शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

चलो यार बॉस को तेल लगायें...

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चलो यार बॉस को तेल लगायें..
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" तेल तो बड़ा महंगा हो गया है यार!"
" महंगा कैसे न हो ... लोग खाने में कम लगाने में ज्यादा इस्तेमाल कर रहे है."- इतना कहकर मसखरी लाल ने जोरदार ठहाका लगाया.सरकारी दफ्तर की केन्टीन में वह गपोड़ीराम  के साथ बैठा " चा पानी " पी रहा था.वैसे भी इन दफ्तरों के मसखरी और गपोड़ी टेबल पर कम, केन्टीन में अधिक मिला करते हैं.सरकारी, निजी, गैर सरकारी दफ्तरों या चर्ष के अड्डों की ये खासियत रहा करती है.
                           खैर... नए बॉस ने तो सबका तेल निकाल  दिया है.... वो छुट्टी पर हैं तो देखो कैसे सभी कर्मचारियों के चेहरे फुल्के की तरह  ख़ुशी से फूल गए हैं..वर्ना जब देखो तब बगैर इत्तला दफ्तरों की  सर प्राइज चेकिंग !यार... ये साहब लोग क्या हम लोगों को तेली का बैल समझते हैं जो दिन रात पिसते ही रहें?
    गुस्सा थूक दे यार! बॉस को तेल लगाने के फायदे और न लगाने के नुक्सान तू नहीं जानता क्या? कहाँ नहीं है यह बीमारी? टिकट के लिए नेता हाई कमान को तेल लगाता है,पी एच ड़ी करने वाला अपने गाइड को,  ... अगर कोई अपना काम करवाना हो फिर तिल देखो, तेल की धार देखो! हर किसी से पूछ लो तेल लगाने के फायदे!  अगली टेबल पर दद्दू  चाय सुड़क  रहे थे.सोचने लगे वास्तव में जिधर देखो तेल का बोलबाला है.व्यापारियों को देखो तो खुले तेल में मिलावट कर उपभोक्ताओं का    तेल निकल देते हैं.  मिटटी तेल वाला चमकू अपना कोटा पेट्रोल पम्प वालों को बेच देता है.रहा सवाल व्यापारियों का , फ़ूड वालों को तेल लगाने के बाद भला वो कार्रवाई  काहे को करने लगे?
           इधर गपोडीराम ने अपना जनरल नालेज बघारते हुए कहा , " नागपूर  में तो एक तेलवाले ने अपना तेलवाले टाईम्स भी निकाल लिया था.और तेलगी तो कमाल का निकला.स्टाम्प  घोटाला कर महाराष्ट्र  में अच्छे- अच्छों का तेल ही निकाल दिया.  कोर्ट, अस्पताल., थाना, दफ्तर, मार्केट,   अखबार या मैगजीन  का संपादक हो तेल तो लगाना ही पड़ेगा.राष्ट्रीय स्तर पर तो कुछ नारी प्रेमी संपादक तो ऐसे भी होते हैं जिनकी महिला का नाम देखते ही लार टपकने लगती है। (टॉप प्रिओरिटी!)आजकल  देख लो सोशल साइट्स का हाल !खूबसूरत नारी चेहरा देखा नहीं कि "लाइक" की घनघोर बारिश!,यानी अघोषित इजहारे मुहब्बत!  फिर आप तुलना में कितना भी बेहतर क्यों न लिखो ,इक्का दुक्का लाइक मिल जाए तो बहुत। यकायक मसखरी लाल  को कुछ याद आया.वे कहने लगे," यार गपोड़ी ! अपना बड़ा बाबू  है न फाइनेंस  सेक्शन वाला !... अच्छा ..... बी. पी.केलोटा की बात कर रहे हो!
 क्यूं ... क्या उसने भी किसी का तेल निकाल दिया ?  नहीं. यार! बी. पी. केलोटा तो  कर्मचारियों  के सामने  बॉस को ऊल - जलूल बकेगा लेकिन  उनके सामने पूरा टीन खाली कर देगा. और क्या यूनियन लीडर चाबुक परसाद को यह नहीं मालूम ,बिना  तेल डाले  आग नहीं बुझती . वो तो बस पनवा मुहं में दबाकर गुनगुनाएगा. " तेल लगाई ले..
