शनिवार, 26 दिसंबर 2015

मोदी बन गए बेनजीर ! या अँधेरे में तीर !

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मोदी  बन गए बेनजीर   ! या अँधेरे में तीर !



बिरियानी टू बर्थ डे डिप्लोमेसी..,गुडविल दौरा..गिफ्ट और .सरप्राइज डिप्लोमेसी ...ब्रेकफास्ट काबुल में , लाहौर में चाय ,.....क्रिसमस के दिन चौकाने वाली यात्रा के बरक्स सचमुच का बड़ा दिन .....और अपने -अपने नजरिये का तूफ़ान  और जिन लाहौर नहीं देख्यां ...उसने क्या जिया  ......न जाने कितने जुमले पीएम मोदी की चौकाने वाली हवाई यात्रा से उड़कर दिमागों में तूफ़ान मचा गए .सोचने वाली बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के रोज नवाज शरीफ की नातिन का ब्याह, खुद शरीफ का जन्मदिन  अटल बिहारी वाजपेयी  और पाकिस्तान के   संस्थापक   मुहम्मद अली जिन्नाह का भी जन्मदिन था . जिन्ना का जिक्र किसी ने नहीं किया!मोदी- शरीफ मुलाक़ात पर  हर तरफ बवाल के बादल गरज रहे हैं .
                      वाह रे कुदरत! २५ तारीख यानी जुम्मे और पूर्ण चन्द्र की यामिनी में  ही अफ़ग़ान , पाकिस्तान और दिल्ली के कुछ इलाकों में भी भूकम्प के झटके महसूस किये जाएंगे इसका अंदाज किसी को नहीं था . प्रकृति जनित भूकम्प का केंद्र अफ़ग़ान था लेकिन यकीनन हर सोच के पंथियों ने अपने भीतर महसूस किया .और यकीनन यह भी सवाल किया अपनी सोच के आईने को देखकर की क्या " शरीफ के घर जाकर क्या पीएम मोदी खुद ही बेनजीर हो गए?सभी को मालूम है की मोदी रूस और अफ़ग़ान के दौरे पर थे और यकायक पाकिस्तान उसमें जुड़ गया .
                 पी एम मोदी की अचानक    पाकिस्तान यात्रा को    ऐतिहासिक इस  लिहाज से भी कहा जा रहा है कि ११ बरस बाद कोई भारतीय पीएम पाकिस्तान की यात्रा पर बवालिया स्टाइल में पहुंचा था ..पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से लाहौर गए थे ., मोदी काबुल से गए .फिर भी  यह सच है कि  अपनी शोमैन शिप के चलते    चौकाने की यह हैट्रिक   बनाई है मोदी ने .                
               .पहली दफे नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर ,दुसरे बार पेरिस की जयवायु कॉन्फ्रेंस में फौरी बात कर . और अब यह तीसरी .बार .बोलने को टू पीएम के लाहौर जाने की जानकारी किसी को नहीं थी . होती भी कैसे ? पहली बात वो कोई आम आदमी तो हैं  नहीं. दूसरे- पीएम का विशेषाधिकार  और शीर्ष सुरक्षा मसला . तीसरे- अगर पहले से ही लाहौर जाने का ऐलान कर देते तो प्रतिक्रियावादियों का कोहराम कितना गूंजता . उन रिएक्शनरियों में  पाकिस्तान के कठमुल्लई नजरिये  वाला कुनबा और भारत के कान फाडू शोर मचाने वाले दक्षिणपंथी सियासी गिरोह भी क्या शामिल नहीं हो जाते?फिर भी जो प्रतिक्रियाएं हुई वो आपने देखी और सुनी भी .
                       अचानक लाहौर यात्रा का मतलब क्या?-शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा .आश्चर्यजनक तरीके से माकपा अगुवाई के वाम मोर्चा ने इसका स्वागत  किया .भाकपा के डी. राजा ,और  कश्मीर के सीएम उम्र अब्दुल्ला ने भी सकारात्मक राय दी ..अमरीका ने मोदी और शरीफ़ की बातचीत का स्वागत कर कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते सुधरना दक्षिण एशिया के हित में है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ेगी.'द वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ मोदी ने परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक के गर्म-ठंडे रिश्तों पर रीसेट बटन दबाकर अगले महीने होने वाली समग्र वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.'द शिकागो ट्रिब्यून' की रिपोर्ट कहती है कि अचानक हुआ
मोदी का यह दौरा इस बात की तरफ़ इशारा भारत-पाक रिश्तों में गर्माहट आ रही है.
श्रीलंकाई अख़बार 'श्रीलंका गार्डियन' का कहना है कि शांति चाहने वाले भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की कामना होगी कि अगला साल दोनों देशों के बीच शांति और सौहार्द लेकर आए.
                        जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है।कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मोदी की पाक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी और शरीफ के बीच मुलाकात एक उद्योगपति ने पहले से ही तय कर रखी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा पहले से ही एक उद्योगपति की पहल पर तय होने के कांग्रेस के दावे पर भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में ऐसा विपक्ष है जो हर सकारात्मक प्रयास में नकारात्मक ही देखता है।
                              मोदी के पाकिस्तान दौरे से आतंकी हाफिज़ सईद बौखला उठा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने कहा है कि नवाज़ ने दुश्मन का स्वागत किया है और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की जनता को सफाई देनी चाहिए।हाफिज़ ने कहा कि पाकिस्तान को अपना सबसे
