गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

और मजमा फिट हुआ...

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मक्खन... मिर्च और मठा... दुखवा मैं कासे कहूं?
" बहुत दिनों बाद मजमा फिट किया है उस्ताद !" -जम्हूरे ने पूछा .हाँ जम्हूरे! एक ठो फार्मूला सोचने में भिड़ा था... मिल गया तो अपुन का मजमा फिर तैयार -उस्ताद ने अपनी बच्चनिया दाढ़ी  खुजाते हुए कहा.
"लेकिन उस्ताद ,सामने जो तीन डिब्बे रखे हैं उनमें क्या है?बात कुछ हजम नहीं हुई कहकर जम्हूरे ने उस्ताद से फिर पूछा.बीडू....चल.तू अपुन का खास आदमी है इसलिए पहले बता देता  हूँ.बाकी अक्खा मजमा फिट होने के बाद.
ढक्कन खुला ......पहले डिब्बे में मक्खन
                        दूसरे डिब्बे में मिर्च 
                        तीसरे डिब्बे में मठा 
पहले दुग्दुगी बजा फिर सबको एक साथ बताऊँगा मक्खन ,मिर्च और मठा का रहस्य ... और दुग्सुगी बज उठाई..डुग  डुग ..डुग... डुग.. मेहरबानों... साहबानों ... कदरदानों ....
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भीड़ में ठल्हा टाइम पास करते श्यामलाल ने बाजु में खड़े बीडी सप्चाते बिसाहू से बीडी  का जुगाड़ कर लिया और अपनी चोंच खोली-उस्ताद जल्दी समझाओ पहले डिब्बे का मतलब .उस्ताद ने मक्खन भरा डिब्बा उठाया और ऊंगली पर लगाकर इशारा कर दिया सरकारी दफ्तरों क़ी ओर.साहबानों.. कदरदानों ....श्यामलाल को मक्खन क़ी महिमा नहीं मालूम.अपना काम कराने सरकारी दफ्तर पहुंचा आदमी बाबुओं को क्या लगाता है?बाबू आपने साहब और वह साहब आपने बड़े साहब को क्या लीपता है?संस्थानों,सेक्रेतेरिएत मंत्रालयों में ऊंगली तो क्या कईयों के हाथ और " उस पर "  क्या लगा होता है?मक्खन ही ना! लगाने वाले को मजा बाद में पहले तो मक्खन चुपड़वाकर अगला तो निहाल हो ही जाता है.
                             उस्ताद ! कुछ मिठलबरा कर्मचारी अपने  बॉस को ... स्टुडेंट  अपने टीचर   को टीचर अपने प्रिंसिपल को ... दरी उठाऊ नेता रायपुरी और दिल्ली लेवल के नेताओं को वो क्या कहते हैं " पोलसन " नहीं लगाते? सो ,फार्मूला नंबर वन -मक्खन शरणम गच्छामी ...खाओ मत... लगाओ ज्यादा....
          जम्हूरे और उस्ताद क़ी बात चल ही रही थी क़ी भीड़ चीरकर एक बदहवास पागल गोल घेरे के बीच आ गया.मैले-कुचैले तार-तार कपडे पहने हाथों में मैगजीन ,कुछ सर्टिफिकेट और अखबारी कतरनों का पुलिंदा लेकर वह नौजवान अचानक आकाश क़ी ओर मुहं उठाकर चिल्लाने लगा-------मक्खन हो तो काम बने ,सुन मक्खन क़ी धुन
                                                      कब, किसको कैसे लगे,इसी बात को गुन
उस विक्षिप्त नौजवान क़ी जिंदगी का यह खरा-खरा रंग था .उस्ताद क़ी आँखे बरबस सजल हो गईं.हाशिए पर खड़ा मैं सोचने लगा ,"काश !जिंदगी देने वाले विधाता को इसने " वो " लगाया होता ...पेट से सीखकर आता वो मक्खनिया अदा सफ़ेद अदृश्य मक्खन में छिपे काले चेहरों को समझ लेता ... नौक्र्री छूटने से वह पागल तो नहीं हो गया होता ? 
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मेहरबानों.....साहबानों...... कदरदानों .....
मामला सेंटीमेंटल होते देख जम्हूरे ने दूसरा डिब्बा उठा लिया .उस्ताद ! अब समझाओ इन मिर्चों का मतलब !जम्हूरे ने ढक्कन खोलने के बाद उसमें भरी मिर्चों को घूरकर कहा.
"देख जम्हूरे!इन दिनों मिर्च खाने का काम लगाने का काम ज्यादा कर रहे हैं लोग.फार्मूला नंबर २.-मिर्च लगाओ... या तो खुद जान जाओ क़ी कब किसे कितनी लगनी है.या फिर है कमान से पूछकर ... मेरा मतलब है बॉस के कहने पर किसे साथी को भी लगाई जा सकती है.अब उन मिर्चों का किस पर कितना असर हुआ यह तो पिछवाड़े पर हाथ धरे उस भुक्त भोगी के उछल-कूद करने के अंदाज से पाता चल जायेगा जो बरास्ता मुहं अपनी भड़ास निकल रहा हो.
                      शायद इसलिए मिर्च खाने क़ी क्म"लगाने का चर्चा ज्यादा होता है.जम्हूरे ने सी...सी... करते हुए उस्ताद क़ी ओर देखा ... भीड़ में पेलमपाल करते लोग कुछ सतर्क हो गए थे ... बगलें झाँकने लगे ... क्या पता कब कौन किसे किस तरह " मिर्चाइटिस"का शिकार बना दे.उधर नगर निगम के दफ्तर के बाहर पान ठेले पर रखे ट्रांजिस्टर में अचानक गोविंदा क़ी किसी फिल्म का गाना गूंजने लगा था- _तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ !!!!
