सोमवार, 25 अप्रैल 2011

आओ बूंदों के पुजारी अश्वमेध पर कूच करें!

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आओ बूंदों के पुजारी अश्वमेध पर कूच करें!
गुस्सैल सूरज  का पारा भड़क गया है और भड़कता ही जा रहा है.लाल आँखों से घूरते सूरज के दावानल का कहर अब दिन दूना-रात चौगुना बढ़ रहा  है.पहले तो धरती के जिस्म में  अनगिनत दरारें पड़ने  लगीं फिर मानव शरीरों से रश्मियों के प्रखर ने बूंदे निचोड़ना शुरू कर दिया .अब तो पराकाष्ठा है ,तपती धूप में  स्वेद स्नान...सूखे कुंड और तालाब...मुह से पानी के बजाए भाप उलीचते हेंडपंप .....कहीं नल के आगे रोते-गिडगिडाते बर्तन भांडों की कतारें और उन मर्तबानों की आवाज से लाखों  गुना कर्कश स्वर में चीखते -चिल्लाते झगड़ने पर उतारू लोग.गाव -खेड़े ,शहर उनके मुहल्लों में यह हालत आम होने लगी है.और  शहरों में तो कम महानगरों की हालत तो पस्त हो चुकी है.
                         बूँदें भाप बनकर उड़ने लगीं.जीवनदायी बूंदों का साम्राज्य रीता हो रहा है.धरती के गर्भ में मौजूद जल संचय का मानव समाज ने उपभोग तो किया पर ऋणानुबंध  के प्रति लापरवाह है समाज.इस कर्ज से मुक्त हुआ जा सकता है बशर्ते बूंदों की पूजा सर्वोपरि समझी जाए.जो बून्दों की रक्षा का संकल्प लेगा.वह होगा बूंदों का पुजारी.खिलवाड़ करने वाले महापातक का नरक भुगतेंगे .कायदे से तो ऐसे लोगों को दण्डित किया जाना चाहिए -जो बूंदों का मर्म नहीं समझते.
                        अश्वमेध का प्रसंग याद आता है.रामायण कालीन अश्वमेध साम्राज्य की आकांक्षा से किए जाने का उल्लेख है.उस समय का अश्व आज का मानव है और आकांक्षा-वही बूंदों की पूजा का संकल्प.तार्किक आधार पर भी सोचें तो अश्वमेध का अर्थ होता है मेध यानि मानव मेधा ( मस्तिष्क ) को अश्व की तरह दौड़ाना.इंसान ने खुदगर्जी के जूनून में जलस्रोतों की बर्बादी की .. गर्भ जल स्रोत सूखते रहे और आज हालत यह है कि-
                          सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ?
अब सही समय है.समाज और सरकार दोनों को ही  चौकन्ना होकर कार्य योजनाएं बनानी होंगी. बेशर्मी की हद तो तब होती है जब बुद्धि के विन्ध्याचल बने लोग  मूर्खता भरी दलील देते है कि अपने शहर में तो उतनी बुरी हालत नहीं है. तो क्या आग लगेगी तब कूवा  खोदोगे!आम आदमी पानी बचाने के प्रति ईमानदार हो गया तो आधा मसला हल. सुदूर गाँव में जहाँ जल-समस्या है वहा सरकार की दुम मरोड़ने के लिए नागरिको और मीडिया को  फौरी पहल करनी ही चाहिए.ढीली-ढाली सरकारी एजेंसियां और पेपर टाइगर तथा धन-दोहन में लगे एनजीओ  गंभीरता से काम करे. बहरहाल छत्तीसगढ़ समेत सारे देश को  जल समस्या के  गहराते खतरे   से बचाने के प्रति  पहरुए बनना सामूहिक जवाबदेही है.लिहाजा आइये... हम सब बन जाएँ बूंदों के पुजारी और एक साथ करें जल-स्रोतों के लिए महा-अश्वमेध का आवाहन .
                                                                                किशोर दिवसे 
                                                                               मोबाइल 09827471743

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