एक बार किसी गुरु की मृत्यु हो रही थी .उनके शिष्य ने पूछा,"गुरुजी, यह तो बताइये आपके गुरु कौन थे?"उन्होंने कहा,"बेटा! मेरे एक हजार गुरु थे.अगर मैं नाम गिनाना चाहूं तब कई महीने लग जायेंगेऔर काफी देर हो जाएगी."शिष्य के चेहरे पर सवालिया निशान देखकर गुरु समझ गए.उन्होंने स्वत ही जिज्ञासा शांत करते हुए कहा,"बेटा! मैं अपने तीन गुरुओं के नाम जरूर बताना चाहूँगा.
" मेरा पहला गुरु था एक चोर"
शिष्य के भौचक हो जाने पर गुरु ने कहना जारी रखा,"एक बार रेगिस्तान में मैं कहीं पर खो गया था.भटकते-भटकते जब एक गाँव में पहुंचा तब काफी देर हो चुकी थी.सारा शहर खामोश हो चुका था.एक ही आदमी मिला जो किसी घर की दीवार में सेंध लगाकर छेद कर रहा रहा.मैंने उससे पूछा,"भैया .. मेरे रुकने के लिए कोई जगह हो सकती हैं क्या?उसने जवाब दिया,"रात को इस वक्त तलाश करना मुश्किल है.चाहो तो तुम मेरे साथ रुक सकते हो.वह इंसान बड़ा नेक था.मैं वहां पर एक महीने तक रुक गया.हर रोज रात को वह चोर मुझसे कहता ,' अब मैं अपने काम पर जा रहा हूँ तुम आराम कर प्रार्थना करो." जब वह वापस लौटता ,मै कहता,"क्या कुछ हासिल हुआ?"वह कहता आज रात कुछ भी नहीं,कल मैं फिर कोशिश करूंगा... आगे भगवान की मर्जी!"
शिष्य के भौचक हो जाने पर गुरु ने कहना जारी रखा,"एक बार रेगिस्तान में मैं कहीं पर खो गया था.भटकते-भटकते जब एक गाँव में पहुंचा तब काफी देर हो चुकी थी.सारा शहर खामोश हो चुका था.एक ही आदमी मिला जो किसी घर की दीवार में सेंध लगाकर छेद कर रहा रहा.मैंने उससे पूछा,"भैया .. मेरे रुकने के लिए कोई जगह हो सकती हैं क्या?उसने जवाब दिया,"रात को इस वक्त तलाश करना मुश्किल है.चाहो तो तुम मेरे साथ रुक सकते हो.वह इंसान बड़ा नेक था.मैं वहां पर एक महीने तक रुक गया.हर रोज रात को वह चोर मुझसे कहता ,' अब मैं अपने काम पर जा रहा हूँ तुम आराम कर प्रार्थना करो." जब वह वापस लौटता ,मै कहता,"क्या कुछ हासिल हुआ?"वह कहता आज रात कुछ भी नहीं,कल मैं फिर कोशिश करूंगा... आगे भगवान की मर्जी!"
आश्चर्य की बात यह थी की वह चोर कभी निराश नहीं था.वह हमेशा आशान्वित और खुश रहा.फिर मैं बरसों तक ध्यान करता रहा कुछ हासिल नहीं हुआ.कई बार ऐसे पल आये जब मैं पूरी तरह निराश था.मैंने यह बेवकूफी समाप्त करने की सोची.अचानक मुझे याद आई उस चोर की जो हर रात कहता था ," ईश्वर अच्छा करेगा.कल अवश्य बेहतर होगा."
" आपके दुसरे गुरु कौन थे गुरुदेव?" शिष्य की उत्सुकता बढ़ने लगी ." मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था"
गुरुदेव ने रहस्योद्घाटन किया, एक रोज मैं नदी पर जा रहा था .मैं बेहद प्यासा था .अचानक एक कुत्ता वहां आया प्यास से जिसकी जीभ बाहर लटक रही थी.कुत्ते ने नदी में देखा ," उसे पानी के भीतर एक कुत्ता नजर आया.अपनी खुद की परछाई देखकर वह डर गया.भौंककर वह भाग ही जाने वाला था लेकिन तेज प्यास उसे वापस लौटने पर मजबूर कर रही थी.आखिरकार उसने डर पर काबू पाया और वह पानी में कूद पड़ा.पलक झपकते वह छाया गायब हो गई." गुरुदेव ने कहा,"तब मुझे यह एहसास हुआ की भगवान् ने मुझे कोई सन्देश दिया है.वह सन्देश यही था,"चुनौती या डर चाहे जितने हों बावजूद इसके कूद पड़ो...."