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मेहरबानों.......साहबानों.....कदरदानों.....उस्ताद ने मिर्ची वाले गाने में लिपटे अपने कान झाडे और फिर मुखातिब हो गया अपने मजमे क़ी ओर -अब तीसरे डिब्बे क़ी बारी थी .जम्हूरे के हाथो क़ी खुजली असहनीय हो गई थी .झट जाकर उसने ढक्कन खोल दिया.भीड़ उचककर झाँकने क़ी कोशिश करने लगी....आखिर क्या है उस डिब्बे में.!!!अपने हाथों में उठाकर उस्ताद ने उस डिब्बे में रखा सफ़ेद तरल पदार्थ पास ही उगी किसी पौधे क़ी जड़ में डाल दिया .खाली डिब्बा उठाकर तमाशबीनों के सामने उस्ताद शैतानी मुस्कान के साथ भाषण नुमा इस्टाइल में कहने लगा -" भाइयों! और बहनों ..मैंने इस पौधे क़ी जड़ में "मठा डाल दिया है अब देखना इस का अंजाम क्या होता है!सजन सिंग ,रंजीत योगी ,विधाता चरण शुक्ल ,बाल कृष्ण   झाड्वानी सभी  इस "मठावाद" के महा पंडित हैं .दोनों ही बाते होती हैं .या तो इनकी जड़ों में कोई मठा डालने क़ी जुगत में होते हैं या फिर....(आप समझ गए होंगे)
                       गर्मियों में मठा पीने का मजा ही निराला है -भीड़ में मुंडी उचकाकर एक बत रसिया ने कहा.बाजू  वाले  चुहलबाज ने पलटकर वार किया -" पर भैये!यह पीने क़ी चीज रह कहाँ गई है  ,चर्चा तो सिर्फ किसी क़ी जड़ में मठा डालने का ही होता है.महापंडित चाणक्य सैकड़ों बरस पहले इतिहास क़ी कहानी दर्ज कर गए हैं वह भी मठा डालने से शुरू होकर ख़त्म होती है.उन्ही क़ी परंपरा को समाज का हर तबका आगे बढा रहा है.मठा पुराण क़ी इन बातों के दरम्यान ही भीड़ में खड़ा शोह्देनुमा छात्र कोन्टे में सहमे से लेक्चरार क़ी ओर देखकर विलेनी अंदाज में अपने आप में मुस्कुराया.मानो  मनही मन उस लेक्चरार से कह रहा हो ,"बेटा! उस समय कैसे ठीक कर दिया था तुझा जब नक़ल करते वक्त पकड़ लिया था मुझे!एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष से कहकर इन्क्रीमेंट रुकवा दिया था .
                      इधर  कलेक्टोरेट के सामने से गुजरते जुलूस में नेता भी दांत निपोरकर जानता के सामने हाथ जोड़ते हुए यही सोच रहा था -जानता के लिए चुनाव में कौन सा नया "मठा -पेकेट"लेकर आंऊ?मेनेजर, बॉस, नेता ,अधिकारी,प्रिंसिपल,संपादक ,उद्योगपति,सबकी टेबल पर रखा पानी से भरा गिलास मुझे न जाने क्यों मठे से भरा नजर आया.
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यकायक किसी पुलिस अफसर क़ी गाड़ी मजमे के सामने आकर रुकी.डंडा लहराते हुए जवान ने उस्ताद का  कालर पकड़ा और चीखा , अबे ! भीड़ लगाकर हल्ला करवा  रहा है!मजमा बंद कर वर्ना!!!!!फार्मूला -१ के तहत मक्खन लगाने उस्ताद उस्ताद कि कोशिश विफल हो गई."दबंग पुलिसिया साहब के रौब के सामने "मिर्च वाला कोई आइटम ट्राई करने का सोच ही नहीं सकता था वह.मजमा खलास... उस्ताद भी पतली गली से खसक लिया .मक्खन... मिर्च...और मठा पुराण की महिमा यहीं पर ख़त्म नहीं  हुई.यह तो सिर्फ प्रथमो ध्याय समाप्तः है .पर जजमान...अगली बार दक्षिणा का मक्खन लेकर आना तभी बताऊँगा मक्खन... मिर्च और मठा पुराण में जिंदगी के कितने रंगों का समंदर छिपा हुआ है!!!!!!!!!!
                                                                      

1 टिप्पणी:

  1. किशोर भाई
    माखन और मिर्च का तो अधिक नहीं पता पर माठा का जानता हूँ.यह कुटीर उद्योग के लेवल पर भी बनता है, नेशनल लेवल पर और इंटरनेशनल ब्रांड भी मिलता है.कई बार तो मठ में भी मट्ठा बनाया जाता है ,इसके मठाधीश भी होते हैं. मट्ठा का ध्यान रखियेगा .मलाई निकले जाने के बाद जो बच जाता है वह बहुलांश ही मट्ठा होता है.मलाई तो ऊपर होता है, ऊपर वालों के लिए होता है ,आम ज़नता के लिये तो मट्ठा ही बचता है.कभी तो वह पीती है कभी दुसरे की ज़रों में डालती है.

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