जनता की जीत
नवभारत के बिलासपुर एडिशन में पहले पन्ने का बैनर था " जनसमर्थन की जीत". वाकई यह दो टूक सच है.अन्ना के अनशन के सामने सरकार झुकी और पाचों बाते मानने पर मजबूर हो गई.फैसला होते ही जनता जश्न में डूबी नजर आई. जन्तर-मंतर से शुरू हुआ जादू देश भर में बिजली की मानिंद पसर गया. यह तो होना ही था.राजपत्र में छपना दरअसल लोक विजय मानी जाएगी.अन्ना ने मीडिया और देश की युवा शक्ति को धन्यवाद दिया है.
भले ही अलहदा सोच के अनेक गर्द-ओ -गुबार का कोहराम मचता रहा ,आम तौर पर पेपर टाइगर्स और लाइम लाईट की हवस न रखने वाले ही इस आन्दोलन की धुरी में थे.जनविजय का पहला सफा यह बात भी साबित करता है कि नौजवान अगर रचनात्मक भागीदारी निभाए तब देश के सड़े हुए सिस्टमों में आमूल-चूल परिवर्तन की जोरदार भूमिका बनती है. आन्दोलन स्थल पर आए अनेक विदेशियों में से एक राधा माधव ने कहा,"मै यहाँ मोरल वेल्यूज की जीत देखने आया हूँ.यह मैसेज सारी दुनिया में जाएगा."
अन्ना हजारे कह रहे है कि अब हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है. दरअसल जनता अपनी शक्ति की सकारात्मकता को पहचान नहीं रही थी ,अन्ना ने सिर्फ आइना दिखाया है.साथ में नीति निर्धारको को यह भी समझाने की चेष्टा की है कि राजनेता जनता के नौकर है.
अन्ना नेता नहीं , बेहद सीधे इंसान है. महाराष्ट्र का रालेगन सिद्धि गाँव ईमानदारी और नैतिक मूल्यों का साक्षात् प्रतिबिम्ब है जो उनकी प्रमुख कर्मस्थली रही है.अन्ना का व्यंग्य बाण ," काले अंग्रेजों की नींद का उड़ना " मौजूदा सियासत की गलीज पर तीक्ष्नतम प्रहार है.लोक विजय का यह पहला सफा है.पता नहीं " सूचना के अधिकार " जैसे कानूनी अस्त्र को अब तक उतनी तवज्जो क्यों नहीं मिल पाई जो हकीकत में मिलनी चाहिए थी. शायद इसे भी " भ्रष्टाचार विरोधी" ऐसी ही मुखालफत या जन जिहाद की फौरी जरूरत है.
फ़िलहाल आगे आगे देखिए होता है क्या? देश के नागरिको खास तौर पर युवा शक्ति को पल-पल सियासत बाजो की शतरंजी बिसात के सिलसिले में चौकस रहना होगा., न जाने ऐसे कितने जिहाद अभी लड़ने बाकी है क्योकि अभी तो ये अंगडाई है..... मुझे फैज के अल्फाज यहाँ पर मौजू लगते है-
जब अर्ज-ए-खुदा के कबाए से
सब बुत उतारे जाएँगे
हम अहल-ए- सफा ,मरदूद-ए-हरम
मनसद पे बिछाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे,सब तख़्त गिराए जाएँगे...
इन्शाल्ल्ह....आमीन....जागते रहो !!!!!!!!!!!
किशोर दिवसे
मोबाइल 9827471743
1:13 am
आमीन...
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