!                                  " काफी  पियोगे  अख्बार  नवीस! कुर्सी पर बैठते ही  दद्दू ने पूछा , " हाँ... भाई ददू..मीडिया में कम्पीटीशन  के चलते एक दूसरे  का तेल निकाल देने की कवायद जोरों से चल रही है.. मसखरी और गपोड़ी का तेल पुराण कानों में पड़ने के बाद जब बात समझ में आई तब ज्ञान चक्षु  खुल गए. , " दद्दू , पेट्रोल को भी चालू भाषा में तेल कहते ही न!  अब दुनिया के चौधरी  अंकल सैम को ही देखो अपनी ताकत के बल पर इरान और कुवैत जैसे तेल के बादशाहों का तेल निकालने पर जब तब उतारू नहीं रहते? सच कह रहे हो ... बाजार के दौर में भी तो मार्केटिंग के फंडे इतने बढ़ गए हैं के वो रेत  से भी तेल निकलना अच्छे से जान गए हैं.
                                       यकायक दद्दू को  बचपन की याद ताज़ा हो आती है.बोले, ," अखबार नवीस ... छठवी की एग्जाम चल रही थी.छाता लेकर पिताजी ने दफ्तर जाने से पहले गुर्रा कर कहा था की  अगर तूने आज पर्चा अच्छा नहीं बनाया तो तेल लगाकर रखना.क्या करता!पिटने के डर से खूब पढ़ा और फर्स्ट क्लास में पास भी हुआ.
                                         तेल लगाने की महिमा के कुछ किस्से अभी बाकी थे.सामने काली सड़क से गुजरते हुए ट्रेक सूट वाले खिलाडी को देखकर मन में विचार आया की गुलेल में तेल , हाकी स्टिक और क्रिकेट की बैट में तेल , अखाड़ों या बॉडी बिल्डिंग स्पर्धा में पट्ठों के कसरती जिस्म पर भी तेल !और ठण्ड के दिनों में भी कुनकुनी धूप में तेल लगाकर बदन सेंकने का सुख ... वाह!  मसखरी और गपोड़ी तो नए बॉस के डर से टेबल खाली कर चले गए अपने दफ्तर की ओर लेकिन मैंने दद्दू को फिर छेड़ने के इरादे से चिकोटी काटी , " दद्दू , रहीम ने पानी की महिमा का खूब बखान किया था.आज के जमाने में अगर वे ज़िंदा होते तो लोगों को तेल लगाने की  आदत को दोहे में किस तरह कहते/?
भाई  सचमुच , दद्दू की हाजिर जवाबी और आशु कवी होने पर हमारा सीना फूल गया.अपने फुल सेन्स आफ ह्यूमर का इस्तेमाल कर उनहोंने दोहे का तेल टपकाने से पहले सोचा , "  काश!कर्मचारियों का " तेलोमेनिया " दूर करने  प्रबंधन  प्रशासन या शासन ही कोई पहल करे.! दद्दू ने दोहे का जोड़- तोड़ कुछ इस तरह  किया-
              रहिमन तेल लगाइए, बिन तेल सब सून
              तेल बिना न ऊबरे नेता, बॉस व् पत्नी सुन !
अखबार के पन्ने पलटने के दौरान नजरें एक विज्ञापन पर टिकती हैं." तेल श्री , तेलरत्न,और तेल विभूषण पुरस्कार वर्ष २०१० के लिए निजी अथवा संगठनों से प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जाती है. दो लोगों ली गारंटी अनिवार्य.  अपना पप्पू भी तेल पुराण की महिमा से अभिभूत है.अगरबत्ती जलाकर मन्त्र पढ़ रहा है," तेलम शरणम गच्छामि..." इस बार उसके कोर्स में " तेलोलॉजी " का चेप्टर भी है. कब, किसे, कितना तेल लगाने पर क्या फायदा होगा , पचास नम्बर का पेपर आएगा." तेल पुराण की कुछ प्रतियां  बाहर की रैक  में भी रखी हैं.
                                   " अरे उठो भी ...  ! नौ बज गए और अब तक सो रहे हो? श्रीमती जी के झिंझोड़कर जगाये जाने पर हडबडाकर नींद खुलती है, "  ओह! तो क्या यह सब सपना था! फटाफट तैयार होकर नाश्ते की मेज पर अखबार के पन्ने पलटने लगता हूँ. पड़ोस में रहने वाला पप्पू का दोस्त जीनियस बाथरूम में एक गीत गुनगुना रहा है-
                                       मेहनत हमारा जीवन,  मेहनत  हमारा  नारा
                                       मेहनत से जगमगाए तकदीर का उजियारा.
                                                                                                      मोबाईल-09827471743

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