या कर रहा है या फलाना ने ऐसा क्यूं किया?हम अपनी अपेक्षाओं के मुताबिक लोगो से रहने की उम्मीद में वक्त जाया करने लगते हैं.लोग क्या कर रहे हैं यह जानने की पंचायत में इतना डूब जाते हैं कि हमें क्या करना है इसका होश नहीं रहता और हम खुद कुछ नहीं करते.।
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15 अगस्त 1947
एक वो दिन था जब भारत आजाद हुआ था.
आज है-15 अगस्त 2012
कभी सोचा - आजादी की परिभाषा और मायने क्या थे और क्या हो गए।.. और आने वाले समय में क्या हो जायेंगे!
कभी सोचा --- अपनी डिक्शनरी में स्वतन्त्रता का मतलब निरंकुशता किसने और क्यों रखा?
कभी सोचा --- जब अंग्रेज थे तब अंग्रेजों के होने के बावजूद हमारी सोच आजाद थी-क्यों ...और आज?क्या हम गुलाम हैं? अगर हाँ ..तब आजादी का कैसा जश्न मना रहे हैं ?
कभी सोचा -- Man is born free and every where he is in chains ...और ये जंजीरें अपने ही बुने मकडजाल की हैं?
कभी सोचा -- - हर किसी के इर्द-गिर्द उसकी अपनी बनायीं हुई जंजीरें हैं तब उन जंजीरों को तोड़े बगैर आजादी की उड़ान कैसे उड़ सकेंगे?मजबूत दिनों से अधिक जरूरी है गुलामी की जंजीरों से आजाद होना.
कभी यह सोचा --- यह गुलामी किसी इंसान की नहीं वरन यह है- अपने ही उलझाव ... भटकाव...स्वार्थ.. समय की ढाल पर विरोधाभासी और विपरीत सोच के टकराव की!
स्वतंत्रता दिवस पर आइये.... सोचें....इंसान की भीतरी गुलामी और आजादी की रौशनी के बीच का असली फर्क! एक बार जरा सोचें !!!
1:46 pm
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