पिताजी.. मैं नहीं चाहता गुस्सा करना पर क्या करूं अपने आप पर काबू नहीं रख सकता."- एक बेटा कह रहा था.
" बेटा तुम एक काम करना,जब भी तुम्हे गुस्सा आये दरवाजे पर एक कील ठोंक देना." पिता ने उसे सलाह दी.कुछ ही दिनों में पूरा दरवाजा कीलों से भर गया.बदशक्ल दरवाजा दखकर बेटे को बड़ी कोफ़्त हुई.वह फिर गया अपने पिता के पास और कहने लगा< " पिताजी सारा दरवाजा कीलों से ठुक गया है पर गुस्सा है की कम होता ही नहीं.
" ऐसा करो बेटा मन में ठान लो की गुस्सा नहीं करना है.जिस दिन गुस्सा न करो एक कील उखाड़ लेना." पिता ने इस बार दूसरी सलाह दी.बेटे ने वैसा ही किया.इस बार कुछ ज्यादा दिन लगे पर दरवाजे से सारी कीलें उखड़ चुकी थी.अब वे दोनों दरवाजे के सामने थे.बेटा खुश था की मैंने अपने गुस्से पर काबू पा लिया है.
" बेटा देख रहे हो दरवाजे पर कीलों के भद्दे निशान!तुम्हारे गुस्से ने इसे बदसूरत बना दिया..अब तुम्हे गुस्सा नहीं आता पर दरवाजा तो बदशक्ल हो गया न!उस पर बने निशान तो नहीं मिटे!जानते हो.. घर के दरवाजे की तरह हमारे दिल का दरवाजा होता है.गुस्से में आप़ा खोकर किसी को इतने बुरे शब्द न कहें की उसके दिल के दरवाजे पर ऐसे ही अमिट निशान बन जाएँ...
अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना सीखें.प्लूटार्क ने कहा है,"क्रोध हंसी की हत्या कर ख़ुशी को नष्ट कर देता है.क्रोध उतना कारगर नहीं होता जितना की साह्स.ग्यानी पुरुष या स्त्री का पतन भी क्रोध से ही होता है.गुस्से को अगर जीतना है तो शांति से जीतो.
उनको आता है प्यार पे गुस्सा
हमको गुस्से पे प्यार आता है
अमीर मीनाई की इस बात पर आप अगर यकीन करते हैं तो बड़ी अच्छी बात है.प्यार से ही गुस्से की गरमी भाप बनकर उड़ जाएगी.पर एक बात जरूर है की हर उम्र के गुस्से का अंदाज-ए-बयां अलहदा होता है.अपने दद्दू का नाती मिंटू गुस्से में खिलौने तोड़ देता है.कोई गुस्से में आप़ा खोकर उल-जलूल बकने लगता है और शांत होने पर माफ़ी मांग लेता है.मुकेश गुस्से में आकर घर छोड़कर चला गया.मूर्ख स्नेह ने गुस्से में आकर खुद पर मिटटी तेल छिडक लिया.पति-पत्नी के बीच भी यदा कदा गुस्से का ज्वालामुखी फटता है.किशन को जब गुस्सा आता है वह खामोश रह जाता है.कुछ देर उसकी पत्नी राधा उबलकर ठंडी पड़ जाती है.बहरहाल आपकी महबूबा अगर गुस्से में हो तब यह सुनाना क्या बुरा है-
भवें तनती है खंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
किसी से आज बिगड़ी है जो वो क्यूं बन के बैठे है
सबसे खातारहम होता है भीड़ का गुस्सा क्योंकि उसका कोई चरित्र नहीं होता.गुस्से को विध्वंसात्मक होने की बजाये उसे क्रिएटिव दिशा में रूपांतरित किया जा सकता है बशर्ते आप चाहें.सुना है फ़्रांस के घरों और दफ्तरों में एक WRANGLE ROOM हुआ करता था.झगड़ने के लिए विशेष कमरे में जाया करते थे.किसी दफ्तर में सभी की मूर्तिया बना कर रख दी गहि थी.जब जिस किसी पर गुस्सा आता था उसकी मूर्ती पर चप्पलें बरसाया करता. अगर यह भारत में होने लगे तब कहाँ किसकी मूर्ती के परखच्चे मिलेंगे यह सोचा जा सकता है.और हाँ, अगर बात किसी प्रेमी जोड़े के रूठने -मानाने की है तब फ़िराक साहब ने तो सारी बला हमपर टाल दी है इस अंदाज में-
मान लो तुमसे रूठ जाये कोई
तुम भला किस तरह मनाओगे
तीन एजर्स का गुस्सा हमेशा उनकी नाक पर रहता है.नौजवानों का गुस्सा आत्म नियंत्रण के बगैर दिशाहीन, बेकाबू होकर अनहोनी तक पैदा कर देता है.खास तौर पर युवाओं को चाहिए की वे आलोचनाओं पर गुस्स्सा करने के बजाये चुनौती समझ कर कोई रचनात्मक लक्ष्य हासिल करें.अधिक गुस्सा करना भी कमजोरी का लक्षण है.इसे अपनी कमजोरी मत बनने दीजिये.जरा सोचिये आपके घर में गुस्सा कौन किस तरह से करता
है.और हाँ जब भी कोई गुस्सा हो जाये मन में यह बात आनी चाहिए की-
आपसे- हमसे रंज ही कैसा
मुस्कुरा दीजिये , सफाई है...
अपना ख्याल रखिये....
किशोर दिवसे.
5:11 am