गुरुवार, 23 जून 2011

वो कागज की कश्ती ...वो बारिश का पानी!

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लहरों में बहती गई वह कागज की छोटी सी नाव . मेरी नन्ही अँगुलियों ने ढेर सारी लहरें बनाकर उन्हें बहने दिया आगे और आगे....टप टप बारिश की बूँदें उस नाव को हिचकोले देती पर अलमस्त लहरों ने उसे मेरी आँखों से ओझल कर दिया.कागज़ की उस कश्ती से जुडी बचपन की यादे.मुझे ताजा हो आईं.ऐसा  क्यूं होता है की  जब-जब यादों के दरीचे परत-दर -परत खुलते हैं कई रिश्ते हमारे सामने तेजी से उभरने -मिटने लगते हैं.इसका सिलसिला बन जाता है.ऐसा  लगता है ना ... की  हम कभी रिश्तों पर क्यूं बात नहीं करते!
                     " वो कागज की कश्ती,वो बारिश का पानी " मुझे अक्सर याद आते हैं.बरास्ता उस कश्ती  के  मैं बचपन के रिश्ते को कई बार जी लेता हूँ.क्या आप भी?इस रिश्ते को क्या हम महसूस करते हैं जो कश्ती और बचपन में .. बचपन और जवानी.. जवानी और बुढ़ापे के बीच है?गोया रिश्ते ही तो हैं जो यादों  के अलावा मौजूं बनकर आपको जिंदगी के तमाम रंगों से प्यार करना सिखाते हैं.चलिए , आप और हम मिलकर आज यही सोचते हैं की रिश्ता क्या है!-
                     कलियों से भँवरे का,सूरज से किरणों का
                     झुकी पलकों से हया का ,कनखियों से शोखी का 
                     नवजात से लोरियों का,पतंग से आसमान का
                      धूप से छाव , आपसे परछाई का 
                    कोयल से बसंत का,आशिक से माशूक का
                     कोख से अजन्मे का,प्रकृति से इंसान का
                     हिचकी से यादों  का,जिस्म से साँसों का
                      ख़ुशी से गम का,हार से जीत का 
                    घंटियों से पूजाघर का ,ईश्वर से भक्त का
पलटिये अपनी यादों के दरीचे और खो जाइये उन रिश्तों में जो जिंदगी के कैनवास पर कभी रंगीन तो कभी बदरंग बनकर बनते-बिगड़ते रहते हैं.माँ-बाप,भाई-बहन,चाचा-चची ,फूफा-फूफी,,अंकल-आंटी,,मामा-मामी,साला-साली-जीजा ,बेटा-बेटी,पति-पत्नी  ,ये सब नामवर रिश्ते हैं जिनके  बीच आप और हम जिम्मेदारियों का ताना-बाना अक्सर सुलझाते व उलझाते रहते हैं.इससे भी परे एक दुनिया है अनाम रिश्तों की जिनका कोई नाम नहीं होता.फिर भी उनकी अहमियत उतनी ही समझी जाती है जितनी दुनियावी रिश्तों की.
                 खून के रिश्तों की अक्सर बात किया करते हैं हम लोग.सुना होगा "खून के रिश्ते ही काम अआते हैं".पर इन रिश्तों को भी बेमानी होते देखा है .तब उन दरकते हुए रिश्तों को बचाने की छटपटाह्त महसूस करे हम लोग.क्या कभी सोचा है आपने की  जिस जरूरतमंद को आपने बचने के लिए खून दिया है उससे अनायास कैसा अनाम रिश्ता जुड़ गया है?हालाकि यह भी सच है की कुछ लोग इसे महज चंद पैसों की जरूरत के लिए भी करते रहे हैं.वहीँ दूसरी और खून के प्यासे होने का रिश्ता ही जो खुद्कशीं  और क़त्ल में तब्दील होता दिखाई देता है.अनाम रिश्तों के कैनवास पर कभी यह देखने की भी फुर्सत निकालिए की क्या रिश्ता है-
                       चाँद से चकोर का,कसमों से वायदों का
                        मुहब्बत से वफ़ा का,आदम से हव्वा का 
                      नींद से ख्वाब का,राख से अंगारों का
                       आँख से आंसू का,रुखसार से तिल का
                       सांप से चन्दन का,जुर्म से अपराधी का 
                      दर्द  से दवा का,रेल से मुसाफिर का
                          मिठास से कडवाहट,दोस्ती से दुश्मनी  का  