 बड़ा वकील समझने वाले कश्मीरी, पाकिस्तान में मोदी के स्वागत को देखककर रो रहे हैं।              
                      यात्रा को लेकर दक्षिण एशिया मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय:" इस तरह सबको अचंभित कर देना एक तरह से नरेंद्र मोदी की कूटनीति को परिभाषित करने वाली शैली बन गई है.वे ख़ुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या करना है. किसी को कुछ पता नहीं होता  इसलिए सारे लोग
 अंधेरे में तीर चलाते रहते हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री को पता हो कि वे क्या कर रहे हैं.जहां तक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी के अंधेरे में तीर चलाने की संभावना है तो वो ऐसा करने
वाले पहले प्रधानमंत्री नहीं है. इससे पहले भी, पाकिस्तान को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों ने अंधेरे तीर चलाया है. लेकिन इससे कुछ हासिल होता नहीं है.
                  अब देखिये किस तरह के सवाल उठा करते हैं ..भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए जो बातचीत चल रही है, ये साफ़ है कि उसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है.पाकिस्तानी सेना भी समझती है कि रिश्तों को बेहतर करना चाहिए लेकिन उसकी आशंका
 इस बात को लेकर रहती है कि बातचीत केवल चरमपंथ तक ही सीमित न रह जाए और कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट जाए.यह सवाल उठा कि क्या पाकिस्तानी सेना को मोदी
  के इस दौरे के बारे में मालूम था सरकार के लोगों का कहना है कि सेना की रजामंदी के बिना इतना
 बड़ा फ़ैसला नहीं लिया जा सकता.चूंकि यह भी सच है कि मोदी के लाहौर सफर के रोज पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन  भी था .क्या किसी को  इस मोदी एपिसोड में वाजपेयी  की  विदेश नीति के अक्स का टुकड़ा नजर आया?
                      वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने भी अपनी  आशंका जाहिर कि है .एक तो क्या पाक सेना मोदी की यूनिक अग्रेसिव डिप्लोमेसी में रुचि लेगी ? दूसरे क्या एक नई सुबह होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल  है .    इससे भी गम्भीर सवाल यह भी है कि इस दौरे के पीछे कोई अमेरिकी दबाव तो नहीं? पाकी जनरल राहील शरीफ को अमेरिका ने क्या हो सकता है यह ताकीद भी की थी .तालिबानी और कट्टरपंथियों के सैन्य अभियान पाक के सिरदर्द बने हुए हैं .
      दरअसल  पाक पर भारत से वार्ता करने जबरदस्त दबाव है .अमूमन यही स्थिति भारत के भी साथ है .शायद सुपर पावर्स अमेरिका- चीन- रूस के दरम्यानी  खींचतान  का एक अनिवार्य  हिस्सा  भी! सुपर पावर्स की खींचतान इस लिहाज   से भी एक तरफ तो अमेरिका परस्ती आज की मौजूदा एक-ध्रुवीय दुनिया की जरूरत बन गयी है .. दूसरी तरफ बकलम मीडिया गुरु रमेश नैयर ,"मोदी की काबुल और मास्को यात्रा में विशवास और आत्मीयता बढ़ने की ललक थी  और लाहौर औपचारिकता .चीन बहुत बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत भी है . मोदी को अंतस की यात्रा पर निकलने का समय निकालना होगा ."
                  मैं तो व्यापारी हूँ - मोदी खुद क़ुबूल करते हैं . इस लिहाज से  स्टील कारोबारी सज्जन जिंदल की मोदी के साथ मौजूदगी क्या इशारा करती है?वे शरीफ और मोदी दोनों के ही करीबी हैं .अब मोदी की इस यात्रा से भारत के लिए बरास्ता  पाकिस्तान अफ़ग़ान और मध्य एशिया जाने का रास्ता खुल जाएगा .वहां की खनिज सम्पदा से भारत लाभान्वित होगा ,बड़े बाजार का रास्ता खुलेगा यह खुशफहमी जो वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने जाहिर की है अगर   हकीकत में बदल जाती है तो वाह वाह !
                        बहरहाल अगर आम आदमी के मनोविज्ञान की बरक्स सोचा जाये तो दुश्मन  से भी अगर मुलाकातें अनायास या सायास भी होती रहें तो बुराई क्या है?मुलाकातों की ऊष्मा कभी  न कभी कठोर रिश्ते की पिघलती बर्फ के दरम्यान  मसलों के हल की राह दिखाती ही  है  .विदेश  नीति और मसले इतने  सहज नहीं जो अलादीन के चिराग घिसकर समाधान निकाल दें .बंद दरवाजे खोलने का साहस और दिलदारी सभी को दिखानी होगी . यकीनी तौर पर कहावत सही है ," रोम वाज़ नॉट बिल्ट इन अ डे बट आफ्टर  आल इट वाज़ बिल्ट! लिहाजा .जारी रखी जानी चाहिए कोशिशों की नजीरों का बनना.  लब्बो लुबाब यह कि वक्त ही तय करेगा कि कायनात अँधेरे में  तीरों का उड़ना देख रही है या फिर मोदी बन गए बेनजीर!

               
             

                         



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