गुरुदेव! अब आपका तीसरा गुरु!"-शिष्य ने अधीर होकर पूछा ." मेरा तीसरा गुरु है एक बच्चा ."
गुरुदेव ने शिष्य को समझाइश देते हुए स्पष्ट किया," मैं जब शहर में दाखिल हुआ तब देखा की एक बच्चा जलती हुई मोमबत्ती मस्जिद में रखने के लिए ले जा रहा था.मैंने बच्चे से पूछा ,"क्या तुमने मोमबत्ती खुद जलाई है?: उसने जवाब दिया ," हाँ" मैंने बच्चे से फिर पूछा ," पहले तो मोमबत्ती नहीं जल रही थी बाद में वह जलने लगी.तुम बता सकते हो वह स्रोत जहाँ से रौशनी आई है?"
गुरुदेव ने शिष्य को समझाइश देते हुए स्पष्ट किया," मैं जब शहर में दाखिल हुआ तब देखा की एक बच्चा जलती हुई मोमबत्ती मस्जिद में रखने के लिए ले जा रहा था.मैंने बच्चे से पूछा ,"क्या तुमने मोमबत्ती खुद जलाई है?: उसने जवाब दिया ," हाँ" मैंने बच्चे से फिर पूछा ," पहले तो मोमबत्ती नहीं जल रही थी बाद में वह जलने लगी.तुम बता सकते हो वह स्रोत जहाँ से रौशनी आई है?"
वह बच्चा खिलखिलाकर हंसने लगा.फिर एकाएक उसने मोमबत्ती बुझा दी.अब बच्चे ने मुझसे सवाल किया," दादाजी!आपने देखा रौशनी चली गई"आप मुझे यह बताइये की रौशनी कहाँ गई!" गुरूजी बोले ," बच्चे की बात सुनकर मेरा सारा अहंकार जाता रहा.और, उसी पल मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ.अपनी बुद्धिमत्ता पर मुझे तरस आने लगा.यह सच है की मेरा कोई गुरु नहीं था .फिर भी इसका यह मतलब नहीं होता की मैं शिष्य नहीं था.!"
सारा किस्सा सुनकर प्रोफ़ेसर प्यारेलाल के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं.उन्हें समझ में नहीं आया की बगैर गुरु के गुरुदेव शिष्य कैसे हुए?उनहोंने दद्दू से पूछा ," आप ही बताइये दद्दू यह कैसे संभव है?"
दद्दू ने पहेली सुलझाते हुए कहा,"" ऐसा है प्रोफ़ेसर !गुरुदेव ने सारी कायनात या सृष्टि को ही अपना गुरु माना,उन्होंने भरोसा किया बादलों पर...हवा,पानी,आग... इंसानों पर .मेरा कोई गुरु नहीं था क्योंकि कुदरत के हर पहलू से मैंने कुछ न कुछ सीखा है.जिन्दगी में भी शिष्य बनना जरूरी है लेकिन शिष्य बनने का मतलब होता है सीखने की चाह.
प्रोफ़ेसर के दिमाग की ट्यूब लाईट जली." मतलब यह की TO BE AVAILABLE TO LEARN AND TO BE VULNERABLE TO EXISTANCE" या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो ," गुरु एक स्वीमिंग पूल होता है जहाँ तुम तैरना सीख सकते हो.एक बार सीख गए तब सारे महासागर तुम्हारे हैं. मैं भी आपसे यह जानना चाहूँगा की आपने भी क्या कोई गुरु बनाया है या कुदरत और जिंदगी के अनुभव ही हैं आपका सच्चा गुरु!!!! अपना ख्याल रखिये..
किशोर दिवसे
किशोर दिवसे
1:05 am
रोचक और प्रेरक.
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