गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

दीपाक्षर -3

Posted by with No comments
किसी के घर में अँधेरा न हो ख्याल रहे... !

धन लक्ष्मी का वाहन तैयार है सुसज्जित होकर वैभव की देवी को हम सबके घर लाने के लिए.   .बिजली के बल्बों की झालरें कुछ घरों में सेहरा बनकर  जगमगाने लगी हैं तो कई जगह अब-तब में लग जाएँगी.मिटटी के दीये अपने गोद में तेल का तालाब बनाकर अग्निशिखा से रौशनी बिखेरने कसमसा रहे हैं.करेंसी के रिंग मास्टर बाज़ार के हाथों में किसम -किसम के चाबुक हैं.इसके मायावी सम्मोहन जाल के सामने सारे तर्क और दलीलें फेल! वाह रे बाजार... तेरा जादू चल गया ....और एक बार फिर आप और हम सब अपने दिल-दिमाग को परम्पराओं के वशीकरण में बांधे दीये लेकर स्वागत के लिए तैयार हो रहे हैं कि  कब आएगी -धन लक्ष्मी!
                 कभी फानून में जलता हुआ चिराग हूँ मैं
                 कभी दीया हूँ जो कुटियों में टिमटिमाता हूँ.
फानूस में जलते चिराग या कुटियों में टिमटिमाते दीये यानी अमीर या गरीब में  फर्क नहीं करती  धनलक्ष्मी .हर किसी की देहरी प् भीतर की ओर आते पदचिन्ह बनेंगे लक्ष्मी पूजा के रोज .इन पदान्कनों में छिपी अदृश्य इबारत को हम समझना नहीं चाहते जो यही कहती है " यूँ ही अमीर नहीं बना जाता..कड़ी मेहनत कर आहिस्ता-आहिस्ता बनो अमीर;उनसे सौतिया डाह क्यों करते हो?" ग़रीबों के लिए भी ये पद चिन्ह समझाइश देते हैं ,"तकदीर को कोसने से कुछ नहीं होता.भाग्यलक्ष्मी को भी प्रसन्न करने का ब्रह्मास्त्र श्रम ही है."
                           " अरे! यह क्या... मेरा वाहन कहीं दिखाई नहीं दे रहा...धरती लोंक पर जाने का समय आ गया है ,मैं जाऊं तो कैसे?" महालक्ष्मी ने चौंककर इधर-उधर देखा और कुछ चिंतित हो गईं .इतने में ही वीणा की झंकार के साथ देवर्षि  नारद प्रकट हुए-            नारायण...नारायण... नारायण...नारायण...
"देवर्षि ! इस समय आप यहाँ? आपने मेरा वहां को कहीं देखा है?" महालक्ष्मी का प्रश्न था.किंचित अर्थपूर्ण मुस्कराहट के साथ देवर्षि  ने जवाब दिया-" लगता है देवी, बाज़ार युग की चकाचौंध से सम्मोहित आपका वहां उलूक राज भी सपरिवार आपसे पहले धरती पर ही उन्मुक्त विचरण कर रहा है.देवी... एक बात तो मैंने भी महसूस की वो यह की बाजार की ताकत के इशारे पर दुनिया और समाज तो क्या अध्यात्म और तीज-त्यौहार भी चलने लगे हैं." नकेल बाजार के हाथ और धार्मिकता हाशिए तक सीमित .
                               देवी-नारद संवाद के चलते दूर से गूंजती उलूक ध्वनि से देवी समझ गई की उनके वहानोब का काफिला पहुँच रहा है.आते ही उलूक राज ने शिकायत की ," देवी मुझे आपति है ,एक तो इंसान एक-दूसरे को बेवकूफ बनाकर उस पर मेरा ब्रांड-नेम चिपका देता है .दूसरा ,लोग यह क्यूँ कहते हैं के लक्ष्मी की साधना सही तरीके से नहीं करने पर व्यक्ति उसका वाहन बन जाता है ?
                           " आखिर रह गए ना उल्लू के उल्लू !"-देवी ने मन ही मन सोचकर कहा," उलूकराज ,तुम्हारे इन प्रश्नों का उत्तर देवर्षि देंगे.अभी तो चलो,धरती लोंक पर  ,दीप पर्व की तैयारियां देखने का मन कर रहा है ."
देवी और देवर्षि ,उलूकराज के साथ धरती की चकाचौंध देखने कूच कर जाते हैं पर धरती पर उतरने की शुरुआत में पड़ती है एक बस्ती .दीये की लौ को टकटकी लगाकर देख रहे हैं लोग .एक ओर उजियारा है ... जगमग और चकाचौंध- स्टेटस वाले और स्टेटस दिखाने की अंधी दौड़ में शामिल लोग.दीया तले अँधेरे में उलूक राज  को दिखाई दे रहे हैं समाज के सड़े-गले सिस्टम , बैड-गवर्नेंस ,अध्यात्म में छिपी पाखंड की अफीम और लिजलिजे नैतिक मूल्य.!
                            " वत्स ! छोडो भी... यह चिंतन की बेला नहीं.दीपावली आ गई.तेते पांव पसारिए जेती चादर होए .अभी खुशियाँ मनाओ.यह लो अपने मन का दीया,उडेलो संकल्प का तेल और प्रज्ज्वलित करो लक्ष्य  की बाती .समाज के अंधियारे को चीरने उजियारी राह आपकी  प्रतीक्षा कर रही है." देवी ने समझाइश दी.
                                  हर एक घर के भीतर बने पद चिन्हों से देवी ,उनका वाहन और देवर्षि आयेंगे.वे तो शहर के बाजारों में बाद में घूमेंगे पर तब तक आप और हम सब अपनी फूली हुई जेबों के भीतर का माल " खरीदी -यग्य " के चलते बाजारी  स्वाहा कर चुके होंगे .हम सब सुखों के चंद कतरे महसूस करेंगे और लक्ष्मी वहीँ पहुंचेगी जहाँ उसे होना चाहिए.वैसे देखा जाए तो बाजार  की वजह से "फ्लो ऑफ़ मनी" और रोजगार  भी है  जो समाज के लिए बेहद जरूरी है.इस दीपावली की याद के बतौर हर घर में होंगे कुछ नए सामान और खुशियों भरी यादें .वैसे भी महंगाई की लगातार रुलाई के बीच हमें खुशियाँ मनाते रहने की आदत सी पड़ चुकी है.इसीलिए चलिए दीप पर्व पर धनलक्ष्मी के स्वागत में जुट जाएँ. बाज़ार और खरीददारों को शुभकामना देने का वक्त अभी आने को है . फिलहाल एक गुल दस्ता  आपके नाम इस कामना के साथ -
                                      चिराग ऐसा जलाओ कि बेमिसाल रहे
                                      किसी के घरमें अँधेरा न हो ख्याल रहे
                        अपना ख्याल रखिए ... शुभ रात्रि .. शब्बा खैर...
                                                                  किशोर दिवसे
                                                                  मोबाईल;9827471743
                                  

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें