शनिवार, 30 अप्रैल 2011

बसंती! इन कुत्तों के सामने मत नाचना!!!!!

Posted by with No comments
बसंती! इन कुत्तों के सामने मत नाचना!!!!!




कुत्तों की भाषा के डिजिटल  अनुवाद की खबर अरसा पहले किसी अखबार में छपी थी.  खबर में कहा गया था कि जापान की ताकारा कम्पनी ने डिजिटल अनुवादक भी तैयार कर लिया है.उस वक्त बात आई-गई हो गई लेकिन मैंने सोचा  की आने वाले समय में  हो सकता है पशु-पक्षियों की भाषा या मनोभावों तो ताड़ना इस डिजिटल अनुवादक के जरिये आसान हो जाये. फ़िलहाल की स्थिति में जैक लन्दन के उपन्यास CALL OF THE WILD  में प्राणियों और मानव के अंतर संबंधों की सबसे दार्शनिक और दो -टूक व्याख्या की गई है.
                                बहरहाल सोचिये,कुत्ते( सम्मानजनक भाषा में श्वान )किस वक्त क्या सोच रहे है, अगर डिजिटल अनुवादक यह बता दे तब रोजमर्रा की जिंदगी में कैसी-कैसी परिस्थितियां बन सकती हैं?  यकीनन ऐसा होने पर कई कुत्ता मालिकों की पोल खुल जाएगी और कामेडी और ट्रेजेडी के प्रसंग ठहाको और विचार के मुद्दे बन जायेंगे.
                          समय:                      आने वाले सालों में कभी भी 
                           स्थान व् दिन:          कहीं किसी रोज 
मल्टीप्लेक्स से लगा हुआ एक अखबार का दफ्तर है.सामने श्वान समूह की भारी भीड़ देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है की वे काफी गुस्से में हैं.नुकीले दांत दिखाकर एक श्वान गुर्राया,अब हम बर्दाश्त नहीं करेंगे कि कोई आदमी बार-बार यह कहे -- अबे कुत्ते..   कुत्ते की औलाद .. कुत्ते कहीं के! हम इंसानों को तो कभी नहीं कहते -अबे आदमी... आदमी की औलाद.. आदमी कहीं के!
                               नेता के घर का कुत्ता चाटुकारों की चमचागिरी देखकर मुस्कुराते हुए पडोसी दद्दू के घर के श्वान से कह  रहा था ," तुम ही बताओ यार!अब यह कहना कहाँ तक सही है कि कुत्तों की तरह दुम मत हिलाओ!" मंत्रालय के बाहर गपियाते श्वान समूह में यही चर्चा था ... देखा यार!नेताजी किस तरह मुख्यमंत्री के सामने दुम हिला रहे  हैं!
                           यकायक दो युवा श्वान किसी बात पर झपट पड़े.नोच-नोच कर एक-दूसरे को लहू लुहान कर  दिया.बूढ़े सीनियर श्वान ने समझाइश दी," नालायक ! बेशर्म कहीं के!अच्छी भली श्वान की जिंदगी मिली है ,ये क्या इंसानों की तरह एक-दूसरे की मिटटी-पलीत कर रहे हो?" दोनों ने सामने के दोनों पाँव( या हाथों) से शेक हेंड कियाऔर पतली गली से खिसक लिए.
                              किंग्स पार्क के आगे एक युवा श्वान युगल जैसे ही मिले उनकी आँखे चार हुई और दद्दू समझ गए  पूर किस्सा  ..... " आती क्या खंडाला!!!!"थोड़ी ही देर बाद वे दोनों वहां से गायब थे.उस रोज दद्दू के श्वान का मूड था पिक्चर जाने का.पडोसी  गर्ल फ्रेंड के साथ फर्स्ट शो देखने चल दिए.कुत्ता नम्बर -1,डान डाबर मेन ,पामेरियन आर फ़ारेवर, श्वानवंषम ,  2015-एक श्वान कथा,.. ढेर सारी फ़िल्में लगी थी. 
               काफी हाउस में दो बूढ़े श्वान डान हर्मन शेफर्ड और टच टेरियर उलझ पड़े थे.शेफर्ड ने कान खड़े करते हुए खिंचाई की," यार टेरियर! जरा तो ईमानदारी रख.तेरे जैसे घटिया श्वान ने बिरादरी की नाक कटा दी .सम्मान पाने की इतनी भूख कि राजधानी जाकर कुत्तालय में सेटिंग कर ली और श्वान रत्न का पुरस्कार जुगाड़ कर लिया.श्वान समुदाय चिंतित था.श्वान श्री,श्वान वाचस्पति जैसे पुरस्कार " फिक्सिंग " कर कुछ खूसट श्वान लपक रहे थे.इसी बीच श्वान गाथा  वेब साईट ने भी अपने पुरस्कारों का ऐलान कर दिया था.सत्ता से उनकी सेटिंग अच्छी थी लिहाजा पुरस्कार जिन्हें मिलाने वाला था  उनके लिए तो " मोगाम्बो खुश हुआ" और जो वंचित रह गए वे आसमान की और मुह उठाकर ऊ SSSSS  की ध्वनी निकल रहे थे.
