सर जी , आपने भी दिल के तहखाने में यादों के कुछ लम्हे छिपाकर रखे होंगे ....जब ऊपरी होठो पर मूछों की लकीर उभरी होगी ... किसी को देखकर नींद गायब हुई होगी और बिस्तर की सलवटो ने आपसे ही चुगली कर दी होगी उनींदा उठने पर. ये अलग बात है कि अब नींद उड़ने के लिए जिम्मेदारिया भी असरदार होती है . फिर भी हम वक्त गुजरने के साथ साथ नींद लेना सीख जाते है.पर सच बताइए कि क्या आपने उन लम्हों को कभी जिया ही नहीं???जिसका जिक्र मैंने किया है?मजनू, खेतिहर या यु कहिये सभी का यह एक कहा- अनकहा अफसाना है ...
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