गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ

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नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत
आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ


अंदाज हर बरस के बीतने का कुछ अलहदा होता है .इस बरस के बीतने की दुपहरी छत्तीसगढ़ के निकाय चुनावों के सिलसिले में टीवी स्क्रीन पर  नज़रे गड़ाए गुजर  रही थी .  भाजपा का भगवा रंग धूमिल होने और कांग्रेस के चेहरे पर मुस्कान इंच -दर-इंच बढ़ने की खबर गरमाते जाने से सूपड़ा साफ़ होने और हौसला अफजाई के अक्स भी पारदर्शी होने लगे थे .कहीं ख़ुशी ... कहीं गम !
                   मोबाइल की स्क्रीन पर वैलकम 2016 , और अलविदा 2015  के संदेशे आने -जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी था .उम्मीद ... उल्लास ... ऊर्जावान ... खुश रहने की दुआएं और शुभकामनाएं आखों की पुतलियों से सामने से गुजर रही थी असहिष्णुता  ... सहिष्णुता ....आरोप - प्रत्यारोप .....मजहबी  अतिरेक के भोंडे प्रदर्शन की बढ़ती भावना के जूनून  का  रंग- बदरंग ......हमेशा की तरह नजर आया .इसी बीच अनुप्रिया के सन्देश  ने कुछ हौसला बढ़ाया-और वर्ष 2015 की विदाई की दुपहरी में मैं यही दुहराने लगा -

नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत
आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ
हर शख्स की उम्मीद का आसमान अलग होता है .... सपनों की मानिंद .ह़र किसी का अपना अलहदा अंदाज होता है बीते बरस को अलविदा कहने का.वर्ष 2015 की विदाई और2016 का  स्वागत करने प्लानिंग अमूमन पहले से ही हो जाया करती है.कईयों ने सोचा की आउटिंग कर ऐश करे और रात दारू-शारू के साथ मजे लें. जीत की ख़ुशी के जाम , हार के गम के भी जाम ...... अंगूर की बेटी तो हर मूड में ओठों से लगने को बेताब हुई जाती है, क्यों!
              नव- धनाढ्यों  का कुनबा बड़ी होटलों में साल की विदाई पार्टी के साथ "रात रंगीन " करने शराब -शबाब के पॅकेज डील कर चुका होता है.बीते बरस भी ३१ की रात को सुरूर में पहले तो तेज रफ़्तार सडको पर कुछ नौजवान घूमे फिर उनमें से कुछ अस्पताल में भी नजर आए.यह  हकीकत  थी ,है और शायद रहेगी भी!
                        वर्ष 2015 की रात को भी बारह बजे शहर जवान हो कर मस्ती में बल्ले-बल्ले कर रहा था. अपनी- अपनी सोच और नसीब के चक्कर में बीते साल की विदाई का अंदाज भी मजदूरों, मिडिल क्लास और रईसों की तकदीर- तदबीर के पारदर्शी अक्स दिखा जाता है.कहीं खुशी .. कहीं गम ...कहीं जोश-ऍ- जूनून तो कहीं झुंझलाहट नजर आती है.रात में टीवी के सामने " हात एंड मसाला कार्यक्रमों को देखने वालों का तबका भी होता है.युवा होस्टलों में जश्न का अलग अंदाज तो जिनकी एग्जाम चल रही है वे थोडा  सा एन्जॉय कर ज्यादा टाइम खोटी नहीं करना चाहते.
                               आज रात भी यही सब होगा . पिछले बरस अपने दद्दू ने टिप्पणी की थी ,"दोस्त! बाजार और नई हवा के इशारे पर ही सही लोग अब अवसरों को बिंदास तरीके से जीने की जीवनशैली अपना चुके हैं.यह बात अलग है की  जिंदगी में मिली सौगातें अपने-अपने पुरुषार्थ और नसीब का मिला-जुला फलादेश है.कुछ लोग नए वर्ष पर जश्न के साथ कोई रिसोलुशन भी लेते हैं . हाँ! कौन निभाता है कौन नहीं यह अपनी जिद की बात है.
                           " संकल्प के लिए नए बरस की शुरुआत की मोहताजग़ी   क्यों ? क्या हम साल भर उत्सव की तरह नए  संकल्पों के साथ नहीं मना सकते? "क्यूँ नहीं!नए वर्ष का सन्देश है परिवर्तन.हमसे जुडी  व्यवस्थाओं के प्रति जाग्रति,सच्चे ज्ञान ,प्रेम और खुशियाँ बाटने का संकल्प  कर हम साल भर उसपर अमल कर सकते हैं.रात गई, बात गई कहकर एक दिनी हुल्लड़ और अय्याशी से कुछ नहीं होने का.फिर भी टेंशन भरी जिंदगी में हम लोग फुल -टू मनोरंजन का कोई भी मौका नहीं चूकते..चूकना भी नहीं चाहिए.
       बीते बरस की विदाई और नए वर्ष के स्वागत को एक दिनी जश्न मानने वालों के अलावा बच्चे से बूढ़े तक के लिए नए वर्ष का समूचा अजेंडा  गुरुदेव रवीन्द्र नाथ  टेगोर की " गीतांजलि" में इन पंक्तियों से प्रतिध्वनित होता है-
                                जहाँ पर मस्तिष्क हो निर्भय,
                                  और भाल सदा गर्वोन्मत्त
                                  जहां  हो ज्ञान का मुक्त भंडार,
                                 जहाँ न हो विश्व विभाजित
                                  संकीर्ण सरहदी दीवारों से
                                    जहाँ सदा जन्म लें अक्षर
                                  ध्रुव सत्य की कोख से
                                 जहाँ अनथक  परिश्रम आतुर हो
                                  उत्कर्ष का आलिंगन करने
                                    जहाँ निरंतर प्रयोजन के स्रोत
                                   स्वार्थ मरू में न हो गए हो लुप्त
                                     जहाँ मेधा इन सत्य पुष्पों से
                                    सदैव हो परिचालित,विचारवान
                                     मेरे पिता!जागने दो मेरे देश  को!
चलिए छोड़िए.... बीते बरस की विदाई में जुट जाएँ  अपने- अपने तरीके से.कल सुबह कोई मंदिर जाएगा  भगवान से आशीर्वाद लेने ... आराध्य  से नया वर्ष सुखद होने की कामना करेंगे.कोई देर सुबह तक हैंगओवर के चलते उनींदा सा होगा. सो फिलवक्त l  मैं  आपका नया वर्ष खूब प्यार और खुशहाली भरा होने की कामना करता हूँ..
                           
                                     खुश रहिए ... खुश रखिए...और अपना ख्याल रखिएगा...
                                                                             किशोर दिवसे
                                                                               मोबाईल -09827471743                              
                                      

शनिवार, 26 दिसंबर 2015

मोदी बन गए बेनजीर ! या अँधेरे में तीर !

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मोदी  बन गए बेनजीर   ! या अँधेरे में तीर !



बिरियानी टू बर्थ डे डिप्लोमेसी..,गुडविल दौरा..गिफ्ट और .सरप्राइज डिप्लोमेसी ...ब्रेकफास्ट काबुल में , लाहौर में चाय ,.....क्रिसमस के दिन चौकाने वाली यात्रा के बरक्स सचमुच का बड़ा दिन .....और अपने -अपने नजरिये का तूफ़ान  और जिन लाहौर नहीं देख्यां ...उसने क्या जिया  ......न जाने कितने जुमले पीएम मोदी की चौकाने वाली हवाई यात्रा से उड़कर दिमागों में तूफ़ान मचा गए .सोचने वाली बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के रोज नवाज शरीफ की नातिन का ब्याह, खुद शरीफ का जन्मदिन  अटल बिहारी वाजपेयी  और पाकिस्तान के   संस्थापक   मुहम्मद अली जिन्नाह का भी जन्मदिन था . जिन्ना का जिक्र किसी ने नहीं किया!मोदी- शरीफ मुलाक़ात पर  हर तरफ बवाल के बादल गरज रहे हैं .
                      वाह रे कुदरत! २५ तारीख यानी जुम्मे और पूर्ण चन्द्र की यामिनी में  ही अफ़ग़ान , पाकिस्तान और दिल्ली के कुछ इलाकों में भी भूकम्प के झटके महसूस किये जाएंगे इसका अंदाज किसी को नहीं था . प्रकृति जनित भूकम्प का केंद्र अफ़ग़ान था लेकिन यकीनन हर सोच के पंथियों ने अपने भीतर महसूस किया .और यकीनन यह भी सवाल किया अपनी सोच के आईने को देखकर की क्या " शरीफ के घर जाकर क्या पीएम मोदी खुद ही बेनजीर हो गए?सभी को मालूम है की मोदी रूस और अफ़ग़ान के दौरे पर थे और यकायक पाकिस्तान उसमें जुड़ गया .
                 पी एम मोदी की अचानक    पाकिस्तान यात्रा को    ऐतिहासिक इस  लिहाज से भी कहा जा रहा है कि ११ बरस बाद कोई भारतीय पीएम पाकिस्तान की यात्रा पर बवालिया स्टाइल में पहुंचा था ..पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से लाहौर गए थे ., मोदी काबुल से गए .फिर भी  यह सच है कि  अपनी शोमैन शिप के चलते    चौकाने की यह हैट्रिक   बनाई है मोदी ने .                
               .पहली दफे नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर ,दुसरे बार पेरिस की जयवायु कॉन्फ्रेंस में फौरी बात कर . और अब यह तीसरी .बार .बोलने को टू पीएम के लाहौर जाने की जानकारी किसी को नहीं थी . होती भी कैसे ? पहली बात वो कोई आम आदमी तो हैं  नहीं. दूसरे- पीएम का विशेषाधिकार  और शीर्ष सुरक्षा मसला . तीसरे- अगर पहले से ही लाहौर जाने का ऐलान कर देते तो प्रतिक्रियावादियों का कोहराम कितना गूंजता . उन रिएक्शनरियों में  पाकिस्तान के कठमुल्लई नजरिये  वाला कुनबा और भारत के कान फाडू शोर मचाने वाले दक्षिणपंथी सियासी गिरोह भी क्या शामिल नहीं हो जाते?फिर भी जो प्रतिक्रियाएं हुई वो आपने देखी और सुनी भी .
                       अचानक लाहौर यात्रा का मतलब क्या?-शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा .आश्चर्यजनक तरीके से माकपा अगुवाई के वाम मोर्चा ने इसका स्वागत  किया .भाकपा के डी. राजा ,और  कश्मीर के सीएम उम्र अब्दुल्ला ने भी सकारात्मक राय दी ..अमरीका ने मोदी और शरीफ़ की बातचीत का स्वागत कर कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते सुधरना दक्षिण एशिया के हित में है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ेगी.'द वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ मोदी ने परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक के गर्म-ठंडे रिश्तों पर रीसेट बटन दबाकर अगले महीने होने वाली समग्र वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.'द शिकागो ट्रिब्यून' की रिपोर्ट कहती है कि अचानक हुआ
मोदी का यह दौरा इस बात की तरफ़ इशारा भारत-पाक रिश्तों में गर्माहट आ रही है.
श्रीलंकाई अख़बार 'श्रीलंका गार्डियन' का कहना है कि शांति चाहने वाले भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की कामना होगी कि अगला साल दोनों देशों के बीच शांति और सौहार्द लेकर आए.
                        जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है।कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मोदी की पाक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी और शरीफ के बीच मुलाकात एक उद्योगपति ने पहले से ही तय कर रखी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा पहले से ही एक उद्योगपति की पहल पर तय होने के कांग्रेस के दावे पर भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में ऐसा विपक्ष है जो हर सकारात्मक प्रयास में नकारात्मक ही देखता है।
                              मोदी के पाकिस्तान दौरे से आतंकी हाफिज़ सईद बौखला उठा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने कहा है कि नवाज़ ने दुश्मन का स्वागत किया है और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की जनता को सफाई देनी चाहिए।हाफिज़ ने कहा कि पाकिस्तान को अपना सबसे
 बड़ा वकील समझने वाले कश्मीरी, पाकिस्तान में मोदी के स्वागत को देखककर रो रहे हैं।              
                      यात्रा को लेकर दक्षिण एशिया मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय:" इस तरह सबको अचंभित कर देना एक तरह से नरेंद्र मोदी की कूटनीति को परिभाषित करने वाली शैली बन गई है.वे ख़ुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या करना है. किसी को कुछ पता नहीं होता  इसलिए सारे लोग
 अंधेरे में तीर चलाते रहते हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री को पता हो कि वे क्या कर रहे हैं.जहां तक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी के अंधेरे में तीर चलाने की संभावना है तो वो ऐसा करने
वाले पहले प्रधानमंत्री नहीं है. इससे पहले भी, पाकिस्तान को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों ने अंधेरे तीर चलाया है. लेकिन इससे कुछ हासिल होता नहीं है.
                  अब देखिये किस तरह के सवाल उठा करते हैं ..भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए जो बातचीत चल रही है, ये साफ़ है कि उसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है.पाकिस्तानी सेना भी समझती है कि रिश्तों को बेहतर करना चाहिए लेकिन उसकी आशंका
 इस बात को लेकर रहती है कि बातचीत केवल चरमपंथ तक ही सीमित न रह जाए और कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट जाए.यह सवाल उठा कि क्या पाकिस्तानी सेना को मोदी
  के इस दौरे के बारे में मालूम था सरकार के लोगों का कहना है कि सेना की रजामंदी के बिना इतना
 बड़ा फ़ैसला नहीं लिया जा सकता.चूंकि यह भी सच है कि मोदी के लाहौर सफर के रोज पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन  भी था .क्या किसी को  इस मोदी एपिसोड में वाजपेयी  की  विदेश नीति के अक्स का टुकड़ा नजर आया?
                      वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने भी अपनी  आशंका जाहिर कि है .एक तो क्या पाक सेना मोदी की यूनिक अग्रेसिव डिप्लोमेसी में रुचि लेगी ? दूसरे क्या एक नई सुबह होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल  है .    इससे भी गम्भीर सवाल यह भी है कि इस दौरे के पीछे कोई अमेरिकी दबाव तो नहीं? पाकी जनरल राहील शरीफ को अमेरिका ने क्या हो सकता है यह ताकीद भी की थी .तालिबानी और कट्टरपंथियों के सैन्य अभियान पाक के सिरदर्द बने हुए हैं .
      दरअसल  पाक पर भारत से वार्ता करने जबरदस्त दबाव है .अमूमन यही स्थिति भारत के भी साथ है .शायद सुपर पावर्स अमेरिका- चीन- रूस के दरम्यानी  खींचतान  का एक अनिवार्य  हिस्सा  भी! सुपर पावर्स की खींचतान इस लिहाज   से भी एक तरफ तो अमेरिका परस्ती आज की मौजूदा एक-ध्रुवीय दुनिया की जरूरत बन गयी है .. दूसरी तरफ बकलम मीडिया गुरु रमेश नैयर ,"मोदी की काबुल और मास्को यात्रा में विशवास और आत्मीयता बढ़ने की ललक थी  और लाहौर औपचारिकता .चीन बहुत बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत भी है . मोदी को अंतस की यात्रा पर निकलने का समय निकालना होगा ."
                  मैं तो व्यापारी हूँ - मोदी खुद क़ुबूल करते हैं . इस लिहाज से  स्टील कारोबारी सज्जन जिंदल की मोदी के साथ मौजूदगी क्या इशारा करती है?वे शरीफ और मोदी दोनों के ही करीबी हैं .अब मोदी की इस यात्रा से भारत के लिए बरास्ता  पाकिस्तान अफ़ग़ान और मध्य एशिया जाने का रास्ता खुल जाएगा .वहां की खनिज सम्पदा से भारत लाभान्वित होगा ,बड़े बाजार का रास्ता खुलेगा यह खुशफहमी जो वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने जाहिर की है अगर   हकीकत में बदल जाती है तो वाह वाह !
                        बहरहाल अगर आम आदमी के मनोविज्ञान की बरक्स सोचा जाये तो दुश्मन  से भी अगर मुलाकातें अनायास या सायास भी होती रहें तो बुराई क्या है?मुलाकातों की ऊष्मा कभी  न कभी कठोर रिश्ते की पिघलती बर्फ के दरम्यान  मसलों के हल की राह दिखाती ही  है  .विदेश  नीति और मसले इतने  सहज नहीं जो अलादीन के चिराग घिसकर समाधान निकाल दें .बंद दरवाजे खोलने का साहस और दिलदारी सभी को दिखानी होगी . यकीनी तौर पर कहावत सही है ," रोम वाज़ नॉट बिल्ट इन अ डे बट आफ्टर  आल इट वाज़ बिल्ट! लिहाजा .जारी रखी जानी चाहिए कोशिशों की नजीरों का बनना.  लब्बो लुबाब यह कि वक्त ही तय करेगा कि कायनात अँधेरे में  तीरों का उड़ना देख रही है या फिर मोदी बन गए बेनजीर!

               
             

                         



मोदी बन गए बेनजीर ! या अँधेरे में तीर !

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 मोदी  बन गए बेनजीर   ! या अँधेरे में तीर !


