आसमान की चादर से नीचे झुककर रमजान के चाँद ने खूबसूरत हरियाली को देखा.रोजेदारों के घर इबादत की पाकीजगी से सराबोर थे.हरियाली को देखकर चाँद मुस्कुराया और दोनों गुफ्तगू करने लगे.वक्त-वक्त की नमाज के लिए रोजेदारों की मसरूफियत के साथ ही सहरी -अफ्तार की आपधापी भी चाँद के लम्हों का एक हिस्सा थी. हरियाली भी तो सावन उत्सव में हरे शेड्स के आउट फिट्स में शोख.. हसीं ... और दिलकश लग रही थी.
" चाँद.. तुमने देखा!सावन उत्सवों में हम सब कितने मजे ले रहे हैं!- हरियाली बोली." ठीक कह रही हो हरियाली!" रमजान के चाँद ने कहा ,"हाँ.. इसलिए शायद... पाबंदियों के भीतर अपनी अनुकूलता के बाईपास बनाये और ढूंढ लिए गए है.आस्था -अनास्था जिंदगी का हिस्सा बन गई है.अपना-अपना "सर्फ़ एक्सेल" तलाशने की जिम्मेदारी भी अब खुद की हो गई है.
" चेहरे नजर आ रहे हैं मुझे रोजेदारों के" हरियाली के मयूरपंख फैले,"रौशनी से छिपा चाँद का अँधेरा कोना मैंने महसूस किया है.अमीरी -गरीबी की खाई दुनिया में अब भी बेहद गहरी है .यकीनन ,फाकेमस्ती करने वालों के लिए तो रोजे मजबूरी बन जाते है. बकौल निदा फाजली-
माहे रमजान वक्त से पहले नहीं आता
घर की हालत देख के बच्चों ने रोजा रख लिया
हरियाली के कानों में गूँज रही है सावन उत्सवों की मीठी-मस्ती भरी खिलखिलाहटें .
महिलाऐं सावन के मदमाते गीतों की मस्ती में मस्त हैं.रमजान का चाँद भी तकरीबन हर उम्र के रोजेदारों की खिदमत में मशगूल है. दरअसल रमजान का महीना जाने-अनजाने हुए अपने गुनाहों के दाग धोने का मौका है.हर एक मुसलमान के लिए ऐसी इबादत का वक्त जब वह जन्नत नसीब होने के लिए अच्छे काम करता है. रोजे के दौरान या रोजा-
भूख और प्यास का एहसास दिला देता है
रोजा इंसान को इंसान बना देता है
हरियाली ने चाँद को एक लतीफा सुनाया.अपने दद्दू और मियां जुम्मन दोनों ही उसके अजीज हैं. उनसे ही सुना था हरियाली ने-वह तरन्नुम में बोली-
माहे रमजान का मुझे भी एक लतीफा याद है
इत्तेफाकन एक दिन जुम्मन ने रोजा रख लिया
कर दिया इस कद्र हुक्के की तलब ने बाद हवास
पाँव में टोपी पहन ली,सर पे मोजा रख लिया!
सावन, हरियाली के यौवन उन्माद का प्रतीक है. हरियाली ने रमजान के चाँद से कहा," मेरे चाँद! रमजान के पाक मौके पर रोजेदार ,परवरदिगार के कितने करीब हो जाते है न!यूं लगता है की-
अल्लाह! क्या नसीब है ये रोजेदार के
बन्दे करीब हो गए परवरदिगार के!
दूधिया रोशनी है रमजान के चाँद की. उसकी छुअन से हरीतिमा और भी शोख हो जाती है.सावन बहकता है... छलकता है.. महकता और दहकता भी है..... बस जरूरत इसके एहसास की है.ॐ नमः शिवाय ... बोल बम.... की गूँज है..बहाने सावन के काश हम सब कुदरत के सुप्रीम पावर को याद कर उसका सम्मान करना सीख लें.एक और बात, सावन के उपवास हो या रमजान के रोजे- ईश्वर-अल्लाह के सामने सारी कायनात यह दिली एहसास करे की-
आज कोई ऐसा मजहब चलाया जाये
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये
मुस्कुरा रहा है रमजान का चाँद...उसकी दूधिया रौशनी ने हरियाली के गालों को छूकर ओठों पर मुस्कान ला दी है. तभी तो वो देखो सारे कोंपल.. पत्तियां और किसलय भी मस्ती में कैसे झूम कर खुशियों की हामी भर रहे है!!
जल्द ही मिलेंगे.. अपना ख्याल रखिये...
किशोर दिवसे
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1:06 am
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