सोमवार, 25 अप्रैल 2011

कौन है व्यापारी और उसकी चार पत्नियाँ !

Posted by with 3 comments


कौन है व्यापारी और उसकी  चार पत्नियाँ !
सुनो विक्रमार्क! एक अमीर व्यापारी की चार पत्नियाँ थी.वह अपनी चौथी पत्नी को सबसे ज्यादा प्यार   करता था और दुनिया की सबसे बेहतरीन सुविधा मुहैया कराता.अपनी तीसरी पत्नी से वह अपेक्षाकृत कम प्यार करता था.अपने दोस्तों को भी दिखाया करता पर डरता भी था कि वह किसी के साथ भाग न जाये.अपनी दूसरी पत्नी से वह व्यापारी और भी कम प्यार करता.वह समझदार और व्यापारी की भरोसेमंद थी.जब भी व्यापारी किसी मुसीबत में होता दूसरे नंबर की पत्नी उसे मुश्किलों  से उबार लेती.
                        अब व्यापारी की पहली पत्नी की बात.उस पहली पत्नी ने व्यापारी की तमाम दौलत  और कारोबार संभाला तो था ही घर की  देखभाल भी की. लेकिन  वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी से बिलकुल प्यार नहीं करता था.जबकि सच यह था कि पहली पत्नी उसे बे इन्तहां  प्यार करती थी.दुर्भाग्य से वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी की तरफ झांकता तक नहीं था.
                                   एक रोज वह व्यापारी बीमार पड़ गया.उसे लगा कि वह जल्द मर जायेगा.व्यापारी सोचने लगा,"मेरी चार पत्नियाँ हैं .मरने  के बाद तो मैं कितना अकेला रह जाऊंगा! जबकि अभी तो मेरी चार पत्नियाँ हैं."घबराकर व्यापारी ने अपनी चौथी पत्नी से पूछा ," तुम्हें मैंने सबसे ज्यादा प्यार किया.जो माँगा वो दिया. अब तो मैं मर रहा हूँ.क्या तुम  साथ चलकर मेरा साथ दोगी?
                            " क्या बात करते हो जी!यह सब छोड़कर मैं भला क्यों जाऊ?" इतना कहकर चौथी  पत्नी बगैर व्यापारी की और देखे चली गई.व्यापारी के दिल पर पहला छुरा चला था.उदास होकर उसने अपनी तीसरी पत्नी से कहा,"चौथी से कम सही सारी जिंदगी मैंने तुम्हें बहुत चाहा.मैं अब मर रहा हूँ.तुम भी मेरे साथ चलो न!"
                              " नहीं ...नहीं.. कितनी खूबसूरत है यहाँ की जिंदगी...तुम्हारे मरने के बाद मैं दूसरी शादी कर लूंगी."व्यापारी के कलेजे पर यह दूसरा वार था.उसने ठंडी साँसे भरकर दूसरी पत्नी से पूछा,"मुझे हरेक मुश्किल से तुमने ही उबारा है .एक बार मुझे फिर तुम्हारी मदद चाहिए.मेरे मरने पर तुम तो अवश्य मेरे साथ चलोगी ?"
                           " ए जी.. माफ़ करना इस बार मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकूंगी.अधिक से अधिक तुम्हें श्मशान घाट तक छोड़ने की व्यवस्था कर दूँगी." व्यापारी पर एक बार फिर वज्राघात हुआ.उसने मन में सोचा," अब तो मैं कहीं का नहीं रहा." इतने में एक कमजोर सी आवाज उसके कानों में सुनाई दी-
 " सुनो साजन! मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.आप चाहे कहीं भी जाएँ मेरा और आपका साथ हमेशा-हमेशा रहेगा." मायूस व्यापारी ने जब सर उठाकर देखा तब पता चला कि यह कहने वाली उसकी पहली पत्नी थी.एकदम दुबली-पतली,मरियल सी.पश्चाताप के आंसू भरकर व्यापारी ने कहा," प्रिये! काश मैंने तुमपर ही सबसे अधिक ध्यान दिया होता."
                                 " अब बताओ राजा विक्रमार्क वो चार पत्नियाँ कौन हैं?" जानते हुए भी अगर तुमने इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे."-वेताल ने अग्नि परीक्षा  लेनी शुरू की.
                                कुछ पल मुस्कुराते हुए राजा विक्रमार्क ने वेताल को कंधे पर लादा और रवाना हुए गंतव्य की ओर.उनहोंने जवाब दिया-
" सुनो वेताल!दरअसल हम सब पुरुषों की चार पत्नियाँ हैं .शुरू करते हैन्चौथी पत्नी से.चौथी पत्नी हमारा शरीर है.हम इसके लिए खूबसूरत बनाने में चाहे जितना भी समय और धन खर्च करें मरने पर वह हमारा साथ कभी नहीं देगी.हमारी तीसरी पत्नी संपत्ति और स्टेटस है.हम मर जाते हैं लेकिन वे हमारे साथ जाते हैं क्या?हमारी दूसरी पत्नी है हमारा परिवार और बच्चे.सारी जिंदगी हमारे जीते जी चाहे वे कितने भी दिल के करीब रहें वे श्मशान के आगे स्वर्गलोक के रास्ते कभी हमारे साथ होते हैं क्या?"
                    