बिरियानी टू बर्थ डे डिप्लोमेसी..,गुडविल दौरा..गिफ्ट और .सरप्राइज डिप्लोमेसी ...ब्रेकफास्ट काबुल में , लाहौर में चाय ,.....क्रिसमस के दिन चौकाने वाली यात्रा के बरक्स सचमुच का बड़ा दिन .....और अपने -अपने नजरिये का तूफ़ान  और जिन लाहौर नहीं देख्यां ...उसने क्या जिया  ......न जाने कितने जुमले पीएम मोदी की चौकाने वाली हवाई यात्रा से उड़कर दिमागों में तूफ़ान मचा गए .सोचने वाली बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के रोज नवाज शरीफ की नातिन का ब्याह, खुद शरीफ का जन्मदिन  अटल बिहारी वाजपेयी  और पाकिस्तान के   संस्थापक   मुहम्मद अली जिन्नाह का भी जन्मदिन था . जिन्ना का जिक्र किसी ने नहीं किया!मोदी- शरीफ मुलाक़ात पर  हर तरफ बवाल के बादल गरज रहे हैं .
                      वाह रे कुदरत! २५ तारीख यानी जुम्मे और पूर्ण चन्द्र की यामिनी में  ही अफ़ग़ान , पाकिस्तान और दिल्ली के कुछ इलाकों में भी भूकम्प के झटके महसूस किये जाएंगे इसका अंदाज किसी को नहीं था . प्रकृति जनित भूकम्प का केंद्र अफ़ग़ान था लेकिन यकीनन हर सोच के पंथियों ने अपने भीतर महसूस किया .और यकीनन यह भी सवाल किया अपनी सोच के आईने को देखकर की क्या " शरीफ के घर जाकर क्या पीएम मोदी खुद ही बेनजीर हो गए?सभी को मालूम है की मोदी रूस और अफ़ग़ान के दौरे पर थे और यकायक पाकिस्तान उसमें जुड़ गया .
                 पी एम मोदी की अचानक    पाकिस्तान यात्रा को    ऐतिहासिक इस  लिहाज से भी कहा जा रहा है कि ११ बरस बाद कोई भारतीय पीएम पाकिस्तान की यात्रा पर बवालिया स्टाइल में पहुंचा था ..पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से लाहौर गए थे ., मोदी काबुल से गए .फिर भी  यह सच है कि  अपनी शोमैन शिप के चलते    चौकाने की यह हैट्रिक   बनाई है मोदी ने .                  
               .पहली दफे नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर ,दुसरे बार पेरिस की जयवायु कॉन्फ्रेंस में फौरी बात कर . और अब यह तीसरी .बार .बोलने को टू पीएम के लाहौर जाने की जानकारी किसी को नहीं थी . होती भी कैसे ? पहली बात वो कोई आम आदमी तो हैं  नहीं. दूसरे- पीएम का विशेषाधिकार  और शीर्ष सुरक्षा मसला . तीसरे- अगर पहले से ही लाहौर जाने का ऐलान कर देते तो प्रतिक्रियावादियों का कोहराम कितना गूंजता . उन रिएक्शनरियों में  पाकिस्तान के कठमुल्लई नजरिये  वाला कुनबा और भारत के कान फाडू शोर मचाने वाले दक्षिणपंथी सियासी गिरोह भी क्या शामिल नहीं हो जाते?फिर भी जो प्रतिक्रियाएं हुई वो आपने देखी और सुनी भी .
                       अचानक लाहौर यात्रा का मतलब क्या?-शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा .आश्चर्यजनक तरीके से माकपा अगुवाई के वाम मोर्चा ने इसका स्वागत  किया .भाकपा के डी. राजा ,और  कश्मीर के सीएम उम्र अब्दुल्ला ने भी सकारात्मक राय दी ..अमरीका ने मोदी और शरीफ़ की बातचीत का स्वागत कर कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते सुधरना दक्षिण एशिया के हित में है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ेगी.'द वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ मोदी ने परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक के गर्म-ठंडे रिश्तों पर रीसेट बटन दबाकर अगले महीने होने वाली समग्र वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.'द शिकागो ट्रिब्यून' की रिपोर्ट कहती है कि अचानक हुआ
मोदी का यह दौरा इस बात की तरफ़ इशारा भारत-पाक रिश्तों में गर्माहट आ रही है.
श्रीलंकाई अख़बार 'श्रीलंका गार्डियन' का कहना है कि शांति चाहने वाले भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की कामना होगी कि अगला साल दोनों देशों के बीच शांति और सौहार्द लेकर आए.
                        जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है।कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मोदी की पाक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी और शरीफ के बीच मुलाकात एक उद्योगपति ने पहले से ही तय कर रखी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा पहले से ही एक उद्योगपति की पहल पर तय होने के कांग्रेस के दावे पर भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में ऐसा विपक्ष है जो हर सकारात्मक प्रयास में नकारात्मक ही देखता है।
                              मोदी के पाकिस्तान दौरे से आतंकी हाफिज़ सईद बौखला उठा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने कहा है कि नवाज़ ने दुश्मन का स्वागत किया है और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की जनता को सफाई देनी चाहिए।हाफिज़ ने कहा कि पाकिस्तान को अपना सबसे
 बड़ा वकील समझने वाले कश्मीरी, पाकिस्तान में मोदी के स्वागत को देखककर रो रहे हैं।                
                      यात्रा को लेकर दक्षिण एशिया मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय:" इस तरह सबको अचंभित कर देना एक तरह से नरेंद्र मोदी की कूटनीति को परिभाषित करने वाली शैली बन गई है.वे ख़ुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या करना है. किसी को कुछ पता नहीं होता  इसलिए सारे लोग
 अंधेरे में तीर चलाते रहते हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री को पता हो कि वे क्या कर रहे हैं.जहां तक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी के अंधेरे में तीर चलाने की संभावना है तो वो ऐसा करने
वाले पहले प्रधानमंत्री नहीं है. इससे पहले भी, पाकिस्तान को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों ने अंधेरे तीर चलाया है. लेकिन इससे कुछ हासिल होता नहीं है.
                  अब देखिये किस तरह के सवाल उठा करते हैं ..भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए जो बातचीत चल रही है, ये साफ़ है कि उसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है.पाकिस्तानी सेना भी समझती है कि रिश्तों को बेहतर करना चाहिए लेकिन उसकी आशंका
 इस बात को लेकर रहती है कि बातचीत केवल चरमपंथ तक ही सीमित न रह जाए और कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट जाए.यह सवाल उठा कि क्या पाकिस्तानी सेना को मोदी
  के इस दौरे के बारे में मालूम था सरकार के लोगों का कहना है कि सेना की रजामंदी के बिना इतना
 बड़ा फ़ैसला नहीं लिया जा सकता.चूंकि यह भी सच है कि मोदी के लाहौर सफर के रोज पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन  भी था .क्या किसी को  इस मोदी एपिसोड में वाजपेयी  की  विदेश नीति के अक्स का टुकड़ा नजर आया?
                      वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने भी अपनी  आशंका जाहिर कि है .एक तो क्या पाक सेना मोदी की यूनिक अग्रेसिव डिप्लोमेसी में रुचि लेगी ? दूसरे क्या एक नई सुबह होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल  है .    इससे भी गम्भीर सवाल यह भी है कि इस दौरे के पीछे कोई अमेरिकी दबाव तो नहीं? पाकी जनरल राहील शरीफ को अमेरिका ने क्या हो सकता है यह ताकीद भी की थी .तालिबानी और कट्टरपंथियों के सैन्य अभियान पाक के सिरदर्द बने हुए हैं .
      दरअसल  पाक पर भारत से वार्ता करने जबरदस्त दबाव है .अमूमन यही स्थिति भारत के भी साथ है .शायद सुपर पावर्स अमेरिका- चीन- रूस के दरम्यानी  खींचतान  का एक अनिवार्य  हिस्सा  भी! सुपर पावर्स की खींचतान इस लिहाज   से भी एक तरफ तो अमेरिका परस्ती आज की मौजूदा एक-ध्रुवीय दुनिया की जरूरत बन गयी है .. दूसरी तरफ बकलम मीडिया गुरु रमेश नैयर ,"मोदी की काबुल और मास्को यात्रा में विशवास और आत्मीयता बढ़ने की ललक थी  और लाहौर औपचारिकता .चीन बहुत बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत भी है . मोदी को अंतस की यात्रा पर निकलने का समय निकालना होगा ."
                  मैं तो व्यापारी हूँ - मोदी खुद क़ुबूल करते हैं . इस लिहाज से  स्टील कारोबारी सज्जन जिंदल की मोदी के साथ मौजूदगी क्या इशारा करती है?वे शरीफ और मोदी दोनों के ही करीबी हैं .अब मोदी की इस यात्रा से भारत के लिए बरास्ता  पाकिस्तान अफ़ग़ान और मध्य एशिया जाने का रास्ता खुल जाएगा .वहां की खनिज सम्पदा से भारत लाभान्वित होगा ,बड़े बाजार का रास्ता खुलेगा यह खुशफहमी जो वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने जाहिर की है अगर   हकीकत में बदल जाती है तो वाह वाह !
                        बहरहाल अगर आम आदमी के मनोविज्ञान की बरक्स सोचा जाये तो दुश्मन  से भी अगर मुलाकातें अनायास या सायास भी होती रहें तो बुराई क्या है?मुलाकातों की ऊष्मा कभी  न कभी कठोर रिश्ते की पिघलती बर्फ के दरम्यान  मसलों के हल की राह दिखाती ही  है  .विदेश  नीति और मसले इतने  सहज नहीं जो अलादीन के चिराग घिसकर समाधान निकाल दें .बंद दरवाजे खोलने का साहस और दिलदारी सभी को दिखानी होगी . यकीनी तौर पर कहावत सही है ," रोम वाज़ नॉट बिल्ट इन अ डे बट आफ्टर  आल इट वाज़ बिल्ट! लिहाजा .जारी रखी जानी चाहिए कोशिशों की नजीरों का बनना.  लब्बो लुबाब यह कि वक्त ही तय करेगा कि कायनात अँधेरे में  तीरों का उड़ना देख रही है या फिर मोदी बन गए बेनजीर!

                 
               

                           












                         
                  

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

किसान नेता शरद जोशी होने का मतलब....

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किसान नेता शरद जोशी होने का मतलब....
निधन पर विशेष



जुझारू किसान नेता शरद जोशी नहीं रहे .वैसे भी देश में कृषि और किसानों की दिशा और दशा के मद्देनजर जमीनी स्तर के किसान  नेताओं का टोटा महसूस किया जा रहा था..... यह कमी अब भी है . . फिर भी हर पल उन्होंने बतौर किसान नेता अपनी जवाबदेहिया व्यापक रूप से बखूबी निबाही . महाराष्ट्र ही नहीं देश में  कृषि से जुड़ा विचार -केन्द्रों  का जर्रा -जर्रा शरद जोशी से वाकिफ है .
          गाँवों की संख्या घटती जा रही है . किसान खुद्कुशियां कर रहे हैं.जल जंगल और जमीन के मसले गहरा चुके हैं .समर्थन मूल्य से लेकर तमाम किसानी मुद्दे कृषि की रीढ़ तोड़ चुके हैं .जमीनी स्तर के किसान  नेताओं की जरूरत अब शिद्दत से महसूस की जाने लगी है .कृषि अब भी वरीयता के अजेंडे में उतनी  पुख्ता स्थिति में नहीं है जितनी होनी चाहिए .
              सारी जिंदगी किसानों के लिए शरद जोशी संघर्ष करते रहे .सरकार की किसान विरोधी नीतियों की मुखालफत की वजह से लोग उन्हें किसान नेता मानते थे .शरद जोशी महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के प्रणेता और सांसद थे . .वे स्वतंत्रता भारत  पक्ष पार्टी और शेतकारी संघटना के संस्थापक  भी रहे . .वे अकेले सांसद थे जिन्होंने संसद में महिला आरक्षण के खिलाफ मतदान किया .विश्व बैंक के अधिकारी की भूमिका भी उन्होंने भी सक्षमता से निबाही   .
       अंग्रेजी अखबारों में सम्पादकीय के माध्यम से शरद जोशी ने किसानों की बेहतरी के लिए बुनियादी तौर पर सोचा .किसानों और बुद्धिजीवियों के बीच वैचारिक संघर्ष से वे अक्सर आहत होते थे .उनकी स्पष्ट राय थी कि अगर किसानो से हमेशा संवाद होगा तब बुद्धिजीवी तथ्यों को समझ सकेंगे .विश्व बैंक के अधिकारी होने की वजह से उनकी सोच में मौलिकता थी .
               आज कृषि क्षेत्र की हकीकत क्या है? आज किसानों को जागरूक करना जरूरी है ताकि  देश का किसान अपनी बात को हुक्मरानों को कह सके। आज किसान में  जागरूकता का स्तर हर राज्य  में अलहदा है .  उत्पीड़न के खिलाफ आये दिन किसान सड़कों पर अपनी आवाज बुलन्द कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की एकता में आयी कमी के कारण किसान खेती किसानी के मुद्दों पर हारी हुई जंग लड़ रहा है।
                    महाराष्ट्र में लंबे समय तक किसानों का बड़ा आंदोलन चलाने वाले शेतकारी संगठना के नेता शरद जोशी हमेशा कहते रहे  कि यदि सरकार खेती में हस्तक्षेप बंद कर दे और किसानों को खुली मंडी में अपनी उपज बेचने दे तो न किसान आत्महत्या करेंगे और न बदहाल रहेंगे। शरद जोशी की कृषि उत्थान के क्षेत्र में बेहतरी में निबाही गई भूमिका के मद्देनजर ऐसा लगता है कि भारत के हर राज्य को शरद जोशी जैसे दमदार  किसान नेता की जरूरत है .किसानों में जन चेतना जगाने का अभी  सही वक्त भी है .

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना , आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा

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आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना
  आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा


चुनौती भरे 1095  दिन
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य  के अगुवा  की हैसियत से शनिवार को 12 बरस पूरे कर लिए .निश्चित रूप से यह  लम्हा  उनके  लिए " क्या पूरा किया,क्या बचा और क्या करना है "इस मसले पर मंथन का है .2003  में जब रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की सत्ता सम्हाली थी परिदृश्य कुछ  अलहदा था .आज मुख्यमंत्री और नागरिकों का साझा अनुभव तो यही दर्शाता है कि राज्य में काफी कुछ  सकारात्मक हुआ और जो न हो सका उसपर रुदन और भड़ास  के बजाये ,बजरिये हर नागरिक की भागीदारी पूरा किया जाना चाहिए .समग्र मीडिया की डेवलपमेंटल थ्योरी का बुनियादी सिद्धांत भी यही है .
                सूखा-  हालातों के  बरक्स जश्न न मनाने का फैसला श्लाघ्य है .फिर भी किसानों की बुनियादी समस्याओं का हल उनकी सक्रिय भागीदारी से लघु व् दीर्घ कालिक योजना बनाकर उनपर फौरी अमल से किया जाना वक्ती मांग है .रहा सवाल छत्तीसगढ़ की पुरानी  और वर्तमान  अपेक्षाओं ,अधूरे सपनों और जनाकांक्षाओं के अक्षयपात्रों  का ,इसपर सोचने  और अमल की प्रक्रिया फिलवक्त यही स्फटिक संकेत  देती  है  कि इस मुद्दे पर ठोस पहल करने हर सकारात्मक व्यक्ति  के लिए - गेट, सेट एंड गो!
                   अधूरे काम पूरे न होने या गड़बड़झालों के लिए बहाने अनेक बनाये जा सकते हैं . आरोप  की सुई मॉनिटरिंग की कमी, अफसरशाहों  या अमल करने वाली एजेंसियों की ढिलाई ,फंड की कमी, सियासी इच्छा शक्ति का टोटा या नागरिकों की गैर जिम्मेदारी को भी इंगित कर सकती है .छोड़िये इन बातों को -अब समूचे छत्तीसगढ़ को ही विजन रखना होगा - FOCUS ON MULTI - DIMENTIONAL DEVELOPMENT .
                     निश्चित तौर  पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इसी वजह से कनेक्टिविटी पर ही फोकस किया है .जिस राज्य की अधो संरचना शहरी . ग्रामीण और  ख़ास तौर पर " मीडिया डार्क एरियाज " में बराबरी से पुख्ता होती है वह बहुआयामी विकास की मैराथन में आगे ही आगे बढ़ता है .इसके बरक्स रेल , सड़क और डिजिटल कनेक्टिविटी  को रमन सिंह अपनी तीसरी पारी में सर्वोच्च वरीयता पर रखते हैं , तब  राज्य का विकास खुद ब खुद  अपना बयान - ए- हकीकत -करेगा .बस्तर , सरगुजा और छत्तीसगढ़ के दीगर सीमावर्ती और माइक्रोरिमोट  क्षेत्रों के लिहाज से से इन मुद्दों पर फौरी कार्ययोजना -अमल निहायत अव्वल दर्जे का एजेंडा होना भी चाहिए .
                    बेनज़ीर "प्रतिपक्ष साधक "  मुख्यमंत्री  रमन सिंह को स्पेशल 12 + क्लब में शामिल होने पर बधाइयां .अब तीसरी पारी यानी 15  साल  की मियाद पूरी होने में महज 1095 दिन बाकी रह गए हैं .मार्क्स तूलियस सिसेरो ने कहा है,"A MAN OF COURAGE IS ALWAYS FULL OF FAITH ". अगर विकास की नीयत से वाजिब प्रशासनिक सख्ती बरतनी जरूरी होती है तब ऐसा करना भी मौजूं होगा , बकौल साहिर लुधियानवी -
                         आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना
                         आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा


 लक्ष्य साफ़ है  पर हर- पल सामने है चुनौती -जेहन में पैबस्त अधूरे सपने पूरे करने की.....आम जन को विकास की आत्मा से  जोड़कर जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने की .......नौकरशाहों का " इगो" साधने की....न तो यह असाध्य लक्ष्य है न ही नामुमकिन.सियासी इच्छा शक्ति और जवाबदेह जनमानस   बनाने  के कारगर अस्त्रों से यह निश्चित रूप से काबिल -ए -हासिल है .

