तेरे बगैर नींद न आई तमाम रात ....
वैसे नींद और ख्वाब का अपना विज्ञानं,मनोविज्ञान और फलसफा है.कुछ लोगों को नींद में ख्वाब आते हैं,कईयों को नहीं आते और वे घोड़े बेचकर सोते रहते हैं.और, इसी बात पर शहरयार हर शब् (रात)कि बात कुछ इस अंदाज में करते हैं -
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख्वाबों का क्या है,वे हर शब् आते हैं
शब् हो या सुबह ,प्रोफ़ेसर प्यारेलाल नींद को शोहरत से जोड़ लेते हैं.उनकी राय में अनचीन्हा होना शोहरतमंद होने की बनिस्बत अधिक सुकून भरा होता है.हाई प्रोफाइल लोगों के बिस्तर की सलवटें चुगली करने लगती हैं कि सहज नींद के लिए कई बार उन्हें ड्रग्स या दीगर तरीकों का सहारा लेना पड़ता है.योग और ध्यान में बेहतर नींद का विकल्प तलाश किया गया है.लेकिन एकबारगी शोहरत या सम्पन्नता तनाव बढाती है जो नींद न आने का कारण बन जाता है.इसलिए कहा गया है-
शोहरत मिली तो नींद भी अपनी नहीं रही
गुमनाम जिंदगी थी तो कितना सुकून था.
सुकून से कागज ओढ़कर पत्थर कि फर्श पर सोते देखा है मेहनतकश इंसानों को.इसके ठीक विपरीत अपने सीने पर लेटने वाले उन अभागों को देखकर वे बिस्तर खुद को न जाने कितना कोसते होंगे जो उन्हें सुलाते-सुलाते खुद ही सो जाते हैं.तन्हाइयों में जीने वाले ,मजदूर,बेसहारा व् आकेलेपन को जीने वालों के अपने अपने दर्द हैं जिनका हल उन्हें ढूंढना होता है.वैसे तो एक सचाई यह भी है कि- न मरते हैं न नींद आती ,न तो सूरत बिखरती है
ये जीते जागते हम पर क़यामत सब गुजरती है
नींद कई बार खास मौकों पर भी गधे के सर से सींग कि तरह गायब हो जाती है.परीक्षाओं में विद्यार्थियों की,नतीजों की पहली रात और चुनाव से पहले प्रत्याशियों की.लिहाजा नींद का समय प्रबंधन हर किसी को अपने रोजगार या जीवन शैली के अनुरूप ही करना होता है.
रात्रि पाली में काम करने वालों की नींद अक्सर अल्सुब्बह की खटर-पटर से टूट जाया करती है .वे दिन में नींद पूरी करते हैं.पर यूँ कहा जाता है के नींद जो रात की है वह प्राकृतिक है.कहीं न कहीं पर खामियाजा भुगतना पड़ता है .दिन की नींद तो सिर्फ आपदा प्रबंधन है.
" नींद न आने की एक और वजह है " एकाएक दद्दू ने सोच के पहलू को नया मोड़ दिया ," गुलाबी ठण्ड के मौसम में जब दिल रूमानी होने लगता है कब्र में सोने वाले भी चौंककर नींद से उठ जाते हैं, यह कहकर,"ये क़यामत भी किसी शोख की अंगड़ाई ".अपनी मजबूरियां होती हैं जवान दिलों की .एक-दूजे के लिए नींदों का सिलसिला कोसों दूर हो जाता है.प्रेमी दिलों की धडकनें सिर्फ यही गुनगुनाती हैं-
नींदों का सिलसिला मेरी आँखों से है दूर
हर रात रतजगा है तुझे देखने के बाद
आ री आ जा निंदिया तू ले चल कहीं....लल्ला लल्ला लोरी...जैसी फ़िल्मी लोरियां देखी सुनी हैं पर माँ-दादी की लोरियों का स्थान सी-ड़ी और एम् पी थ्री ने भी ले जिया है.अब ये बीते ज़माने की बातें लगती हैं.काश इन लोरियों को कोई संकलित कर पाता. Early to bed and early to rise ,Is the way to be healthy ,wealthy and wise.
नर्सरी की किसी अंग्रेजी राइम का अंश अब तक याद है.इसके मुताबिक जल्द सोना और जल्द उठाना स्वस्थ, संपन्न और बुद्धिमान होने के लिए जरूरी है.सोलह आना खरी बात है लेकिन आज की जीवन शैली - टी वी ,लेट नाईट शो ,डिस्क,कालसेंटर की नौकरियां ,रात की दूती आदि के चलते कहाँ मुमकिन है? खैर...समाधान हम समस्याओं की कोख से ही ढूंढ निकलते हैं.
शेख सादी ने नींद पर बड़ी अच्छी बात कही है ,"खुदा ने बुरे लोगों को भी नींद इसलिए दी है ताकि अच्छे लोग परेशां न हों " .पता नहीं यह आज के ज़माने में कितना सच है पर फील्डिंग का यह कथन हमें सोचने पर विवश करता है जब वे यह कहते हैं,'मध्यरात्रि के एक घंटा पहले की नींद मध्यरात्रि के दो घंटा बाद की नींद से अधिक श्रेयस्कर है."
"छः से आठ घंटे की नींद अच्छी तबीयत के लिए जरूरी मनी जाती है" प्रोफ़ेसर प्यारेलाल एक बार फिर अपनी पर उतर आते हैं ,"राजा और रंक सभी को नींद एक जैसा बना सेती है.जिसने नींद को सबसे पहचाना था... उसे महसूस किया था उसे ढेर सारी दुआएं .नींद सारे इंसान को पूरी तरह ढक लेती है.सिर्फ एक ही बुरे है इसमें वह यही की इसकी शक्ल मौत से मिलती-जुलती है."
आखरी अल्फाजों .के साथ जब प्रोफ़ेसर मेरी ओर मुखातिब होकर कहते हैं," यार अखबार नवीस !चुप क्यों हो... कुछ तो कहो!" मैं जवाब में उन महबूब आँखों के लिए इतना ही कह पाता हूँ -
मालूम थी मुझे तेरी मजबूरियां मगर
तेरे बगैर नींद न आई तमाम रात
अपना ख्याल रखिए..शब्बा खैर.. शुभ रात्रि ...
किशोर दिवसे
11:58 am
नींद को तो आना है
जवाब देंहटाएंनहीं आना एक बहाना है ,
किस्सा पुराना है ,
दिन में देह से कम कराना है
तो रात को तो नींद को आना है ,
भाई दिवसे, यह तुकबंदी नहीं,
खेतिहर का बताना है.
ye farmula to maznu par bhi kam karta
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