शनिवार, 23 अप्रैल 2011

मेरी जीवन संगिनी

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मेरे सभी  मित्रों ,

अपनी पत्नी सुधा के नाम एक कविता उनके जन्मदिन पर लिखी थी. बहाने इसकी आपको दोस्ताना चुनौती दे रहा हूँ अपनी पत्नी के लिए कविता लिखने की..जो शादीशुदा है वो मौजूद पत्नी के लिए , जो शादी करेंगे वे होने वाली पत्नी के लिए . और जिनकी पत्नी सिर्फ यादो में ही बसी है वे उनकी याद में कविता लिखें. जरा देखें तो सही आप भी कैसा लिखते हैं? मेरी कविता का शीर्षक है-

मेरी जीवन संगिनी

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भोर के सूरज की गुदगुदाती किरन

कुलांचे भारती हिरनी के नयन

गोधूलि का पावस अरुणाभ

इन्द्रधनु का सतरंग हो तुम

जीवन रथ का अटूट चाक

समर्पित मदनिका का उद्दाम ताप

पूजा सी पवित्र तुलसीमाला का

एक अनवरत जाप हो तुम

मेरा जीवन खंडित लौह अंश

उसपर काल के अगणित दंश

कामनाओं के सर्जित होते वंश

इस कल्पतरु का मूल हो तुम

जीवनसंगिनी,सुखनंदिनी....

स्नेहिल संबंधों का मधुमास

अनथक, अमिट, अशेष प्यास

शीतल सूर्य और तप्त चन्द्र

जीवन की अनवरत आस

मेरे नेत्र दर्पण की छाया हो तुम

जानती हो मेरे लिए क्या हो तुम!

संतुष्टि और पंखिल कल्पना

हिम्मत, ऐलान, राह और चाह

सुर्ख गुलाब की कांटेदार टहनी

सुख दुखों की काव्य निर्झरिणी

जीवन की तुम अक्षय ऊर्जा

स्वेद ,ओस श्वास और रक्त

अटूट विश्वास,प्यार हो तुम

वह देखो घूमता काल चक्र

जब थम जाएँगे श्वास ताल

अवश अलौकिक जीवन -जाल

का रेशम तंतु बनोगी तुम

गोधूलि का पावस अरुणाभ

इन्द्रधनु का सतरंग हो तुम
                                            शुभ रात्रि शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिए....
                                                               किशोर दिवसे 

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1 टिप्पणी:

  1. वाह किशोर जी...अपनी धर्मपत्नी के लिये आपके अंतर्मन में बसा अथाह प्रेम शब्दों के रूप में निकल आया है...जिसकी जीवन संगिनी उसकी अक्षय उर्जा हो तो वो फिर कमाल ही करेगा ना...

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