रेशम की डोर और  फौलाद की जंजीर हैं सभी रिश्ते.  सारी दुनिया रिश्तों का गुलिस्तान है जिसमें तरह -तरह के  फूल खिले हैं.पर क्या आप सफल बागबान हैं?टटोलिये नामदार, अनाम या " प्लेटोनिक रिश्तों की जड़ें और चूने दीजिये उस बेल को आसमान की ऊंचाइयां.बार-बार उलटिए यादों के दरीचे और समझिये की कितने रिश्ते जिन्दा हैं ... कितने मुर्दा और कितने अधमरे!सवाल यह भी है की सोशल नेट्वर्किंग साईट पर बने संबंधों को क्या रिश्तों के आशियाने के दरवाजे पर दस्तक समझा जाय!
                       उस पल और लम्हे की गहराई को क्या हमने समझा है जब सब कुछ होने के बीच हम कुछ भी नहीं होते और रिश्ते की कोई न कोई शक्ल कल्पना या हकीकत के धरातल पर हमें मोहताज कर देती है की  हम अतीत और वर्तमान दोनों की आँखों में बसे सपनों को देखकर अहसास करें की आखिर क्या रिश्ता है-
                            फूलों से खुशबू का,अमीरी से गरीबी का 
                              पहली नजर से पहले-पहले प्यार का
                             अपनों से बेगानों का,कागज से कलम का 
                                   प्रेमिका की ना ...ना... से  हाँ ..हाँ.. का 
                             मंजिल से जूनून का, शमा से परवाने का 
                              हक़ से कर्तव्य का,वतन से फर्ज का
                              फन से फनकार का ,शबनम से कोंपल का  
काश हम अपने अंतर्मन को छूकर देखें की हमारे नाम-अनाम रिश्ते दरकते तो नहीं जारहे हैं .सहलाइए... संवारिये और सायास तरोताजा रखिये उन सभी रिश्तों को जो आपके हमसफ़र बनकर चल रहे हैं साथ-साथ.चाहे दूर हों या पास रिश्तों की ऊष्मा अपने मन में बनाये रखिये .समय चुराकर रिश्तों को समझना और जीना सीखना होगा तभी हम समझ पाएंगे की क्या रिश्ता है-
                             मांझी से नैया का,सागर से साहिल का
                             जिन्दगी से रंग और रंग से जिन्दगी का
                             अँधेरे  कोने से टिमटिमाते जुगनुओं का
                               बुलबुल की तडप से सैयाद के पिघलने का 
                               जमीं से आसमान , इंसान से इंसान का
                               सफ़ेद धागे से मोम के बदन का /और 
                              बोलते पत्थरों से सात सुरों का!!!!  
ख़ूब प्यार कीजिए नाम-अनाम रिश्तों को पर मत भूलिए " वो कागज़ की कश्ती... वो बारिश का पानी ".कागजों से अक्षरों का रिश्ता तो अटूट है अब कम्प्यूटर स्क्रीन से हमारी आँखों का रिश्ता इतना गहरा गया है की पूछिए मत!इसलिए क्या आप इस रिश्ते को भूल सकते हैं जो बरास्ता मेरे इन अल्फाजों की बारिश से आपके दिल को भिगोता जा रहा है... आहिस्ता आहिस्ता !!!!
                                                                                                                                                                           मेरे और आपके बीच जो है ,उसकी तलाश  आप भी                                                                                              कीजिए पर अपना ख्याल रखिये...
                                                                                          किशोर दिवसे 
                             
                             
                            



                         




                        

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