                       
                 
                

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से

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 दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से ,तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
 

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ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते


बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है कि शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते हैं  सब लोग.
       यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत  बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
                       ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है 
                      सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है 
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !  
चौक- चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथन रेस  में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
                     घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
 खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
                        मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब 
                        कुत्ते    अमीरों के हैं लपेटे  हुए लिहाफ 
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या  अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा  संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है कि यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैडमिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
                       सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा  अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
                        दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से 
                       तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
बहरहाल ,मुद्दे की बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों की तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
                      इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब 
                     इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया 
                                                                     प्यार सहित... अपना ख्याल रखिएगा---
                                                                           किशोर दिवसे 
                                                        kishore_diwase@yahoo.com

लघुकथा ;इक्कीसवी सदी का महाभारत

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लघुकथा ;इक्कीसवी सदी का महाभारत 
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इक्कीसवी सदी की बात है .किस्सा महाभारत नाम के देश का है .संसद का शीत सत्र चल रहा था .भयंकर कोहराम की वजह से  उनकी अगुवा बारम्बार अपील कर रही थी -प्लीज प्लीज शांत हो जाइए . बेअसर होती इस अपील को उन तमाम जुओं ने भी हैरत से देखा जो नेताओं के कानों पर रेंगने की फिजूल कोशिश कर रही थीं .कुर्सी फेक,हंगामा ,बदस्तूर जारी रहा .कुछ आपस में लड़ रहे थे ... धींगा मुश्ती... एक -दूसरे पर आँखें तरेरना ... झूमा -झटकी रोक टोक पर भी जारी थी .कुछ सांसद अच्छे भी थे जो गंभीरता से  विचार मंथन में लगे थे 
                  यूं तो अखबार नवीसों को महाभारत की संसदीय कार्रवाई देखने का न्योता मिला करता था. इस बार अगुवा ने तय किया कि सांसदों को प्रशिक्षण के लिए ले जाया  जायेगा .खबर मिलते ही उनकी बांछे खिल गईं.देशी अस्पतालों के बदले बिदेसी अस्पताओं में इलाज करने के शौकीन सांसद तो आखिरकार नहीं  ही जाने वाले थे , सो नहीं गए .
     " शांत हो जाओ बच्चों ... हल्ला नहीं करना आप तो बच्चे हो ... समझदार हो . टीचर के कहते ही बच्चे खामोश हो गए ." उन सभी सांसदों ने देखा जो प्रशिक्षण के लिए स्कूल पहुंचे थे .बगलें झांकते हुए एक - दूसरे  का थोबड़ा देखने लगे . कुछ देर के भीतर ही सभी सांसद बाहर शोर मचाने लगे .प्रिंसिपल साहब के आने तक वे बाहर इसी तरह शोर मचाते रहे .इधर  बच्चों का ध्यान भंग होता देखकर  टीचर ने पहले तो कोहराम मचाते सांसदों  की ओर देखा और दूसरे ही पल बच्चों से सवाल किया - " बच्चों ! चलो बताओं कुत्तों     की पूंछ टेढ़ी क्यों होती है?  कुछ ही देर में सांसदों के दल से उनके अगुवा ने कहा ... चलिए .... हम  सब अब कल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मिलेंगे  नमस्कार..."
                            


                         

सोमवार, 16 नवंबर 2015

मृत्यु शय्या पर क्या सोच रहे थे स्टीव जॉब्स

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मृत्यु शय्या पर क्या सोच रहे थे स्टीव जॉब्स 


नव परिवर्तन के दौर में आप कुछ गलतियां कर बैठते हैं .सबसे अच्छी बात है आप उन गलतियों को फ़ौरन सुधार लें फिर नव परिवर्तन की दीगर तब्दीलियों में जुट जाएँ .नवपरिवर्तन एक लीडर और अनुयायी के बीचः भेद करता है .कब्र के भीतर मुझे इस हकीकत से कोई फर्क फर्क नहीं पड़ता की मैं महाअमीर हूँ .मुझे यह सच अधिक बेहतर लगता है  कि रात को जब मैं बिस्तर पर जाऊं तब मुझे मालूम हो कि मैंने आज क्या चमत्कारिक किया है .                                                                      स्टीवन पॉल "स्टीव" अमेरिकी कारोबारी थे .मशहूर कंपनी एप्पल के सह संस्थापक ,चेयरमैन और सीईओ रहे. मृत्यु शय्या पर उन्होंने अपनी सोच को साझा किया . मैंने उसे काव्य रूप में  प्रस्तुत 
 किया है 


स्टीव जॉब्स के अंतिम शब्द
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मैं दुनियावी कारोबार की दुनिया में 
पहुंचा था सफलता के शिखर पर
दूसरों के नजरिये से जिंदगी  मेरी 
थी शोहरत का एक मानदंड 
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वैसे कारोबार के अलावा मेरी
जिंदगी में खुशियां थी अत्यल्प
अंतिम सत्य यही है कि संपत्ति
थी जीवन का महज एक सत्य
जिसकी हो चुकी थी मुझे आदत
******
अब अँधेरे में देख रहा हूँ मैं 
जीवन रक्षक  मशीनो की हरी रौशनी 
सुन रहा हूँ उगलती मशीनों का 
निरंतर-बीप बीप बीप 
अनवरत गूंजती यांत्रिक ध्वनि 
********
और ... महसूस करता  हूँ तेज साँसें  
मृत्यु देवता की ....आते हुए 
मेरे करीब.... और करीब .और....करीब
अब समझ चुका हूँ मैं -जब हम 
कर चुके होते हैं इकठ्ठा 
जीवन के अंत तक पर्याप्त संपत्ति
********
ठीक उसी वक्त करना चाहिए 
हमें हासिल वह सभी कुछ 
जो है संपत्ति से अलहदा 
जो है संपत्ति से ज्यादा अहम 
******
शायद .... वे हैं रिश्ते
शायद... वह है कला 
शायद ...युवा वक्त के स्वप्न !
*****
अब समझ गया हूँ में 
निरंतर धन की लिप्सा 
मोड़  देती है इंसान को 
अनसुलझी गुत्थी की मानिंद 
बन चुका है अब मैं 
****
संवेदनाएं दी हैं ईश्वर ने हमें 
महसूस करने की 
प्रत्येक ह्रदय में बसा प्रेम 
न की वह दृष्टिभ्रम 
जो निश्चित रूप से उपजता है 
अथाह सम्पति की लिप्सा से!
जीवन भर में संचित 
नहीं जा सकता मैं साथ लेकर 
मेरे साथ जाएंगे सिर्फ
यादों के वे दरीचे जिनपर 
होंगी प्रेम की कशीदाकारियां 
******
दरअसल यही हैं असल संपत्ति 
तुम्हारी वैचारिक  वसीयत भी 
जो होगी तुम्हारे साथ,और बाद भी 
करती रहेंगी हमेशा  जीवन भर 
प्रदीप्त तुम्हारे -विचार -पथ 
****
हजारों मील करता है सफर 
प्रेम .. अनवरत... अनथक
क्योंकि जीवन है असीमित 
सो जाओ.......जहाँ मन करे
शिखर फतह करो हर  एक
जो है तुम्हारे मन का अभीष्ट 
सब कुछ तो ह्रदय की सर्जना   है!
******
चलो .. अब पूछता हूँ मैं आपसे
कौन सा बिस्तर होता है 
विश्व में सबसे बेशकीमती?
एक बीमार का बिस्तर .....
मेरा यही है जवाब 
जानते हो ...तुम रख सकते हो 
अपने लिए ,किसी भी वक्त
कार का एक चालक 
अपने  लिए...कमाकर पैसा 
देने वाला  कोई इंसान 
लेकिन सोचा ही तुमने कभी 
कर सकते हो अपने लिए तलाश 
एक अदद ऐसा इंसान जो 
तुम्हारी एवज में पड़े बीमार 
और महसूसे तुम्हारा दर्द!
******
गम हो चुकी भौतिक वस्तुएं 
कोशिशों से तो जाती हैं मिल 
लेकिन कभी सोचा है तुमने
 ख़त्म होने पर जिंदगी अपनी 
क्या कर सकते हो फिर तलाश ?
****
जब इंसान होता है दाखिल 
किसी ऑपरेशन थियेटर में 
वह महसूसता है शिद्दत से 
ओह!-अब तक उसने तो 
ख़त्म ही नहीं की है 
वह पुस्तक जिसका नाम है-
""स्वस्थ जीवन की किताब"
*****
जीवन का नियम है शाश्वत
चाहें रहें हम किसी भी चक्र में 
अबाध गति काल-चक्र की हमें 
कर देती है आमने -सामने 
उस अटल  सत्य के दिन..... 
जब गिरता है जिंदगी का पर्दा 
*****
अंतिम सत्य यही है 
संचित करो प्रेम का खजाना 
अपने परिवार के लिए 
प्रेम का खजाना 
पत्नी और दोस्तों के लिए 
और सबसे जरूरी है 
खुद से तो पहले सीखो ही
अच्छी तरह करना  बर्ताव
और दूसरों से भी! 

शनिवार, 9 मई 2015

कचरे में मिली नेत्रदान की 2000 आँखें ,महादान अभियान की मिट्टीपलीत!

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कचरे में मिली  नेत्रदान की 2000 आँखें ,महादान  अभियान की मिट्टीपलीत!


