किस्सों में छिपे हैं जिंदगी के कहे-अनकहे सच!
मैनेजमेंट के किस्से और उनकी फेहरिस्त बड़ी लम्बी है.उसे हर कर्मचारी या बॉस अपने-अपने अजेंडा के मुताबिक समय-समय पर फिट क़र देता है.बड़ा ही रोचक है यह मायाजाल.अब ये तमाम फंडे ऐसे अनारदाने हैं जिनसे छूटी आतिशबाजियां किस्सों की शक्ल में सारे संस्थानों के जरिये समाज में नजीरें बन चुकी हैं.ऐसे अनेक किस्से आपकी हमारी जुबान प़र रच-बस गए हैं जो हम लोग सुनते -सुनाते रहते है.
एक सेल्समेन उस दफ्तर की महिला क्लर्क तथा मैनेजर दोपहर का भोजन करने एक साथ जा रहे थे.रास्ते में उन्हें एक चिराग पड़ा मिला.उनमें से सबसे पहले लपककर महिला क्लर्क ने उठा लिया.कौतूहल वश उसे जैसे ही घिसा उसमें से एक अप्सरा निकली." तुम तीनों की एक-एक इच्छा मैं पूरी करूंगी." उसने खिलखिलाते हुए कहा." पहले मैं... पहले मैं..." क्लर्क युवती ने अप्सरा से कहा,"मैं दार्जीलिंग जाऊंगी... मोटर बोट में झील का आनंद और पहाड़ी वादियों में रोमांस" ऐसा ही होगा.... अप्सरा ने कहा और वह युवती लुप्त हो चुकी थी.
" अब पहले मैं.. पहले मैं..."इस बार मैनेजर से पहले ही सेल्समेन ने अपनी इच्छा जताई.," मैं गोवा जाना चाहता हूँ.मसाज गर्ल्स .. शराब और समुद्र तट की धूप" अप्सरा ने वेद किया और वह सेल्समेन वहां से गायब हो चुका था.
" मैनेजर साहब ! अब आपकी बारी है ,अपनी इच्छा बताएं "अप्सरा ने मैनेजर से पूछा.फ़ौरन ही मैनेजर ने अप्सरा से कहा,"मैं चाहता हूँ कि वे दोनों लंच करें और अपने अपने दफ्तर का कामकाज सम्हालने से मुझे ऊटी में हालीडे मनाने रिलीव करें."दद्दू ने यह किस्सा सुनकर समझाइश दी ," हमेशा अपने बॉस को पहले अपनी बात कहने दें.अगर आपने पहले अपनी राय रखी तब कुछ भी हो सकता है."
अबकी बारी थी प्रोफ़ेसर प्यारेलाल की.वे बता रहे थे एक बाज के बारे में .वह बाज किसी वृक्ष की ऊंची शाख पर बिना कुछ काम किये आराम से बैठा था.एक छोटे से खरगोश ने उसे देखकर पूछा,"क्या में ही आपकी तरह बिना मेहनत किये बैठा रह सकता हूँ? बाज ने जवाब दिया,"बिलकुल... क्यों नहीं!" वह खरगोश मैदान पर नीचे बैठकर सुस्ताने लगा.अचानक एक लोमड़ी आई और झपट्टा मरकर उसे खा गई..प्रोफ़ेसर ने समझाया,"मुझे लगता है अगर बिना खास मेहनत किये आराम से बैठना है तब आपको ऊँचाई या शिखर पर ही बैठना होगा वर्ना आपकी भी हालत उस खरगोश की तरह हो जाएगी."
मुर्गे और बैल का किस्सा सुनाया होशियार चंद ने.कहानी कुछ इस तरह की थी-एक मुर्गा और बैल आपस में बातचीत कर रहे थे." मुझे इस वृक्ष की फुनगी पर पहुंचकर बड़ी ख़ुशी होगी." मायूस मुर्गे ने ठंडी सांस भरकर कहा," क्या करूं मित्र बैल!मेरे शरीर में उतनी ताकत ही नहीं है."" ऐसी बात है!तब तुम एक काम करो.... मेरे गोबर से कुछ दाने चबा लो. उससे तुम्हारे शरीर में ताकत आ जाएगी ."मुर्गे ने ऐसा ही किया तथा उसके शरीर में इतनी ताकत आ चुकी थी की वह वृक्ष की निचली शाख तक पहुँच गया.चार रात तक लगातार मुर्गे ने यही किया और वृक्ष की फुनगी पर पहुँचकर बड़ी अकड़ से इधर-उधर देखने लगा.
एकाएक किसी शिकारी ने उसे देख लिया.फौरन ही अपनी एयर गन से निशाना साधा और चन्द मिनटों में वह मुर्गा जमीन पर गिरकर दम तोड़ चुका था.होशियारचंद ने मतलब समझाया,"चालाकी या मक्कारी अथवा बेवकूफ बनाकर आप शिखर पर पहुँच सकते हैं लेकिन टिक नहीं सकते.उसके लिए मेहनत ही एकमात्र रास्ता है."
अब की बारी मेरी बारी थी . मुझे मालूम था पर चाय का प्याला मेज पर रख्का दद्दू बोले," हाँ अखबारनवीस,अब तुम्हारी बारी है."एक छोटा सा परिंदा सर्दियों के मौसम की तलाश में कहीं उड़कर जा रहा था." मैंने किस्सा बयानी शुरू की.दरअसल मौसम में इतनी ठंडक बढ़ गई की ठिठुरकर वह खेत में नीचे जा गिरा.इससे पहले की वह उठकर उड़ जाता एक गाय ने आकर उसपर गोबर कर दिया.गर्म गोबर के नीचे ठिठुरकर गिरे परिंदे को ऊब महसूस होने लगी.
शीघ्र ही वह मूर्ख परिंदा ख़ुशी से गाना गाने लगा.नजदीक से ही गुजरती बिल्ली ने परिंदे की आवाज सुनी और गोबर के इर्द-गिर्द घूमकर तफ्तीश करने लगी.जैसे ही परिंदे का सर उसे बाहर दिखाई दिया अपने पैने पंजों से उसने परिंदे को निकाला और हजम कर गई.
पता नहीं आप इस कहानी में छिपे" मारल आफ द स्टोरी " को समझे या नहीं हमारे दद्दू ,प्रोफ़ेसर प्यारेलाल और होशियार चन्द तत्काल समझ चुके थे.मेरे पूछने से पहले ही उन तीनों ने अपने निष्कर्ष सुना दिए. !.यह जरूरी नहीं कि आपकी बुराई या आलोचना करने वाला आपका दुश्मन ही हो.२.यह भी जरूरी नहीं की आपको गन्दगी ( आलोचना )से बाहर निकालने वाला आपका शुभचिंतक ही हो.३.जब भी आप गन्दगी आलोचना या बुरे वक्त में फंस गए हों बेहतर यही है की खामोश रहें!!!!!
अपना ख्याल रखिये... आपका अपना
किशोर दिवसे.
3:30 am
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें