गरमी, सर्दी या बारिश ... मौसम चाहे कैसा भी हो हमारी बातचीत का एक जुमला तयशुदा होता है .सर्दियों में बाप रे!कितनी ठण्ड लग रही है!बारिश में ... ओफ ओह... क्या घनघोर बारिश है!और आज जब लू के थपेड़े चल रहे हैं हम यह कहने से नहीं चूकते "क्या जबरदस्त गरमी है यार!अब आप ही बताइये अप्रैल और मई में आसमान से सूर्यदेव आप पर अंगार नहीं बरसाएंगे तो क्या फूल फेकेंगे?
फिर भी हर एक इन्सान खुश है कि आग उगलते मौसम में तरावट लाने जलजीरे का शर्बत है... बर्फ के रंगीन रसभरे गोले .. गन्ने का रस ... आइसक्रीम .. मौसमी फलों की फांकें... कोल्ड ड्रिंक्स और लस्सी... वाह -वाह !!!!दद्दू जैसे अनेक लोगों ने चाहे वे बच्चे ,नौजवान या बुजुर्ग क्यों न हों अपनी जिंदगी में धूप की तल्खियाँ बर्दाश्त की हैं.कुछ लोग जरा सी धूप बर्दाश्त नहीं कर सकते पर यकीनन कई लोग आज भी बड़े गुरूर से यह कहते हुए नहीं चूकते कि-
हम तो सूरजमुखी के फूल है ,पलते हैं धूप में
धूप से खुद को बचने के तौर-तरीके हम सबने सीख लिए हैं.याद है नानी या माँ भी बचपन में कहा करती थी ," बेटा! धूप में बाहर जा रहा है एक प्याज रख ले अपनी जेब में .और हाँ...धूप में कहीं भी रुको तब पल भर रुककर ही पानी पीना.अब तो बनती-बबली से लेकर दद्दू तक की उम्र के लोग भी चेहरे को पूरी तरह लपेटकर धूप में निकलते है.फॉर व्हीलर की सवारियां धूप के शैतानियों से बेअसर होती हैं लिकिन हममें से कई लोग ऐसे है जो यह कह सकते हैं -
धूप में चलने की आदत है हमें बचपन से
जलने लगते हैं कदम छांव में जब होते हैं
फिर भी तेज आंच में ही चांदी और सोने का रंग-रूप निखरता है.हमारी जिंदगी में भी ऐसा है होता है.अनुभवों की गरमी से ही हमारा व्यक्तित्व परिपक्व होता है.शहर कंक्रीट के जंगल बन चुके हैं और दुनियाभर में हर शहर " ग्रीन सिटी बनने को तरस रहा है और चाहिए भी.चिलचिलाती धूप में शहर के भीतर हो या बाहर वृक्षों की छांव कितना सुकून देती है और सर पर ऐसे वक्त अगर कोई साया न हो मन में कसक यूं उठती है-
धूप में मेरे सर पर कोई साया तो होता
काश मैंने भी कोई पेड़ लगाया तो होता
अपने शहर में भी महानगरों की तरह विकास जरूर होना चाहिए पर अपने दद्दू की बात मानो और अपने शहर को भी ग्रीन सिटी बनाने के लिए मुहिम छेड़ दो.अमूमन हर शहर में पेयजल की समस्या शुरू हो चुकी है . अगर सही वक्त पर अपने शहर में वृक्षारोपण ,भूमिगत जलस्रोत और पानी बचने जनचेतना जगाने हम चौकन्ने न हुए तो अपने शहर की हवाएं भी चीखकर कहने लगेंगी-
कितने हँसते हुए मौसम अभी आते लेकिन
एक ही धूप ने कुम्हला दिया मंजर मेरा
यकीन है ऐसा नहीं होगा पर " डर्मीकूल का मौसम " आता है तब डियो और किस्म -किस्म के परफ्यूम से महकने लगते हैं जिस्म.पसीने में तर-ब-तर शरीरों से उठती गंध बेचैन कर देती है.गर्मियों से मौसम में किसी खूबसूरत से जिस्म से अपनी ओर आते परफ्यूम से भरी हवाओं के झोंके दद्दू को धडकते दिल से यह कहने पर मजबूर कर देते हैं -
तेरे बदन की आंच है की दोपहर कि धूप
जुल्फों के साये को भी पसीना आ गया
तेज गर्मियों के मौसम में हर अर्पिता धरती भी प्यासी हो जाती है.उसकी गोद में खिलने वाले पौधे और फूल मुरझाने लगते हैं .शाम को धूप में ऐसे ही किसी फूल का उदास मुरझाया सा चेहरा देखकर सूरज के जायज गुस्से पर भी गुस्सा आने लगता है. मेरा मन कहता है-
मुरझाया हुआ फूल सरे शाख पर क्यों है
लगता है चूमा है किसी के आतिशी लब ने
खैर मौसम की धूप हो या तेज गर्मियों के थपेड़े ... जिंदगी का पहिया तो घूमता ही रहेगा गर्मियों का भी आनंद लीजिए पर मौसम से अलहदा बात अगर जिंदगी की तल्ख़ धूप की हो तब अपने -आपको छांव की तरह सुकून देने वाला बनाए रखिए.गर्मियों में अपना और अपने पूरे परिवार की सेहत का अच्छी तरह ख्याल रखिए. और हाँ.. अपना चेहरा आईने में देखकर मुझे यह जरूर बताइयेगा की क्या आप सचमुच वैसे ही हैं जैसा में आपके बारे में सोचता हूं -
रुके तो चाँद, चले तो हवाओं जैसा था
वो शख्स धूप में देखूं तो छांव जैसा था
किशोर दिवसे
1:14 am
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें