" बुरी नजर वाले तेरा मुहं काला" - किसी ट्रक के पिछवाड़े में लिखी यह इबारत क्या पढ़ी की अपने दद्दू शुरू हो गए .वैसे भी अपने दद्दू की खोपडिया में फिट राडार कब किस बात पर सिग्नल देना शुरू कर दे भगवान मालिक है.क्या यह जरूरी है कि बुरी नजर वाले का मुहं काला ही हो, गोरा भी हो सकता है क्योंकि हमारे फ़िल्मी गाने तो यही कहते हैं, " गोरों की ना कालों की, ये दुनिया है दिलवालों की ". खैर ...दद्दू के लिए मुद्दा था नजर यानी निगाह का और बहस के कई दौर में वे बचपन से बुढ़ापे तक की हर नजर का पोस्ट मार्टम करने लगते है.
रह गए लाखों कलेजा थामकर
आँख जिस जानिब तुम्हारी उठ गई
मस्का लगाने जब अपने दद्दू यह शेर ढीलते हैं तब मयारू भौजी समझ जाती है के अंटी ढीली करना है .... हरा नोट हाथ में आया नहीं कि दद्दू हो जाते हैं फुर्र अपने दोस्तों के साथ. पर इससे पहले ही भौजी ,दद्दू के हाथ में सब्जी के लिए झोला पकडाती है और दद्दू अपने चेहरे की खिसियाहट छिपाकर गप्पिस्तान की ओर कूच करने से पहले एक और शेर पेल देते हैं-
दुनिया में वो काम के काबिल नहीं रहा
जिस दिल को तुमने देख लिया ,दिल नहीं रहा
बात देखने की ही तो है.हम मुद्दतों से पालते हैं जिस दिल को अपने पहलू में , हम कुछ भी नहीं? तुम्हारी एक मस्त निगाह क्या पड़ी कि दिल तुम्हारा हो गया! क्या नौजवान, क्या उम्रदराज बात तो सच है लेकिन पड़ोस की चिकनी चाची जब" बुरी नजर "
लगी है कहकर नन्हे मासूम की किसम-किसम से नजर उतारती है .... काला टीका लगाती है तब दद्दू सर के बचे खुचे बाल नोंचने का असफल प्रयास करने लगते है.डाक्टर के पास ले जाना छोड़कर नजरें उतारने की कवायद उन्हें बकवास लगती है और रही चिकनी चाची की बात , महरी , बेऔलाद विधवा और सड़क बुहारती जमादारन को चिकनी चाची की खूंख्वार निगाहों की लेजर बीम से गुजरना पड़ता है सो अलग!
हर किसी को एक नजर से देखो अक्सर यही कहा जाता है.पर " कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना"रखने वालों की बात ही निराली है .मेडिकल साइंस में इसका तो इलाज है वह एक नजर से देख लेगा .लेकिन रूढ़ियों को महिमामंडित करने वाले झंडा बरदारों का क्या जो निहित स्वार्थों के तईं अगड़ा -पिछड़ा की सियासत करने बुरी निगाह वाले बन जाते हैं .यही वजह है की नेताओं की नजर कुर्सी से नहीं हटती और चाटुकारों की निगाहें किसी के रहम -ओ - करम से!
लेकिन तल्खियों की कडवी कुनैन से दूर मीठी मुहब्बत में डूबी ... दो जोड़ी निगाहें, कनखियों की मस्ती के बाद जब मिलती हैं... तब झुकी हुई पलकें हौले से कह देती हैं कि दीवार से कुनकुनी धूप नीचे उतर रही है.और नीची निगाहें बयां करने लगती हैं कि सब कुछ है और कुछ भी नहीं ... नीची निगाह में.कभी-कभी नजरें उम्मीदों को बांध लेती हैं और उम्मीद भरे दिल आपस में गुदगुदाकर गुनगुनाने लगते हैं -
सौ-सौ उम्मीदें बंधती हैं एक-एक निगाह पर
मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई
"निगाहें मिलाने को जी चाहता है" अचानक हरफनमौला अंदाज में प्रोफ़ेसर प्यारेलाल ने निगाहें मिलाने की बात की और अपनी यादों को ताज़ा करते हुए कहा कि कई बार नजरें भटकने लगती हैं महज इसलिए कि क्या पता किस भेस में तू मिल जाए!यह तो हुई प्रोफ़ेसर प्यारेलाल की बात लेकिन बनती और बबली क़ी उम्र के नौजवान ( अब उम्र का बंधन नहीं रहा) नजरों के इन्तेजार में उनकी नजरें ही कहने लगती हैं-
कभी तो हमसे मिलाओगे प्यार से नजरें
इस उम्मीद पे हम जख्म खाए जाते हैं
जख्म खाकर नजरें चुराने का एक सबब यह भी बयां करता है कोई टूटा हुआ दिल के " तू तो मेरे काबिल है लेकिन मैं तेरे काबिल नहीं."लेकिन सच यही है कि काबिल बनाना है अगर अपने बच्चों को तो उनपर सतर्क निगाहें रखनी होंगी.इंसान क़ी नजरें जितनी तेज होंगी उसके फैसले उतने ही मजबूत होंगे और काम होगी हादसों क़ी गुंजाईश .अपनी इसी पैनी नजर क़ी वजह से धनुर्धारी अर्जुन को उस वृक्ष क़ी टहनियां नहीं बल्कि उस पर बैठी चिड़िया क़ी आँख ही नजर आ रही थी.
प्रोफ़ेसर !कहाँ पौराणिक युग में घसीट रहे हो,आज क़ी बात करो .आज हर जगह ,घर-घर हर कोई ब्राड विजन और दूर दृष्टि क़ी बात करता है." दद्दू ने अपना दखल देते हुए कहा ," प्रोफ़ेसर और अख़बार नवीस ! बात जब नजरों क़ी हो रही है तब बार-बार आइना देखने वालों को यह जरूर कह देना-
आपको मैंने निगाहों में बसा रक्खा है
आइना छोडी, आईने में क्या रक्खा है
आईने में ही सब कुछ है ... उस वक्त जब निगाहें आँखों को आइना बना देती हैं.जरा गहराई से झांकिए उन आँखों में -सब कुछ तो है ना उनमें.....मुहब्बत...वफ़ा... जफा...गुस्सा ...शर्म -ओ-हया ...वो नशे का सुरूर .... तबस्सुम...दर्द का रिश्ता....मायूसी...मासूमियत...और खून के डोरों के साथ निगाहें बयां करती हैं आत्मविश्वास क़ी बुलंदी .लेकिन आज भी जब निगाहों या नजरों के बीयाबान में पल भर के लिए ही सही भटक जाते हैं तब हर किसी के दिल का दुष्यंत प्यार से कहता है -
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ...
अपना ख्याल रखिए......
किशोर दिवसे
मोबाईल ;९८२७४७१७४३
email kishore_diwase@yahoo.com
रह गए लाखों कलेजा थामकर
आँख जिस जानिब तुम्हारी उठ गई
मस्का लगाने जब अपने दद्दू यह शेर ढीलते हैं तब मयारू भौजी समझ जाती है के अंटी ढीली करना है .... हरा नोट हाथ में आया नहीं कि दद्दू हो जाते हैं फुर्र अपने दोस्तों के साथ. पर इससे पहले ही भौजी ,दद्दू के हाथ में सब्जी के लिए झोला पकडाती है और दद्दू अपने चेहरे की खिसियाहट छिपाकर गप्पिस्तान की ओर कूच करने से पहले एक और शेर पेल देते हैं-
दुनिया में वो काम के काबिल नहीं रहा
जिस दिल को तुमने देख लिया ,दिल नहीं रहा
बात देखने की ही तो है.हम मुद्दतों से पालते हैं जिस दिल को अपने पहलू में , हम कुछ भी नहीं? तुम्हारी एक मस्त निगाह क्या पड़ी कि दिल तुम्हारा हो गया! क्या नौजवान, क्या उम्रदराज बात तो सच है लेकिन पड़ोस की चिकनी चाची जब" बुरी नजर "
लगी है कहकर नन्हे मासूम की किसम-किसम से नजर उतारती है .... काला टीका लगाती है तब दद्दू सर के बचे खुचे बाल नोंचने का असफल प्रयास करने लगते है.डाक्टर के पास ले जाना छोड़कर नजरें उतारने की कवायद उन्हें बकवास लगती है और रही चिकनी चाची की बात , महरी , बेऔलाद विधवा और सड़क बुहारती जमादारन को चिकनी चाची की खूंख्वार निगाहों की लेजर बीम से गुजरना पड़ता है सो अलग!
