शनिवार, 9 मई 2015

अगर आदिवासी हिन्दू हैं तो पारम्परिक वर्ण व्यवस्था में वे कहाँ हैं?

Posted by with 1 comment
अगर आदिवासी हिन्दू हैं तो पारम्परिक वर्ण व्यवस्था में वे कहाँ हैं?-क्षत्रिय, ब्राह्मण , वैश्य या शूद्र? मेरे मीडिया साथी आलोक पुतुल ने फेसबुक  पर यह सवाल उठाया है। मुझे लगता है कि  आदिवासी और हिन्दू दोनों ही शब्द- उत्पत्ति और क्रमिक विकास के नजरिये से  भौगोलिक, राजनैतिक,( राजनीति समर्थित संवैधानिक ) ऐतिहासिक , मान्यताओं  और निहित स्वार्थों का शिकार भी हुए हैं। दोनों ही शब्दों और जुड़े समूहों के मसले पर इतना अधिक घालमेल और असमंजस पैदा किया गया कि  आज भी कमोबेश यथा स्थिति कायम है। हालांकि संविधान ने कुछ स्पष्ट बात जरूर  की है।  फिर भी मिथक मिश्रित इतिहास और इतिहास के पुनर्लेखन के दौर में उहापोह अब भी कायम है।
                          कुछ इतिहासकार और नृतत्व विज्ञानी यह  मानते हैं की लोक हिंदूवाद या folk Hinduism आदिवासी मान्यताओं, मूर्ति  पूजा व् देवताओं का विलयीकरण है। यह धारणा मूल इंडो-आर्यन मान्यता के विपरीत है जिसके तहत  बन्दर, गाय, मयूर नाग,हाथी जैसे प्राणियों और और पीपल ,तुलसी,नीम,जैसे वृक्षों को पवित्र दर्जा दिया जाता रहा। कुछ आदिवासी जनजातियों  में यह सब कुल चिन्ह माने जाते रहे.  
आदिवासी शब्द भारत के मूल  निवासी  माने गए जातीय अल्पसंख्यक के  विविध समूह  के लिए प्रयुक्त छत्र शब्द umbrella term है। बांग्ला देश में भी आदिवासी तथा श्रीलंका में वेद्दा शब्द का प्रयोग होता है। नेपाल में इसे  आदिवासी तथा जनजाति  कहते हैं। संवैधानिक व्याख्या के अनुसार

                       हिन्दू शब्द का मूल धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा है।  Iहिन्दू वह व्यक्ति है जो भारतीय उद्गम के किसी भी धार्मिक विश्वास को मनाता है।  हिन्दू दरअसल कवि इक़बाल  , मंत्री एमसी छागला  तथा आर एस एस की राय में धर्म से परे  सिंधु नदी के दूसरे पार रहने वाला इंसान है।  परशियाई भौगोलिक शब्दावली में हिन्दू शब्द भी प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र की Indus River , संस्कृत में सिंधु ,नदी क्षेत्र के वासियों का स्थानीय नाम रहा। तब हिन्दू शब्द का आधार भौगोलिक रहा। कुछेक संस्कृत ग्रंथों में कश्मीर के रजत रंगिनी (Hinduka, c. 1450) प्रयुक्त हुआ। विद्यापति, एकनाथ और कबीर के काल खंड में धर्म का चेहरा लेक हिन्दू , और इस्लम आमने -सामने खड़ा हो गया। यहीं स्थिति चैतन्य चरितामृत ,
चैतन्य भागवत में रही। यूरोपीय सौदागरों और साम्राज्यवादियों ने भारतीय धर्मों के मानने वालों को हिन्दू कहा. ।(16 -18  वी सदी। ) उन्नीसवी  सदी में . धर्म ,दर्शन और संस्कृति के आधार पर हिन्दू की व्याख्या की गई।
                               बहरहाल  ,वर्ण व्यवस्था कालांतर में भारतीय समाज के भीतर पुरोहित वर्ग के वर्चस्व से उपजी कार्रवाई या साजिश का नतीजा प्रतीत होती है। आदिवासी  और हिन्दू शब्द व् मानव समूह को भौगोलिक  ,नृतत्व विज्ञानी, मिथकीय, दर्शन शास्त्रीय,राजनैतिक ,जातिगत या अनय  विवाद से  मुक्त कर विशुद्ध भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। भारत में सिर्फ भारतीय। जिनेटिक्स का आधार वैज्ञानिक शोध का अलहदा विषय जरूर हो सकता है। फिर भी आलोक पुतुल का यह मुद्दा बम  सोच के लिहाज से जरूर धमाकेदार है।बहस जारी रहे!

1 टिप्पणी: