"कृषि को" विजन -2015 " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा बना लेना चाहिए "
मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो " की नीति पर सोचें
क्या सचमुच में जमीनी स्तर पर कोई किसान नेता है?
क्या सरकार कृषि क्षेत्र के प्रति गंभीर दीखती हैं?
क्या खेतिहरों ( पुरुष व् महिला दोनों )की माली हालत ( उनकी चंद मजबूरी और कमजोरी के बावजूद) बेहतर कही जा सकती है?
क्या? बगैर मेहनत मुफ्त अनाज दिया जाना ऐसे लोगो को आत्मनिर्भर बनाने की बजाये उन्हें आत्मसम्मान विहीन नहीं बना रहा है?
क्या कभी सीमांत किसानों को कृषि उत्थान के योजना एजेंडा में शामिल किया गया?
क्या शहरों के अंधाधुंध विकास की कीमत पर गावों को सलीब पर नहीं लटकाया जा रहा है?
क्यों खेती की जोत भूमि और भूमि माफिया के अवैध रिश्ते सरकार और प्रशासन की आँखों की किरकिरी नहीं बनते?
अरे अरे अरे। ...... ज़रा सांस भी लोगे या फिर सवालों की मशीनगन दागते रहोगे दनादन !
इस दफे दद्दू ,हमारे मित्र प्रोफ़ेसर प्यारे लाल को लेकर आये। मैंने प्रोफ़ेसर प्यारेलाल से पूछा," प्रोफ़ेसर आप तो कृषि विश्व विद्यालय में हो। दद्दू के सवालो का जवाब मुझसे बेहतर दे सकते हो!"
" दद्दू के सवाल सौ फीसदी वाजिब हैं" प्रोफ़ेसर शुरू हो गए,"इन सभी सवाल और मुद्दों पर तो सरकारों , बुद्धिजीवियों , नागरिकों और प्लानरों को सोचना चाहिए। देशव्यापी बहस होनी चाहिए। यह भी सच है कि खेती के मसले पर अपडेट होना खेत मजदूरों , किसानों के लिए ,जरूरी है और इसके लिए उन्हें योजना में भागीदार भी अवश्य बनाना होगा। साथ ही आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान के मनोवैज्ञानिक मुद्दे पर भी उन्हें पुख्ता बनाने सरकारी तंत्र में कसावट की बेहद दरकार है। "
दद्दू को अखबार की एक खबर याद हो आई। वे बोले ,"महिला किसान कृषि आयोग के गठन की बात उठी है . यह मांग बुलंद की है भाजपा के दिग्गज तरुण विजय ने जो एक संपादक भी रहे हैं .बेशक स्वागत योग्य है लेकिन पहले हमें " महिला किसान (?)की परिभाषा पर गौर करना होगा .
हालांकि एक सर्वे रिपोर्ट में बतौर निष्कर्ष कहा गया है की देश में 66 फीसदी महिला किसान हैं अगर खेतिहर मजदूरों को भी शामिल कर लिया जाये तो इसका फीसदी 80 तक हो जाएगा ."
" निश्चित रूप से खतिहारों की हालत बेहतर नहीं कही जा सकती . हालत तो किसानो की बदतर है . देश में किसान आत्महत्याएं कर रहे है . तब ऐसी स्थिति में महिला किसान आयोग की मांग करना निश्चित रूप से सोचने वाली बात होगी ."- प्रोफ़ेसर ने अपनी राय जाहिर की।
" अपने देश में तो जब किसानो की बात होती है बनिहारिनो का जिक्र तक नहीं होता . एक और गम्भीर मसला है की जहाँ भी मुफ्त में अनाज की बात रही है खेतिहरों में लापरवाही देखी जा रही है . " - मैंने अपनी बात कही। ( शायद आपको भी अनुभव आया होगा हर कारोबार में लगे मजदूरों के संकट का. यहाँ पर उनकी तकलीफें और उनसे होने वाली शिकायते दोनों शामिल हैं ) . मुझे तो लगता है कृषि को" विजन -2016 " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा बना लेना चाहिए। कम से कम छत्तीसगढ़ सरकार यह जरूर कर सकती है। गाँव कम क्यों हो रहे हैं क्या इस पर किसी ने सर्वे किया? "
" हाँ अख़बारनवीस! " मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो " की नीति व्यापक बनाकर काम का इंतजाम अगर सरकार करे तो कैसा रहेगा? और मुफ्त अनाज उन्हीं को जो शारीरिक तौर पर निशक्त या विशेष श्रेणी( डिसेबल्ड) में आते हों "- दद्दू ने मशविरा दिया।
" वो तो ठीक है , , भाजपा के तरुण विजय महिला किसान आयोग की बात कर रहे हैं. वे संपादक भी रहे. उन्होंने यह सोचा कि मीडिया में खेती और उससे जुडी खबरों को कितना स्थान दिया जाता है? - प्रोफ़ेसर ने मुझसे पूछा।
"ये जो महिला आरक्षण बिल है वह पांच साल से क्यों अटका है? दद्दू ने मुझसे पूछा .,"इसके जरिये संविधान संशोधन होता . लोकसभा तथा राज्यों की सभी विधान सभाओं में में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जातीं .( शायद और भी बढ़ाने की बात चली है )
" ठीक कह रहे हो दद्दू ..राज्यसभा ने तो इसे 2010 में ही पास कर दिया था .लोकसभा अगर इसे पारित कर दे और देश की आधी विधानसभाएं अपनी मुहर लगा दें तब तो सचमुच महिलाएं राजनीति में अत्यधिक शक्तिशाली हो जाएँगी .
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" यही तो समझने वाली बात है दद्दू! अगर ऐसा हो गया तो राजनीति में मर्दों का वर्चस्व खतरे में नहीं पद जाएगा?वे यही तो नहीं चाहते की
महिलाएं शक्ति शाली हो जाएँ. ३३ फीसदी आरक्षण राजनीति में मिलने पर निश्चित रूप से उनकी राजनैतिक ,सामाजिक और आर्थिक हैसियत पुख्ता हो जाएगी . " कृषि को विजन -2015 " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा बना लेना चाहिए और मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो " की नीति पर सोचें। मुफ्त अनाज उन्हीं को जो शारीरिक तौर पर निशक्त या विशेष श्रेणी( डिसेबल्ड) में आते हों "-इन मुद्दों पर चलो रायशुमारी की जाये -इस पर सहमति के साथ हम तीनो ने विदा ली।
1:19 am
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