ख़त्म कर दो कचरा!
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जितना असह्य है कचरा
भीतर घर के और पड़ा
दीवार,अहातों के बाहर इर्द-गिर्द,
गलियों ,सड़कों ,नुक्कड़ ,चौराहों
गाँव ,शहर सड़ांध फैलाता
उससे अधिक पल-पल प्राण लेता है
दिमाग के भीतर बजबजाते और
फड़फड़ाते चमगीदडों जैसा कुंठित
संकीर्ण सोच का कचरा
सो, ख़त्म कर दो तुरंत
कचरा अपने दिमाग के भीतर
और बाहर का- इसी पल
वरना भोग रही हैं संत्रास पीढ़ियां
इतनी सी बात नहीं समझे आप!
नहीं है काम सरकार या नेता का
सिर्फ तय कर ले हर इंसान
नहीं रहेगा कचरा किसी और
तभी खिलेगी मुस्कान चहूँ और!
1:48 am
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