                        किसी घर में मिसेज श्वान ने मिस्टर श्वान की आँखों में झांककर कहा,"एजी!आप कितने अच्छे हो!भुलक्कड़ ही सही पर आदमी की तरह बेवफा तो नहीं जो उम्रदराज होने पर भी कहीं भी लार टपकाते  ...मुह 
मारते फिरते हैं! हम तो सावन में ही बदनाम है .साहित्यकार  "सावन के कुकुर" कहकर मसखरी करते है. और नामुराद ... मुए आदमियों का तो हर वक्त ही " सीजन " होता है.
                           डिजिटल भाषा डिकोड करने की वजह से दद्दू अब समझने लग गए थे की शिर्डी में मंदिर के सामने श्वानों को दूध क्यों पिलाया जाता है.मेहनत के बावजूद पुलिस महकमे के श्वान स्क्वाड में खासी फुर्ती थी.स्वामी भक्ति का पर्याय बनाये जाने से भी वे खुश थे.फिर भी कुत्ता संबोधन का सरे आम प्रयोग किये जाने पर उन्हें सख्त आपत्ति थी.
                                 आपत्ति इस डायलाग पर भी थी की धर्मेन्द्र ने फिल्म  शोले में कहा,"बसंती! इन कुत्तों के सामने मत नाचना."क्यों!.. बसंती कहे नहीं नाचेगी?.. हम कुत्तों की  कोई इज्जत नहीं है क्या?आगे ऐसे वाहियात डायलाग बंद नहीं हुए तो हम भी अपनी श्वान  बिरादरी में फतवा जारी कर देंगे,"," टामी! इन इंसानों को देखकर मत भूकना ." लेकिन हम इंसान थोड़े ही हैं... हमारा जमीर अभी जिन्दा है.
                                 दद्दू उस रोज बेहद  चिंतित थे.श्वानोत्सव देखकर लौटे उनके श्वान परिवार में जूनियर श्वान विचित्र हरकतें  कर रहा था.हालत बेकाबू होते देखकर दादी श्वान ने अनुभवी आँखों  से ताड़कर कहा," बेटा  ब्रूट!जल्द इसे डाक्टर के पास ले जाओ  . मुझे लगता है इसे जरूर किसी पागल आदमी ने काट खाया है. इंजेक्शन लगवाना और उस आदमी पर भी नजर रखना .  कही वो आदमी मर गया तो अपने पर आफत आई समझो. !
                                   सुबह जूनियर श्वान को लेकर तफरीह पर निकले थे दद्दू .रास्ते में कई साइन बोर्डों पर नजर पड़ी-  दाग्फोर्ड  यूनिवर्सिटी ,श्वानालय,होटल श्वान,श्वान विला, रेस्टोरेंट  भौं भौं,उसी रोज किसी अखबार में खबर भी छपी थी की जिला चिकित्सालय में आदमी काटने के इंजेक्शन  भी नहीं हैं . बूढी श्वान दादी ने धमकाया सभी पिल्लों को " खबरदार !!!! किसी आदमी के पास मत फटकना."
                    अब आप सोच रहे होंगे की भला दद्दू को श्वान भाषा में कैसे महारत हासिल हो गई!भाई! सो सिम्पल...कुत्तों की भाषा के डिजिटल अनुवाद के बाद इतनी तरक्की नहीं हो सकती की अपने दद्दू श्वान भाषा में ही पी एच डी कर ले!तभी तो वे समझ गए की तफरीह के समय   अमीरचंद का श्वान जो लबादा ओढ़े हुए था फुटपाथ पर अधनंगा बदन सोये बच्चों को देखकर हिकारत से मुह फेर रहा था . मिडिल क्लास श्वान ने अमीर श्वान को खीझ भरी निगाह से देखा . पास में खड़े एक रोडेशियाँ कुत्ते ( सड़क छाप)  ने  मन में सोचा कि कुत्ते का बच्चा अपने हिंदुस्तान में हजारों  रूपये  में  मिलता है   और  कई नवजात शिशु ....डस्टबीन में!!!!  उन्हें गोद लेने वाले तक नहीं मिलते!!!!  मिडिल क्लास श्वान ने कथरी ओढ़े  इंसान के बच्चों को अपनी जीभ से दुलारा और चलते-चलते गुनगुनाने लगा 
                                             मुफलिस को तो कोई चादर नहीं नसीब
                                            कुत्ते अमीरों के हैं लपेटे हुए लिहाफ!
                                                                                                                  

                                                                                                                        किशोर दिवसे 
                                                                                                       

                                  
                                          
                               
 

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें