लघुकथा ;इक्कीसवी सदी का महाभारत
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इक्कीसवी सदी की बात है .किस्सा महाभारत नाम के देश का है .संसद का शीत सत्र चल रहा था .भयंकर कोहराम की वजह से उनकी अगुवा बारम्बार अपील कर रही थी -प्लीज प्लीज शांत हो जाइए . बेअसर होती इस अपील को उन तमाम जुओं ने भी हैरत से देखा जो नेताओं के कानों पर रेंगने की फिजूल कोशिश कर रही थीं .कुर्सी फेक,हंगामा ,बदस्तूर जारी रहा .कुछ आपस में लड़ रहे थे ... धींगा मुश्ती... एक -दूसरे पर आँखें तरेरना ... झूमा -झटकी रोक टोक पर भी जारी थी .कुछ सांसद अच्छे भी थे जो गंभीरता से विचार मंथन में लगे थे
यूं तो अखबार नवीसों को महाभारत की संसदीय कार्रवाई देखने का न्योता मिला करता था. इस बार अगुवा ने तय किया कि सांसदों को प्रशिक्षण के लिए ले जाया जायेगा .खबर मिलते ही उनकी बांछे खिल गईं.देशी अस्पतालों के बदले बिदेसी अस्पताओं में इलाज करने के शौकीन सांसद तो आखिरकार नहीं ही जाने वाले थे , सो नहीं गए .
" शांत हो जाओ बच्चों ... हल्ला नहीं करना आप तो बच्चे हो ... समझदार हो . टीचर के कहते ही बच्चे खामोश हो गए ." उन सभी सांसदों ने देखा जो प्रशिक्षण के लिए स्कूल पहुंचे थे .बगलें झांकते हुए एक - दूसरे का थोबड़ा देखने लगे . कुछ देर के भीतर ही सभी सांसद बाहर शोर मचाने लगे .प्रिंसिपल साहब के आने तक वे बाहर इसी तरह शोर मचाते रहे .इधर बच्चों का ध्यान भंग होता देखकर टीचर ने पहले तो कोहराम मचाते सांसदों की ओर देखा और दूसरे ही पल बच्चों से सवाल किया - " बच्चों ! चलो बताओं कुत्तों की पूंछ टेढ़ी क्यों होती है? कुछ ही देर में सांसदों के दल से उनके अगुवा ने कहा ... चलिए .... हम सब अब कल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मिलेंगे नमस्कार..."
1:19 am
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