दद्दू: हर समय भीड़ के बावजूद मेरे मन में अकेलेपन का डर तब तक बना रहा जब तक मैंने स्वयं को पहचानना
नहीं सीख लिया .
बुद्धिजीवी: मुझे भी हमेशा किसी काम में असफल होने का डर रहता था.लेकिन यह डर उस समय दूर हो गया जब यह एहसास हुआ की मै विफल तभी होता हूँ जब सही कोशिश नहीं करता.
दद्दू: लोग मेरे बारे में क्या सोचते होंगे इस बात का डर मेरे मान में बना रहता था .यह सोच उस वक्त समाप्त हो गई जब मैंने स्वयं तय किया कि लोग तो अपना-अपना नजरिया रखेंगे ही ,मुझे भी तो आगे बढ़ना ही है.फिर क्या था, लोगों के सोचने का डर ख़त्म!
बुद्धिजीवी: पहले मुझे इस बात का डर था कि कहीं मैं ठुकरा न दिया जून.जब मेरे मान में आत्मविश्वास बाधा अपने " रिजेक्शन का डर काफूर हो गया.
ददू: कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.इस लोकोक्ति पर मुझे तब भरोसा हो गया जब मैंने सबसे पहले अपने आप पर ही भरोसा करना सीखा .आत्मविश्वास से उपजा डर तब मिट गया जब यह सोच बनी " विकास करने के लिए किसी न किसी स्तर पर दर्द या तकलीफें बर्दाश्त करनी पड़ती हैं.
बुद्धिजीवी: आज के ज़माने कि अनेक सच्चाइयों से मैं पहले तो डरता रहा झूठ के मुखौटे के भीतर छिपी बदसूरती का जब अनुभव हुआ मेरे मन में दो-टूक सच कहने का डर जाता रहा.
दद्दू: जानते हो बुद्धिजीवी!जिंदगी के रंग अनगिनत हैं.कभी समाप्त नहीं होंगे.चुनौतियों से डरकर में जिंदगी से ही घबराने लगा था.मैंने सखा कि अपने आसपास ही ढेर सारे लोग ऐसे हैं जिन्होंने कड़ी मेहनत से चैलेन्ज स्वीकारे और उनकी जिंदगी में सुख- सम्पन्नता कि खूबसूरती छा गई है.बस! उसी पास जिंदगी से घबराना छोड़ दिया.
बुद्धिजीवी: दद्दू ! यूँ ही एक बार मेरे मन में मौत कि अन्जान दहशत समां गई थी.कहीं मैं मर गया तब? लेकिन कुछ पुस्तकें पढने और कुछ अनुभवों से सीखकर यह जान गया कि मौत,जीवन की समाप्ति नहीं यह तो नै जिंदगी की शुरुवात है.अब मेरे मन में यह विचार नहीं आता " मैं अचानक मर गया तब"?
दद्दू : मरने की बात कायर लोग करते हैं.पुराने ज़माने में बुजुर्ग कहा करते थे " पाता नहीं मेरे भाग्य में क्या लिखा है? कम्युनिकेशन स्किल और व्यक्तित्व विकास के जरिए मैंने कुछ बातें समझीं हैं.अब नई जनरेशन से यही कह सकता हूँ " अपने भाग्य का विधाता इंसान खुद होता है." मैंने तो भाग्य से डरना कब से छोड़ दिया है.अपनी जिंदगी बदलने की क्षमता इन्सान में बुनियादी रूप से होती है.आवश्यकता मात्र उसे पहचानने की है.
बुद्धिजीवी: दद्दू! मैं जवान था तब " प्यार" शब्द से पहले - पहले घबराता था." उसके प्यार ने " मेरे दिल में वो रेशमी एहसास जगाया की मेरे भीतर का अँधेरा दूर हो गया और जिंदगी प्यार से तर- ब-तर हो गई.
दद्दू; जब मैं छोटा था मुझे लोगों के उपहास का डर था- सोचता था, " कहीं लोग मुझ पर हसेंगे तो नहीं? " यह डर ख़त्म हो गया जब मैंने अपने आप पर हँसना सीख लिया.
बुद्धिजीवी; अपने अतीत से डरता था में जब भरोसा हो गया के मेरे वर्तमान को वह नुकसान नहीं पहुँचाएगा ,वह आखिरी डर भी समाप्त हो गया.झिलमिलाते सितारों की रौशनी का सौन्दर्य ,चाँद की मौजूदगी में निहारने के बाद ही अब मुझे अँधेरे से जरा भी डर नहीं लगता.अब आप ही बताइए कि अपने बारे में क्या ख्याल है आपका?
अपना ख्याल रखिए
किशोर दिवसे
मोबाईल; 9827471743
.
12:57 am
AAP KI SOCH MAHAN HAI , HAME BHI AAPSE SEEKHNA HOGA.......
जवाब देंहटाएं