फिर मत कहना माइकल दारु पी के दंगा करता है
O सड़क के किनारे चित्त बेसुध पड़ा इंसान ... नशे में बकबक जारी है.एकाएक एक कुत्ता आया मुंह चाट कर अपनी टांग उठाई और....
O चखना -चेपटी लेकर दारू भट्टी के पास पी और छोटी सी बात पर लड़ पड़े दो दोस्त.गुस्से में आकर निकाली गुप्ती और भोंक दिया.दुसरे दिन सुबह तक एक दोस्त कह चुका था दुनिया को अलविदा.
O दारू के चक्कर में कर्ज बढ़ता गया ... घर का सामान बेचा और टुन्न होकर रेल क्रासिंग के सामने अपनी समस्या का हल ढूँढा... नतीजा एक आदमी , दो टुकड़े बेजान.बदतमीजी, झगडे टंटे, नशे में कलंकित करने वालिवार्दातें गाँव से लेकर शहरों की क्राइम फ़ाइल बन चुकी है.
थू है ऐसी फैशन और अन्धानुकरण पर जिसकी शुरुआत मौज-मस्ती से होकर सर्वनाश में जाकर ख़त्म हो.बहाने बनाने में उस्तादी देखिये-ख़ुशी है तो पी दारू और गमभी है तो पी!!!सुरूर में तो मसलों से मुहं छिपा लिया,उतरने के बाद जस के तस!
नशा शराब में होता तो नाचती बोतल!
फिल्म वालों का दिमाग दिवालिया हो गया था जो ऐसा गीत लिखा.न्यू ईयर पार्टी हो या दीगर दारू पीने कोईच मांगता.माता -पिता भी (स्टेट्स सिम्बल के जूनून में ओके कह देते है. शराबखोरी पूरी बेशर्मी से स्टेट्स सिम्बल बन चुकी है.
हुई महँगी बहुत शराब तो थोड़ी-थोड़ी पिया करो...ला पिला दे साक़िया...शराब चीज ही ऐसी है...सुनकर महफिले सजती है.जिगर छलनी हो गया... लीवर सिरोसिस ,डीलीरियम , अल्कोहलिक टेंडेंसी का शिकार हो गए .घर बाहर वाले सब परेशां लेकिन छूटती नहीं है काफ़िर मुहं से लगी हुई पहले तो तुमने शराब पी, फिर उसने जिंदगी के बचे हुए लम्हे पीना शुरू किया और बीमार होकर समय से पहले खर्च हो गए.
कईयों को दारू पीना छोड़ते देखा है.कुछ ने बर्बादी के कगार पर तो कईयों ने बर्बाद होने के बाद.जो भी हो शराब छोडकर जो इंसान बन गए उन्हें जोरदार सलाम और उन लोगों के लिए सद्बुद्धि की दुआएं जो सांझ ढलते ही यह कहते है की-
मयखाने से शराब,साकी से जाम से
अपनी तो जिंदगी शुरू होती है शाम से
उस रोज दो रिक्शा वाले टुन्नी में बकर कर रहे थे ," मोर बेटा के तबियत खराब हे,दवा-दारू के इंतजाम करे के हे" एक साथ दावा-दारू की जोड़ी कितनी अजीब लगती है? सच है की दवा की तरह दारू फायदा करती है लेकिन कई लोग तो आजकल दवा को दारू की जगह इस्तेमाल कर रहे हैं.अंगूर की बेटी हसीं तो है पर उससे मस्ती करना महंगा पड़ता है.प्यालों के बेताब बादशाह कुछ यूं फरमाते है
पूछिए मयकशों से लुत्फे शराब
यह मजा पाकबाज क्या जानें!
" ठीक है सुरूर नहीं जानते पर इतना जरूर जानते है की शराबखोरी कानून से नहीं रुक सकती. इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए.आदिवासी संस्कृति में शराब पीना या बनाना जायज है इसे स्थायी बनाने के बदले इसके दुष्परिणाम से अवगत कराया जाये.अब प्रशासन को देखिये चाय-पान के ठेले तो जबरिया पुलिसवाले बंद कर देंगे लेकिन दारू दुकानें खुली रहेंगी. सख्ती बरतनी चाहिए.
" कुछ पियोगे! दद्दू को अचानक पूछा तो वे भकुआ गए." दारू नहीं ये काफी की बात है"मैंने कहा तो छेड़खानी के अंदाज में लगे पूछने ,"तुम शौक नहीं करते? कैसे पत्रकार हो यार!" मैंने दद्दू से कहा," दद्दू! नशा तो हम खूब करते है मगर यह नशा है जिन्दगी जीने का नशा... अपनापन ... इंसानियत का.. आँखों का... और मुहब्बत का.हालाकि कालेज के ज़माने में हम भी खूबसूरत चेहरे देखकर कह दिया करते थे-
कभी इन मदभरी आँखों से पिया था एक जाम
आज तलक होश नहीं..होश नहीं..होश नहीं
सोच का गंगाजल अब शराब के खतरों से आगाह करता है.वैसे भी जब जीवन जीने का नशा सवार होता है तब मै आपके हाथ में मदुशाला का यह प्याला देने पर मजबूर हो जाता हूँ-
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है ,जिसके अंदर की ज्वाला
मंदिर मस्जिद ,गिरिजा सब,तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित ,मोमिन ,पादरियों के ,फन्दों को काट चुका
'कर सकती है आज उसी का, स्वागत ये मधुशाला
शायद लिखने का सुरूर कुछ ज्यादा हो गया है इसलिए चलता हूँ अपना ख्याल रखियेगा...
किशोर दिवसे
3:04 am
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