बेहद शर्मनाक घटना। साथ में चिकित्सकीय तथा नेत्र दान से जुड़ी  संस्थाओं के लिए विचारणीय भी। देश व्यापी अभियान चल रहा हैं नेत्र दान -महादान का। यह मामला है हरियाणा के पीजीआईएमएस   को  नेत्र दान की गई 2000  आँखें कूड़ेदान में मिलीं। ऐसा क्यों हुआ?दलील दी जा रही है की दान की गई आँखों का समय पर इस्तेमाल नहीं किये जाने की वजह से वे खराब हो गई।  इन्हें कचरे में फेक देना पड़ा।
                              नेत्रदान-महादान से पहले क्या मेडिकल क्राइसिस  मैनेजमेंट ने इसपर कुछ नहीं सोचा कि  अगर नेत्र प्रत्यारोपित करने के लिए रिसीवर न मिले तो उसे कैसे सुरक्षित रखा जाये ? या फिर दीगर जगहों  पर जरूरत मन्दो के लिए भेजने का इन्तेजाम किया जा सके?अब सवाल यह  है की इस प्रकरण का दोषी कौन? यह दुर्घटना फिर न हो इसके लिए मेडिकल साइंस और जुड़े हुए डॉक्टर  क्या रणनीति बनायेंगे और कब? भावनात्मक रूप से सोचा जाये तो  ऐसी घटना अगर दुहराई गई तब नेत्रदान के प्रति देशव्यापी जागरूकता के अभियान की क्या मिटटी पलीत नहीं होगी? नेत्रदान संस्थाएं ,आइएमए और चिकित्सक तबका इसपर सक्रीय हस्तक्षेप करे. सभी राज्यों को इस गम्भीर मुद्दे पर जल्द ही सोचकर जरूरी कदम उठाने होंगे 

अगर आदिवासी हिन्दू हैं तो पारम्परिक वर्ण व्यवस्था में वे कहाँ हैं?

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अगर आदिवासी हिन्दू हैं तो पारम्परिक वर्ण व्यवस्था में वे कहाँ हैं?-क्षत्रिय, ब्राह्मण , वैश्य या शूद्र? मेरे मीडिया साथी आलोक पुतुल ने फेसबुक  पर यह सवाल उठाया है। मुझे लगता है कि  आदिवासी और हिन्दू दोनों ही शब्द- उत्पत्ति और क्रमिक विकास के नजरिये से  भौगोलिक, राजनैतिक,( राजनीति समर्थित संवैधानिक ) ऐतिहासिक , मान्यताओं  और निहित स्वार्थों का शिकार भी हुए हैं। दोनों ही शब्दों और जुड़े समूहों के मसले पर इतना अधिक घालमेल और असमंजस पैदा किया गया कि  आज भी कमोबेश यथा स्थिति कायम है। हालांकि संविधान ने कुछ स्पष्ट बात जरूर  की है।  फिर भी मिथक मिश्रित इतिहास और इतिहास के पुनर्लेखन के दौर में उहापोह अब भी कायम है।
                          कुछ इतिहासकार और नृतत्व विज्ञानी यह  मानते हैं की लोक हिंदूवाद या folk Hinduism आदिवासी मान्यताओं, मूर्ति  पूजा व् देवताओं का विलयीकरण है। यह धारणा मूल इंडो-आर्यन मान्यता के विपरीत है जिसके तहत  बन्दर, गाय, मयूर नाग,हाथी जैसे प्राणियों और और पीपल ,तुलसी,नीम,जैसे वृक्षों को पवित्र दर्जा दिया जाता रहा। कुछ आदिवासी जनजातियों  में यह सब कुल चिन्ह माने जाते रहे.  
आदिवासी शब्द भारत के मूल  निवासी  माने गए जातीय अल्पसंख्यक के  विविध समूह  के लिए प्रयुक्त छत्र शब्द umbrella term है। बांग्ला देश में भी आदिवासी तथा श्रीलंका में वेद्दा शब्द का प्रयोग होता है। नेपाल में इसे  आदिवासी तथा जनजाति  कहते हैं। संवैधानिक व्याख्या के अनुसार

                       हिन्दू शब्द का मूल धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा है।  Iहिन्दू वह व्यक्ति है जो भारतीय उद्गम के किसी भी धार्मिक विश्वास को मनाता है।  हिन्दू दरअसल कवि इक़बाल  , मंत्री एमसी छागला  तथा आर एस एस की राय में धर्म से परे  सिंधु नदी के दूसरे पार रहने वाला इंसान है।  परशियाई भौगोलिक शब्दावली में हिन्दू शब्द भी प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र की Indus River , संस्कृत में सिंधु ,नदी क्षेत्र के वासियों का स्थानीय नाम रहा। तब हिन्दू शब्द का आधार भौगोलिक रहा। कुछेक संस्कृत ग्रंथों में कश्मीर के रजत रंगिनी (Hinduka, c. 1450) प्रयुक्त हुआ। विद्यापति, एकनाथ और कबीर के काल खंड में धर्म का चेहरा लेक हिन्दू , और इस्लम आमने -सामने खड़ा हो गया। यहीं स्थिति चैतन्य चरितामृत ,
चैतन्य भागवत में रही। यूरोपीय सौदागरों और साम्राज्यवादियों ने भारतीय धर्मों के मानने वालों को हिन्दू कहा. ।(16 -18  वी सदी। ) उन्नीसवी  सदी में . धर्म ,दर्शन और संस्कृति के आधार पर हिन्दू की व्याख्या की गई।
                               बहरहाल  ,वर्ण व्यवस्था कालांतर में भारतीय समाज के भीतर पुरोहित वर्ग के वर्चस्व से उपजी कार्रवाई या साजिश का नतीजा प्रतीत होती है। आदिवासी  और हिन्दू शब्द व् मानव समूह को भौगोलिक  ,नृतत्व विज्ञानी, मिथकीय, दर्शन शास्त्रीय,राजनैतिक ,जातिगत या अनय  विवाद से  मुक्त कर विशुद्ध भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। भारत में सिर्फ भारतीय। जिनेटिक्स का आधार वैज्ञानिक शोध का अलहदा विषय जरूर हो सकता है। फिर भी आलोक पुतुल का यह मुद्दा बम  सोच के लिहाज से जरूर धमाकेदार है।बहस जारी रहे!

शुक्रवार, 8 मई 2015

सच पूछो तो सब ही मुजरिम हैं कौन यहाँ किसकी गवाही दे?

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सच पूछो तो सब ही  मुजरिम हैं
कौन यहाँ किसकी गवाही दे?



* भारत की न्यायपालिका ने अपनी असलियत इस तरह खुल के कभी नहीं बताई थी. बिकने के लिए होड़ मचाये चार खम्भों वाले लोड-तंत्र में स्वागत है.
The justice has gone to dogs, so is republic.-समर अनार्य
* दुखद तो है मगर सलमान को सजा जरुर मिलेगी,-प्रकाश कुकरेती
राष्‍ट्रीय आपदा समाप्‍त.
(न्‍यूज़ चैनलों वाले अपने-अपने काम धंधों पर लौटे ही समझो. )-काजल कुमार
* सोचता हूँ संजय को क्यों नहीं मिली?-टीएस दराल
जो लोग सलमान खान के लिए संवेदना की नदी बहा रहे हैं । उन्हें इनकी मौत और इनके परिवार बाले की दुर्दशा पर भी कुछ फील होता है ??? अतुल्य भारत...!-अजय आनंद
* क्या दबंग का चुलबुल पाण्डेय एक रईसजादे और फ़िल्मी स्टार को इतनी आसानी से जाने देता. ये सच्चाई जानने के बाद की इस रईसजादे ने नशे की हालत में चार लोगो को कुचल दिया. इसमें एक की मृत्यु हो गयी. एक पुलिस वाले को तिल तिल कर मरने पर मजबूर का दिया. वो पुलिसवाला इस मामले में गवाह था. अगर नहीं तो क्या भारतीय कानून व्यस्था इस दो कौड़ी की फिल्म के पुलिस वाले से भी बदतर है?-कुंदन पाण्डेय
क्या दबंग का चुलबुल पाण्डेय एक रईसजादे और फ़िल्मी स्टार को इतनी आसानी से जाने देता. ये सच्चाई जानने के बाद की इस रईसजादे ने नशे की हालत में चार लोगो को कुचल दिया. इसमें एक की मृत्यु हो गयी. एक पुलिस वाले को तिल तिल कर मरने पर मजबूर का दिया. वो पुलिसवाला इस मामले में गवाह था. अगर नहीं तो क्या भारतीय कानून व्यस्था इस दो कौड़ी की फिल्म के पुलिस वाले से भी बदतर है?
* चिल्लाते रहो तुम। सच में "बड़ा दबंग" है सल्लू भाई।-अलोक कुमार
* अँधा कानून और मिलेंगी  तो बस "तारीख पे तारीख"-तारस पाल मान
                          सलमान खान क्या सजा निलंबित होने पर सोशल साइट्स पर प्रतिक्रियाओं का तूफान मचा .और भी ढेर सारी। .... बतौर फैन और आलोचक भी।  फिर भी  कुछ सवाल और भी  उठ खड़े होते हैं?
1 अगर अदालत ने आरोपी के नैतिक अधिकार के तहत किया तो क्या गलत किया?लेकिन आम  आदमी को यही छूट मिलती?
2 जो लोग सलमान की सजा माफ़ी पर जैकपॉट मिलने की तरह खुश हो रहे है वे क्या तब भी यही सोचते अगर सलमान की कार से कुचलकर उनका  बाप,माँ बेटा  ,बेटी या रिश्तेदार   तड़पकर मर जाता?
3. अमूमन सभी सिस्टम बिकाऊ हैं, बिक रहे हैं-आम नजरिया है। विशवास का संकट.
4 .     क्या अब भी आपको भरोसा है कि   समाज में जमीर लहूलुहान नहीं ,पूरी तरह चंगा है?
                           एक बड़े से विज्ञापन पर मेरी निगाह पड़ती है- मजमून है-" बिकाऊ हैं इंसान का जमीर और देश के सभी सिस्टम।  खरीदने वाले को निःशर्त लोड़तंत्र ( लोकतंत्र? ) के चारों खम्बों में से किसी में भी नीति निर्धारक कुर्सी प्रदान की जायेगी। योग्यता -एक्सरे रिपोर्ट में रीढ़ न होना जरूरी। उनके नल से करेंसी बहती हो।
             लहूलुहान रूह का साया मेरे चेहरे के आसपास मंडराता है.यकीनन हिट एंड रन केसेस में मरे किसी बन्दे की होगी। दर्द भरी आवाज में कराह -
मैं कहाँ से पेश करता एक भी सच्चा गवाह
जुर्म भी आपका था और  आपकी सरकार थी!
 उस रूह की कराह के जवाब में सिक्कों की खनखनाहट का कानफाडू कोहराम मचता है।   हड़बड़ाकर मेरी नींद खुलती है. ओह! तो यह सपना था ?
कितना सच। .... कितना झूठ!
मुझे काविश हैदरी याद आते हैं -
सच पूछो तो सब ही  मुजरिम हैं
कौन यहाँ किसकी गवाही दे?
बॉलीवुड की अगली  फिल्म में आप सलमान के मुह से यह डॉयलोग सुन सकते हैं-कुछ तो हालात ने मुजरिम हमें ठहराया है,और कुछ आप भी इल्जाम दिए जाते हैं?तराजू के दो पलड़े हैं। एक और स लमान दूसरी और ज्यूडिशियरी . अदृश्य रूप से अंतरात्मा!     
खामोश। … खामोश …। क्या मरने वालों की रूहों  या फिर उनके लिए आंसूं बहाने वालों के लिए कोई सोच रहा है? जिसने सोचा  सिर्फ वही मुजरिम नहीं। ......

