न जाने कितने ही सवाल कौंधते रहे जेहन में जब रामलीला मैदान पर बाबा रामदेव का आन्दोलन शुरू हुआ था.तीन और चार जून के दो दिन खासकर मीडिया वालों के लिए वैसे ही थे जैसे किसी स्टूडेंट के लिए सेमेस्टर एग्जाम होती है.आन्दोलन के पहले ही राजनैतिक बयानबाजियों का दौर चला था.भ्रष्टाचार काला धन,लोकपाल विधेयक जैसे गंभीर मुद्दे जिस संजीदगी से राष्ट्रीय स्तर पर जेरे बहस के इशू होने चाहिए थे पोलिटिकल अबोर्शन का शिकार हो गए.
शनिवार की रात पुलिसिया तांडव होने के अमूमन दो दिन पहले ही चर्चा में मेरे हमपेशा साथी इस बात पर भी रजामंद थे की इस आन्दोलन को राजनीतिग्य ऐसी पटकनी देंगे जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी.बेशक मुद्दे बेहद गंभीर है.आम आदमी से लेकर सबसे ऊंची प्रोफाइल का बंदा भी इससे प्रभावित/ भागीदार है.मेरा सोचना है कि आस्था, भ्रष्टाचार ,अश्लीलता ,दहेज़,शराबखोरी और दीगर नशे ,विवाहेतर सम्बन्ध और ऐसे ही अनेक मुद्दे व्यक्ति की मोरालिटी से सीधे जुड़े हुए है.इन्हें कानून के डंडे से डील नहीं किया जा सकता.सामाजिक स्तर पर जिन बुराइयों की जड़ें गहरी होती है उन्हें आहिस्ता -आहिस्ता सेल्फ विल पावर विकसित कर व्यक्तिगत स्तर पर ही दूर करने की शुरुआत समाज में की जा सकती है.
रामलीला मैदान की बात.कई सवाल जेहन में उठते है. 1.क्या यह समुच एपिसोड POLITICAL DEBAUCHERY कहा जा सकता है? 2.भ्रष्टाचार जैसे जन मुद्दों का जनांदोलन या कानून के अलावा तीसरा क्या विकल्प संभव है? 3.मौजूद हुजूम जब किसी अशांति का संकेत नहीं दे रहा था तब किस सियासी इशारे पर पुलिस का दमनचक्र शुरू हुआ ?4.क्या यह विवेकहीनता की परकाष्ठा नहीं है कि गंभीर मुद्दों को POLITICS OF INTERPRETATIONS का शिकार बनाकर पार्टियों के बेशर्म सियासी दंगल का काला अध्याय बना दिया जाये?
किसी भी सामजिक या राजनैतिक लीडर के पीछे भेडिया धसान करने वाले हुजूम को भी यह सोचना होगा कि क्या वे इस्तेमाल की वस्तु हो गए हैं? आशंका इस बात कि भी है कि अन्ना हजारे या बाबा रामदेव भी सियासत बाजों कि शतरंजी बिसात का मोहरा बनने क़ी कगार पर खड़े है या कर दिए जायेंगे!!!राजनैतिक गलियारों में चर्चा इस बात का भी था क़ी भ्रष्टाचार मुद्दे को अपने हाथ में लेने वाली भाजपा ने अन्ना हजारे के समानांतर बाबा रामदेव को खड़ा कर दिया.जनांदोलन के पीछे अगर किसी तरह का मुखौटा है वह बाहर होकर पारदर्शी और तथ्य आधारित जनांदोलन होना चाहिए क्योंकि
चेहरों पर किस कदर मुखौटा हावी है
पहनो एक मुखौटा देखो दिल्ली में
देशभक्त बन गए जेब में देश रखा
ऐसे आप चिरोटा देखो दिल्ली में
जनादोलन करने वाले किसी भी नेता की छिछालेदर करने क़ी बजाये बुद्धिजीवियों के तबके सहित देश के नागरिकों को मसले के समाधान केलिए ACTIVE INTERVENTIONS प्रस्तुत करने चाहिए. लब्बो-लुबाब ये की आम जनता इतनी सतर्क हो जाये कि वह सामाजिक या सियासी लीडर के निहित स्वार्थ को सूंघने का स्व-विवेक विकसित कर ले , मोहरा न तो हुजूम बने न ही कोई सामाजिक अगुवा . PRESIDENTIAL FORM OF GOVT पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस हो सकती है.
बहरहाल ,बाबा रामदेव के एपिसोड के बहाने अन्ना हजारे को नेपथ्य में लाना भी कही कोई चाल तो नहीं? खैर,भ्रष्टाचार व् काला धन जैसे मुद्दे पर जन जागरण जारी रखना ही चाहिए. बाबा रामदेव या अन्ना हजारे क़ी मुहीम पर मंजिल अभी दूर है. कई आंधियां और बौछारें देखनी बाकी है, समय के गर्भ के सवाल का जवाब प्रतीक्षा ही होती है.फिर भी हर सीने में बेहतरी के लिए परिवर्तन लाने विचारों का ज्वालामुखी धधकता ही रहना चाहिए.
11:23 am
फिलहाल तो मिस काल और एसएमएस से ही सब कुछ हो जाने वाला बताया जा रहा है.
जवाब देंहटाएंमौजूद हुजूम जब किसी अशांति का संकेत नहीं दे रहा था तब किस सियासी इशारे पर पुलिस का दमनचक्र शुरू हुआ ?
जवाब देंहटाएंक्या यह विवेकहीनता की परकाष्ठा नहीं है कि गंभीर मुद्दों को POLITICS OF INTERPRETATIONS का शिकार बनाकर पार्टियों के बेशर्म सियासी दंगल का काला अध्याय बना दिया जाये?
बाबा रामदेव का उद्देश्य निसंदेह बहुत अच्छा है। इनका समर्थन किया ही जाना चाहिए।
संविधान में लिखा है क्या कि यदि आप हिन्दू भगवा धारी हैं तो राजनीति नहीं कर सकते?
सिर्फ भ्रष्ट लोग ही आ सकते हैं इस लाइन में?
राईट टू इक्वालिटी का क्या हुआ?
जिन्हें यह देश अपनी मां समान लगता है वे इसे सुफललाम सुजलाम बनाना चाहते हैं और जिसे इस धरती को लूटने की चाह है वे आज बौखलाए घूम रहं हैं।
मित्रों , इस प्रकरण के सहारे देश की यथास्थिति पहचानें …
और कृपया , गंभीरतापूर्वक दायित्व-निर्वहन के प्रयत्न करें …
# मसखरी में बात उड़ा देने का समय नहीं है …
राजेन्द्र स्वर्णकार