गुरुवार, 16 जून 2011

हम क्यों बने रहते हैं कछुए!!!!

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हम क्यों बने रहते  हैं कछुए!!!!



एक बार एक कछुआ परिवार पिकनिक मनाने गया.अब कछुओं के बारे में नौ दिन चले अढाई कोस वाली कहावत तो आपने  सुनी होगी.तैयारी  करने में ही उन्हें सात बरस का समय लग गया.आखिरकार वह कछुआ परिवार कोई अच्छी जगह तलाशने घर से निकल पड़ा.अपने सफ़र के दूसरे साल उन्हें एक अच्छा ठिकाना मिल गया.अमूमन छमाही तक कछुआ परिवार जगह की साफ़-सफाई करता रहा.उन्होंने अपनी पिकनिक वाली टोकरी खोली और तैयारी करने लगे.
                      एकाएक उन्हें याद आया," अरे हम लोग नमक लाना तो भूल गए.नमक के बगैर खाने के स्वाद का कोई मतलब ही नहीं." सब लोग इस बात पर सहमत हो गए.लम्बी बहस के बाद सबसे छोटे कछुए को घर जाकर नमक लाने के लिए चुना गया.हालाकि छोटा कछुआ धीमे चलने वाले सभी छोटे कछुओं में सबसे तेज था फिर भी वह ना-नुकुर कर रोते हुए अपनी खोल में बैठकर जी चुराने लगा.वह किसी पेड़ के पीछे बैठ कर यही देखता रहा कि परिवार के बाकी सदस्य  क्या करते हैं.
         एक शर्त पर छोटा कछुआ नमक लाने घर जाने को तैयार हुआ.उसने शर्त रखी,"देखिये,, मैं  घर जाकर नमक लाने को तैयार हूँ.लेकिन मेरे घर से लौटने तक कोई खाना नहीं खायेगा."पूरा परिवार इस बात पर राजी हो गया और कुछ ही  देर में छोटा कछुआ घर के रास्ते पर  था....एस परिवार के सभी सदस्य सोचने लगे.
                     एक-एक कर तीन बरस बीत गए पर छोटा कछुआ नहीं लौटा .फिर पांच और छः बरस भी.सातवें बरस जब वह नहीं पहुंचा तब बूढा कछुआ अपनी भूख बर्दाश्त करने में खुद को असमर्थ महसूस करने लगा.उसने यह ऐलान किया,"अब वह भूख सहन  नहीं कर पा रहा है इसलिए वह खाना शुरू करेगा." इतना कहकर बूढ़े कछुए ने खाने का डिब्बा खोल लिया.अचानक छोटा कछुआ किसी वृक्ष के पीछे से निकला और छिपकर  कहने लगा," देखा ! ...देखा!मैं जानता था कि आप मेरे लौटने का इन्तजार नहीं करोगे.अब मैं नमक लाने घर जाऊंगा ही नहीं.
                      "क्यों दद्दू!कछुए के किस्से  का कोई मतलब समझे" मैंने उनसे चुहलबाजी करनी चाही." दरअसल अखबार नवीस!" दद्दू ने अपना बोल-बचन शुरू किया,"हममें से भी कई लोग कछुए की तरह हैं.कुछ लोग अपना समय यही जानने और समझने में बिता देते हैं कि अमुक क्या कर रहा है ...या फलाना ने ऐसा क्यूं  किया!( अमूमन सभी दफ्तरों  में यही हाल हुआ करता है.)
               हम अपनी अपेक्षाओं के मुताबिक लोगों से रहने की उम्मीद में वक्त जाया करने लगते हैं.लोग क्या कर रहे हैं .. या कौन क्या कर रहा है यह जानने की पंचाईत में इतना डूब जाते हैं की हमें क्या करना है ...हमें क्या करना चाहिए...इसका तक होश नहीं रहता . और हम खुद कुछ भी नहीं करते.!
                                                                     किशोर दिवसे.
         

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