             
                                             











गुरुवार, 7 मई 2015

"कृषि को" विजन -2015 " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा बना लेना चाहिए " मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो " की नीति पर सोचें

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"कृषि को" विजन -2015  " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा  बना लेना चाहिए "
मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो  " की नीति पर सोचें


क्या सचमुच में जमीनी स्तर पर कोई किसान नेता है?
क्या सरकार कृषि  क्षेत्र  के प्रति गंभीर दीखती हैं?
क्या खेतिहरों ( पुरुष व् महिला दोनों )की माली हालत ( उनकी चंद मजबूरी और कमजोरी के बावजूद) बेहतर कही जा सकती है?
क्या? बगैर मेहनत मुफ्त अनाज दिया जाना  ऐसे लोगो को आत्मनिर्भर बनाने की बजाये उन्हें आत्मसम्मान विहीन नहीं बना रहा है?
क्या कभी सीमांत किसानों को कृषि उत्थान के योजना एजेंडा में शामिल किया गया?
क्या शहरों के अंधाधुंध विकास की कीमत पर  गावों को सलीब पर  नहीं लटकाया जा रहा है?
क्यों  खेती की जोत भूमि और भूमि माफिया के अवैध रिश्ते सरकार और प्रशासन की आँखों की किरकिरी नहीं बनते?
                अरे    अरे अरे। ...... ज़रा सांस भी लोगे या फिर सवालों की मशीनगन  दागते रहोगे दनादन !
इस दफे दद्दू ,हमारे मित्र प्रोफ़ेसर प्यारे लाल को लेकर आये।  मैंने प्रोफ़ेसर प्यारेलाल से पूछा," प्रोफ़ेसर आप तो कृषि विश्व विद्यालय  में हो। दद्दू के  सवालो का जवाब मुझसे बेहतर दे सकते हो!"
" दद्दू के सवाल सौ फीसदी वाजिब हैं" प्रोफ़ेसर शुरू हो गए,"इन सभी सवाल और मुद्दों पर तो सरकारों , बुद्धिजीवियों , नागरिकों और प्लानरों को सोचना चाहिए। देशव्यापी बहस होनी चाहिए।  यह भी सच है कि खेती के मसले पर अपडेट होना खेत मजदूरों , किसानों के लिए ,जरूरी है और इसके लिए उन्हें  योजना में भागीदार भी अवश्य बनाना होगा। साथ ही आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान के मनोवैज्ञानिक  मुद्दे पर भी उन्हें पुख्ता बनाने सरकारी तंत्र में कसावट की बेहद दरकार है। "
                           
                       
    दद्दू को अखबार की एक खबर याद हो आई। वे बोले ,"महिला किसान कृषि आयोग के गठन की बात उठी है . यह मांग बुलंद की है भाजपा के दिग्गज  तरुण विजय ने जो एक संपादक भी रहे हैं .बेशक स्वागत योग्य है लेकिन पहले हमें " महिला किसान (?)की परिभाषा पर गौर करना होगा .
 हालांकि एक सर्वे रिपोर्ट  में बतौर निष्कर्ष कहा गया है की देश में 66 फीसदी महिला किसान हैं अगर खेतिहर मजदूरों को भी शामिल कर लिया जाये तो इसका फीसदी 80 तक हो जाएगा ."
                         " निश्चित रूप से खतिहारों की हालत बेहतर नहीं कही जा सकती .  हालत तो किसानो की बदतर है . देश में किसान आत्महत्याएं कर रहे है . तब ऐसी स्थिति में महिला किसान आयोग की मांग करना निश्चित रूप से सोचने वाली बात होगी ."- प्रोफ़ेसर ने अपनी राय जाहिर की।
    "   अपने  देश  में तो जब किसानो की बात होती है बनिहारिनो का जिक्र तक नहीं होता . एक और गम्भीर मसला है की जहाँ भी मुफ्त में अनाज की बात रही  है खेतिहरों में लापरवाही देखी  जा रही है . " - मैंने अपनी बात कही। ( शायद आपको भी अनुभव आया होगा हर कारोबार में लगे मजदूरों के संकट का. यहाँ पर उनकी तकलीफें और उनसे होने वाली शिकायते दोनों शामिल हैं ) . मुझे   तो लगता है कृषि को" विजन -2016 " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा  बना लेना चाहिए। कम से कम छत्तीसगढ़ सरकार यह जरूर कर सकती है। गाँव कम क्यों हो रहे हैं क्या इस पर किसी ने सर्वे किया? "
                  " हाँ   अख़बारनवीस! " मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो  " की नीति व्यापक बनाकर काम का इंतजाम अगर सरकार करे तो कैसा रहेगा? और मुफ्त अनाज उन्हीं को जो शारीरिक तौर पर निशक्त या विशेष श्रेणी( डिसेबल्ड) में आते हों "- दद्दू ने  मशविरा दिया।
   " वो तो ठीक है ,  , भाजपा के तरुण विजय महिला किसान आयोग की बात कर रहे हैं. वे संपादक भी रहे. उन्होंने यह सोचा कि मीडिया में खेती और उससे जुडी खबरों को कितना स्थान दिया जाता है? -  प्रोफ़ेसर ने मुझसे पूछा।
 "ये जो महिला आरक्षण बिल है वह   पांच  साल से क्यों अटका है? दद्दू ने मुझसे   पूछा .,"इसके जरिये संविधान संशोधन होता . लोकसभा तथा राज्यों की सभी विधान सभाओं में  में  33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जातीं .( शायद और भी बढ़ाने की बात चली है )
          " ठीक कह रहे हो दद्दू ..राज्यसभा  ने तो  इसे 2010 में ही पास कर दिया था .लोकसभा अगर इसे पारित कर दे और देश की आधी  विधानसभाएं अपनी मुहर लगा दें तब तो सचमुच महिलाएं राजनीति में अत्यधिक शक्तिशाली हो जाएँगी .
.
     " यही तो समझने वाली बात है दद्दू! अगर ऐसा हो गया तो राजनीति में मर्दों का वर्चस्व खतरे में नहीं पद  जाएगा?वे यही तो नहीं चाहते की
 महिलाएं शक्ति शाली हो जाएँ.    ३३ फीसदी आरक्षण राजनीति में मिलने पर निश्चित रूप से उनकी राजनैतिक ,सामाजिक और आर्थिक हैसियत पुख्ता  हो जाएगी . "   कृषि को विजन -2015  " का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा  बना लेना चाहिए  और मुफ्त के बजाये -"खूब काम करो ,खूब अनाज पैदा करो  " की नीति पर सोचें।  मुफ्त अनाज उन्हीं को जो शारीरिक तौर पर निशक्त या विशेष श्रेणी( डिसेबल्ड) में आते हों "-इन मुद्दों पर चलो रायशुमारी की जाये -इस पर सहमति के साथ हम तीनो ने विदा ली।


                   






बुधवार, 6 मई 2015

कृत्या कविता की पत्रिका

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कृत्या कविता की पत्रिका है, जो हिन्दी सहित सभी भारतीय  एवं वैश्विक भाषाओं में लिखी जाने वाली आधुनिक एव प्राचीन कविता को हिन्दी के माध्यम से प्रस्तुत करती है। यह इन्टरनेट के माध्यम से साहित्य को जन सामान्य के सम्मुख लाने की नम्र कोशिश है। इसका उद्देश्य हिन्दी भाषा के प्रति सम्मान जगाना भी है.मेरी अनूदित कविताओं के प्रकाशन हेतु आभार ,रति सक्सेना जी
http://www.kritya.in/0905/hn/our_masters.html

सेलिब्रेटी और आम आदमी की औकात का फर्क!

