शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

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,उन्हें मगर शर्म क्यों नहीं आती?
नवभारत के बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ संस्करण में एक खबर छपी है." सरकारी  परमिशन सड़क पर बाँट रही मौत".पंद्रह बरस  क़ी बच्ची झलक  मेघानी  की मौत कई सवाल खड़े करती है. नो एंट्री में प्रवेश करने के लिए सरकारी  ट्रक अन्नदूत को भीड़ भरे इलाके से जाने क्यों दिया गया?यातायात विभाग की चौकसी क्यों नहीं?  ट्रकों को भीड़ भरे यातायात के समय जाने देने का मतलब ही होता है की प्रशासन जिम्मेदार है इन मौतों के लिए..सड़कों से अतिक्रमण तो हटता नहीं( खास तौर पर शहर के प्रमुख मार्ग) , पार्किंग पर ध्यान दिया जाता नहीं,सारा मामला पैसे के लेन-देन से जुड़ा होता है.बड़े वाहनों के शहर के बीच से जाने का समय सुनिश्चित किया जाना जरूरी है.झलक जैसी  बच्ची या किसी भी इंसान क़ी हादसे में मौत के बाद समाज तो यह कहकर खामोश हो जाता है ," होनी को कौन टाल सकता है भला?" लेकिन कडवा सच यह है ," किसी को खोने का दुःख तो वही समझ सकता है जिसने अपने करीबी को खोया है?

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