हर किसी को एक नजर से देखो अक्सर यही कहा जाता है.पर " कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना"रखने वालों की बात ही निराली है .मेडिकल साइंस में इसका तो इलाज है वह एक नजर से देख लेगा .लेकिन रूढ़ियों को महिमामंडित करने वाले झंडा बरदारों का क्या जो निहित स्वार्थों के तईं अगड़ा -पिछड़ा की सियासत करने बुरी निगाह वाले बन जाते हैं .यही वजह है की नेताओं की नजर कुर्सी से नहीं हटती और चाटुकारों की निगाहें किसी के रहम -ओ - करम से!
लेकिन तल्खियों की कडवी कुनैन से दूर मीठी मुहब्बत में डूबी ... दो जोड़ी निगाहें, कनखियों की मस्ती के बाद जब मिलती हैं... तब झुकी हुई पलकें हौले से कह देती हैं कि दीवार से कुनकुनी धूप नीचे उतर रही है.और नीची निगाहें बयां करने लगती हैं कि सब कुछ है और कुछ भी नहीं ... नीची निगाह में.कभी-कभी नजरें उम्मीदों को बांध लेती हैं और उम्मीद भरे दिल आपस में गुदगुदाकर गुनगुनाने लगते हैं -
सौ-सौ उम्मीदें बंधती हैं एक-एक निगाह पर
मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई
"निगाहें मिलाने को जी चाहता है" अचानक हरफनमौला अंदाज में प्रोफ़ेसर प्यारेलाल ने निगाहें मिलाने की बात की और अपनी यादों को ताज़ा करते हुए कहा कि कई बार नजरें भटकने लगती हैं महज इसलिए कि क्या पता किस भेस में तू मिल जाए!यह तो हुई प्रोफ़ेसर प्यारेलाल की बात लेकिन बनती और बबली क़ी उम्र के नौजवान ( अब उम्र का बंधन नहीं रहा) नजरों के इन्तेजार में उनकी नजरें ही कहने लगती हैं-
कभी तो हमसे मिलाओगे प्यार से नजरें
इस उम्मीद पे हम जख्म खाए जाते हैं
जख्म खाकर नजरें चुराने का एक सबब यह भी बयां करता है कोई टूटा हुआ दिल के " तू तो मेरे काबिल है लेकिन मैं तेरे काबिल नहीं."लेकिन सच यही है कि काबिल बनाना है अगर अपने बच्चों को तो उनपर सतर्क निगाहें रखनी होंगी.इंसान क़ी नजरें जितनी तेज होंगी उसके फैसले उतने ही मजबूत होंगे और काम होगी हादसों क़ी गुंजाईश .अपनी इसी पैनी नजर क़ी वजह से धनुर्धारी अर्जुन को उस वृक्ष क़ी टहनियां नहीं बल्कि उस पर बैठी चिड़िया क़ी आँख ही नजर आ रही थी.
प्रोफ़ेसर !कहाँ पौराणिक युग में घसीट रहे हो,आज क़ी बात करो .आज हर जगह ,घर-घर हर कोई ब्राड विजन और दूर दृष्टि क़ी बात करता है." दद्दू ने अपना दखल देते हुए कहा ," प्रोफ़ेसर और अख़बार नवीस ! बात जब नजरों क़ी हो रही है तब बार-बार आइना देखने वालों को यह जरूर कह देना-
आपको मैंने निगाहों में बसा रक्खा है
आइना छोडी, आईने में क्या रक्खा है
आईने में ही सब कुछ है ... उस वक्त जब निगाहें आँखों को आइना बना देती हैं.जरा गहराई से झांकिए उन आँखों में -सब कुछ तो है ना उनमें.....मुहब्बत...वफ़ा... जफा...गुस्सा ...शर्म -ओ-हया ...वो नशे का सुरूर .... तबस्सुम...दर्द का रिश्ता....मायूसी...मासूमियत...और खून के डोरों के साथ निगाहें बयां करती हैं आत्मविश्वास क़ी बुलंदी .लेकिन आज भी जब निगाहों या नजरों के बीयाबान में पल भर के लिए ही सही भटक जाते हैं तब हर किसी के दिल का दुष्यंत प्यार से कहता है -
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ...
अपना ख्याल रखिए......
किशोर दिवसे
मोबाईल ;९८२७४७१७४३
email kishore_diwase@yahoo.com
11:05 pm
बहुत सुन्दर अन्दाज़्।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com