शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

ममता का आँचल

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सच्ची पापा ... मैंने आप में देवदूत को देखा था.... ईश्वर का रूप भी आपसे अलग नहीं समझा था मैंने.... फिर   क्यूँ आपने मुझे नहीं बताया के मैं गोद ली हुई बेटी हूँ! क्या आपकी बेटी इतनी कमजोर थी कि वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकती थी या आपके ही मन में कहीं यह डर था मुझे खो देने का? पापा... आपने तो मुझे अपने आंसुओं से सींचा है.इतने सालों बाद भी मेरे मन में कभी यह सवाल नहीं उठा क़ि, मेरे असली पापा कौन होंगे... भले ही मुझे मेरी सहेलियों से पता चल चुका था."
                       स्नेह की डायरी के पन्नों पर लिखी इबारत त्रिलोचन बाबू के आंसुओं से धुंधली हो गई.कांपते हांथों से वह डायरी वहीँ पर गिरी जहाँ दुल्हन के सिंगार में बिदा होती स्नेह की आँखों से आंसुओं के फूल जमीन पर गिरे थे.त्रिलोचन ने आंसुओं से भीगी माटी को पोरों से उठाकर उसी डायरी के पन्नो में सहेज लिया.गोद ली बेटी बिदा हो गई ससुराल पर इस सवाल ने त्रिलोचन के मन में हूक उठा दी थी, " मैंने शादी होते तक स्नेह को यह बताया ही नहीं कि वह मेरी गोद ली हुई बेटी है.मेरा फैसला सही था या गलत..... सचमुच अपनी बेटी को मै अगर खो देता तब!अपनी बेटी को मैंने इतना कमजोर क्यों समझा!क्या वह मेरे स्नेह बंधन में छिपे पश्मीने भाव को नहीं समझ पाती?
                       " त्रिलोचन ,तुमने स्नेह को न बताकर ठीक नहीं किया."   "नहीं...नहीं...मैं बिलकुल गलत नहीं हूँ..." मेज पर रखे आईने में त्रिलोचन को अपनी ही दो शक्लें दिखाई दीं.एक दूसरे से जिरह करती हुईं .और उनसे जवाब मांगता वह सवाल विचारों के खंजर लिए हुए लहूलुहान करता ही रहा त्रिलोचन को.
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तीन से सोलह बरस का सफर ... ट्रेन पूरी रफ़्तार से दौड़ रही है अपने  गंतव्य की ओर.फेयरी क़ी जिंदगी किशोर वेय में ही इतनी " अनफेयर " क्यों हो गई थी?गोद लिए होने का मतलब यह तो नहीं क़ी वर्जनाओं के परबत लाद दिए जाएँ!मम्मी... पापा... भैया....सब मिलकर मुझपर कितनी सख्ती बरतते  हैं!मुझे... मेरे मन को भीतर से समझने क़ी कोशिश कोई क्यों नहीं करता? तीन एजर मन कच्चा लोहा होता है.किसी के भी प्यार का चुम्बक उसे आकर्षित कर लेता है ." खुद को न समझे जाने और अति वर्जनाओं से उपजी अपोजिट रिएक्शन ने फेयरी को गलत रास्ते पर डाल दिया.? साईंकियाट्रिस्ट के कहने पर जब गलती का एहसास हुआ काफी देर हो चुकी थी.
                                   अँधेरी सुरंग से दूर करने फेयरी को " बड़े शहर " भेजा जा रहा है .... बहाना पढने का.काश ! मुझे समझने क़ी कोशिश क़ी गई होती.  माँ... माँ ...फेयरी क़ी आँखों से आंसू उसकी नावेल पर गिरे.मेक्सिम गोर्की  के उस उपन्यास का शीर्षक था " मदर ".ट्रेन क़ी रफ़्तार के साथ ही फेयरी कि माँ भी दौड़ रही  थी पूरे आवेग से .... धक् धक् धक् धक् !
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" निपूती बाँझ कहीं क़ी... अब तो अपने बेटे क़ी शादी किसी दूसरी लड़की से कर दूँगी..."इस तरह के कलेजा छलनी कर देने वाले फिकरे बदलते समय और शिक्षा के प्रभाव से शहरों में तो काम पर गाँव में अब भी सुनने को मिल जाते हैं. समय पर बच्चा गोद लिए जाने क़ी आवश्यकता ,लाभ और सहूलियतों क़ी समाज के भीतर गहराई तक समझाइश दिया जाना आज भी जरूरी है.हकीकत यह है क़ी शहर -गाँव दोनों जगह खुली मानसिकता देखने नहीं मिल रही. लिहाजा इस दिशा में जन जिहाद अमल में लाना होगा.भ्रम और अंतर्द्वंद का घटाटोप बच्चा गोद देने वाली संस्थाओं के रहने पर भी छटता  नहीं है.