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सेलिब्रेटी और आम आदमी की औकात का फर्क!





हैल्लो। । हैल्लो सल्लू बोल रहा हूँ।
1  बजकर 35  मिनट की दोपहर का वक्त.
क्या! मैं चौंक गया। … सेल फोन की स्क्रीन को घूरा। लिखा था दद्दू।
इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, दद्दू बोल उठे ," यार अखबार नवीस , सल्लू हिट एंड रन केस में अंदर हो गयेला है। 5 साल की जेल।
"अरे बीड़ू! खाली - पीली आप काहे टेंशन ले रहेले हो!  हो तो दद्दू और खुद को बोल रहे हो सल्लू! आ जाओ। .फुर्सत से बात करते हैं। "... अपने दद्दू तो आज टीवी की स्क्रीन के सामने सोफे पर फेविकोल का जोड़ लगाकर चिपक गए थे। बोले, अपना सल्लू  फिल्म स्टार तो है अपुन का फेवरिट। बड़ा शानदार ,कोई शक नहीं। फिर भी बुर्ज़ -ए -खलीफा की साइज का  सवाल ये है कि -
" .कोई भी अदालती फैसले की घडी और मानवीय भावना के बीच क्या रिश्ता है?फैसले में तरलता के क्या पैरामीटर हैं?क़ानून अँधा क्यों कहा जाता है?तो क्या उसे भावना में बहना चाहिए? सेलिब्रेटी और आम आदमी पर कोर्ट फैसले के वक्त भावनाओं के ज्वार या इमोशनल कोशंट पर जमीर या कॉन्शस या अन्तरात्मा की आवाज का वजूद कितना है या होना चाहिए?"
              "ऐसा है दद्दू सेलिब्रेटी स्टेट्स की चकाचौंध से कइयों की आँखें चुंधिया जाती हैं। " मैंने कहा,"अब तो फैसला आ गया। जेल फिर हाईकोर्ट में बेल की तैयारी। फिर भी एक सवाल मुझे चुभता है.सेलिब्रेटी स्टेटस और आम आदमी की औकात में इतना फर्क क्यों ?आम आदमी के फैसले पर तो काला कुत्ता भी मुंह नहीं उठाता. सिने स्टार या है प्रोफाइल स्टेटस तो तब दमदार-दमदार सभी को "वहां पर"रहमानी कीड़ा काटने लगता है!
           " ठीक कह रहे हो अखबार नवीस,"  दद्दू गम्भीर हो गए,"सितारे के लिए मीडिया की फ़ौज, उपकृत और फैन का जबरदस्त हुजूम और आम आदमी। ।पूरी  तरह बेचारा! "
सोढल साइट्स पर मेरे अनेक साथियों ने अपने नजरिये का कोहराम मचाया।  लेकिन मुझे लगता है यह आम आदमी की रिएक्शन भी बेहद मायने रखती है. एक बानगी देखिए -
"सलमान खान नशे में लोगों की जान लेने का ही नहीं, अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलने का भी अपराधी है, 12 साल बाद झूठा (और ग़रीब) गवाह ख़रीद अपने किये के लिये उसे जेल भिजवाने की साज़िश का भी अपराधी है। हद यह कि मुजरिम साबित होने के तुरंत बाद हृदयरोगी होने का सर्टिफ़िकेट पैदा कर देने का भी- वरना जिसके छींकने की खबर तक 'ब्रेकिंग' होती है, उसके बारे में यह बात पता न चलती?
सो वह आदमी कितना भी भला हो- सजा तो बनती है न?-"--समर अनार्य
"उस समय जो सुरक्षाकर्मी साथ था जिसने सलमान के खिलाफ गवाही दी थी वो तो नायगांव के एक कमरे में टीबी से अकेले लड़ते लड़ते गुमनाम मर गया".-प्रेम शुक्ला
" हाँ, बहुत लोग दुखी हैं ,पर इस सजा से बचने के बहुत पैंतरे अपनाए गए . गलती की सजा तो जरूरी है ".-रश्मि रविजा
 और भी अनेकानेक खरी-खरी प्रतिक्रियाएं मेरे मित्र कुनबे की। ।  अपने दिल की बात! ( कितनों के नाम लिखूं ? सब मेरे अपने हैं। जागती आँखों और चौकन्ने दिमाग वाले!
 इसी मसले पर मेरे मन के  विचार मैंने दद्दू के सामने कहे   "यार दद्दू!एक बड़ा संजीदा मसला है.कोई भी अदालती फैसले की घडी और मानवीय भावना के बीच क्या रिश्ता है?फैसले में तरलता के क्या पैरामीटर हैं?क़ानून अँधा क्यों कहा जाता है?तो क्या उसे भावना में बहना चाहिए? सेलिब्रेटी और आम आदमी पर कोर्ट फैसले के वक्त भावनाओं के ज्वार या इमोशनल कोशंट पर जमीर या कॉन्शस या अन्तरात्मा की आवाज का वजूद कितना है या होना चाहिए?  
              दद्दू! देखो मेरी वॉल  पर विदूषी पुष्पा तिवारी  का नजरिया-   "कानून तो लिखी हुई इबारत है । जो परेशानी में है उसकी मानसिकता अलग है वकील की अलग ।सारा दारोमदार तीसरे पर वह कितना अच्छा हो सकता है यह उसकी लियाकत और ईमानदारी पर है । जब अब समय ही सब ( ईमानदारी भावना आत्मा ) शब्दों को व्यथॆ बना रहा है तो अदालत भी तो इंसानों का जमावड़ा है ।" संत राम थवाईत ने कहा- सेलिब्रेटी की पल पल खबर और आम आदमी!
               " बात तो सोलह आना सच है." दद्दू सहमत थे। पर मेरे मन का गुस्सा कम नहीं हो रहा था- मैंने दद्दू से कहा -
" यार दद्दू! लायसेंस ले लो लायसेंस!अक्खे समाज में दूकाने खुल चुकी है.तमाम धार्मिक सिंबल अपने जिस्म पर चिपकाइये और पूरी बेशर्मी से अपराध करने का परमानेंट लायसेंस लीजिये.छद्म धार्मिकता का मुखौटा लगाइये और खुलकर अपराध कीजिए. नौ दिन नवरात्रि में पूजा करो और दसवे दिन फाटे तक दारू पियो!  चैरिटी का ढोंग करते रहिये अपराध पर सजा कम करने कई मगरमच्छ आंसू बहायेंगे.मैं उन कथित छदमवादियो से पूछता हूँक़ि अगर हिट एंड रन  हादसे में आपका कोई बेटा बहन भाई पिता या माँ मर गई होती तब आप क्या सोचते?चैरिटी करना क्या सजा कम करने का सबब हो सकता है?क्या कभी आम आदमी के मामले में "बीइंग ह्यूमन "मुद्दे पर इतनी गहराई से सोचा जाता है?या सब कुछ सेलिब्रेटी के लिए?दो कौड़ी का आम आदमी जाये भाड़ में!  दद्दू का मुंह खुला का खुला था।
            मैंने दद्दू से पूछा।  फिल्म स्टार राजकुमार के बेटे पुरू राजकुमार का भारत का पहला हिट एंड रन केस ( सेलिब्रेटी सन्दर्भ , यूं को कई लोग कीड़े-मकोड़ो की तरह हादसों में मरकर दफन-ए -फ़ाइल भी हो जाते हैं). उस मामले में 1990 में देर रात पुरू ने सड़क पर सोते गरीबो पर कार चढा  दी।  दो  लोग कुचलकर मर गए।  स्टार पुत्र पुरू राजकुमार
खुशकिस्मत था। उसे न जेल हुई न होमीसाइड का आरोप लगा। एक-एक लाख दिया और मामला फिस्स। .
कोर्ट ने मृतको  के परिजनों को 30000 प्रत्येक का मुआवजा दिया। आहत को 5000 .
               सलमान या सेलिब्रेटी के मामले में मीडिया पर भी अंगुलिया उठती हैं।  हादसों में मृतकों या आहटों की सुध क्यों नहीं ली जाती? सभी चोंचले स्टार के लिए? खैर! सलमान को सजा के ऐलान के बाद अनेक सवाल। . कयास। … कोशिशें। । रिएक्शन के दौरों का जलजला चलेगा।  देखते हैं तब तक।  " लेकिन अखबार नवीस ! ये कोर्ट के फैसले  इतनी देरी से क्यों आते हैं?
              "सल्लू के केस पर फैसला आने में 13 साल लगे.... ऐसा कब तक चलेगा? अदालती फैसला सर आँखों  पर  लेकिन अगर न्याय जल्दी मिले और वह भी पूरी पारदर्शिता से ,तब न्याय व्यवस्था पर आम आदमी का भरोसा और भी बढ़ जाएगा, ऐसा  मुझे लगता है। "- दद्दू ने दो-टूक बात कही।
 " सच्ची बात दद्दू !    इस मसले पर तो समूचे भारत को सोचना चाहिए। … तब तक किसी को भी अगर ये वाला उपन्यास मिलेगा
Doctor jekyll and mister hyde  तो  जरूर पढियेगा। फिर मिलते हैं। .....