अब तो शहर और गाँव के हाल-चाल भी काफी बदल गए है. फिर भी कई गाँव-शहरों में कम ही सही वह दीखता है अक्सर.याद है पहले कितनी चिट्ठियां लिखा करते थे आप और हम!ख़ुशी और गम के कडवे -मीठे घूँट चिट्ठियां बांचते ही पीने पड़ते थे.मुस्कान और आंसू देने वाली ये इबारतें कभी लिफाफे के भीतर तो कभी अंतर्देशीय और पोस्ट कार्ड पर.ज़माने की रफ़्तार ने ढेर सारे नए जरिये पैदा कर दिए . डाकिये भी हैं और उनका विकल्प भी हाई टेक युग में आना ही था.मोबाइल.. ए टी एम् कूरियर से काम हो रहा है .फिर भी कभी -कभार कानों में गूँज जाती है एक आवाज जो बढा देती है हर किसी की धड़कन.
डाकिया डाक लाया,...डाकिया डाक लाया
ख़ुशी का पैगाम कहीं कहीं दर्दे जाम लाया
याद है आपने पहली बार चिट्ठी कब लिखी थी?वही डाकिया जो दरवाजे की सांकल या कालबेल बजाकर आवाज लगाता था -पोस्टमैन अब कितनी बार घर आता है?चिट्ठिया लिखना ही काम हो गया है तो मिलेंगी कहाँ से?अब तो चिट्ठी लिखने की आदत भी नहीं रही. लिखने को बैठो तो क्या लिखो समझ में ही नहीं आता.. मोबाइल से सीधे बात कर लो.
सारे परिवार का हाल-चाल सुख-दुःख की बातें मान-मनुहार यानी भानमती का पिटारा हुआ करती थी चिट्ठियां.बच्चों को तो अब चिट्ठी लिखना भी नहीं आता. अपने ज़माने में लिखी चिट्ठियां बच्चों को दिखाई थी उनका मुंह खुला का खुला रह गया था.स्कूल में छुट्टी की अप्लिकेशन लिखना भर आता है उन्हें.गाँव के लड़के लड़कियां तो गंवैया शायरियां लिखा करते थे.शहरी नौजवान तो मैसेज से काम चला लेते है वो भी रूमानी और बिंदास टाइप के... और खुद को नहीं आता तो नेट पर जुगाड़ कर लीजिये.
खैर.. आप में से बहुतों को मालूम है चिट्ठियां लेने -ले जाने वाला कासिद हुआ करता है.राजा-महाराजाओं के ज़माने में कबूतर भी कासिद हुआ करते थे.जो प्यार के पैगाम ले जाते रहे..ऐसे ही आशिक राजकुमार के दीदार को तरसती माशूका ने एक ख़त लिखा और तड़पकर कासिद से कहा-
नामाबर,ख़त में मेरी आँख भी रखकर ले जा
क्या गया ख़त जो देखने वाली न गई!
खतों में गीत ,गजलें शायरियां लिखने का रिवाज भी खूब चला था.दिल को छू लेने वाली चिट्ठियां लिखना भी एक कला है.पंडित नेहरू,महात्मा गाँधी,अब्राहम लिंकन ,अमृता प्रीतम के लिखे ख़त ऐतिहासिक दस्तावेज हैं.चित्रकार विन्सेंट वान गाग ,और उनके भाई थियो के पत्रों पर आधारित उपन्यास लस्ट फार लाइफ अद्भुत रचना है.पत्रों का अनोखा संसार है क्योंकि चिट्ठियां ऐसी पंखदार कासिद हैं जो पूरब से पश्चिम, तक प्यार की राजदूत बनकर जा सकती हैं.ऐसी ही एक चिट्ठी मोर्चे पर डटे जवान को मिलती है और खंदक में ही वह अपने दोस्तों के साथ एक गीत गाता है( फिल्म बार्डर)
संदेशे आते हैं,वो पूछे जाते हैकि तुम कब आओगे
कि घर कब आओगे,ये घर तुम बिन सूना है....
फिल्म पलकों की छांव में डाकिये की भूमिका में राजेश खन्ना ने पर्दे पर दिल छू लेने वाला गीत गया था -डाकिया डाक लाया.. डाकिया लाया ...फिर ये मेरा प्रेम पात्र पढ़ के ...और ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू....और चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है ..
और एक बात है मेरे नौजवान दोस्तों के लिए-साहित्यकार जीन जैकिस रूसो ने कहा है सबसे अच्छा प्रेम पत्र लिखने, बगैर यह जाने लिखना शुरू कीजिये की आप क्या चाहते हैं और यह जाने बिना ख़त्म कीजिए कि आपने क्या लिखा है.पर जरा गौर तो कीजिए इस नौजवान ने एक रुक्के पर हाले- दिल जिस तरह बयान किया है -
मेरे कासिद जब तू पहुंचे मेरे दिलदार के आगे
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे
डाकिये की जिंदगी रील लाइफ जितनी अलहदा है रियल लाइफ में उतनी ही कहीं और संघर्ष पूर्ण.उसकी सायकल के कैरियर पर और झोले में बिल, व्यावसायिक पात्र,अखबार,मैगजीनें या रजिस्टर्ड पार्सल होंगे . पर जज्बातों में डूबी चिट्ठिया अब नहीं होतीं.
एक बात जरूर समझ में आ गई कि बदलते वक्त के साथ लोगों के मिजाज भी बदल गए हैं.दद्दू के घर टीवी चैनल पर एक फ़िल्मी गीत चल रहा है-
कबूतर जा जा जा ... कबूतर जा जा जा
पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ
नन्ही इबारतों वाले ख़त आज का सच हैं जो मोबाइल नाम के कासिद ले जाते है. उसकी भी क्या जरूरत... अब तो सीधे डायलाग दिए जाते है. पर एक बात का यकीन मानिये अच्छी और प्यारी खूबसूरत चिट्ठियां लिखने वाला इंसान ही संजीदा ,संवेदनशील और मुहब्बत भरे दिल का मालिक होता है.चिट्ठी लिखकर अपने भीतर खुद की तलाश कीजिए.सिर्फ चिट्ठियों के जरिये पूरी तरह अजनबी से किया जाने वाला प्यार प्लेटोनिक लव कहलाता है.
एक बार फिर चिट्ठियों ,खतों कासिद और नामाबर की दुनिया के करीब से गुजरकर देखिये .. खुद को तलाशने का एक आइना यह भी है. एक मिनट...रुकना जरा ...देखूं तो मेरा कासिद " इलेक्ट्रोनिक डाकिया यानि मेरा मोबाइल कौन सा पैगाम लेकर आया है?-
अगर जिंदगी में जुदाई न होती
,तो कभी किसी की याद न आई होती
साथ ही अगर गुजरते हर लम्हे
तो शायद रिश्तों में ये गहराई न होती
पुरानी चिट्ठियां देखिये... दिखाइए.. लिखते रहिये
किशोर दिवसे
1:08 am
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