ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है की शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते है सब लोग.
यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है
सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !
चौक चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथान्रेस में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब
कुत्ते अमीरों के हैं लपेटे हुए लिहाफ
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है की यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैड मिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
दिल मेरा धडकता है इन ठण्ड भरी रातों से
तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से
बहरहाल ,मुद्दे कि बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों कि तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब
इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया
प्यार सहित... अपना ख्याल रखिएगा---
किशोर दिवसे
kishore_diwase@yahoo.com
12:03 am
Nice Post...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबिलासपुर में ठंधक आ गयी है है और आप की पोस्ट में महसूस भी होने लगा है.
जवाब देंहटाएंमै पहले कोमेंट से सहमत हूँ, nice and interesting post
धन्यवाद सर जी और फिरदौस आपकी जर्रा नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया... अपने सुझाव देते रहिए- किशोर दिवसे
जवाब देंहटाएंकिशोर भैया आपका ब्लाग देखा, दीपावली की रात. दीप पर्व की शुभकामनाये.
जवाब देंहटाएंगनेश तिवारी
क्या कहेंगे ?
जवाब देंहटाएंकालिख कांड की कालिमा
जनाब जोगी जी पर जाहिर जाना ....
दिग्विजय जी का आना और ठुक जाना.
29 अक्टूबर की ठंड तो मानों दस्तक दी और चाय की चुस्कियों के साथ काफूर हो गई है.
जवाब देंहटाएं