शनिवार, 19 मई 2012

उसने नहीं दी हड्डी इसलिए जुबान में

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क्यूं अखबारनवीस! खुदा  ने अपनी जुबान में हड्डी क्यूं नहीं दी?"- दद्दू ने एकाएक मुझपर सवाल की मिसाइल दागी।खुद को संयत करते हुए मैंने कहा,"शायद उसे किसी के भी बयां में सख्ती पसंद नहीं होगी इसलिए जुबान में हड्डी नहीं दी।"फिर भी नेताओं की कौम है की भड़काऊ बयां लगातार और हर वक्त दिए जाते है।बात  सिर्फ  किसी  एक नेता की  नहीं।हर पार्टी के नेता सांपनाथ हो या नाग नाथ- एक दुसरे  को सियासी हमाम में नंगा करने खिलाफ में बयां पेले पड़ते है मानो   वे जनता को बेवकूफ समझ रहे हो। अब तो आम आदमी भी इन नेताओं की नूरा- कुश्तियों को खूब समझने लगा है। 
                       संसद विधान सभा और नगरीय निकायों की बैठकों के दौरान जन प्रतिनिधियों के आचरण छोटे परदे पर दर्शक देख ही रहे हैं।मजहब को ढाल  बनाकर सियासत का कहर बरपाने  वाली पार्टियों के नुमाइंदों  को हर हाल में इस बेशर्मी से बचना चाहिए।चुनावी माहौल में आरोप- प्रत्यारोप का जलजला समझ में आता है लेकिन शालीनता की कोई हद होती है या नहीं ?"
                          दद्दू कहते हैं जब तक निहायत जरूरी न हो जुबान में कडवाहट नहीं  होनी चाहिए।कबीर ने भी कहा है,"मीठी बानी बोलिए।..यह भी सच है की लीगल ज्यूरिसप्रूडेंस में उल्लिखित ," ईश्वरीय न्याय "या एक्ट आफ  गाड   तथा सामाजिक परम्पराओं के तहत " कडवी जुबान"बेआवाज लाठी का शिकार होती है।जहरीले शब्द उगलने वाले नेताओं तो क्या आम आदमी को भी देर -सबेर सबक जरूर मिलता है।जहाँ तक जुबान में हड्डी नहीं होने का मसला है ,यकीनी तौर पर आज-कल के माहौल में जब सच के गालों पर झूठ को मलने लगे हैं लोग तब इस सच को याद रखना जरूरी है की-
                        खुदा को भी नहीं पसंद सख्ती बयां में 
                       उसने नहीं दी हड्डी इसलिए जुबान में 

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