डाक्टर्स डे आज जुलाई की पहली तारीख को है. सभी डाक्टरों को बधाई .साथ ही यह आव्हान भी की वे यह सोचें की मरीजों के साथ उनके भावनात्मक सम्बन्ध कितने रह गए है. मेडीकल ज्यूरिसप्रूडेंस में Doctor -Patient bonding का विस्तृत उल्लेख किया गया है. फिल्म मुन्ना भाई एमबीबी एस में डीन का यह कहना " मैं मरीज से कभी प्यार नहीं करता. -आखिर क्या दर्शाता है?
अस्पतालों की क्या हालत है? सरकारी डाक्टर और निजी प्रेक्टिस का विवाद जारी है.शासकीय अस्पताल अभी तक सुविधाओं के आभाव से जूझ रहे है. क्या डाक्टरों की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं? प्रोफेशनल होने का क्या यह मतलब होता है की इंसानियत को ताक़ पर रख दिया जाये? इन्डियन मेडिकल एसोसियेशन पूरी तरह निष्क्रिय है? झोला छाप डाक्टरों के विज्ञापन अखबारों में छप रहे है. चिकित्सकीय सुविधाएँ पर्याप्त हैं या नहीं इसे कोई भी नहीं देख रहा है.
Medical representative और डाक्टरों के बिजनेस रिश्ते मरीजों की जेब पर डाका डाल रहे है.दवाइयों की कीमतें अनाप-शनाप वसूली जा रही हैं .जेनेरिक दवाइयों और मल्टीनेशनल कंपनियों की दवाओं में कुश्तियां जारी हैं .मार्जिन २००-३०० फीसदी खींच रही हैं कम्पनियाँ. कोई देखनेवाला नहीं.
छत्तीसगढ़ का हाल देखिये. रायपुर ,बिलासपुर, जगदलपुर मेडिकल कालेज और अस्पतालों में पिछले तीन महीनों से दवाइयाँ नहीं हैं. करोड़ों का बजट है पर दवा नहीं खरीदी जा रही है. मरीज परेशान है,वे भाड़ में जाएँ किसी को क्या फरक पड़ता है? स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल कहते हैं की हम पता लगाते है... बहरहाल डाक्टरों को अपने पेशे में पारदर्शिता बरतनी चाहिए. पैसा तो जरूर कमायें पर कुछ नैतिकता बचाकर रखें. डाक्टर्स डे पर उन्हें हार्दिक बधाइयाँ....
किशोर दिवसे
12:57 pm