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अखबार नवीस!कई विदेशी  ,भारत आकर यहाँ के बच्चों को गोद ले रहे हैं,क्या तकदीर है उनकी! दद्दू के इस हैरत भरे सवाल क़ी तृष्णा को मैंने शांत किया ," विदेशी परिवारों में बच्चे काम रहते हैं.अतृप्त मातृत्व क़ी प्यास वे महिलाऐं बच्चे गोद लेकर और कुत्ते पालकर भी पूरी करती   है.अपने देश में साक्षरता के अभाव में एक तो बच्चे पैदा करना ही  कई जगह " मनोरंजन उद्योग समझने की मजबूरी है .दूसरा जिन नेताओं के ही ८-१० बच्चे हों वे क्या खाक शिक्षा देंगे अवाम को?तीसरा इंसानों के बच्चे कुत्तों क़ी तरह लावारिस और बेसहारा घूमते दिख जाते हैं लेकिन इलीट क्लास के लोग उन बच्चों का भविष्य बनाना सोचने के बजाय कुत्तों को राजकुमार क़ी तरह पालते हैं.सबसे बड़ी विडंबना यह है क़ि निःसंतान दंपत्ति मनोवैज्ञानिक रूप से इतने कमजोर हैं क़ि वे ख़ुदकुशी कर लेते है मगर बच्चा गोद नहीं लेते.. क्यों!!!!
                                  दद्दू कुछ विचार मग्न प्रतीत हो रहे थे क़ि मैंने उन्हें याद दिलाया के मिस  यूनिवर्स  सुष्मिता सेन, अंजेलिना जोली और अनेक अभिनेत्रियों ने खुद कुंवारी रहकर भी बच्चे गोद लिए हैं.उनके बदन उघदूपन के आलोचक इस जज्बे की प्रशंसा क्यों नहीं करते? नव धनाढ्य वर्ग इनदिनों जगराता  और बाबावाद के जरिये अध्यात्म क़ि  जीतोड़ मार्केटिंग कर सकता है. धार्मिक कार्यक्रमों से आपत्ति नहीं पर सामाजिक सरोकार के प्रति वे शतुरमुर्ग बनकर  आँखे क्यों मूँद लेते हैं? लायंस , रोटरी तथा जेसीज जैसी संस्थाएं भी लावारिस बच्चों तथा दीगर बच्चों को गोद लेने जनजागरण कर सकती हैं.
                                  मेरे एक पत्रकार मित्र एक परिवार में सिर्फ यह देखने गए थे क़ि गोद ली हुई बच्ची वयस्क होने के बाद परिवार में कितना मानसिक तौर पर एडजस्टमेंट   कर पाती है .वात्सल्य की  पराकाष्ठ  देखिए महिला की  आँखों  से आंसू झरने लगे थे .उसने यह भी कहा " भगवान के लिए....कोई स्टोरी  नहीं देनी है अख़बार में... उसे पता भी नहीं चलना चाहिए क़ि वह गोद ली हुई है.
                              दद्दू बता रहे थे ," अखबार नवीस ! मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो जिसने  बच्चा गोद लिया पर जिम्मेदारी नहीं समझी." मैंने जब बीच में टोका तब उतावले होकर दद्दू बोले,"पूरी बात तो सुनो ,उसने गैर जिम्मेदारी की  हद कर दी.दारू पीना नहीं छोड़ा और असमय ही खर्च हो गया.?
                              गोद ली हुई एक बच्ची माया आज मेडिकल कालिज में पढ़ रही है.सभी के चेहरे पर हर्षातिरेक... पर यह तभी संभव हुआ जब माता-पिता ने पूरी जिम्मेदारी से माया क़ि परवरिश की.डाक्टर पटेल के गोद लिए बच्चे ने जब सान फ्रांसिस्को से अपने बूढ़े माता- पिता को ख़त लिखा और वाहन आने के लिए हवाई टिकट भेजे उनकी आँखे भर आई.मैं उनसे इतना भर कह पाया," यह तो ऋणानुबंध है डाक्टर साहब!क्या फर्क पड़ा अमित गोद लिया बेटा है!आज जब बच्चे अपने बूढ़े माँ बाप को सहारा देने में कतराते हैं तब गोद लिए बच्चे अनमोल वरदान नहीं तो और क्या हैं?
                                  " लेकिन अखबार नवीस!लोग गोद लिए बच्चों की परवरिश के मामले में भी साईंकियाट्रिस्ट से सलाह लेने में झिझकते क्यों हैं?दद्दू के इस सवाल का जवाब आप भी सोचकर दीजिएगा.और हाँ...बेशक लोग भले ही यह मानने लगे हैं कि गोद लेना अच्छी बात है लेकिन सामाजिक संस्थाएं इस महायग्य के प्रति उदासीन क्यों हैं?गोद लिए बच्चों के परिवार हों या समाज इन यक्ष प्रश्नों का जवाब उनके पास भी नहीं क़ि-गोद लिए बच्चों को क्या बताया जाए क़ि वे "अडाप्ट" किए हुए हैं!बताया जाए तो कब?नहीं बताया जाए तो क्यों नहीं?                        सोचिए  और बताइए...                             
                                                                        किशोर दिवसे 
                                             e-mail             kishore_diwase@yahoo.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  2. आदरणीय किशोर दिवासे जी
    नमस्कार !

    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  3. अगर गोद सच्चे मन से लिया है और उसे अपना माना है तो फिर क्यों बताना ……………बताने का मतलब तो साफ़ है कि आपने अभी तक उसे पूरी तरह नही स्वीकारा और यदि स्वीकारा है तो वो गैर नही फिर बताने जैसा कुछ बचता ही नही।

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