                         वेताल का दिल अब धडकने लगा था.राजा विक्रमार्क ने अपना चिन्तन जारी रखा," "वेताल! हमारी पहली है हमारी आत्मा.सारी जिंदगी हम उसकी उपेक्षा करते हैं.भौतिक सुख और साधनों के नाम पर वह " पहली पत्नी" तन्हाइयों में बेबस होकर जीती है. और  वही अंतिम यात्रा के बाद भी कहती है, "सुनो साजन!आप चाहे कहीं भी जाएँ मैं आपके साथ चलूंगी.अपनी आत्मा को सच्चे आदर्शों के साथ मजबूत बनाने का यही समय है.आखिर क्यों इसके लिए मृत्यु शैय्या का इन्तेजार करे ?"
                                 राजा विक्रमार्क! तुमने मेरे सवाल का सही जवाब दिया और ये मैं चला... हूँ ...हूँ... हा...हा...के अट्टहास के साथ एक बार फिर वेताल ,महाकाल की नगरी उज्जयिनी की ओर कूच कर गए.
                                                                       शुभ रात्रि.. शब्बा खैर...अपना ख्याल रखिये
                                                                                        किशोर दिवसे 
                                                                                        मोबाइल 09827471743
                           
                               
                                 
                        

Related Posts:

  • हे प्रभु.. तू इन्हें माफ़ कर ....अन्थोनी गोंजाल्विस... हाँ... ट्रेन में सफ़र के दौरान उसने अपना यैच्च नाम बताया था.पता नहीं था मुसाफिराना अंदाज में हुई यह मुलाकात दोस्ती में बदल जाएगी.आज वही अपुन का दिलदार दोस्त अन्थोनी गोंजाल्विस घर… Read More
  • कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखामान लो के दुनिया अगर समंदर है तब आप और हम कश्तियाँ ही तो हुए !हमारा जमीर पतवार की भूमिका अदा करता  है .खुदा  और नाखुदा (नाविक )की अपनी-अपनी अहमियत होती है.किसी की भी हो ,जिन्दगी है तब समंदर … Read More
  • मिले सुर मेरा तुम्हारा ,तो सुर बने हमारा...आज  एकाएक टीवी चैनल पर जब पंडित भीम सेन जोशी के निधन की खबर सुनी .आंखों के सामने उनकी  गीत -संगीत यात्रा चल-चित्र की तरह घूमने लगी.अपनी रूचि के अबूझ पहलुओं को जानने -समझने की उनकी ललक कभी कम… Read More
  • गणतंत्र दिवस मनई ले पर क्या जिगर में लगी आग है. लो आ गया एक और गणतंत्र दिवस!मालूम है ,क्या तोप मार लोगे आज के दिन!टीवी या मैदान पर सन्देश और राज्यों के विकास का " अर्ध सत्य "  बताने वाली झांकियां देखोगे?कर्मचारी इस जुगाड़ में होंगे कि कैसे… Read More
  • आदमी वो है जो खेला करे तूफानों से" सभी कार्यों में सफलता पूर्व तैयारी पर निर्भर करती है.पूर्व तैयारी के बगैर निश्चित रूप से असफलता हाथ लगती है."- कन्फ्यूशियस  यह कथन मुझे सौ फीसदी खरा उस समय लगा जब मैंने पीएस सी की परीक्षा पास क… Read More

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह किस्‍सा पहले किसीने अंगरेजी में मेल किया था, संयोग है या अनुवाद पता नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  2. सरल कथा के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्य समझा गई यह कथा.बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. कथा संदेश तो देती है, पर इसके कहने का अंदाज वही बरसों पुराना है। वही विक्रम और वही वेताल। क्‍या इन पात्रों को आधुनिक नहीं बनाया जा सकता ? फिर भी प्रयास बेहतर है,‍जिसकी सराहना करनी ही होगी। अंत में आपका संदेश भी कम नहीं है, अपना खयाल रखना। आजकल इस तरह की नसीहत कौन देता है भला? कोई अपना ही होता है, जो ऐसा कहता है।

    डॉ महेश परिमल

    जवाब देंहटाएं